बुधवार, जून 20, 2018

संपादकीय: नापाक पड़ोसी को नहीं हो रहा दोस्ती के रिश्तों का एहसास

अपने पड़ोसी देश पाकिस्तान के साथ भारत ने हमेशा दोस्ती कायम रखने की नीतियों को प्राथमिकता दी है, लेकिन पाकिस्तान ने भारत की उन्हीं नीतियों के विपरीत जाते हुए हमेशा छल की नीतियों को प्राथमिकता देकर सांप्रदायिक सौहार्द बिगाडऩे की साजिशें रची हैं। भारत-पाक सरहद पर पिछले कई वर्षों से लगातार पाकिस्तानी रेंजरों की तरफ से संघर्ष विराम का उल्लंघन करने की हरकतों को अंजाम दिया जा रहा है। इन्हीं संघर्ष विराम नियमों के उल्लंघन की गतिविधियों को बढ़ावा देते हुए इसी माह दिनांक बारह जून मंगलवार को चमलियाल जीरो लाइन क्षेत्र में नापाक रेजरों ने ऐसी हरकत को अंजाम दिया, जिसने पूरे भारतवर्ष के संयम को झकझोर कर रख दिया।
सांबा सेक्टर के चमलियाल जीरो लाइन क्षेत्र में पाक रेंजरों ने बीएसएफ. जवानों की गश्ती पार्टी पर धावा बोलकर सात जवानों को घायल कर दिया। घायल हुए बीएसएफ  जवानों में से चार ने जख्मों की ताव न सहते हुए वीरगति प्राप्त कर ली और तीन जवान अभी भी गंभीरावस्था में हैं। राज्य जम्मू-कश्मीर सरकार के आग्रह पर केंद्र सरकार ने रमजान जैसे पवित्र माह में सरहद के अलावा आतंकी प्रभावित जिलों में भी अपना संघर्ष विराम लागू कर दिया। रमजान जैसे पवित्र माह की एहमियत को देखते हुए भारत देश ने जिस महानता के साथ हर तरफ  संघर्ष विराम को यकीनी बनाया, उस संघर्ष विराम की आड़ में पाकिस्तान ने आतंकी संगठनों की मदद से हर तरफ अपनी नापाक करतूतों को अंजाम देने में कोई कसर नहीं छोड़ी। जहां एक तरफ  आतंक की आग से झुलसने वाली वादी कश्मीर में आतंकी घटनाएं होती रहीं और मासूमों का खून बहता रहा। वहीं अंतरराष्ट्रीय सीमा पर लागू संघर्ष विराम नियम का भी नापाक पड़ोसी ने पालन करना गवारा नहीं समझा। संघर्ष विराम के दौरान पाक रेंजरों द्वारा सरहद पर की गई इस नापाक हरकत से फिर एक बार पाकिस्तान का वो चेहरा सामने आया है, जो बार-बार भारत के हाथों मिली हार का सामना करने से शर्मसार हुआ है। नापाक पड़ोसी की बढ़ती नापाक हरकतों को देखते हुए अब भारत को भी यही विचार बनाना चहिए कि दोस्ती की अहमियत को न समझने वाले पाकिस्तान को करारा जवाब दिया जाए। भारत ने पाकिस्तान के साथ हमेशा अपने बेहतर रिश्ते बनाए रखने पर बल दिया। लेकिन भारत की इस सोच का पाकिस्तान ने हमेशा गलत फायदा उठाया। भारत जैसे महान देश का पड़ोसी होना पाकिस्तान के लिए सबसे बड़े गर्व की बात थी। लेकिन पाकिस्तान ने बजाय गर्व महसूस करने के, उल्टे जलन की भावना पाल ली। ऐसा करके पाकिस्तान ने अपने कदम उन रास्तों की तरफ  बढा लिए हैं, जहां से विनाश की शुरूआत होती है। भारत-पाक विभाजन से लेकर वर्तमान समय तक भारत देश ने अपने पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के साथ हमेशा अच्छे सबंध और भविष्य के मजबूत रिश्तों को बनाए रखने की पहल की है। बीते सात दशकों से भी अधिक समय में भारत ने पाकिस्तान के साथ ऐसे कई दोस्ताना प्रस्ताव रखे। लेकिन नापाक पड़ोसी हमेशा बेगुनाहों के लहु की मुहर लगाकर अपनी कायराना हरकतों का सबूत देते हुए भारत के इन दोस्ताना प्रस्तावों को नकारता आया है। पूरा विश्व जानता है कि भारत के आगे पाकिस्तान की कोई ऐसी औकात नहीं जिसके बल पर वह कुछ कर दिखाने का माद्दा रखता हो। सन् 1965 तथा 1971 भारत-पाक युद्धों में भी पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी थी। बार-बार मुंह की खाने वाले पाकिस्तान को अपनी गलतियों से सबक लेते हुए भारत से अपने सबंध बेहतर बनाए रखने पर बल देने की जरूरत थी। लेकिन नापाक राहों पर निकलने वाले पाकिस्तान ने हमेशा भारत को आघात पहुंचाने के अपने नए-नए हथकंडे अपनाए। आमने-सामने की हिम्मत ना जुटाने वाले पाकिस्तान ने छिपकर वार करने की नीतियों को प्राथमिकता देना शुरू कर दिया। पाकिस्तान द्वारा अपने स्तर पर ऐसे कई आतंकी संगठनों का समर्थन कर भारत को आघात पहुंचाने की योजनाएं तैयार की गईं। हमारे देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री माननीय अटल बिहारी बाजपेयी द्वारा पाकिस्तान के साथ मजबूत रिश्तों की नई शुरूआत करते हुए दिल्ली-लाहौर बस सेवा शुरू करवा कर नया इतिहास कायम किया। वहीं वर्ष 1999 के दौरान पाकिस्तान ने भारत की पीठ पीछे वार करने के उद्देश्य से कारगिल युद्ध शुरू कर दिया। पाकिस्तान द्वारा रचा गया कारगिल युद्ध का षड्यंत्र पूरे विश्व में उसकी नापाक करतूतों का सबसे बड़ा सबूत उभर कर सामने आया।
आतंकियों की मदद से भारत की सरहदों को पार कर कारगिल क्षेत्र में अपना कब्जा जमाकर भारत को आघात पहुंचाने के मंसूबे पालने वाले पाक रेंजरों का भारतीय सैनिकों ने नामों निशां मिटा डाला। इस युद्ध की मंशा रखने वाले पाकिस्तान को यह एहसास नहीं था कि जिस देश के साथ वह मुकाबला करने निकला है, उसके आगे उसका यह षड्यंत्र कोई प्रभाव नहीं छोडेगा। कारगिल जैसे युद्ध को अंजाम देने के लिए पाकिस्तान द्वारा खुद के रचाए गए षड्यंत्र उसी पर भारी पडे और भारत के हाथों एक बार फिर पाक को मुंह की खानी पड़ी। अभी जिस तरह से आतंकवाद, सरहद के तनाव तथा आतंकियों को घुसपैठ करवाने के लिए पाकिस्तान बार-बार भारत के संयम की परीक्षा ले रहा है। कहीं ऐसा न हो कि भारत के सब्र का बांध टूट जाए, और पाक का विश्व के नक्शे से नामों निशां मिट जाए।

बुधवार, अप्रैल 04, 2018

छोटी ही उम्र से सुरों के बेताज बादशाह बनकर अजीत पाल बिखेर रहे अदाओं के जलवे

दीपाक्षर टाइम्स संबाददाता
जम्मू।

पंजाब की धरती पर जन्मे -पले अजीत पाल शर्मा आज सुरों के बेताज बादशाह बनकर हर तरफ अपनी अदाओं के जलवे बिखेर रहे हैं। स्कूल की चारदिवारी तथा गली नुक्कडों से शुरू हुआ उनकी जिंदगी का सफर आज कामयाबी की राहों पर है। कम समय में अपनी विशेष पहचान कायंम कर चुके अजीत पाल शर्मा उन बुलंदियों को छूना चाहते हैं, जिनको समाज प्रेरणा की नजर से देखता है। पडोसी राज्य पंजाब के गांव जीरा फिरोजपुर में अजीत पाल शर्मा का सन् पन्द्रहं जनवरी 1974 को जन्म हुआ। सन् 1986 के दौराण छठी कक्षा में श्री सावन मल अगरवाल पब्लिक स्कूल जीरा फिरोजपुर के स्टेज-शो गायकी के सफर में अपना पहला कदम रखा।
स्कूली समारोह में अपनी सुरीली आवाज की छटा बिखेरने वाले अजीत पाल शर्मा को पढाई के दोराण गायकी, नुक्कड़ नाटकों में अपनी अदाकारी की प्रतिभा को दर्शाने का मौका मिलता रहा। फिरोजपुर जिले के इसी स्कूल से सन् 1993 में बाहरवीं की कक्षा उतीर्ण करने के बाद उन्होंने गायकी, कलाकारी, अदाकारी और समाजसेवा के कार्यों को विशेष महत्व दिया। सन् 1984 में पंजाब के बिगडे हालातों के दौराण उनके पिता श्री राम दास का निधन हो गया। पिता के निधन के बाद परिवार अकेला पड़ गया और सन् 1993 में माता पूरो देवी अपने परिवार को लेकर पुशतैनी गांव सहजादपुर रामगढ़ पहुंच गईं। सहजादपुर में पहुंचने पर अजीत पाल शर्मा ने समाजसेवा हेतू पहले ग्रामीण यूथ सेवा क्लब का चयन कर उसका नेेतृत्व संभाला।
समाजसेवा के साथ उन्होंने अपने अदाकारी, कलाकारी और गायकी के जज्वे को ठंडा नहीं पडने दिया। गांव स्तर, पंचायत स्तर, ब्लाक स्तर, तहसील स्तर पर जहां भी उनको अपनी प्रतिभा को दर्शाने का कोई मौका मिला, उस मौके को उन्होंने बेकार नहीं जाने दिया। वर्ष 2012 के दौराण प्रादेशिक संस्कृतिक अकादमी जम्मू ने उनको अपने स्तर पर बाबा सिद्ध गोरिया स्थल स्वांखा में भक्ति रस कार्यक्रम के आयोजन का मौका दिया। अजीत पाल शर्मा को मिले इस मौके से उनकी जिंदगी का पांसा ही पलट गया। देखते ही देखते उनको एक शहर से दूसरे शहर, जिला स्तर, राज्य स्तर पर आयाजित होने वाले समाजिक, धार्मिक कार्यक्रमों, जागरूक्ता कैंपों, किसान मेलों में अपनी प्रतिभा के जलवे बिखेरने के मौके मिलते रहे। अकादमी व प्रशासन की तरफ से मिले इन विशेष मौकों से उनको अब तक चालीस प्रोत्साहन पत्र मिल चुके हैं। यही नहीं विशेष अदाकार, गायक, कलाकार एवं प्रायोजक के तौर पर भी उनको विशेष सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। हाल ही में राज्य स्तर पर आयोजित किए गए किसान मेले राजोरी में उनको भाजपा सांसद जुगल किशोर शर्मा द्वारा विशेष तौर पर सम्मानित भी किया गया। मंत्रियों, विधायकों, प्रशासनिक अधिकारियों की तरफ से भी उनको दर्जनों पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं। जहां राज्य जम्मू-कश्मीर के कोने-कोने में अजीत पाल शर्मा ने अपनी प्रतिभा के रंग बिखेरे, वहीं बाहरी राज्य पंजाब, तामिलनाडू, पांडीचेरी, महाराष्ट्र में भी उन्होंने प्रादेशिक संस्कृतिक अकादमी की तरफ से अपने विशेष कार्यक्रम पेश किए हैं। छोटे से गांव में रहने वाले अजीत पाल शर्मा ने अपनी प्रतिभा के बल पर आज एक बडी पहचान प्राप्त की है। उनकी इसी पहचान को लोग विशेष सम्मान देते हैं। अपने जिंदगी के सफर को मुकांम तक पहुंचाने का संकल्प ले चुके अजीत पाल शर्मा भी यही चाहते हैं, कि उनके आदर्श, संस्कार और जागरूक्ता के प्रसार से समाज को एक नई दिशा मिले। उनका सपना है कि देश के लिए कुछ ऐसा किया जाए, जिससे समूचा भारतवर्ष एक महान और अमनप्रस्त देश बन सके। 

बेरुखी का शिकार हो रहा सरकार का कमाऊ पुत्र 'वेयर हाउस'

  • सरकारी उपेक्षाओं के बावजूद पुश्तैनी पेशा अपना रही चौथी पीढ़ी

  • वेयर हाउस में नहीं दिख रही डिजिटल इंडिया की चमक

  • परिवार बढ़ा, सामान बढ़ा, जगह वही की वही


दीपाक्षर टाइम्स संबाददाता
जम्मू।
जिस पुराने ढांचे से सन् 1958 में जम्मू के तत्कालीन राज्यशासक बख्शी गुलाम मुहम्मद द्वारा वेयर हाउस की स्थापना की गई थी। 21वीं सदी में भी राज्य का खाद्य भंडार वेयर हाउस जम्मू अपनी दशकों पुरानी अवस्था में है। वेयर हाउस ही सरकार का ऐसा कमाऊ पुत्र है, जिससे सरकार के राजस्व में अरबों रुपये के भंडार भर रहे हैं। वेयर हाउस जम्मू में छोटे-बड़े करीब चार सौ से अधिक व्यापार के अड्डे स्थापित हैं। इन स्थापित व्यापार के अड्डों से सैकड़ों परिवारों के पेट पलते हैं। होलसेल व्यापारियों से लेकर पल्लेदार सदस्यों तक, हर कोई वेयर हाउस के विकास और खुशहाली को लेकर परेशान है। यहां तक कि बाहरी राज्यों से अपने आयात निर्यात को बढ़ावा देने के लिए जम्मू पहुंचने वाले उद्योगपति भी वेयर हाउस के विकास को लेकर अपनी तरजीह देते हैं। सरकार को चहिए कि जेडीए के माध्यम से वेयर हाउस के विकास और खुशहाली को नई दिशा दी जाए, ताकि व्यापारी वर्ग की लंबित समस्याऔं का स्थायी समाधान हो सके।
वेयर हाउस के किए गए निरीक्षण के बाद व्यापारियों, पल्लेदार व ग्राहकों से बातचीत करने के बाद पाया गया कि जेडीए ने पिछले साठ सालों से वेयर हाउस व्यापारियों को उनकी दुकानों के न तो मालिकाना हक दिए, और न ही बेहतर दुकानदारी के मूलभूत ढांचे को उपलब्ध करवाया। एक किराएदार की तरह व्यापारी वर्ग वेयर हाउस में अपने रोजगार को पाल रहे हैं, और सरकार के खजानों को भर रहे हैं। एक तरफ  सरकार नए युग की स्थापना करते हुए समूचे भारतवर्ष को डिजिटल इंडिया बनाने पर तरजीह दे रही है, लेकिन वहीं दशकों पुराने वेयर हाउस ढांचे के विस्तारीकरण का कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा।
दशकों पुराने वेयर हाउस खाद्यान, दुकानें, शैड व अन्य मूलभूत ढांचा वर्तमान समय में किसी जर्जर खंडहरों से कम नहीं हैं। व्यापारियों के पास पहुंचने वाले सामान को सुरक्षित जगहों, खाद्यानों में रखने के बेहतर प्रबंध न होने से हर मौसम में कीमती सामान बाहर खुले आसमान के तले ही रहने से कीमती सामान के खराब होने का खतरा भी बना रहता है।चूंकि सरकार द्वारा आधुनिक और पारदर्शी तरीके से कामकाज करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है और हर काम कम्प्यूटर द्वारा किए जाने की हिदायत दी जा रही है ताकि हर तरह की पारदर्शिता बनी रहे। लेकिन, यह कैसे संभव है, जब इतनी बड़ी मंडी में भी बिजली के कट लगातार चल रहे हों?
वेयर हाउस में काम कर रही व्यापारियों की चौथी पीढ़ी, जो आज के समय में आधुनिक शिक्षा के ज्ञान से लैस है, उस पीढ़ी का पुराने नक्शेकदम पर चल पाना आसान नहीं बन रहा। नई पीढ़ी की शैक्षिक तकनीक और उनकी मौजूदा समय की जरूरतों का पूरा होना ही 21वीं सदी का विकास माना जाएगा। सरकार को व्यापारियों की चौथी पीढ़ी का आभारी होना चहिए कि अच्छी पढ़ाई के साथ नई शैक्षिक तकनीक का ज्ञान प्राप्त होने के बाद भी वह सरकार पर नौकरियों का बोझ बढ़ाने के वजाय अपने पुश्तैनी व्यापार के रोजगार को बढावा दे रहे हैं।
पानी, जो कि हर-एक इंसान की मूलभूत जरूरत है, उसकी तरफ भी कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा और वेयर हाउस के एक व्यापारी का कहना है कि सरकार की तरफ से यहां पर पेयजल उपलब्ध कराने के लिए कुछ नहीं किया गया है और कोई हैंडपंप तक नहीं लगवाया जिससे लोगों को कुछ राहत मिल सके। वेयर हाउस के व्यापारियों ने ही एक हैंडपंप वेयर हाउस और एक हैंडपंप नेहरू मार्किट में लगवाया है, जो दूरदराज क्षेत्रों से हजारों की संख्या में यहां आने वाले लोगों के लिए नाकाफी साबित होते हैं। गर्मियों के दिनों में तो यह परेशानी और बढ़ जाती है।
जेडीए ने पिछले कई सालों से एक असमंजस की तलवार को व्यापारियों के सिर पर लटका रखा है। इस लटकी हुई असमंजस की तलवार से किसी भी किस्म की स्थिति स्पष्ट नहीं हो पा रही। जेडीए वेयर हाउस कांप्लेक्स को शिफ्ट कर किसी दूसरी जगह पर स्थापित करने की योजना बना रहा है। नई जगह पर शिफ्ट होने वाले वेयर हाउस कांप्लेक्स से स्थानीय व्यापारियों की दिक्कतों में भी बढ़ोतरी होने के आसार बन रहे हैं। आने वाले कुछ दिनों में वेयर हाउस नेहरू मार्किट व्यापारी संगठन की नई समिति का गठन होने जा रहा है। नए व्यापारी संगठन के गठन से वेयर हाउस के विकास, खुशहाली और लंबित मांगों व समस्याओं के समाधान की उम्मीद भी लगाई जा रही है।

ग्राहकों को लुभाता है गुच्छे वाली बेेसन की सेवियों व चाय का 'स्वाद'

दीपाक्षर टाइम्स संबाददाता
जम्मू।
नेशनल हाइवे जम्मू-पठानकोट के राया मोड़ पर बनने वाली गुच्छे वाली बेसन की सेवियों का स्वाद ग्राहकों को खूब लुभाता है। अधुनिक तकनीक से बनाई जाने वाली गुच्छेदार बेसन की सेवियों की लंबाई दो मीटर तक रहती है। लंबे आकार वाली सेवियों को चूर करके ग्राहकों में बेचा जाता है, जिनका आकार अन्य सेवियों की तुलना में दस गुणा अधिक रहता है। हर दिन तीस से पैंतीस किलो गुच्छे वाली बेसन की सेंवियों की दुकान पर बिक्री होती है, और दूर-दराज से यात्री एवं पर्यटक गुच्छेदार बेसन की सेवियों को खदीद कर अपने स्वाद का लुत्फ उठाते हैं। सन् 1966 के दौराण स्थानीय निवासी बाबा धनी राम द्वारा राया मोड़ में सबसे पहले छाबा लगाकर सेवियां तथा चाय बनाने का धंधा शुरू किया गया। कडी धूप और बारिश के दिनों में बिना छत की मोबाइल दुकान पर भी ग्राहकों की खासी भीड़ रहती थी। दूर-दराज गांवों, शहरों के लोग राया मोड़ पर रूककर बाबा धनी राम की चाय व गुच्छे वाली बेसन की सेवियों का पूरा आनंद उठाते थे। करीब दस वर्ष तक उन्होंने इसी दुकानदारी से ग्राहकों की सेवा की और अपने स्वरोजगार को बढावा दिया। सन् 1975 में उन्होंने चलती फिरती दुकान की जगह पर छपरा दुकान का निर्माण किया।बाबा धनी राम ने पन्द्रहं वर्ष तक छपरा दुकानदारी से ग्राहकों को हर तरह के स्वादिष्ट व्यंजनों का आनंद प्रदान किया। सन् 1990 के दशक में बाबा धनी राम ने राया मोड़ के छोटे से कोने पर जगह खरीद कर वहां पर टी-स्टाल का निर्माण किया।जब राया मोड़ अड्डे पर धनी राम टी-स्टाल का स्थायी निर्माण हो गया, तो वहां पर सेवियों के साथ मठ्ठी, मिठाईयां, दूध, दही, चाय, पकौडे, पनीर आदि की बिकवाली भी शुरू हो गई। सन् 2014 में बाबा धनी राम का निधन होने के बाद उनकी दुकानदारी को उनके बेटे राम पाल ने आगे बढाया। धनी राम के बेटे राम पाल के साथ अब उनके पौते शुभम ने भी बाबा के व्यापार को आगे बढाने का संकल्प ले लिया है। ग्रेजुएट शुभम का कहना है कि हमारे पुरखों ने कडी मेहनत के बल पर जिस पहचान को हासिल किया है, उसे समाज में बनाए रखना ही उनका पहला धर्म होगा। किसी सरकारी नौकरी से बेहतर है कि वह पुश्तैनी व्यापार को आगे बढाकर स्वरोजगार व सेवा का पुण्य कमाएं।

जम्मू विश्वविद्यालय में 14वीं राष्ट्रीय युवा संसद का आयोजन

दीपाक्षर टाइम्स संवाददाता
जम्मू।

जम्मू विश्व विद्यालय में डिपार्टमेंट आफ स्टूडेंट वेलफेयर द्वारा १४वीं राष्ट्रीय युवा संसद का आयोजन विश्वविद्यालय के जनरल जोरावर सिंह ऑडिटोरियम में करवाया गया। युवा संसद का आयोजन भारत सरकार के संसदीय मामलों के मंत्रालय की देखरेख में हुआ। इसका मकसद युवाओं में राजनीति के प्रति जागरुकता लाना, संसद की कार्यवाही समझाना और लोकतंत्र को मजबूत करना रहा। जम्मू विश्वविद्यालय की टीम 2017 में हुए क्षेत्रीय स्तर पर 70 में से टॉप 15 में जगह बनाकर राष्ट्रीय युवा संसद तक पहुंची। इस अवसर पर पूर्व सांसद चौ. तालिब हुसैन मुख्य अतिथि थे। साथ ही शेरे कश्मीर कृषि, विज्ञान और तकनीकी विश्वविद्यालय के उप कुलपति प्रो. प्रदीप शर्मा निर्णायक मंडल के सदस्य के रूप में मौजूद थे। इस कार्यक्रम के समन्वयक विवि के लॉ डिपार्टमेंट के प्रोफेसर डा. विजय सैगल थे। विवि के लॉ स्कूल के छात्र ज़ीरगम हामिद ने श्रेष्ठ प्रवक्ता का खिताब जीता।