पुणे
बच्चों पर पड़ते पढ़ाई के दबाव और इसके साथ बढ़ते बस्ते के वजन को शायद ही बड़े समझ पाएं, यही वजह है कि 13 साल की एक बच्ची ने यह तकलीफ बड़ों तक पहुंचाई है। 13 साल की नंदिता नाचारे ने इसके लिए शॉर्ट फिल्म बनाई है, जिससे लोग सिर्फ इस तकलीफ को सुने नहीं, करीब से देख और महसूस कर सकें।
स्कूल बैग नाम की इस फिल्म में नंदिता ने भारी बैग से होने वाली परेशानियों और बच्चों पर पड़ने वाले बोझ को दिखाया है। नंदिता की फिल्म को नैशनल साइंस फिल्म फेस्टिवल में स्क्रीनिंग के लिए चुना गया है। भारत सरकार के विज्ञान एवं तकनीक विभाग के अंतर्गत आने वाला संगठन विज्ञान प्रसार इस फिल्म फेस्टिवल का आयोजन करता है। 16 अन्य फिल्मों के साथ इसे भी बच्चों के 'डी वर्ग' में शामिल किया गया है।
फिल्म के बारे में माधव सदाशिवराव गोलवलकर गुरुजी स्कूल सातवीं में पढ़ने वाली नंदिता बताती हैं, 'मेरे मन में एक शॉर्ट फिल्म बनाने का ख्याल आया और इसके लिए मैंने अलग से क्लास भी की। यहां मैंने डायरेक्शन, स्टोरी राइटिंग और फिल्म मेकिंग से जुड़ी चीजें सीखीं।' वह बताती हैं कि जब मैंने शॉर्ट फिल्म बनाने के लिए विषय चुना तो पहला ख्याल भारी स्कूल बैग का ही आया।
नंदिता का कहना है कि हर दिन हमें हद से ज्यादा भारी बैग उठाकर स्कूल जाना पड़ता है और इस तरह थकने के बाद कैसे पढ़ाई हो सकती है? नंदिता खुश है कि सबको उसकी बनाई शॉर्ट फिल्म सबको पसंद आ रही है।
बच्चों पर पड़ते पढ़ाई के दबाव और इसके साथ बढ़ते बस्ते के वजन को शायद ही बड़े समझ पाएं, यही वजह है कि 13 साल की एक बच्ची ने यह तकलीफ बड़ों तक पहुंचाई है। 13 साल की नंदिता नाचारे ने इसके लिए शॉर्ट फिल्म बनाई है, जिससे लोग सिर्फ इस तकलीफ को सुने नहीं, करीब से देख और महसूस कर सकें।
स्कूल बैग नाम की इस फिल्म में नंदिता ने भारी बैग से होने वाली परेशानियों और बच्चों पर पड़ने वाले बोझ को दिखाया है। नंदिता की फिल्म को नैशनल साइंस फिल्म फेस्टिवल में स्क्रीनिंग के लिए चुना गया है। भारत सरकार के विज्ञान एवं तकनीक विभाग के अंतर्गत आने वाला संगठन विज्ञान प्रसार इस फिल्म फेस्टिवल का आयोजन करता है। 16 अन्य फिल्मों के साथ इसे भी बच्चों के 'डी वर्ग' में शामिल किया गया है।
फिल्म के बारे में माधव सदाशिवराव गोलवलकर गुरुजी स्कूल सातवीं में पढ़ने वाली नंदिता बताती हैं, 'मेरे मन में एक शॉर्ट फिल्म बनाने का ख्याल आया और इसके लिए मैंने अलग से क्लास भी की। यहां मैंने डायरेक्शन, स्टोरी राइटिंग और फिल्म मेकिंग से जुड़ी चीजें सीखीं।' वह बताती हैं कि जब मैंने शॉर्ट फिल्म बनाने के लिए विषय चुना तो पहला ख्याल भारी स्कूल बैग का ही आया।
नंदिता का कहना है कि हर दिन हमें हद से ज्यादा भारी बैग उठाकर स्कूल जाना पड़ता है और इस तरह थकने के बाद कैसे पढ़ाई हो सकती है? नंदिता खुश है कि सबको उसकी बनाई शॉर्ट फिल्म सबको पसंद आ रही है।
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