हां-हां! गिलहरी.. और वह भी भौंकने वाली। शीर्षक में कोई भूल नहीं। उत्तरी अमेरिका के प्रेयरी मैदानों में ऐसी गिलहरियां बहुतायत में पाई जाती हैं, जो किसी संकट या आपातकाल की आहट होने पर तुरंत भौंकने लगती हैं। स्क्यूरस ग्रीसियस वैज्ञानिक नाम वाली इन गिलहरियों को प्रेयरी गिलहरी या जंगली गिलहरी भी कहते हैं। ये गिलहरियां आमतौर पर सामान्य आवाज में ही परस्पर संवाद करती हैं, लेकिन खतरा सामने दिखते ही इनकी आवाज में बदलाव आ जाता है और अपने साथियों को ये भौंक-भौंक कर अलर्ट करने लगती हैं। खतरा बिल्कुल नजदीक हो तो भौंकने का वॉल्यूम बेहद कम होता है। खतरा टलने के बाद ये अलग तरह से आवाज निकालकर राहत का संकेत देती हैं। मोटे तौर पर ये आम गिलहरियों जैसे ही आकार प्रकार की होती हैं लेकिन इनकी पूंछ की लंबाई जरा कम और झबरीली होती है। पूंछ का अंतिम सिरा काला होता है। कई लोग इन्हें काली पूंछ वाली गिलहरी भी कहते हैं। प्रेयरी गिलहरियों कॉलोनी बना कर रहती हैं। इनका आकार डेढ़ फुट से दो फुट तक होता है और वजन लगभग 400 ग्राम से 1 किलो तक हो सकता है। इनके घर को कोटरी कहा जाता है। यहीं से अपना घोंसला बनाती हैं। इन्हें घास और जंगली वनस्पति खाना अच्छा लगता है। कठोर बीजों को भी ये आसानी से तोड़ लेती हैं। अनजाने में ही ये गिलहरियां इधर-उधर बीज बिखेर देती हैं जिनसे पेड़ पौधे उग जाते हैं। ये पेड़ों या जमीन पर, दोनों जगह आराम से रह लेती हैं। जंगली गिलहरी का प्रजनन काल मार्च से मई माह में होता है। यह साल में एक बार ही प्रजनन करती है। इसके बच्चे गर्भ में 43 दिन रहते हैं। एक बार में इनके तीन से पांच बच्चे हो सकते हैं। 10 हफ्ते बाद बच्चे बड़े हो जाते हैं और भोजन की व्यवस्था के लिए अपनी मां के साथ जाने लगते हैं। आजकल इस प्रजाति की गिलहरियां कम होती जा रही हैं। इसके दो कारण हैं, एक तो ये खेतों को काफी नुकसान पहुंचाती हैं और दूसरा इनका मांस बहुत स्वादिष्ट होता है। इसलिए मनुष्य इनका शिकार बहुत करते हैं। जल्द ही इनके संरक्षण के लिए कुछ न दिया गया तो यह प्रजाति विलुप्त भी हो सकती है।
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