बुधवार, मई 25, 2016

प्यासी धरा

जूझ रही है ये धरती
सूरज के गर्म थपेड़ो से
तप रही है ये धरा
ज्वाला जैसी किरणों से
पेड़ों पर अब सावन के झूले नहीं लगते
झूल रहें है अब पेड़ों पर किसान
लगाकर फाँसी
अब गीत नहीं कोई राग नहीं
केवल अश्रु और क्रंदन है
प्यासी है ये धरती सारी
प्यासा हर इंसान है
ऐसे में ए बरखा रानी
शीतल जल कलश
तू ले आना
सुखी पड़ी इस जमीं पर
रिमझिम पावस बरसा जाना
टिप टिप टिप टिप
बूंदों की टाप से
धरती फिर से नाच उठेगी
सुखी जमीं पर फिर देखो
कोंपल कैसे मुस्कुरा उठेगी
पीकर जल मनभर
फिर पौध रूप धर जाएँगी
होगा खेत फिर हरा भरा
और चिडिय़ा चहचहाएंगी
धान उगेगा फसले बढेंगी
किसानो की जिंदगी बचेगी
सूखे की मार झेल रहे
लोगो के जीवन में
फिर से हरियाली महकेंगी
होगा फिर उत्सव जीवन में
फिर से जीवन नाच उठेगा
चारो ओर होगा जल और जीवन
झूम उठेगा सबका मन
-रीना मौर्य 'मुस्कान'
शिक्षिका, मुंबई (महाराष्ट्र)








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