बुधवार, मई 25, 2016

हीमोग्लोबिन के संबंध में जन-जागरूकता की जरूरत

दीपाक्षर टाइम्स संवाददाता
जम्मू। आरटीमिस हास्पिटल्स के डॉ.राहुल भार्गव का कहना है कि हीमोग्लोबिन के संबंध में जनता को जागरूक किए जाने की जरूरत है। क्यांकि मानव शरीर में हीमोग्लोबिन का उचित स्तर थैलेसीमिया और कैंसर जैसी बीमारियों के विरूद्ध प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि कर देता है।  
एक परिचर्चा को संबोधित करते हुए डॉ.भार्गव ने कहा कि अगर आप को थकावट महसूस होती है, या व्यवहार में चिड़चिड़ापन आ गया है तो हो सकता है कि आपके शरीर में हीमोग्लोबिन का स्तर कम हो। उन्होंने कहा कि लोग हीमोग्लोबिन को ज्यादा महत्व नहीं देते हैं। अगर हमें सीने में दायीं और दर्द महसूस होता है तो हम तुरंत ईसीजी करवाते हैं, लेकिन हम अगर उपरोक्त लक्ष्ण महसूस करते है तो भी हम हीमोग्लोबिन की जांच नहीं करवाते हैं।
डॉ.भार्गव ने कहा कि इस परिचर्चा का उद्देश्य एनीमिया के संबंध में डॉक्टरों और आम जनता को जागरूक करना है। महिलाओं में हीमोग्लोबिन अधिक से अधिक 12 और पुरूषों में यह 13 होना चाहिए। हीमोग्लोबिन का कम होना मुख्यतया: आयरन एवं पोषक तत्वों की कमी से होता है। अगर इसका उपचार शीघ्र करवा लिया जाए तो पेट के कैंसर, सीलिएक रोग और ब्लड कैंसर जैसे अन्य रोगाों पर जल्द नियंत्रण पाया जा सकता है। अगर इसकी पहले और दूसरे चरण में ही जांच करवा ली जाए तो 70 से 80 प्रतिशत लोग इन बीमारियों से छुटकारा पा लेंगे।
डॉ. भार्गव ने कहा कि हमारा मुख्य उद्देश्य डॉक्टरों और आम जनता को थैलेसीमिया के संबंध में जागरूक करना है। थैलेसीमिया माता-पिता से आनुवांशिक रूप से फैलता है। अगर माता-पिता दोनों को थैलेसीमिया की कम शिकायत है तो इस बात की २५ प्रतिशत तक संभावना होती है कि बच्चा भी थैलेसीमिया से ग्रस्त हो सकता है। अगर थैलेसीमिया की ज्यादा शिकायत हो तो बच्चे को ६ माह की उम्र से ही ब्लड ट्रांसफ्यूजन से पता चल जाता है। कई मामले बेहद जटिल हो जाते हैं। इसलिए यह बेहद जरूरी है कि थैलेसीमिया की कम शिकायत हो तो गर्भावस्था के समय पति-पत्नी दोनों अपना विशेष परीक्षण करवाए। अगर थैलेसीमिया की ज्यादा  शिकायत हो तो भ्रूण को निरस्त किया जाना चाहिए। थैलेसीमिया की जांच जरूरी कर हम बच्चे को जीवन भर के दर्द से बचा सकते हैं। इसलिए हमें  हीमोग्लोबिन का स्तर महिलाओं में 12 और पुरुषों में 13 के बनाए रखने पर ध्यान देना है। इससे थैलेसीमिया और कैंसर होने की संभावना काफी कम हो जाती है।

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