जम्मू। नेशनल हाइवे जम्मू-पठानकोट के राया मोड़ पर बनने वाली गुच्छे वाली बेसन की सेवियों का स्वाद ग्राहकों को खूब लुभाता है। अधुनिक तकनीक से बनाई जाने वाली गुच्छेदार बेसन की सेवियों की लंबाई दो मीटर तक रहती है। लंबे आकार वाली सेवियों को चूर करके ग्राहकों में बेचा जाता है, जिनका आकार अन्य सेवियों की तुलना में दस गुणा अधिक रहता है। हर दिन तीस से पैंतीस किलो गुच्छे वाली बेसन की सेंवियों की दुकान पर बिक्री होती है, और दूर-दराज से यात्री एवं पर्यटक गुच्छेदार बेसन की सेवियों को खदीद कर अपने स्वाद का लुत्फ उठाते हैं। सन् 1966 के दौराण स्थानीय निवासी बाबा धनी राम द्वारा राया मोड़ में सबसे पहले छाबा लगाकर सेवियां तथा चाय बनाने का धंधा शुरू किया गया। कडी धूप और बारिश के दिनों में बिना छत की मोबाइल दुकान पर भी ग्राहकों की खासी भीड़ रहती थी। दूर-दराज गांवों, शहरों के लोग राया मोड़ पर रूककर बाबा धनी राम की चाय व गुच्छे वाली बेसन की सेवियों का पूरा आनंद उठाते थे। करीब दस वर्ष तक उन्होंने इसी दुकानदारी से ग्राहकों की सेवा की और अपने स्वरोजगार को बढावा दिया। सन् 1975 में उन्होंने चलती फिरती दुकान की जगह पर छपरा दुकान का निर्माण किया।बाबा धनी राम ने पन्द्रहं वर्ष तक छपरा दुकानदारी से ग्राहकों को हर तरह के स्वादिष्ट व्यंजनों का आनंद प्रदान किया। सन् 1990 के दशक में बाबा धनी राम ने राया मोड़ के छोटे से कोने पर जगह खरीद कर वहां पर टी-स्टाल का निर्माण किया।जब राया मोड़ अड्डे पर धनी राम टी-स्टाल का स्थायी निर्माण हो गया, तो वहां पर सेवियों के साथ मठ्ठी, मिठाईयां, दूध, दही, चाय, पकौडे, पनीर आदि की बिकवाली भी शुरू हो गई। सन् 2014 में बाबा धनी राम का निधन होने के बाद उनकी दुकानदारी को उनके बेटे राम पाल ने आगे बढाया। धनी राम के बेटे राम पाल के साथ अब उनके पौते शुभम ने भी बाबा के व्यापार को आगे बढाने का संकल्प ले लिया है। ग्रेजुएट शुभम का कहना है कि हमारे पुरखों ने कडी मेहनत के बल पर जिस पहचान को हासिल किया है, उसे समाज में बनाए रखना ही उनका पहला धर्म होगा। किसी सरकारी नौकरी से बेहतर है कि वह पुश्तैनी व्यापार को आगे बढाकर स्वरोजगार व सेवा का पुण्य कमाएं।
बुधवार, अप्रैल 04, 2018
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ग्राहकों को लुभाता है गुच्छे वाली बेेसन की सेवियों व चाय का 'स्वाद'
ग्राहकों को लुभाता है गुच्छे वाली बेेसन की सेवियों व चाय का 'स्वाद'
जम्मू। नेशनल हाइवे जम्मू-पठानकोट के राया मोड़ पर बनने वाली गुच्छे वाली बेसन की सेवियों का स्वाद ग्राहकों को खूब लुभाता है। अधुनिक तकनीक से बनाई जाने वाली गुच्छेदार बेसन की सेवियों की लंबाई दो मीटर तक रहती है। लंबे आकार वाली सेवियों को चूर करके ग्राहकों में बेचा जाता है, जिनका आकार अन्य सेवियों की तुलना में दस गुणा अधिक रहता है। हर दिन तीस से पैंतीस किलो गुच्छे वाली बेसन की सेंवियों की दुकान पर बिक्री होती है, और दूर-दराज से यात्री एवं पर्यटक गुच्छेदार बेसन की सेवियों को खदीद कर अपने स्वाद का लुत्फ उठाते हैं। सन् 1966 के दौराण स्थानीय निवासी बाबा धनी राम द्वारा राया मोड़ में सबसे पहले छाबा लगाकर सेवियां तथा चाय बनाने का धंधा शुरू किया गया। कडी धूप और बारिश के दिनों में बिना छत की मोबाइल दुकान पर भी ग्राहकों की खासी भीड़ रहती थी। दूर-दराज गांवों, शहरों के लोग राया मोड़ पर रूककर बाबा धनी राम की चाय व गुच्छे वाली बेसन की सेवियों का पूरा आनंद उठाते थे। करीब दस वर्ष तक उन्होंने इसी दुकानदारी से ग्राहकों की सेवा की और अपने स्वरोजगार को बढावा दिया। सन् 1975 में उन्होंने चलती फिरती दुकान की जगह पर छपरा दुकान का निर्माण किया।बाबा धनी राम ने पन्द्रहं वर्ष तक छपरा दुकानदारी से ग्राहकों को हर तरह के स्वादिष्ट व्यंजनों का आनंद प्रदान किया। सन् 1990 के दशक में बाबा धनी राम ने राया मोड़ के छोटे से कोने पर जगह खरीद कर वहां पर टी-स्टाल का निर्माण किया।जब राया मोड़ अड्डे पर धनी राम टी-स्टाल का स्थायी निर्माण हो गया, तो वहां पर सेवियों के साथ मठ्ठी, मिठाईयां, दूध, दही, चाय, पकौडे, पनीर आदि की बिकवाली भी शुरू हो गई। सन् 2014 में बाबा धनी राम का निधन होने के बाद उनकी दुकानदारी को उनके बेटे राम पाल ने आगे बढाया। धनी राम के बेटे राम पाल के साथ अब उनके पौते शुभम ने भी बाबा के व्यापार को आगे बढाने का संकल्प ले लिया है। ग्रेजुएट शुभम का कहना है कि हमारे पुरखों ने कडी मेहनत के बल पर जिस पहचान को हासिल किया है, उसे समाज में बनाए रखना ही उनका पहला धर्म होगा। किसी सरकारी नौकरी से बेहतर है कि वह पुश्तैनी व्यापार को आगे बढाकर स्वरोजगार व सेवा का पुण्य कमाएं।
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