
ग्रामीण स्तर पर शुरू किया गया कारोबार आज शहरों मे छोड रहा अपनी छाप
दीपाक्षर टाइम्स संवाददाता
जम्मू: आज के तेज रफ्तार युग में जहां देश की नई पीढी अपने पुरखों के दिए हुए संस्कारों को भुलाकर अपने ही तरीके का जीवन बसर करने की होड में हैं, वहीं कुछ पीढियां ऐसी भी हैं, जो अपनी पुशतैनी परंपराऔं तथा हुनर के माध्यम से अपने स्व:रोजगार को बढावा देकर बुजुर्गों का मान बढा रही हैं। जिला सांबा के छोटे से सीमांत क्षेेत्र के कस्बे रामगढ़ में रहने वाला महाजन परिवार कभी सीमांत लोगों के लिए मिट्टी के वर्तनों की खरीद-ओ-फरोख्त करके लोगों की जरूरतों को पूरा करके अपने निजि कारोवार को पालते थे। लेकिन ग्रामीण स्तर पर रोजगार को बढावा न मिलने के कारण भारत-पाक विभाजन से सात वर्ष पूर्व रामगढ़ कस्बे में रहने वाले महाजन परिवार ने जम्मू के उर्दु बाजार आज का शहीदी चौक में अपना बसेरा डालकर अपने हुनर और कारोवार को नई दिशा दी। जिस समय महाजन परिवार जम्मू में आकर बसा, उस समय दिवंगत मंगत राम ने परिवार का भरण-पोषण करने और निजि आमदनी में अतिरिक्त बढोतरी करने के लिए गांवों में रहने वाले में कुम्हार जाति लोगों से मिट्टी के वर्तन व अन्य प्रकार के सामन को खरीद कर लोगों में बेचने लगे। चालीस के दशक में जब कहीं पर भी अधुनिक बिजली उपकरण उपलब्घ नहीं थे, उस समय कुम्हार जाति द्वारा हस्तकला से घडे बनाकर उनको लोगों की जरूरतों के लिए उपलब्घ करवाते थे। उस चालीस के दशक में मिट्टी के घडे हर वर्ग के लोगों के लिए ठंडे पानी के फ्रीजर हुआ करते थे। आज गरीब परिवारों के लिए मिट्टी के घडे ही उनके लिए ठंडे पानी की सुविधा को उपलब्घ करवाने का सस्ता और आसान जरिया हैं। जहां गरीब परिवार मिट्टी के घडों का स्वच्छ ठंडा पानी पीकर अपनी प्यास बुझा रहे हैं, वहीं कुछ ऐसे भी रहीश लोग हैं, जो मिट्टी से बने वर्तनों व घडों को अपने घरों की शान समझ कर उनको खरीदते हैं।
जम्मू: आज के तेज रफ्तार युग में जहां देश की नई पीढी अपने पुरखों के दिए हुए संस्कारों को भुलाकर अपने ही तरीके का जीवन बसर करने की होड में हैं, वहीं कुछ पीढियां ऐसी भी हैं, जो अपनी पुशतैनी परंपराऔं तथा हुनर के माध्यम से अपने स्व:रोजगार को बढावा देकर बुजुर्गों का मान बढा रही हैं। जिला सांबा के छोटे से सीमांत क्षेेत्र के कस्बे रामगढ़ में रहने वाला महाजन परिवार कभी सीमांत लोगों के लिए मिट्टी के वर्तनों की खरीद-ओ-फरोख्त करके लोगों की जरूरतों को पूरा करके अपने निजि कारोवार को पालते थे। लेकिन ग्रामीण स्तर पर रोजगार को बढावा न मिलने के कारण भारत-पाक विभाजन से सात वर्ष पूर्व रामगढ़ कस्बे में रहने वाले महाजन परिवार ने जम्मू के उर्दु बाजार आज का शहीदी चौक में अपना बसेरा डालकर अपने हुनर और कारोवार को नई दिशा दी। जिस समय महाजन परिवार जम्मू में आकर बसा, उस समय दिवंगत मंगत राम ने परिवार का भरण-पोषण करने और निजि आमदनी में अतिरिक्त बढोतरी करने के लिए गांवों में रहने वाले में कुम्हार जाति लोगों से मिट्टी के वर्तन व अन्य प्रकार के सामन को खरीद कर लोगों में बेचने लगे। चालीस के दशक में जब कहीं पर भी अधुनिक बिजली उपकरण उपलब्घ नहीं थे, उस समय कुम्हार जाति द्वारा हस्तकला से घडे बनाकर उनको लोगों की जरूरतों के लिए उपलब्घ करवाते थे। उस चालीस के दशक में मिट्टी के घडे हर वर्ग के लोगों के लिए ठंडे पानी के फ्रीजर हुआ करते थे। आज गरीब परिवारों के लिए मिट्टी के घडे ही उनके लिए ठंडे पानी की सुविधा को उपलब्घ करवाने का सस्ता और आसान जरिया हैं। जहां गरीब परिवार मिट्टी के घडों का स्वच्छ ठंडा पानी पीकर अपनी प्यास बुझा रहे हैं, वहीं कुछ ऐसे भी रहीश लोग हैं, जो मिट्टी से बने वर्तनों व घडों को अपने घरों की शान समझ कर उनको खरीदते हैं।
कैसे गांव से शहर में बनी महाजन परिवार की पहचान:-

बुजुर्गों का सम्मान करना सीखे नई पीढी
बदलते समय की चमक-दमक भरी जिंदगी में हमारी युवा पीढी के सपनों को पंख लग चुके हैं। युवाऔं को अपने ही विचार और आदर्श अच्छे लगते हैं। लेकिन महाजन परिवार की पंाचवी पीढी के इक्लौते वारिस साहिल गुप्ता का कहना है कि बुजुर्गों के संस्कार और आदर्श ही इंसान की कामयाबी का मुख्य जरिया हैं। समाज में जीवित उदाहरण के तौर पर 'गोरखे दी हट्टी' के संचालक साहिल गुप्ता अपनी पांचवी पीढी के इक्लौते वारिस ने पिता जोगिन्द्र गुप्ता के स्वर्ग सिधार जाने के बाद माता शक्ति देवी सहित चार बहनों का पालन-पोषण करने वाले इस युवक की सोच लाजवाब है। साहिल गुप्ता ने अपने मन में ऐसा विचार बनाया, जिससे पुरखों की परंपरा भी आगे बढी और आमदनी के नए स्रोत भी सामने आए।
उर्दु बाजार आज के शहीदी चौक में स्थित 'गोरखे दी हट्टी' पर हस्तकला की आकृतियां अपने मुहंबोलती चीजें हैं। हर कोई उन मुहंबोलती बस्तुऔं को खरीद कर अपने घरों की सजावट करके एक नया आकर्षण पैदा कर रहा है।
अगर हमारी युवा पीढी बुजुर्गों से मिली शिक्षा पर अपना ध्यान दे, और उनका मान करे, तो कोई मंजिल ऐसी नहीं जिसे हासिल न किया जाए। युवाऔं को अपने बुजुर्गों, माता-पिता और भाई-बहनों का आदर करना चहिए। सदा आज्ञाकारी और सत्यवादी बनकर अपने जीवन के सफर को मुकांम तक पहुंचाना चहिए।
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