रविवार, मार्च 18, 2018

भामूचक का प्राचीन मंन्दिर

किसी समय में अपनी अलग पहचान से प्रसिद्ध था


दीपाक्षर टाइम्स संबाददाता
जम्मू:
हमारे पूर्वजों द्वारा अपनी निष्ठा का सबूत देते हुए कई ऐतिहासिक धरोहरों का निर्माण करवाया। सीमांत क्षेत्र रामगढ़ के गांव भामूंचक में स्थित प्राचीन ऐतिहासिक राधा-कृष्ण किला रूपी मंन्दिर आज पुराने समय की जीती जागती तस्वीर बनकर लोगों का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करता है। करीब एक एकड़ में स्थित इस ऐतिहासिक किला रूपी मन्दिर का इतिहास सदियों पुराना है। क्षेत्र के बुजुर्गों के अनुसार 18वीं सदी में जब महाराजा गुलाब सिंह ने जम्मू के प्रसिद्ध ऐतिहासिक रघुनाथ मन्दिर के निर्माण का नीव पत्थर रखा, ठीक उसी समय उनके महल में दीवान का कार्यभार संभालने वाले भामूचक गांव के निवासी भामूं शाह ने भी महाराजा गुलाब सिंह के समक्ष अपने निजि गांव में राधा-कृष्ण मन्दिर के निर्माण की पेशकश की। महाराजा गुलाब सिंह ने उनकी इस पेशकश को मंजूरी दे दी, और भामूं शाह ने अपने पैत्रिक गांव में मन्दिर का निर्माण शुरू करवा दिया। इस प्राचीन ऐतिहासिक मन्दिर के निर्माण से सीमांत क्षेत्र का आकर्षण पड़ोसी देश पाकिस्तान तक भी पहुंच गया। जिस समय दोनों देशों के बीच सरहद की दिवार नहीं थी। उस समय पाकिस्तान से माता वैष्णों देवी के दर्शनों को जाने वाले श्रद्धालु इसी गांव तथा मन्दिर परिसर में रूककर आराम फरमाते थे। माता वैष्णों देवी तथा पाकिस्तान के लाहौर के बीच भामूंचक केन्द्र बिंदु था। हर दिन जहां पर मन्दिर परिसर में मेला लगा रहता था, और लोग आपस में बैठकरे सुख-दुख साझा करते थे। लेकिन जैसे ही दोनों देशों के बीच बटवारे की दिवार बनी। उसी समय से दोनों देशों के बीच पैदा हुई खटास से भामूचक गांव उजड़ गया। लोगों ने सुरक्षित जगहों पर आश्रय ले लिए, और ऐतिहासिक प्राचीन मन्दिर एक पुरानी याद बनकर रह गया। अगर मौजूदा समय में भी देखा जाए तो प्राचीण राधा-कृष्ण मंन्दिर भामूचक में आज भी उन आकृतियों, कलाकृतियों की झलक सामने आती है, जो हमारे जम्मू-कश्मीर के प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थलों पर कलाकारों द्वारा दर्शाई गई हैं। मंन्दिर की दीवारों पर की गई पेंटिंग जम्मू के प्रसिद्ध रघुनाथ मंन्दिर जैसी है। इसके अलावा मंन्दिर के आस-पास बनाए गई श्राइंन व दीवारें भी किसी किले से कम नहीं हैं। बाबा चमलियाल दरगाह दग-छन्नी में जब भी हर साल जून माह के चौथे वीरवार के दिन वार्षिक मेले का आयोजन किया जाता है, तो मेले में आने वाले बाहरी राज्यों के श्रद्धालु भामूचक मंन्दिर को देखने का मौका नहीं गंवाते। लेकिन बीतते समय के साथ भामूचक का मंन्दिर आज भी प्राचीण समय की यादों को संजोए हुए है।

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