बुधवार, मार्च 28, 2018

13 साल की बच्ची ने बनाई स्कूल बैग के बोझ पर शॉर्ट फिल्म, होगी स्क्रीनिंग

पुणे
बच्चों पर पड़ते पढ़ाई के दबाव और इसके साथ बढ़ते बस्ते के वजन को शायद ही बड़े समझ पाएं, यही वजह है कि 13 साल की एक बच्ची ने यह तकलीफ बड़ों तक पहुंचाई है। 13 साल की नंदिता नाचारे ने इसके लिए शॉर्ट फिल्म बनाई है, जिससे लोग सिर्फ इस तकलीफ को सुने नहीं, करीब से देख और महसूस कर सकें। 
स्कूल बैग नाम की इस फिल्म में नंदिता ने भारी बैग से होने वाली परेशानियों और बच्चों पर पड़ने वाले बोझ को दिखाया है। नंदिता की फिल्म को नैशनल साइंस फिल्म फेस्टिवल में स्क्रीनिंग के लिए चुना गया है। भारत सरकार के विज्ञान एवं तकनीक विभाग के अंतर्गत आने वाला संगठन विज्ञान प्रसार इस फिल्म फेस्टिवल का आयोजन करता है। 16 अन्य फिल्मों के साथ इसे भी बच्चों के 'डी वर्ग' में शामिल किया गया है।
फिल्म के बारे में माधव सदाशिवराव गोलवलकर गुरुजी स्कूल सातवीं में पढ़ने वाली नंदिता बताती हैं, 'मेरे मन में एक शॉर्ट फिल्म बनाने का ख्याल आया और इसके लिए मैंने अलग से क्लास भी की। यहां मैंने डायरेक्शन, स्टोरी राइटिंग और फिल्म मेकिंग से जुड़ी चीजें सीखीं।' वह बताती हैं कि जब मैंने शॉर्ट फिल्म बनाने के लिए विषय चुना तो पहला ख्याल भारी स्कूल बैग का ही आया।
नंदिता का कहना है कि हर दिन हमें हद से ज्यादा भारी बैग उठाकर स्कूल जाना पड़ता है और इस तरह थकने के बाद कैसे पढ़ाई
हो सकती है? नंदिता खुश है कि सबको उसकी बनाई शॉर्ट फिल्म सबको पसंद आ रही है। 

10वीं के गणित और 12वीं के इकनॉमिक्स की परीक्षा दोबारा होगी

नई दिल्ली
केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) के स्टूडेंट्स के लिए बड़ी खबर है। 10वीं के गणित और 12वीं के इकनॉमिक्स की परीक्षा दोबारा ली जाएगी। हालांकि अभी यह जानकारी सामने नहीं आई है कि यह परीक्षा किस दिन कराई जाएगी। इस साल सीबीएसई बोर्ड के एग्जाम में पेपर लीक होने की चर्चाएं थीं। पुलिस कुछेक मामलों की जांच भी कर रही है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक परीक्षा को दोषमुक्त रखने के लिए बोर्ड ने यह फैसला लिया है। बुधवार को सीबीएसई ने इन दो पेपरों में फिर से परीक्षा लेने की पुष्टि कर दी है। आपको बता दें कि 12वीं इकनॉमिक्स की परीक्षा 27 मार्च और 10वीं गणित की परीक्षा 28 मार्च को हुई थी। सीबीएसई ने बताया है कि परीक्षा की तारीख की घोषणा एक सप्ताह के भीतर वेबसाइट पर कर दी जाएगी।
इस साल 5 मार्च से केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) की दसवीं और बारहवीं की परीक्षाएं शुरू हुई थीं। इन परीक्षाओं में देशभर से 28 लाख, 24 हजार, 734 परीक्षार्थी शामिल हुए थे। सीबीएसई के मुताबिक इस साल दसवीं की परीक्षा में 16 लाख, 38 हजार, 428 और बारहवीं की परीक्षा में 11 लाख, 86 हजार, 306 परीक्षार्थी रजिस्टर हुए थे।

शुक्रवार, मार्च 23, 2018

नवरात्रों में 'पहल वाटिका' में बढ़ी बच्चों की रौनक

बुजुर्गों के आदर-सम्मान बनाए रखने के लिए पहल वाटिका का निर्माण: दीपक अग्रवाल 

 बच्चों को लुभा रहे विदेशी पक्षी


 दीपाक्षर टाइम्स संवाददाता
जम्मू। नेशनल हाइवे 17वें मील से महज डेढ़ किमी. दूरी पर गांव सलमेरी में स्थित 'बजुर्गांं दा बेह्ड़ा' पहल वाटिका में नवरात्रों के पावन अवसर पर हर तरफ रौनक का आलम बन रहा है। परीक्षाओं के तनाव से राहत पा चुके स्कूली बच्चे भी 'पहल वाटिका' में पहुंच कर मनोरंजन का पूरा लुत्फ उठा रहे हैं। विजयपुर क्षेत्र के कई प्रसिद्ध स्कूलों तथा टयुशन केंन्द्रों के बच्चे हर दिन 'बजुर्गां दा बेह्डा' पहल वाटिका में पहुंच रहे हैं।

पहल वाटिका पहुंचने वाले बच्चे जहां अपनी मौज मस्ती करने में व्यस्त रह रहे हैं, वहीं उनको कुछ नया सीखने समझने का मौका भी मिल रहा है। स्कूल प्रबंधन व 'बुजुर्गों दा बेह्ड़ा' प्रबंधन स्कूली बच्चों को अपनी तरफ से हर बेहतर सेवाएं और सुविधाएं उपलब्घ करवा रहे हैं।

'बजुर्गां दा बेह्ड़ा' स्थित पहल वाटिका में पहुंचने वाले निजी चाड़क ट्यूटोरियल सेंटर के बच्चे जिनमें रिया चाड़क, संयोगिता चाड़क, गौरव, नितिश, रिशव, अदिति, अक्षिता, वंशिका, श्रीधर, काव्या, अंबिका, त्रिशना, श्रुति, रूची, रूबी, विशाली, चंदन ने कहा कि 'बजुर्गां का बेह्ड़ा' मनोरंजन का खास जरिया बनरहा है। अपने निजी क्षेत्र में इस तरह के मनोरंजन के जरिये का होना उनके लिए एक सौभाग्य की बात है। पहले हर साल गर्मियों की छुटिटयों, परीक्षाओं के खत्म होने के बाद के दिनों में उनको दूर-दराज शहरों व क्षेत्रों में स्थित मनोरंजन के ठिकानों तक पहुंचने में कई परेशानियां झेलनी पड़ती थी। माता-पिता भी उनको दूर शहरों व क्षेत्रों में इस तरह घूमने के लिए जाने का मौका कम ही देते थे। लेकिन यहां नजदीक में इस तरह के आकर्षक स्थल का होना उनको एक विशेष सौगात देता है। बच्चों का कहना है कि इस आकर्षण के केन्द्र 'बजुर्गां दा बेह्ड़ा' में वह कभी भी और किसी भी वक्त पहुंच कर अपना मनोरंजन कर सकते हैं। ट्यूटोरियल के संचालक बख्तावर सिंह ने भी इस नजदीकी सेवा और मनोरंजन के जरिये को खास करार दिया। दिन व दिन 'बजुर्गां दा बेह्ड़ा' पहल वाटिका की प्रसिद्धता बढ़ रही है और हर दिन यहां बच्चों के मेले लग रहे हैं।



बुजुर्गों के आदर-सम्मान को बनाए रखने के लिए पहल वाटिका स्थल का निर्माण: दीपक अग्रवाल

बुजुर्गां दा बेहडा संचालक समाजसेवी दीपक अग्रवाल के अनुसार उनका यही मकसद था कि समाज के लिए कुछ अलग किया जाए, ताकि उनके किए कार्यों की बदौलत समाज को एक नई दिशा मिले। जिस तरह से आज के दौर में बुजुर्गों का अपने घरों में आदर-सम्मान कम हो रहा है। उस कम होते बुजुर्गों के आदर-सम्मान को बनाए रखने के लिए उन्होंने 'बजुर्गां दा बेह्ड़ा' पहल वाटिका स्थल का निर्माण करवाया। पहल वाटिका स्थल पर पहुंच कर जहां बुजुर्ग सदस्य अपना सम्मान प्राप्त कर रहे हैं, वहीं उनके साथ आने वाले बच्चे भी उनका आदर सम्मान करना सीख रहे हैं। उन्होंने कहा कि जिस मकसद के साथ उन्होंने 'बजुर्गां दा बेह्ड़ा' पहल वाटिका स्थल का निर्माण करवाया है, उसे कामयाब बनाने की कवायद जारी है। भविष्य में भी वह समाज के लिए कुछ ऐसा करने की चाह रखेंगे, जिससे बुजुर्गों तथा परिवारिक सदस्यों के बीच के रिश्ते मजबूत बने रहें।

 बच्चों को लुभा रहे विदेशी पक्षी

'बजुर्गां दा बेह्ड़ा' पहल वाटिका के छोटे से चिडियाघर में रखे गए विदेशी पक्षी स्कूली बच्चों को लुभाने का काम कर रहे हैं। अमेरिका का टर्की, फ्रांस के कबूतर, रूस के सिल्की कॉक, जापान के बटेर, अंगूरा ब्रांड के भारतीय खरगोश सहित अन्य प्रजातियों के पक्षी, बत्तखें तथा हंस आदि बच्चों को आकर्षित कर रहे हैं। इन पक्षियों की प्रजातियों को देखकर बच्चे गदगद हो रहे हैं, और उनके बारे में विस्तृत जानकारियां भी प्राप्त कर रहे हैं।



 

बुधवार, मार्च 21, 2018

द्वापर युग के इतिहास की यादों का प्रतीक नमंदर राधा-कृष्ण मन्दिर

ब्रटिश शासन के समय नमंदर मेले की थी खास पहचान

दीपाक्षर टाइम्स संबाददाता
जम्मू
:  द्वापर युग के दौराण जब कौरव शासन द्वारा पंाड़वों को बारहं वर्ष के बनवास का दंड़ देकर उनको हस्तीनापुर से निकल जाने के आदेश जारी हुए। उस समय पांड़वों द्वारा बनवास के आदेश का पालन करते हुए जगह-जगह अपना समय बिताया। उसी द्वापर युग और बनवास के दौराण पांड़वों ने जम्मू डिविजन के नेशनल हाइवे सपवाल चौक से कुछ दूरी पर बसंतर तट क्षेत्र नमंदर में कुछ पलों के लिए अपने बनवास को विरांम दिया। पांड़वों द्वारा नमंदर स्थल पर बिताए गए कुछ पल द्वापर युग के इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गए। नमंदर स्थल पर पांड़वों द्वारा बिताए गए कुछ समय की यादों को उन्होंने वहां पर एक अस्थायी मंन्दिर के रूप में सर्वजनिक किया। पांड़वों द्वारा बनाए गए अस्थायी मंन्दिर की जानकारी उस समय के स्थानीय लोगों व साधु-संतों को मिली, तो संगत व संत-महात्माऔं के नमंदर में डेरे जमना शुरू हो गए। हर दिन लोग पांड़वों द्वारा बनाए गए मंन्दिर के दर्शनों के लिए वहां पहुंचते, और पूजा पाठ करके अपना निष्ठा भक्ति का सबूत देते रहे। देखते ही देखते इस जगह की प्रसिद्धता के चर्चे जम्मू देश के 18वीं सदी के राजा रणबीर सिंह तक पहुंच गए। सन् 1870 के दशक के एक दिन राजा रणबीर सिंह ने नमंदर क्षेत्र पहुंच कर वहां पर बनाए गए पांड़वों के हस्तनिर्मित मंन्दिर के दर्शनों की योजना बनाई। राजा रणबीर सिंह जब नमंदर क्षेत्र में पहुंचे, तो उन्होंने पाड़व मंन्दिर के दर्शन किए। पांड़व मंन्दिर के दर्शन करने के बाद उनके मन में ऐसा विचार आया कि उन्होंने उस अस्थायी मंन्दिर की जगह भव्य स्थायी मंन्दिर के निर्माण की घौषण कर दी। 1870 के दशक के दौराण ही नमंदर स्थल पर अस्थायी पांड़व मंन्दिर की जगह पर भव्य राधा-कृष्ण मंन्दिर का निर्माण हुआ। 18वीं सदी में हुए इस मंन्दिर के निर्माण के बाद वहां पर हर दिन श्रद्धालुऔं की भीड़ लगने लगी और देश के कोने-कोने से श्रद्धालु नमंदर पहुंचने लगे। राजा रणबीर सिंह द्वारा नमंदर में बनाए गए मन्दिर के कारण इस प्रसिद्ध स्थल को एक नई पहचान मिली। आज भी नमंदर स्थल पर हर साल बैसाखी मेले का राष्ट्रीय स्तर पर आयोजन किया जाता है। नमंदर मेले में देश के हर हिस्से से श्रद्धालु नमंदर पहुंचते हैं, और द्वापर युग के इतिहास की गाथाऔं का ज्ञान प्राप्त करते हैं।

नमंदर मेले की खास पहचान
जिस समय भारत देश ब्रिटिश सम्राज्य की गुलामी की जंजीरों में बंधा हुआ था, उस समय भी नमंदर बैसाखी मेले की एक खास पहचान हुआ करती थी। राज्य जम्मू-कश्मीर भारत से अलग देश था, और इस देश में राजाऔं की हुकूमत चलती थी। नमंदर वार्षिक बैसाखी मेले में जम्मू देश के अलावा भारत, पाकिस्तान के हजारों श्रद्धालु नमंदर बैसाखी मेले में शिरकत करके इसकी रौणक को चार-चांद लगाते थे। नमंदर बैसाखी मेले को खास बनाने के लिए ब्रिटिश शासकों द्वारा कई प्रकार की प्रतियोगिताऔं का आयोजन करवाया जाता था। मेले में भंगडा, मवेशियों के मुकावले और घौडा दौड प्रतियोगिताएं आदि को खास महत्व दिया जाता था। आयोजित की जाने वाली विभिन्न प्रतियोगिताऔं में अपनी प्रतिभा को दर्शाने के लिए हर देश की प्रतिभागी टोलियां मेले में जोश के साथ पहुंचती थीं। भारत देश के प्रत्येक हिस्से तथा पाकिस्तान की प्रसिद्ध जगहें जिनमें लाहौर, सियालकोट, शक्करगढ़ रावलपिंडी आदि से सैकडों प्रतिभागी मेले में अपनी प्रतिभाऔं को दर्शाने के लिए शरीक होते थे। जो प्रतिभागी टोलियां प्रतियोगिताऔं में अव्बल रहती थीं, उनको ब्रिटिश शासकों द्वारा इनाम भी दिए जाते थे। ब्रिटिश शासन के दौराण नमंदर बैसाखी मेले को मिली इस खास पहचान का वाजूद आज भी स्थापित है। हर साल नमंदर बैसाखी मेले परं आज भी कई प्रकार की प्रतियोगिताएं करवाई जाती हैं, जिनमें प्रतिभागी भाग लेकर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करते हैं।

रविवार, मार्च 18, 2018

बीएसएनएल का लूट लो ऑफर री-लॉन्च,60 प्रतिशत छूट

लूट लो ऑफर


नई दिल्ली। 
 बीएसएनएल ने अपने लूट लो पोस्टपेड ऑफर को दोबारा लॉन्च किया है। इस प्लान के तहत प्रीमियम पोस्टपेड प्लान्स पर 60 प्रतिशत तक का डिस्काउंट दिया जाएगा।
इस प्लान को कंपनी द्वारा पिछले नवम्बर में पेश किया गया था। आपको बता दें, इस ऑफर का लाभ 6 मार्च 2018 से 31 मार्च 2018 तक ही उठाया जा सकता है।
बीएसएनएल के इस ऑफर के तहत पोस्टपेड प्लान्स पर कंपनी 60 प्रतिशत का डिस्काउंट दे रही है। इसी के साथ फ्री एक्टिवेशन चार्ज और फ्री नई सिम भी दी जा रही है। इस ऑफर का फायदा बीएसएनएल के सभी ग्राहक उठा पाएंगे। यानि की कंपनी के नए और पुराने दोनों ग्राहकों के लिए यह ऑफर वैध है।
इस ऑफर के तहत जो ग्राहक नए कनेक्शन लेंगे, उन्हें सिम एक्टिवेशन शुल्क अदा नहीं करना पड़ेगा। इसी के साथ सिर्फ महंगे नहीं, बल्कि एंट्री-लेवल के पोस्टपेड प्लान्स पर भी यह डिस्काउंट मान्य है।
इनमें 99 और 145 रुपये वाले प्लान भी शामिल हैं।
कंपनी के 1525 रुपए के प्रीमियम पोस्टपेड प्लान में भी 60 प्रतिशत का रेंटल डिस्काउंट दिया जा रहा है। इस प्लान में यूजर्स को अनलिमिटेड वॉयस कालिंग, एसएमएस और डाटा मिलता है। ध्यान रहे, इसका लाभ उठाने के लिए ग्राहकों को 12 महीने का एडवांस रेंटल वाले प्लान का चयन करना होगा। 6 महीने एडवांस रेंटल वाले प्लान्स में 45 प्रतिशत और 3 महीने एडवांस रेंटल वाले प्लान में ग्राहकों को 30 प्रतिशत डिस्काउंट मिलेगा। इसी तरह आप अपने पसंद के प्लान की जानकारी कंपनी आउटलेट से ले सकते हैं।

फैमिली टाइम विद कपिल शर्मा

6 महीने के बाद कपिल की टीवी पर दोबारा वापसी

कपिल के शो में नहीं होंगे सुनील ग्रोवर,
 नेहा करेंगी होस्ट
कपिल शर्मा अपना नया शो लेकर आ रहे हैं। इसका नाम है फैमिली टाइम विद कपिल शर्मा। इस बार शो को खास बनाने के लिए ग्लैमर का तड़का भी लगेगा। स्पॉटबाय में छपी रिपोर्ट के मुताबिक शो में टीवी एक्ट्रेस बतौर होस्ट नजर आएंगी।कपिल का शो एक गेम शो होगा। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कपिल के साथ जो एक्ट्रेस शो में नजर आएंगी वो हैं नेहा। इसके पहले नेहा 'मे आई कम इन मैड' में नजर आईं थी। टीवी का पॉपुलर चेहरा बन चुकीं नेहा मराठी इंडस्ट्री में भी अपनी पहचान बना चुकीं हैं। पछले दिनों नेहा अपने वजन को लेकर काफी चर्चा में रही थीं। खबरें आईं थीं कि मे आई कम इन मैडम शो के प्रोड्यूसर्स ने नेहा को वजन कम करने को कहा था और अगर ऐसा ना कर पाने की सूरत में उन्हें शो से निकालने की धमकी भी दी गई थी। ऐसे में नेहा ने पोल डांस सीख कर अपना वजन काफी कम कर लिया है। इन दिनों नेहा का ग्लैमर्स लुकस सोशल मीडिया पर पॉपुलर है। वहीं डॉक्टर गुलाटी का किरदार निभाने वाले सुनील ग्रोवर की नए शो में वापसी नहीं होगी। कपिल की पुरानी टीम के सदस्य चंदन प्रभाकर, कीकू शारदा एक बार फिर कॉमेडी का तड़का लगाने आ रहे हैं।हाल ही में कपिल ने अपने शो के प्रमोशन के लिए एक वीडियो बनाया था। इसमें वे एक बड़े स्टार को अपने शो में फिल्म प्रमोशन के लिए बुला रहे हैं।  ये स्टार कोई और नहीं बद्घल्क अजय देवगन हैं। इससे यह साफ हो गया है कि इस बार शो में पहले सेलेब अजय देवगन हैं। एक्टर अपनी फिल्म रेड का प्रमोशन करने कपिल के शो में आएंगे। बताया जा रहा है कि ये शो 25 मार्च से शुरू होगा। इसका प्रसारण सोनी चैनल पर होगा।
बता दें कपिल शर्मा 6 महीने के ब्रेक के बाद टीवी पर दोबारा वापसी कर रहे हैं।
ब्लड प्रेशर की परेशानी, गुस्सा और डिप्रेशन के चलते कपिल को अपने कॉमेडी शो को बंद करना पड़ा था। नशे की लत से उबरने के लिए कपिल ने बेंगलुरु के एक रिहैबीलिएशन सेंटर से मदद भी ली थी। बाद में उनकी दूसरी फिल्म फिरंगी रिलीज हुई जो बॉक्स ऑफिस पर नाकाम हो गई। अब नए प्रोमो में कपिल काफी रिलेक्स नजर आ रहे हैं।

भामूचक का प्राचीन मंन्दिर

किसी समय में अपनी अलग पहचान से प्रसिद्ध था


दीपाक्षर टाइम्स संबाददाता
जम्मू:
हमारे पूर्वजों द्वारा अपनी निष्ठा का सबूत देते हुए कई ऐतिहासिक धरोहरों का निर्माण करवाया। सीमांत क्षेत्र रामगढ़ के गांव भामूंचक में स्थित प्राचीन ऐतिहासिक राधा-कृष्ण किला रूपी मंन्दिर आज पुराने समय की जीती जागती तस्वीर बनकर लोगों का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करता है। करीब एक एकड़ में स्थित इस ऐतिहासिक किला रूपी मन्दिर का इतिहास सदियों पुराना है। क्षेत्र के बुजुर्गों के अनुसार 18वीं सदी में जब महाराजा गुलाब सिंह ने जम्मू के प्रसिद्ध ऐतिहासिक रघुनाथ मन्दिर के निर्माण का नीव पत्थर रखा, ठीक उसी समय उनके महल में दीवान का कार्यभार संभालने वाले भामूचक गांव के निवासी भामूं शाह ने भी महाराजा गुलाब सिंह के समक्ष अपने निजि गांव में राधा-कृष्ण मन्दिर के निर्माण की पेशकश की। महाराजा गुलाब सिंह ने उनकी इस पेशकश को मंजूरी दे दी, और भामूं शाह ने अपने पैत्रिक गांव में मन्दिर का निर्माण शुरू करवा दिया। इस प्राचीन ऐतिहासिक मन्दिर के निर्माण से सीमांत क्षेत्र का आकर्षण पड़ोसी देश पाकिस्तान तक भी पहुंच गया। जिस समय दोनों देशों के बीच सरहद की दिवार नहीं थी। उस समय पाकिस्तान से माता वैष्णों देवी के दर्शनों को जाने वाले श्रद्धालु इसी गांव तथा मन्दिर परिसर में रूककर आराम फरमाते थे। माता वैष्णों देवी तथा पाकिस्तान के लाहौर के बीच भामूंचक केन्द्र बिंदु था। हर दिन जहां पर मन्दिर परिसर में मेला लगा रहता था, और लोग आपस में बैठकरे सुख-दुख साझा करते थे। लेकिन जैसे ही दोनों देशों के बीच बटवारे की दिवार बनी। उसी समय से दोनों देशों के बीच पैदा हुई खटास से भामूचक गांव उजड़ गया। लोगों ने सुरक्षित जगहों पर आश्रय ले लिए, और ऐतिहासिक प्राचीन मन्दिर एक पुरानी याद बनकर रह गया। अगर मौजूदा समय में भी देखा जाए तो प्राचीण राधा-कृष्ण मंन्दिर भामूचक में आज भी उन आकृतियों, कलाकृतियों की झलक सामने आती है, जो हमारे जम्मू-कश्मीर के प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थलों पर कलाकारों द्वारा दर्शाई गई हैं। मंन्दिर की दीवारों पर की गई पेंटिंग जम्मू के प्रसिद्ध रघुनाथ मंन्दिर जैसी है। इसके अलावा मंन्दिर के आस-पास बनाए गई श्राइंन व दीवारें भी किसी किले से कम नहीं हैं। बाबा चमलियाल दरगाह दग-छन्नी में जब भी हर साल जून माह के चौथे वीरवार के दिन वार्षिक मेले का आयोजन किया जाता है, तो मेले में आने वाले बाहरी राज्यों के श्रद्धालु भामूचक मंन्दिर को देखने का मौका नहीं गंवाते। लेकिन बीतते समय के साथ भामूचक का मंन्दिर आज भी प्राचीण समय की यादों को संजोए हुए है।

ठंडी खुई दी बरफी

तांगे वाले अड्डे दी बरफी दा 'स्वाद'

बरगद के पेड तले आज भी स्थापित है बाबा खजान का थडा

देश के कौने-कौने में अपना जलवा बिखेर रही ठंडी खुई की 'बरफी'

दीपाक्षर टाइम्स संवाददाता
जम्मू: नेशनल हाइवे जम्मू-पठानकोट के मध्य पडते तांगे वाले अड्डे वर्तमान ठंडी खुई जख के छोटे से बाजार की बरफी देश के कोने-कोने में अपने जलवे बिखेर रही है। देश का ऐसा कोई कोना नहीं है, जहां पर इस बरफी के स्वाद का लोगों ने लुत्फ न उठाया हो। यही नहीं बाबा अमरनाथ बर्फानी तथा माता वैष्णो देवी के दरवार कटरा तथा वादी कश्मीर में आने वाले विदेशी पर्यटकों को भी ठंडी खुई की बरफी का स्वाद अपनी तरफ आकर्षित करता है। हर कोई ठंडी खुई की बरफी की महक को महसूस करते ही हाइवे के उस छोटे से कोने की तरफ ख्ंिाचा चला आता है, जहां पर इस जादुई महक वाली बरफी को तैयार किया जाता है। ठंडी खुई क्षेत्र की महानता आज देश में हर तरफ फैली हुई है। कभी ऐसा भी समय था, जब ठंडी खुई जगह के नाम का किसी को कोई ज्ञान नहीं था। जिस समय जम्मू-पठानकोट नेशनल हाइवे का कोई नामो-निशंन नहीं था, सिर्फ एक पथ था जिसपर चलकर लोग जम्मू के लिए निकलते थे। उस समय वर्ष 1953 के दौराण जोगपुरा निवासी खजान चंद द्वारा अपने निजि रोजगार को बढावा देने हेतू सुनसान जगह ठंडी खुई स्थित बरगद के पेड तले अपना अड्डा बनाया। जो लोग विजयपुर से जम्मू जाते थे, और जम्मू से विजयपुर, सांबा, लखनपुर, पठानकोट के लिए निकलते थे, वह ठंडी खुई में रूककर खजान चंद की चाय पकौडी का लुत्फ उठाना नहीं भूलते थे। कई वर्षों तक यह सिलसिला जारी रहा और ठंडी खुई के खजान चंद की चाय पकौडी की प्रसिद्धता बढने लगी। वर्तमान में जिस जगह को आज ठंडी खुई के नाम की पहचान मिली है, उस जगह का पहला नाम तांगे वाला अड्डा के नाम से प्रसिद्ध था। तांगे पर सफर करने वाले यात्री भी ठंडी खुई पर ही रूकते थे, और यात्री व चालक आराम फरमाते थे। यात्रियों व आम राहगीरों के लिए तांगे वाला अड्डा ठंडी खुई क्षेत्र एक आरामगाह बनता गया। ठंडी खुई की एक विशेष पहचान जहां पर स्थित कूएं से भी की जाती है। इस कूएं की प्रसिद्धता यह है कि इसका पानी हर मौसम में अपना रूप बदलता है। सर्दियों के दिनों में कूएं का पानी गर्म रहता है, और गर्मियों के दिनों में पानी ठंडा हो जाता है। यही नहीं इस पानी का सेवन करने वाले किसी भी व्यक्ति को पेट रोगों से निजात मिल जाती है, और पाचन तंत्र भी तेज हो जाता हो जाता है। आज भी दूर-दराज शहरों के लोग ठंडी खुई के कूएं का जल मटकों में भरकर अपने घरों के लिए ले जाते हैं। इस ठंडी खुई के बरगद के पेड तले जहां खजान चंद का चाय पकौडी वाला अड्डा स्थापित था, वहीं युवा अवस्था में विधवा हो चुकी कुलियां कमाला निवासी जयंति देवी ने जनसेवा का उद्ेश्य पालते हुए राहगीरों को कूएं का जल पिलाने की सेवा का प्रण ले लिया। खजान चंद और जयंति देवी के बीच मुहंबोले भाई-बहन का रिश्ता एक अटूट रिश्ते का बंधन बनता चला गया। वर्ष 1965-1971 भारत-पाक युद्धों के बाद जब फिर से हर तरफ अमन बहाली हुई तो ठंडी खुई तांगे वाले अड्डे की गतिविधियां भी अपने नए रंग में नजर आने लगीं। जिस बरगद के पेड तले खजान चंद का चाय पकौडी वाला अड्डा था, वहां पर झौंपडी नुमा दुकान की स्थापना हुई। पहले राहगीरों व यात्रियिों को चाय के साथ पकौडी मिलती थी, वहीं कुछ नए व्यंजन जिनमें मेसू, बरफी, मटठी, मटर, सेवियां आदि की महक लोगों को अपनी तरफ खीचने लगी। 19वीं सदी से निकल कर जब भारतवर्ष ने 21वीं सदी में प्रवेश किया, तो ठंडी खुई क्षेत्र का नाम देश के गिने-चुने क्षेत्रों की सूची में शामिल हो गया। आज इसी ठंडी खुई क्षेत्र में बनने वाली बरफी सबसे खास बरफी बन चुकी है। अगर किसी के घर में कोई विशेष समारोह आयोजित होता है, या किसी को विशेष मुबारकवाद का अदान-प्रदान करना होता है, तो लोग ठंडी खुई की बरफी को तोहफे के तौर पर भेंट देना सबसे खास मानते हैं। 
बरगद के पेड तले स्थापित बाबा खजान का थडा
वर्तमान समय में ठंडी खुई क्षेत्र एक प्रसिद्ध स्थल बन चुका है, और जहां पर संत, महात्मा, नेता, अभिनेता व गणमान्य सदस्य बरफी चाय का स्वाद लेने के लिए रूकते हैं, और जहां पर बनने वाले विशेष व्यंजनों का लुत्फ उठाते हैं। ठंडी खुई में बरफी के साथ अन्य प्रकार के व्यंजन पकौडे, दुब्बारे, पनीर पकौडा, स्नेक्स, चाय आदि का विशेष स्वाद का पूरा आनंद मिलता है।


 

 

गोरखे दी हट्टी

ग्रामीण स्तर पर शुरू किया गया कारोबार आज शहरों मे छोड रहा अपनी छाप

दीपाक्षर टाइम्स संवाददाता
जम्मू: आज के तेज रफ्तार युग में जहां देश की नई पीढी अपने पुरखों के दिए हुए संस्कारों को भुलाकर अपने ही तरीके का जीवन बसर करने की होड में हैं, वहीं कुछ पीढियां ऐसी भी हैं, जो अपनी पुशतैनी परंपराऔं तथा हुनर के माध्यम से अपने स्व:रोजगार को बढावा देकर बुजुर्गों का मान बढा रही हैं। जिला सांबा के छोटे से सीमांत क्षेेत्र के कस्बे रामगढ़ में रहने वाला महाजन परिवार कभी सीमांत लोगों के लिए मिट्टी के वर्तनों की खरीद-ओ-फरोख्त करके लोगों की जरूरतों को पूरा करके अपने निजि कारोवार को पालते थे। लेकिन ग्रामीण स्तर पर रोजगार को बढावा न मिलने के कारण भारत-पाक विभाजन से सात वर्ष पूर्व रामगढ़ कस्बे में रहने वाले महाजन परिवार ने जम्मू के उर्दु बाजार आज का शहीदी चौक में अपना बसेरा डालकर अपने हुनर और कारोवार को नई दिशा दी। जिस समय महाजन परिवार जम्मू में आकर बसा, उस समय दिवंगत मंगत राम ने परिवार का भरण-पोषण करने और निजि आमदनी में अतिरिक्त बढोतरी करने के लिए गांवों में रहने वाले में कुम्हार जाति लोगों से मिट्टी के वर्तन व अन्य प्रकार के सामन को खरीद कर लोगों में बेचने लगे। चालीस के दशक में जब कहीं पर भी अधुनिक बिजली उपकरण उपलब्घ नहीं थे, उस समय कुम्हार जाति द्वारा हस्तकला से घडे बनाकर उनको लोगों की जरूरतों के लिए उपलब्घ करवाते थे। उस चालीस के दशक में मिट्टी के घडे हर वर्ग के लोगों के लिए ठंडे पानी के फ्रीजर हुआ करते थे। आज गरीब परिवारों के लिए मिट्टी के घडे ही उनके लिए ठंडे पानी की सुविधा को उपलब्घ करवाने का सस्ता और आसान जरिया हैं। जहां गरीब परिवार मिट्टी के घडों का स्वच्छ ठंडा पानी पीकर अपनी प्यास बुझा रहे हैं, वहीं कुछ ऐसे भी रहीश लोग हैं, जो मिट्टी से बने वर्तनों व घडों को अपने घरों की शान समझ कर उनको खरीदते हैं।

कैसे गांव से शहर में बनी महाजन परिवार की पहचान:-
जिस समय महाजन परिवार ने रामगढ़ गांव से परिवार सहित कूच कर जम्मू के उर्दु बाजार आज के शहीदी चौक में अपना बसेरा जमाया। उस समय शहर के लोगों में उनकी कोई ऐसी पहचान नहीं थी, जिसके बल पर उनको लोग याद रखते। लेकिन चालीस के दशक से शुरू हुई महाजन परिवार की परीक्षा 21वीं सदी में अपने परिणाम और मुकांम तक पहुंची। महाजन परिवार के बुजुर्ग दिवंगत मंगत राम ने जिस राह पर अपने जीवन के मकसद को डाला। उस मकसद को उनके पुत्र दिवंगत सरदारी लाल, उसके बाद दिवंगत मोहन गुप्ता, दिवंगत जोगिंद्र गुप्ता तथा वर्तमान साहिल गुप्ता ने शिखर तक पहुंचाने में अपनी भूमिका निभाई। आज के तेज रफ्तार और प्रतियोगिता के इस युग में हर पढा लिखा नौजवान अपने उज्जवल भविष्य की चाह में सरकारी नौकरियां, अच्छा करोवार तथा अलग पहचान कायंम करने की कोशिश में है। वहीं साहिल गुप्ता ने बाहरवीं की कक्षा उतीर्ण करने के बाद किसी भी मन की लालसा को खुद पर हावी नहीं होने दिया, और पुरखों के दिए संस्कारों व उनके आदर्शों को ही अपना मकसद मान लिया। वर्तमान समय में जम्मू शहर में महाजन परिवार की पहचान 'गोरखे दी हट्टी' के नाम से की जाती है। महाजन परिवार को मिली यह पहचान से आज हर तरफ लोगों में प्रसिद्ध है और लोग उनको इसी पहचान से जानते हैं।
 
बुजुर्गों का सम्मान करना सीखे नई पीढी
बदलते समय की चमक-दमक भरी जिंदगी में हमारी युवा पीढी के सपनों को पंख लग चुके हैं। युवाऔं को अपने ही विचार और आदर्श अच्छे लगते हैं। लेकिन महाजन परिवार की पंाचवी पीढी के इक्लौते वारिस साहिल गुप्ता का कहना है कि बुजुर्गों के संस्कार और आदर्श ही इंसान की कामयाबी का मुख्य जरिया हैं। समाज में जीवित उदाहरण के तौर पर 'गोरखे दी हट्टी' के संचालक साहिल गुप्ता अपनी पांचवी पीढी के इक्लौते वारिस ने पिता जोगिन्द्र गुप्ता के स्वर्ग सिधार जाने के बाद माता शक्ति देवी सहित चार बहनों का पालन-पोषण करने वाले इस युवक की सोच लाजवाब है। साहिल गुप्ता ने अपने मन में ऐसा विचार बनाया, जिससे पुरखों की परंपरा भी आगे बढी और आमदनी के नए स्रोत भी सामने आए।
उर्दु बाजार आज के शहीदी चौक में स्थित 'गोरखे दी हट्टी' पर हस्तकला की आकृतियां अपने मुहंबोलती चीजें हैं। हर कोई उन मुहंबोलती बस्तुऔं को खरीद कर अपने घरों की सजावट करके एक नया आकर्षण पैदा कर रहा है।
अगर हमारी युवा पीढी बुजुर्गों से मिली शिक्षा पर अपना ध्यान दे, और उनका मान करे, तो कोई मंजिल ऐसी नहीं जिसे हासिल न किया जाए। युवाऔं को अपने बुजुर्गों, माता-पिता और भाई-बहनों का आदर करना चहिए। सदा आज्ञाकारी और सत्यवादी बनकर अपने जीवन के सफर को मुकांम तक पहुंचाना चहिए।