बुधवार, मई 25, 2016

आरक्षण का झुनझुना

छत्रपाल
-छत्रपाल
हे उच्चकुलीन जनों, आपसे हार्दिक सुहानुभूति है। आपके माता-पिता ने अपने वंश में पैदा करके आप के  प्रति जो अक्षम्य अपराध किया है उसका दंड आप आयुपर्यन्त भोगते रहेंगे। जिस उच्च कुल पर आप गौरवान्वित महसूस करते थे उसी पर अब लज्जित होकर आपको मुंह छिपाना पड़ेगा। उच्च कुलों के दीपक होने के कारण लोकतांत्रिक आंधियों में आप न तो सुरक्षित है, न ही आरक्षित। हे अभिशप्त कुलीनो, अपने पुरखों के मिथ्या दंभपूर्ण यशोगान की अपेक्षा करबद्ध होकर ईश्वर से प्रार्थना करो कि परमपिता अगले जन्म में आपको अनुसूचित जातियों का कुलदीपक बनाए ताकि आपका जीवन रक्षित और आरक्षित हो सके। कलियुग में उच्च वर्ग में पैदा होने की हानियों से आप अभी तक परिचित नहीं हुए। इस महादेश में परिवर्तन की उल्टी हवाएं चलने लगी हैं। कई वर्गां के लिए यह निश्चय ही सुवासित मंद-मंद समीर होगी। किन्तु आप पर उन्चास पवनों का कहर बनकर टूटेगी।
घायल भारत पुत्रों , देशधर्म को पहचानो और छद्म प्रमाण पत्रों की गुप्त व्यवस्था करो। अपने देश में बहुसंख्यकों के नहीं अल्पसंख्यकों के अधिकार आरक्षित हैं। अत: अधिकार प्राप्त करने के लिए अल्पसंख्यक, जनजाति या अनुसूचित वेश में विकास का अधिकार प्राप्त करने के लिए पिछड़ा होना आवश्यक है। पिछड़ेेपन का एकमात्र यही प्रमाण है कि आपके पिताश्री, दादाश्री, और परदादाश्री सभी पिछड़ेे हुए हों। जन्म से पिछड़ी, अनुसूचित अथवा जनजाति का होने पर ही आपको आरक्षण के योग्य माना जाएगा। अपनी गरीबी का रोना रोना बंद कीजिए गरीबी को पिछड़ेेपन का आधार नहीं बनाया जा सकता। बहुसंख्यक समाज के अभागे नागरिको, तुम लोकतंत्र में मात्र अपना मत देने के लिए पैदा हुए हो। तुम मतदाता हो। दाता होकर याचकों की तरह भागना तुम्हे शोभा नहीं देता। क्या हुआ जो महंगाई की लोमड़ी ने तुम्हारा चेहरा नोच लिया है और भ्रष्टाचार की जोंक ने तुम्हारा रक्त चूस लिया है। दाता होने का गौरव तुम्हे ही प्राप्त है। अपने नसीब में लिखा तुम्हें ही भोगना है। बहुमत के सिद्धांत पर खड़े लोकतंत्र में बहुसंख्यकों की ही दुर्दशा पर आंसू बहाने से तुम्हें आरक्षण सुख प्राप्त नहीं होगा। लोकतंत्र की शरशैया पर लेटे रहो और अगले जन्म में अनुसूचित के किसी आरक्षित कुल में जन्म लेने की प्रार्थना में लीन हो जाओ।
अनुसूचित फेहरिस्त में आने  के लिए आकुल पुरुषार्थियो, आरक्षण का गौरव प्राप्त करने के लिए अपने संघर्ष को तीव्र गति प्रदान करो। यदि और कोई कारण दृष्टिगत नहीं होता तो अपनी भाषा की दुम पकड़कर अनुसूचित जातिवर्ग में प्रवेश  कर जाओ। यह वैतरणी परम पद की प्राप्ति हेतु,  तुम्हे किसी भी तरह पार करनी ही होगी। भाषा को यदि अपने संघर्ष का शस्त्र बनाओगे तो अपने लालायित क्षेत्र की जातियों-उपजातियों के विरोध से बच जाओगे। ज्ञातव्य हो कि यदि अपने धर्मनिरपेक्ष, बहुआयामी और वैविध्यपूर्ण देश में भाषा के आधार पर राज्यों की स्थापना हो सकती है तो भाषा के सहारे अनुसूचित जाति ही नहीं अनुसूचित जनजाति की श्रेणी भी प्राप्त की जा सकती है। भाषा के आधार पर मिलने वाली अनुसूचित श्रेणी आरक्षण नीति की नई परिभाषा तय करेगी। पिछड़ी भाषा बोलने वाले ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य भी अनुसूचित जनजाति के परम पद को प्राप्त होंगे। इस प्रकार समाज से समस्त विषमताएं दूर हो जाएंगी और समग्र समाज अनुसूचित होकर विकासोन्मुख हो जाएगा।
अपने बच्चों पर कुछ रहम खाओ और उन्हें ओपन मेरिट की कड़ी धूप से बचाने के लिए आरक्षण की छतरी प्राप्त करने का जुगाड़ करो। याद करने की कोशिश करो, संभवत तुम्हारे पूर्वजों में से कोई भूतपूर्व सैनिक रहा हो या उनका निवास स्थान नियंत्रण रेखा के इस पार या उस पार रहा हो। उन लोगों से प्रेरणा लो जो पिछड़े क्षेत्र के पिछड़ेपन से आजिज आकर बड़ेे-बड़ेे नगरों में दशकों से सुविधापूर्ण जीवन जी रहे हैं किन्तु अब भी अपने बच्चों को पिछड़े क्षेत्र का आरक्षण लाभ दिलवा रहे हैं।

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