रविवार, मार्च 18, 2018

ठंडी खुई दी बरफी

तांगे वाले अड्डे दी बरफी दा 'स्वाद'

बरगद के पेड तले आज भी स्थापित है बाबा खजान का थडा

देश के कौने-कौने में अपना जलवा बिखेर रही ठंडी खुई की 'बरफी'

दीपाक्षर टाइम्स संवाददाता
जम्मू: नेशनल हाइवे जम्मू-पठानकोट के मध्य पडते तांगे वाले अड्डे वर्तमान ठंडी खुई जख के छोटे से बाजार की बरफी देश के कोने-कोने में अपने जलवे बिखेर रही है। देश का ऐसा कोई कोना नहीं है, जहां पर इस बरफी के स्वाद का लोगों ने लुत्फ न उठाया हो। यही नहीं बाबा अमरनाथ बर्फानी तथा माता वैष्णो देवी के दरवार कटरा तथा वादी कश्मीर में आने वाले विदेशी पर्यटकों को भी ठंडी खुई की बरफी का स्वाद अपनी तरफ आकर्षित करता है। हर कोई ठंडी खुई की बरफी की महक को महसूस करते ही हाइवे के उस छोटे से कोने की तरफ ख्ंिाचा चला आता है, जहां पर इस जादुई महक वाली बरफी को तैयार किया जाता है। ठंडी खुई क्षेत्र की महानता आज देश में हर तरफ फैली हुई है। कभी ऐसा भी समय था, जब ठंडी खुई जगह के नाम का किसी को कोई ज्ञान नहीं था। जिस समय जम्मू-पठानकोट नेशनल हाइवे का कोई नामो-निशंन नहीं था, सिर्फ एक पथ था जिसपर चलकर लोग जम्मू के लिए निकलते थे। उस समय वर्ष 1953 के दौराण जोगपुरा निवासी खजान चंद द्वारा अपने निजि रोजगार को बढावा देने हेतू सुनसान जगह ठंडी खुई स्थित बरगद के पेड तले अपना अड्डा बनाया। जो लोग विजयपुर से जम्मू जाते थे, और जम्मू से विजयपुर, सांबा, लखनपुर, पठानकोट के लिए निकलते थे, वह ठंडी खुई में रूककर खजान चंद की चाय पकौडी का लुत्फ उठाना नहीं भूलते थे। कई वर्षों तक यह सिलसिला जारी रहा और ठंडी खुई के खजान चंद की चाय पकौडी की प्रसिद्धता बढने लगी। वर्तमान में जिस जगह को आज ठंडी खुई के नाम की पहचान मिली है, उस जगह का पहला नाम तांगे वाला अड्डा के नाम से प्रसिद्ध था। तांगे पर सफर करने वाले यात्री भी ठंडी खुई पर ही रूकते थे, और यात्री व चालक आराम फरमाते थे। यात्रियों व आम राहगीरों के लिए तांगे वाला अड्डा ठंडी खुई क्षेत्र एक आरामगाह बनता गया। ठंडी खुई की एक विशेष पहचान जहां पर स्थित कूएं से भी की जाती है। इस कूएं की प्रसिद्धता यह है कि इसका पानी हर मौसम में अपना रूप बदलता है। सर्दियों के दिनों में कूएं का पानी गर्म रहता है, और गर्मियों के दिनों में पानी ठंडा हो जाता है। यही नहीं इस पानी का सेवन करने वाले किसी भी व्यक्ति को पेट रोगों से निजात मिल जाती है, और पाचन तंत्र भी तेज हो जाता हो जाता है। आज भी दूर-दराज शहरों के लोग ठंडी खुई के कूएं का जल मटकों में भरकर अपने घरों के लिए ले जाते हैं। इस ठंडी खुई के बरगद के पेड तले जहां खजान चंद का चाय पकौडी वाला अड्डा स्थापित था, वहीं युवा अवस्था में विधवा हो चुकी कुलियां कमाला निवासी जयंति देवी ने जनसेवा का उद्ेश्य पालते हुए राहगीरों को कूएं का जल पिलाने की सेवा का प्रण ले लिया। खजान चंद और जयंति देवी के बीच मुहंबोले भाई-बहन का रिश्ता एक अटूट रिश्ते का बंधन बनता चला गया। वर्ष 1965-1971 भारत-पाक युद्धों के बाद जब फिर से हर तरफ अमन बहाली हुई तो ठंडी खुई तांगे वाले अड्डे की गतिविधियां भी अपने नए रंग में नजर आने लगीं। जिस बरगद के पेड तले खजान चंद का चाय पकौडी वाला अड्डा था, वहां पर झौंपडी नुमा दुकान की स्थापना हुई। पहले राहगीरों व यात्रियिों को चाय के साथ पकौडी मिलती थी, वहीं कुछ नए व्यंजन जिनमें मेसू, बरफी, मटठी, मटर, सेवियां आदि की महक लोगों को अपनी तरफ खीचने लगी। 19वीं सदी से निकल कर जब भारतवर्ष ने 21वीं सदी में प्रवेश किया, तो ठंडी खुई क्षेत्र का नाम देश के गिने-चुने क्षेत्रों की सूची में शामिल हो गया। आज इसी ठंडी खुई क्षेत्र में बनने वाली बरफी सबसे खास बरफी बन चुकी है। अगर किसी के घर में कोई विशेष समारोह आयोजित होता है, या किसी को विशेष मुबारकवाद का अदान-प्रदान करना होता है, तो लोग ठंडी खुई की बरफी को तोहफे के तौर पर भेंट देना सबसे खास मानते हैं। 
बरगद के पेड तले स्थापित बाबा खजान का थडा
वर्तमान समय में ठंडी खुई क्षेत्र एक प्रसिद्ध स्थल बन चुका है, और जहां पर संत, महात्मा, नेता, अभिनेता व गणमान्य सदस्य बरफी चाय का स्वाद लेने के लिए रूकते हैं, और जहां पर बनने वाले विशेष व्यंजनों का लुत्फ उठाते हैं। ठंडी खुई में बरफी के साथ अन्य प्रकार के व्यंजन पकौडे, दुब्बारे, पनीर पकौडा, स्नेक्स, चाय आदि का विशेष स्वाद का पूरा आनंद मिलता है।


 

 

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