ब्रटिश शासन के समय नमंदर मेले की थी खास पहचान
दीपाक्षर टाइम्स संबाददाताजम्मू: द्वापर युग के दौराण जब कौरव शासन द्वारा पंाड़वों को बारहं वर्ष के बनवास का दंड़ देकर उनको हस्तीनापुर से निकल जाने के आदेश जारी हुए। उस समय पांड़वों द्वारा बनवास के आदेश का पालन करते हुए जगह-जगह अपना समय बिताया। उसी द्वापर युग और बनवास के दौराण पांड़वों ने जम्मू डिविजन के नेशनल हाइवे सपवाल चौक से कुछ दूरी पर बसंतर तट क्षेत्र नमंदर में कुछ पलों के लिए अपने बनवास को विरांम दिया। पांड़वों द्वारा नमंदर स्थल पर बिताए गए कुछ पल द्वापर युग के इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गए। नमंदर स्थल पर पांड़वों द्वारा बिताए गए कुछ समय की यादों को उन्होंने वहां पर एक अस्थायी मंन्दिर के रूप में सर्वजनिक किया। पांड़वों द्वारा बनाए गए अस्थायी मंन्दिर की जानकारी उस समय के स्थानीय लोगों व साधु-संतों को मिली, तो संगत व संत-महात्माऔं के नमंदर में डेरे जमना शुरू हो गए। हर दिन लोग पांड़वों द्वारा बनाए गए मंन्दिर के दर्शनों के लिए वहां पहुंचते, और पूजा पाठ करके अपना निष्ठा भक्ति का सबूत देते रहे। देखते ही देखते इस जगह की प्रसिद्धता के चर्चे जम्मू देश के 18वीं सदी के राजा रणबीर सिंह तक पहुंच गए। सन् 1870 के दशक के एक दिन राजा रणबीर सिंह ने नमंदर क्षेत्र पहुंच कर वहां पर बनाए गए पांड़वों के हस्तनिर्मित मंन्दिर के दर्शनों की योजना बनाई। राजा रणबीर सिंह जब नमंदर क्षेत्र में पहुंचे, तो उन्होंने पाड़व मंन्दिर के दर्शन किए। पांड़व मंन्दिर के दर्शन करने के बाद उनके मन में ऐसा विचार आया कि उन्होंने उस अस्थायी मंन्दिर की जगह भव्य स्थायी मंन्दिर के निर्माण की घौषण कर दी। 1870 के दशक के दौराण ही नमंदर स्थल पर अस्थायी पांड़व मंन्दिर की जगह पर भव्य राधा-कृष्ण मंन्दिर का निर्माण हुआ। 18वीं सदी में हुए इस मंन्दिर के निर्माण के बाद वहां पर हर दिन श्रद्धालुऔं की भीड़ लगने लगी और देश के कोने-कोने से श्रद्धालु नमंदर पहुंचने लगे। राजा रणबीर सिंह द्वारा नमंदर में बनाए गए मन्दिर के कारण इस प्रसिद्ध स्थल को एक नई पहचान मिली। आज भी नमंदर स्थल पर हर साल बैसाखी मेले का राष्ट्रीय स्तर पर आयोजन किया जाता है। नमंदर मेले में देश के हर हिस्से से श्रद्धालु नमंदर पहुंचते हैं, और द्वापर युग के इतिहास की गाथाऔं का ज्ञान प्राप्त करते हैं।
नमंदर मेले की खास पहचान
जिस समय भारत देश ब्रिटिश सम्राज्य की गुलामी की जंजीरों में बंधा हुआ था, उस समय भी नमंदर बैसाखी मेले की एक खास पहचान हुआ करती थी। राज्य जम्मू-कश्मीर भारत से अलग देश था, और इस देश में राजाऔं की हुकूमत चलती थी। नमंदर वार्षिक बैसाखी मेले में जम्मू देश के अलावा भारत, पाकिस्तान के हजारों श्रद्धालु नमंदर बैसाखी मेले में शिरकत करके इसकी रौणक को चार-चांद लगाते थे। नमंदर बैसाखी मेले को खास बनाने के लिए ब्रिटिश शासकों द्वारा कई प्रकार की प्रतियोगिताऔं का आयोजन करवाया जाता था। मेले में भंगडा, मवेशियों के मुकावले और घौडा दौड प्रतियोगिताएं आदि को खास महत्व दिया जाता था। आयोजित की जाने वाली विभिन्न प्रतियोगिताऔं में अपनी प्रतिभा को दर्शाने के लिए हर देश की प्रतिभागी टोलियां मेले में जोश के साथ पहुंचती थीं। भारत देश के प्रत्येक हिस्से तथा पाकिस्तान की प्रसिद्ध जगहें जिनमें लाहौर, सियालकोट, शक्करगढ़ रावलपिंडी आदि से सैकडों प्रतिभागी मेले में अपनी प्रतिभाऔं को दर्शाने के लिए शरीक होते थे। जो प्रतिभागी टोलियां प्रतियोगिताऔं में अव्बल रहती थीं, उनको ब्रिटिश शासकों द्वारा इनाम भी दिए जाते थे। ब्रिटिश शासन के दौराण नमंदर बैसाखी मेले को मिली इस खास पहचान का वाजूद आज भी स्थापित है। हर साल नमंदर बैसाखी मेले परं आज भी कई प्रकार की प्रतियोगिताएं करवाई जाती हैं, जिनमें प्रतिभागी भाग लेकर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करते हैं।
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