संपादक महोदय,
जब तापमान करीब 43 डिग्री के आस-पास होने के कारण गर्मी अपने पूरे उफान पर है जम्मू संभाग विशेषरूप से जम्मू शहर में लोग अनियमित आपूर्ति के चलते परेशान हो रहे हैं। पानी की किल्लत को लेकर जहां लोगों की बैचेनी दिन ब दिन बढ़ती ही जा रही है। वहीं दूसरी ओर जल प्रबंधन का शोर है और शहर में आवश्यकता के अनुसार पेयजल आपूर्ति के बारे में सिर्फ बनावटी बातें ही की जा रही है। जब ऊंचे दावों की पोल खुल रही है तो संबंधित अधिकारियों के पास आम लोगों की दुर्दशा के बारे में कोई शब्द नहीं है। पीएचई विभाग द्वारा की जा रही पेयजल आपूर्ति की पूरी व्यवस्था अस्थायी कर्मचारियों और दैनिक वेतनभोगियों द्वारा चलाई जा रही है। उनमें से कुछ एक दशक से अधिक समय से विभाग में कार्यरत होने के बावजूद अभी तक अस्थायी कर्मचारी ही हैं। ये कर्मचारी गत 70 दिनों से उन्हें नियमित किए जाने की मांग को लेकर हड़ताल पर हैं, लेकिन सरकार इस मांग को मानने को तैयार नहीं है। यह एक बहुत ही अतार्किक और अनुचित स्थिति है। अगर एक दशक से भी अधिक समय से सेवारत रहने के बाद भी पीएचई उन्हें नियमित करने की स्थिति में नहीं है और अगर वे अपनी मांगों को लेकर सरकार पर दबाव डाल रहे हैंं, तो सरकार क्यों नहीं उनके स्थान पर और अस्थायी कर्मचारी तैनात करके शहर और पेयजल किल्लत से काफी परेशान कंडी क्षेत्रों में पेयजल आपूर्ति उपलब्ध करवाती। अगर सरकार सोचती है कि इन अस्थायी कर्मचारियों की बर्खास्तगी इनके साथ अन्याय होगा तो सरकार इन्हें नियमित करने के बारे क्यों नहीं विचार करती है। यह जनता की सरकार है, इसे जनहित में काम करना है। लेकिन वह असलियत में पानी की कमी से लाखों लोगों को परेशान कर लोगों के हितों के खिलाफ काम कर रही है। मंत्रियों, विधायकों और शीर्ष नौकरशाहों को नियमित रूप से पानी की आपूर्ति मिल रही है और वे हड़ताल से प्रभावित नहीं हैं। इसलिए वे लाखों आम लोगों को पेश आ रही समस्याओं को नहीं समझ सकते हैं। करीब दो वर्ष पूर्व आगामी 30 वर्षों के लिए ग्रेटर जम्मू की पेयजल जरूरत पूरी करने के लिए 1008 करोड़ रूपए की चिनाब जल परियोजना तैयार की गई थी, लेकिन इसे एशियन डव्ल्पमेंट बैंक ने कुछ तकनीकी कारणों से नामंजूर कर दिया था। पीएचई विभाग का कहना है कि अब एक जापानी कंपनी द्वारा परियोजना शुरू किए जाने की संभावना है। क्या विभाग के पास इसका जवाब है कि जब एडीबी ने इस परियोजना से हाथ खिंचा तो उसके बाद 2 वर्ष तक विभाग ने क्या किया? क्या अन्य विकल्प तलाशना उसकी जिम्मेदारी नहीं थी? अब 19 टयूब वैल खोदने के आदेश दिए गए हैं, जो दिसंबर 2016 तक पूर्ण होंगे। इसका मतलब है कि दिसंबर तक या सात माह तक जम्मू शहर के लिए 20 लाख गैलन पानी की कमी जारी रहेगी। प्रस्तावित 19 नलकूप भले ही दिसंबर तक पूर्ण होने हो लेकिन उनसे भी कई कारणों से समस्या का समाधान होता नजर नहीं आता है। यह निश्चित रूप से कोई नहीं बता सकता कि इनमें से कितने टयूबवैल में पर्याप्त पानी होगा। दूसरे बिजली आपूर्ति की निराशाजनक हालत को देखते हुए यह नहीं लगता कि इन नलकूपों के लिए नियमित रूप से बिजली की आपूर्ति सुनिश्चित हो पाएगी। भले ही बिजली की आपूर्ति नियमित रूप से हो और नलकूपों के लिए पर्याप्त पानी हो , क्या महिनों तक हड़ताल पर रहने वाले अस्थायी श्रमिकों / मजदूरों के साथ क्या ये सब संभव हो पाएगा। इसलिए ट्यूबवेल समस्या के लिए कोई वास्तविक समाधान नहीं है। सरकार को तत्काल सही जल संसाधन प्रबंधन नीति तैयार करनी चाहिए। शहर में पानी की कमी एक बहुत ही गंभीर मुद्दा बनता जा रहा है।-सुशांत
जब तापमान करीब 43 डिग्री के आस-पास होने के कारण गर्मी अपने पूरे उफान पर है जम्मू संभाग विशेषरूप से जम्मू शहर में लोग अनियमित आपूर्ति के चलते परेशान हो रहे हैं। पानी की किल्लत को लेकर जहां लोगों की बैचेनी दिन ब दिन बढ़ती ही जा रही है। वहीं दूसरी ओर जल प्रबंधन का शोर है और शहर में आवश्यकता के अनुसार पेयजल आपूर्ति के बारे में सिर्फ बनावटी बातें ही की जा रही है। जब ऊंचे दावों की पोल खुल रही है तो संबंधित अधिकारियों के पास आम लोगों की दुर्दशा के बारे में कोई शब्द नहीं है। पीएचई विभाग द्वारा की जा रही पेयजल आपूर्ति की पूरी व्यवस्था अस्थायी कर्मचारियों और दैनिक वेतनभोगियों द्वारा चलाई जा रही है। उनमें से कुछ एक दशक से अधिक समय से विभाग में कार्यरत होने के बावजूद अभी तक अस्थायी कर्मचारी ही हैं। ये कर्मचारी गत 70 दिनों से उन्हें नियमित किए जाने की मांग को लेकर हड़ताल पर हैं, लेकिन सरकार इस मांग को मानने को तैयार नहीं है। यह एक बहुत ही अतार्किक और अनुचित स्थिति है। अगर एक दशक से भी अधिक समय से सेवारत रहने के बाद भी पीएचई उन्हें नियमित करने की स्थिति में नहीं है और अगर वे अपनी मांगों को लेकर सरकार पर दबाव डाल रहे हैंं, तो सरकार क्यों नहीं उनके स्थान पर और अस्थायी कर्मचारी तैनात करके शहर और पेयजल किल्लत से काफी परेशान कंडी क्षेत्रों में पेयजल आपूर्ति उपलब्ध करवाती। अगर सरकार सोचती है कि इन अस्थायी कर्मचारियों की बर्खास्तगी इनके साथ अन्याय होगा तो सरकार इन्हें नियमित करने के बारे क्यों नहीं विचार करती है। यह जनता की सरकार है, इसे जनहित में काम करना है। लेकिन वह असलियत में पानी की कमी से लाखों लोगों को परेशान कर लोगों के हितों के खिलाफ काम कर रही है। मंत्रियों, विधायकों और शीर्ष नौकरशाहों को नियमित रूप से पानी की आपूर्ति मिल रही है और वे हड़ताल से प्रभावित नहीं हैं। इसलिए वे लाखों आम लोगों को पेश आ रही समस्याओं को नहीं समझ सकते हैं। करीब दो वर्ष पूर्व आगामी 30 वर्षों के लिए ग्रेटर जम्मू की पेयजल जरूरत पूरी करने के लिए 1008 करोड़ रूपए की चिनाब जल परियोजना तैयार की गई थी, लेकिन इसे एशियन डव्ल्पमेंट बैंक ने कुछ तकनीकी कारणों से नामंजूर कर दिया था। पीएचई विभाग का कहना है कि अब एक जापानी कंपनी द्वारा परियोजना शुरू किए जाने की संभावना है। क्या विभाग के पास इसका जवाब है कि जब एडीबी ने इस परियोजना से हाथ खिंचा तो उसके बाद 2 वर्ष तक विभाग ने क्या किया? क्या अन्य विकल्प तलाशना उसकी जिम्मेदारी नहीं थी? अब 19 टयूब वैल खोदने के आदेश दिए गए हैं, जो दिसंबर 2016 तक पूर्ण होंगे। इसका मतलब है कि दिसंबर तक या सात माह तक जम्मू शहर के लिए 20 लाख गैलन पानी की कमी जारी रहेगी। प्रस्तावित 19 नलकूप भले ही दिसंबर तक पूर्ण होने हो लेकिन उनसे भी कई कारणों से समस्या का समाधान होता नजर नहीं आता है। यह निश्चित रूप से कोई नहीं बता सकता कि इनमें से कितने टयूबवैल में पर्याप्त पानी होगा। दूसरे बिजली आपूर्ति की निराशाजनक हालत को देखते हुए यह नहीं लगता कि इन नलकूपों के लिए नियमित रूप से बिजली की आपूर्ति सुनिश्चित हो पाएगी। भले ही बिजली की आपूर्ति नियमित रूप से हो और नलकूपों के लिए पर्याप्त पानी हो , क्या महिनों तक हड़ताल पर रहने वाले अस्थायी श्रमिकों / मजदूरों के साथ क्या ये सब संभव हो पाएगा। इसलिए ट्यूबवेल समस्या के लिए कोई वास्तविक समाधान नहीं है। सरकार को तत्काल सही जल संसाधन प्रबंधन नीति तैयार करनी चाहिए। शहर में पानी की कमी एक बहुत ही गंभीर मुद्दा बनता जा रहा है।-सुशांत