मंगलवार, जून 28, 2016

सरल भाव से संवेदनशील लेखन में माहिर डॉ.निर्मल विनोद

-प्रशांत भारद्वाज
डोगरी एवं हिन्दी भाषा के सशक्त हस्ताक्षर डॉ.निर्मल विनोद बहुमुखी प्रतिभा के धनी है। साहित्यिक क्षेत्र में उनकी एक अलग पहचान है। आपने साहित्य की विभिन्न विधाओं में अपनी लेखनी का प्रयोग बहुत-ही सहज भाव से किया है। जिसके चलते आप गीतकार, गज़लगो शायर, साहित्यकार, संपादक जैसी भूमिकाओं का प्रतिबद्ध होकर सहजता से निर्वाह कर रहे हैं। आप अपने संवेदनशील लेखन से जहां अपनी सहृदयता का परिचय देते हैं, वहीं एक परिपक्व आलोचक की भूमिका में हर रचना, हर पुस्तक पर अपनी आलोचनात्मक सूझबूझ का भी परिचय देते हैं। अपने नाम के अनुरूप स्वच्छंद भाव से सृजित उनकी प्रत्येक रचना भी अपनी निर्मलता से पाठक को एक नये एहसास की अनुभूति करवाती है। लेकिन कुछ रचनाएं वर्तमान समय के ''मैं,'मनी' (धन) एवं मुनाफा'' प्रधान समाज के असामाजिक एवं अव्यवहारिक लोकाचार को भी मुखर होकर उजागर करती है:-
जरबें-तक्सीमें दे
जमां बाकिये द
तुस माहिर लोक
तु'न्दे नेह़ दुनियादारें नै
अस निभचै तां कि'यां जी
1 जून 1950 को जन्म लेने वाले डॉ.निर्मल विनोद ने बी.एस.सी तक शिक्षा प्राप्त की। उसके उपरांत आपने हिन्दी में एम.ए. किया और फिर पीएचडी की डिग्री प्राप्त की। साहित्य की हर विधा में निपुण डॉ.निर्मल विनोद ने सतत साहित्य साधना कर बहुत-सी पुस्तकों का सृजन किया है। आपने ''निराला'' और भाई वीर सिंह के काव्य का तुलनात्मक अध्ययन'' एवं फणीश्वरनाथ रेणु के उपन्यासों में क्रांति के स्वर'' विषय पर शोध पत्रों का सृजन किया।  इसके उपरांत आपने वर्ष 1999 में हिन्दी में ''कविता का सामाजिक सरोकार'' तथा 2002 में डोगरी में ''डोगरी शोध ते समीक्षा'' पर शोधपत्र प्रकाशित करवाए। आपके द्वारा डोगरी एवं हिन्दी में रचित साहित्य संबंधी शोध तथा समीक्षात्मक निबंध 'शिराजा'(डोगरी),'साढ़ा साहित्य', 'नमीं चेतना', जम्मू विश्वविद्यालय की शोध पत्रिका-'डोगरी शोध', 'शिराजा'(हिन्दी),'हमारा साहित्य(हिन्दी)' आदि पत्रिकाओं में समय-समय पर प्रकाशित होते रहे हैं।
डॉ. निर्मल विनोद ने हिन्दी एवं डोगरी में कई पुस्तकों की रचना की है। हिन्दी में 1976 में गीत,नवगीत एवं गजल संग्रह 'पत्थरों का दरिया',1978 में छन्द-मुक्त वे मुक्त-छंद की कविता संग्रह 'बयार के पंखों में',1982 में नवगीत संग्रह 'साक्षी संध्याओं के',1996 में नवगीत संग्रह 'टूटते क्षितिज के साये', 1998 में गजल संग्रह 'धूप-धूप फासला' का सृजन किया। डोगरी में 1990 में बाल गीत संग्रह 'आपूं राजा',2004 में दोहा संग्रह 'निर्मल सतसई', 2015 में नवगीत संग्रह 'में कस्तूरी हिरन',का सृजन किया। आपके द्वारा डोगरी में रचित दोहा संग्रह 'निर्मल हजारा' शीघ्र ही प्रकाशित होने वाला है। इसके साथ ही आपने काव्य संकलन 'चोराहे पर खड़े चेहरे','युवा कविता', 'मधुरिमा', एवं 'कला परिक्रमा' तथा कहानी संकलन 'अधूरी कहानी का हीरो','देवदारों की छाया तले', 'प्रिज्मों में बंटी किरणें','चीड़ों में ठहरी बयार(विविधा)','हमारा साहित्य(विविधा)','साढ़ा साहित्य(निबंध)', डोगरी शोध(निबंध)','जम्मू-कश्मीर दी प्रतिनिध पंजाबी कवता'(संकलन- प्रो.करतार सिंह सूरी)','कश्मीर दी प्रतिनिध पंजाबी कवता'(संकलन- प्रो.देवेन्द सिंह) तथा साहित्य अकादमी दिल्ली द्वारा प्रकाशित प्रकाशनों में भी अपनी रचनाओं के माध्यम से सहयोग दिया। आपने 1975 में दो सहयोगी संपादकों के साथ संयुक्त रूप से 'प्रिज्मों में बंटी किरणें' का संकलन व संपादन किया। 1977 में डुग्गर संस्कृति पर आधारित निबंध संग्रह ''तवी के आर-पार' का संकलन व संपादन किया। आपने हिन्दी पत्रिका 'घोषवती', 'नीलकंठ' एवं मधुरिमा' का तथा हिन्दी/डोगरी पत्रिका 'वैष्णवी' एवं डोगरी पत्रिका 'त'वी' का संपादक कार्य भी किया है। आपकी साहित्यिक रचनाएं समय-समय पर देश भर के सहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं जथा समाचार-पत्रों एवं पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही है। आप राष्ट्रीय स्तर के लेखक सम्मलनों, रेडियो व दूरदर्शन के विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों में हिस्सा लेते रहते हैं। आपने नाटय लेखन के साथ-साथ  संस्कृत, डोगरी, पंजाबी, हिन्दी, राजस्थानी, सिंधी, अंग्रेजी, आदि भाषाओं की रचनाओं का अनुवाद कार्य भी किया है। डॉ. निर्मल विनोद विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं से भी जुड़े हैं। आप रेडिया एवं दूरदर्शन पर समाचार वाचन के साथ ही हिन्दी व पंजाबी रंगमंच पर अपनी अभिनय कला के रंग  भी बिखरने में सफल रहे हैं। केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय द्वारा हिंदीतर भाषी पुरस्कार से सम्मानित डॉ.निर्मल विनोद गत 5 दशकों से अनवरत साहित्य साधना में रत हैं। उन्होंने प्रतिबद्धता से हिन्दी एवं डोगरी साहित्य में अपना उल्लेखनीय योगदान दिया है।

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