गुरुवार, जुलाई 07, 2016

ये कैसा पवित्र रमजान महीना, जिसने सैकड़ों बेकसूर लोगों का खून बहाया?

जम्मू। खुद को खुदा की राह में समर्पित कर देने का प्रतीक पाक महीना 'माह-ए-रमजान' न सिर्फ रहमतों और बरकतों की बारिश का वकफा है, बल्कि समूची मानव जाति को प्रेम, भाईचारे और इंसानियत का संदेश भी देता है। इस पाक महीने में अल्लाह अपने बंदों पर रहमतों का खजाना लुटाता है और भूखे-प्यासे रहकर खुदा की इबादत करने वालों के गुनाह माफ हो जाते हैं। रमजान में दोजख यानी नरक के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं और जन्नत की राह खुल जाती है लेकिन इस बार के इस 'पाक महीने' में दहशतगर्दों ने जितना खून बहाया, उतना तो किसी भी रमजान में नहीं बहा...इंसानियत के दुश्मन वहशियों ने सोमवार को भी धमाके किए और पवित्र मदीना में पैगंबर की मस्जिद को भी नहीं बख्शा..
 रमजान के पवित्र महीने में जो बेकसूर मारे गए और खून का जो सैलाब बहा, उसने यह सवाल खड़े कर दिए हैं कि इस्लाम में यह कौनसा धर्म है, जो इंसानों की जान लेने पर आमादा है? खूनी दरिदों ने तुर्की से लेकर मदीना तक धमाके किए और सैकड़ों मासूमों की जान ले ली। इस बार का रमजान महीना सैकड़ों परिवारों के दिलों में कालिख पोत गया...
 इस्तांबुल से हुई खूनी शुरुआत... रमजान महीने में खून की होली खेलने की शुरुआत तुर्की के सबसे खूबसूरत शहर माने जाने वाले इस्तांबुल से हुई। 29 जून का वह मनहूस दिन था, जब अतातुर्क इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर फिदायीन हमले में 41 लोगों की मौत हुई थी, जबकि 230 लोग घायल हुए थे। एयरपोर्ट पर खूंखार आतंकवादी संगठन आईएस के तीन आत्मघाती हमलावरों ने धमाका करके खुद को उड़ा लिया था। इस धमाके में 41 लोग घटनास्थल पर ही मारे गए थे। जनवरी 2016 से लेकर 29 जून 2016 तक तुर्की  6 बड़े आतंकवादी हमले झेल चुका है, जिसमें आम लोगों के साथ-साथ सैनिकों को भी निशाना बनाया गया।
29 जून के दिन रात करीब 10 बजे एयरपोर्ट टर्मिनल के प्रवेश द्वार के निकट हमलावरों ने सुरक्षाकर्मियों पर गोलीबारी शुरू कर दी। इससे दोनों पक्षों के बीच गोलीबारी शुरू हो गई और उसके बाद एक-एक कर आत्मघाती हमलावरों ने विस्फोट में खुद को उड़ा दिया। सोशल मीडिया पर दो बम धमाके का वीडियो क्लिप हमले की भयावहता को प्रकट कर रहा था। एक क्लिप में टर्मिनल बिल्डिंग के प्रवेश द्वार के निकट एक बड़ा आग का गोला उठते हुए देखा किया जबकि दूसरे वीडियो में एक काले कपड़े पहने हमलावर को बिल्डिंग के भीतर भागने की कोशिश करते देखा गया लेकिन उससे पहले ही सुरक्षाकर्मियों की गोलियों के चलते वह गिर पड़ा और उसने खुद को उड़ा दिया।
ब्रुसेल्स एयरपोर्ट पर भी धमाके की गूंज... पिछले एक साल में तुर्की में इस तरह के कई आत्मघाती बम विस्फोट हुए हैं। इनमें कुर्द विद्रोहियों और आतंकवादी संगठन आईएसआईएस का हाथ होने की आशंका जाहिर की जाती रही है। आईएसआईएस पर इसलिए भी शक पुख्ता हुआ, क्योंकि इसी साल मार्च में ब्रुसेल्स एयरपोर्ट और शहर के मेट्रो स्टेशन पर भी कमोबेश उसने इसी तरह के हमले किए थे, जिनमें ३२ लोगों की जानें गई थीं।
बांग्लादेश की राजधानी ढाका में 20 लोगों की गला रेतकर की हत्या... 1 जुलाई को जब रात का अधियारा अपने बांग्लादेश की राजधानी ढाका के उच्च सुरक्षा वाले राजनयिक क्षेत्र के एक लोकप्रिय रेस्तरां होले आर्टिजन बेकरी को अपने आगोश में ले रहा था, तब रेस्तरां के भीतर लोग अपनी खुशियां बांटने में जुटे थे लेकिन उन्हें नहीं मालूम था कि 6 आतंकवादी नापाक इरादों के साथ भीतर आ रहे हैं और पल भर में उनकी जिंदगी मौत की नींद में सोने जा रही है।
कथित रूप से पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के इशारों पर रेस्तरां में घुसे इन 6 दहशतगर्दों ने गोलियां बरसानी शुरु कर दीं और कई लोगों को बंधक बना लिया। लंबे समय तक शूटआउट चलता रहा और रात बीतने के बाद जब सुबह का उजाला हुआ, तब इन हमलावरों ने सिर्फ उन लोगों को बाहर जाने दिया, जिन्होंने कुरान की आयतें सुनाईं...जो लोग दूसरे धर्म के थे, उनका गला बुरी तरह से रेतकर मौत के घाट उतारा गया। इस हमले में 20 निर्दोष लोगों की जानें गईं, जिनमें विदेशी भी थे। यह कैसा धर्म है? यह कैसा इंसाफ है? क्या इस्लाम इस तरह किसी को मारने की इजाजत देता है?
 बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने भी कहा कि यह बहुत भयावह कृत्य है। ये लोग किस तरह के मुसलमान हैं? उनका कोई धर्म नहीं है। आतंकवादियों की मुस्लिम पहचान को लेकर सवाल करते हुए हसीना ने कहा कि उन्होंने रमजान की तरावीह (खास नमाज़) के असल संदेश का उल्लंघन किया और लोगों की हत्या की है। जिस तरह से उन्होंने लोगों की हत्या की वह बर्दाश्त करने योग्य नहीं है। उनका कोई धर्म नहीं है..आतंकवाद ही उनका धर्म है।
बगदाद की जमीन 147 बेकसूरों के खून से हो गई लाल...बांग्लादेश की राजधानी ढाका का खूनी मंजर लोगों की आंखों से ओझल भी नहीं हुआ था कि ३ जुलाई को एक बार फिर ईरान की राजधानी बगदाद की जमीन आतंकवादियों के नापाक मंसूबों से लाल हो गई... यहां पर 3 जुलाई की रात को दो बम विस्फोट हुए जिसमें 147 लोग मारे गए। अभी तक 35 लोगों का कोई अता-पता नहीं चल सका है। मृतकों की संख्या में वृद्धि मलबे से और शव निकलने तथा विस्फोट से घायल हुए लोगों की मौत के कारण हुई है। इन 147 लोगों की मौत का सेहरा भी आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट ने अपने सिर बांधा है। आतंकवादियों ने पैगंबर की मस्जिद को भी नहीं बक्शा...आतंकवादी मंसूबो ने 4 जुलाई के दिन अपने इरादे एक बार फिर जगजाहिर कर दिए और सऊदी अरब के कातिफ और मदीना में दो बड़े धमाके कर डाले। मदीना में पैगंबर की मस्जिद के पास एक कार में हमलावर ने खुद को बम से उड़ा लिया। धमाका इतना भीषण हुआ कि आसपास मौजूद लोगों के चीथड़े उड़ गए। हमले में कई लोगों के मारे जाने की आशंका है। हमला स्थानीय समय के अनुसार 4 जुलाई की शाम 7 बजे हुआ। इस वक्त मगरिब की नमाज होती है। इसके चलते काफी लोग आसपास मौजूद थे। आत्मघाती हमले से वहां भगदड़ मच गई। रमजान में मारे गए ज्यादातर मुसलमान... पहले इस्तांबुल के हवाई अड्डे पर, फिर ढाका के एक रेस्तरां में और उसके बाद बगदाद के बाजार में आतंकवादी हमले हुए हैं। ये सभी दुनिया के अलग-अलग कोनों में जरूर हैं लेकिन इन तीनों में एक आम बात है। सभी हमलों की जिम्मेदारी इस्लामिक स्टेट ने ली है। हालांकि बांग्लादेश ने ढाका हमले के पीछे इस्लामिक स्टेट का हाथ होने की बात को खारिज कर दिया है लेकिन सभी हमले रमजान के महीने में किए गए और सभी में ज्यादातर जानें मुसलमानों की ही गईं हैं, सिवाय ढाका के अपवाद को छोड़कर...क्या इसी को कहते हैं रमजान का पवित्र महीना, शायद हर्गिज नहीं...

मंगलवार, जून 28, 2016

सरल भाव से संवेदनशील लेखन में माहिर डॉ.निर्मल विनोद

-प्रशांत भारद्वाज
डोगरी एवं हिन्दी भाषा के सशक्त हस्ताक्षर डॉ.निर्मल विनोद बहुमुखी प्रतिभा के धनी है। साहित्यिक क्षेत्र में उनकी एक अलग पहचान है। आपने साहित्य की विभिन्न विधाओं में अपनी लेखनी का प्रयोग बहुत-ही सहज भाव से किया है। जिसके चलते आप गीतकार, गज़लगो शायर, साहित्यकार, संपादक जैसी भूमिकाओं का प्रतिबद्ध होकर सहजता से निर्वाह कर रहे हैं। आप अपने संवेदनशील लेखन से जहां अपनी सहृदयता का परिचय देते हैं, वहीं एक परिपक्व आलोचक की भूमिका में हर रचना, हर पुस्तक पर अपनी आलोचनात्मक सूझबूझ का भी परिचय देते हैं। अपने नाम के अनुरूप स्वच्छंद भाव से सृजित उनकी प्रत्येक रचना भी अपनी निर्मलता से पाठक को एक नये एहसास की अनुभूति करवाती है। लेकिन कुछ रचनाएं वर्तमान समय के ''मैं,'मनी' (धन) एवं मुनाफा'' प्रधान समाज के असामाजिक एवं अव्यवहारिक लोकाचार को भी मुखर होकर उजागर करती है:-
जरबें-तक्सीमें दे
जमां बाकिये द
तुस माहिर लोक
तु'न्दे नेह़ दुनियादारें नै
अस निभचै तां कि'यां जी
1 जून 1950 को जन्म लेने वाले डॉ.निर्मल विनोद ने बी.एस.सी तक शिक्षा प्राप्त की। उसके उपरांत आपने हिन्दी में एम.ए. किया और फिर पीएचडी की डिग्री प्राप्त की। साहित्य की हर विधा में निपुण डॉ.निर्मल विनोद ने सतत साहित्य साधना कर बहुत-सी पुस्तकों का सृजन किया है। आपने ''निराला'' और भाई वीर सिंह के काव्य का तुलनात्मक अध्ययन'' एवं फणीश्वरनाथ रेणु के उपन्यासों में क्रांति के स्वर'' विषय पर शोध पत्रों का सृजन किया।  इसके उपरांत आपने वर्ष 1999 में हिन्दी में ''कविता का सामाजिक सरोकार'' तथा 2002 में डोगरी में ''डोगरी शोध ते समीक्षा'' पर शोधपत्र प्रकाशित करवाए। आपके द्वारा डोगरी एवं हिन्दी में रचित साहित्य संबंधी शोध तथा समीक्षात्मक निबंध 'शिराजा'(डोगरी),'साढ़ा साहित्य', 'नमीं चेतना', जम्मू विश्वविद्यालय की शोध पत्रिका-'डोगरी शोध', 'शिराजा'(हिन्दी),'हमारा साहित्य(हिन्दी)' आदि पत्रिकाओं में समय-समय पर प्रकाशित होते रहे हैं।
डॉ. निर्मल विनोद ने हिन्दी एवं डोगरी में कई पुस्तकों की रचना की है। हिन्दी में 1976 में गीत,नवगीत एवं गजल संग्रह 'पत्थरों का दरिया',1978 में छन्द-मुक्त वे मुक्त-छंद की कविता संग्रह 'बयार के पंखों में',1982 में नवगीत संग्रह 'साक्षी संध्याओं के',1996 में नवगीत संग्रह 'टूटते क्षितिज के साये', 1998 में गजल संग्रह 'धूप-धूप फासला' का सृजन किया। डोगरी में 1990 में बाल गीत संग्रह 'आपूं राजा',2004 में दोहा संग्रह 'निर्मल सतसई', 2015 में नवगीत संग्रह 'में कस्तूरी हिरन',का सृजन किया। आपके द्वारा डोगरी में रचित दोहा संग्रह 'निर्मल हजारा' शीघ्र ही प्रकाशित होने वाला है। इसके साथ ही आपने काव्य संकलन 'चोराहे पर खड़े चेहरे','युवा कविता', 'मधुरिमा', एवं 'कला परिक्रमा' तथा कहानी संकलन 'अधूरी कहानी का हीरो','देवदारों की छाया तले', 'प्रिज्मों में बंटी किरणें','चीड़ों में ठहरी बयार(विविधा)','हमारा साहित्य(विविधा)','साढ़ा साहित्य(निबंध)', डोगरी शोध(निबंध)','जम्मू-कश्मीर दी प्रतिनिध पंजाबी कवता'(संकलन- प्रो.करतार सिंह सूरी)','कश्मीर दी प्रतिनिध पंजाबी कवता'(संकलन- प्रो.देवेन्द सिंह) तथा साहित्य अकादमी दिल्ली द्वारा प्रकाशित प्रकाशनों में भी अपनी रचनाओं के माध्यम से सहयोग दिया। आपने 1975 में दो सहयोगी संपादकों के साथ संयुक्त रूप से 'प्रिज्मों में बंटी किरणें' का संकलन व संपादन किया। 1977 में डुग्गर संस्कृति पर आधारित निबंध संग्रह ''तवी के आर-पार' का संकलन व संपादन किया। आपने हिन्दी पत्रिका 'घोषवती', 'नीलकंठ' एवं मधुरिमा' का तथा हिन्दी/डोगरी पत्रिका 'वैष्णवी' एवं डोगरी पत्रिका 'त'वी' का संपादक कार्य भी किया है। आपकी साहित्यिक रचनाएं समय-समय पर देश भर के सहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं जथा समाचार-पत्रों एवं पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही है। आप राष्ट्रीय स्तर के लेखक सम्मलनों, रेडियो व दूरदर्शन के विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों में हिस्सा लेते रहते हैं। आपने नाटय लेखन के साथ-साथ  संस्कृत, डोगरी, पंजाबी, हिन्दी, राजस्थानी, सिंधी, अंग्रेजी, आदि भाषाओं की रचनाओं का अनुवाद कार्य भी किया है। डॉ. निर्मल विनोद विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं से भी जुड़े हैं। आप रेडिया एवं दूरदर्शन पर समाचार वाचन के साथ ही हिन्दी व पंजाबी रंगमंच पर अपनी अभिनय कला के रंग  भी बिखरने में सफल रहे हैं। केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय द्वारा हिंदीतर भाषी पुरस्कार से सम्मानित डॉ.निर्मल विनोद गत 5 दशकों से अनवरत साहित्य साधना में रत हैं। उन्होंने प्रतिबद्धता से हिन्दी एवं डोगरी साहित्य में अपना उल्लेखनीय योगदान दिया है।

प्रशासनिक उपेक्षा से गंदगी का साम्राज्य

दीपाक्षर टाइम्स संवाददाता
राज्य में प्रशासनिक उदासीनता शायद आम बात हो गई है। चारो ओर प्रशासनिक अधिकारियों के उदासीन रवैये के कारण अराजकता का माहौल है। अर्थव्यवस्था में अहम योगदान देने वाले व्यापारिक समुदाय की समस्याओं के प्रति संबंधित अधिकारी मूकदर्शकों की भांति व्यवहार करते हैं। किसी समय शहर की शान माने जाने वाले एक्जीबिशन ग्राउंड की वर्तमान हालत भी इसी प्रशासनिक उपेक्षा का परिणाम है।
संबंधित अधिकारियों के नकारात्मक रवैये के चलते अब यहां चारो ओर गंदगी का साम्राज्य है। आस-पास फैली गंदगी एक्जीबिशन ग्राउंड के दुकानदारों के लिए परेशानी का कारण बन रही है।      
ट्रैडर्स एंड मैन्यूफैक्चर्स एसोसिएशन, सेन्ट्रल मार्केट एक्जीबिशन ग्राउंड के प्रधान प्रमोद कपाही का कहना है कि जम्मू नगर निगम एक्जीबिशन ग्राउंड  की सफाई की ओर बिलकुल भी ध्यान नहीं देता है। निगम अधिकारी दुकानदारों के सफाई करवाने संबंधी हर आग्रह पर सिर्फ आश्वासन देकर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर देते हैं। यहां तक कि डिस्ट्रीक इंडस्ट्रीज सेन्टर के जरनल मैनेजर से भी अनेक बार एक्जीबिशन ग्राउंड की सफाई व्यवस्था के संबंध में बात की गई, लेकिन उन्होंने भी आज तक कोई कदम नहीं उठाया है। कपाही ने बताया कि जम्मू पूर्व के विधायक राजेश गुप्ता ने जरूर दुकानदारों की परेशानियों को समझते हुए यहां कुछ विकास कार्य शुरू करवाएं है। विधायक ने शौचालय निर्माण समेत और भी विकास करवाने का वादा किया है। उन्होंने कहा किे प्रशासन को हमारी समस्याओं की ओर तत्काल ध्यान देना चाहिए।
एसोसिएशन के वरिष्ठ उप-प्रधान सरबजीत सिंह पोला ने कहा कि एक्जीबिशन ग्राउंड में शौचालय नहीं होने के कारण दुकानदारों और यहां आने वाले लोगों को काफी परेशानी होती है। शौचालय ना होने के कारण यहां दुर्गंध फैली रहती है। इस संबंध में अनेक बार संबंधित अधिकारियों से कहा गया लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है।
एसोसिएशन के महासचिव सुरेश कुमार मंजोत्रा का कहना है कि जम्मू नगर निगम के अधिकारी एक्जीबिशन ग्राउंड की सफाई करवाने के लिए गंभीर नहीं है। यहां तक यहां स्थित नाले के भी पिछले कई वर्षों से सफाई नहीं करवाई गई हैं। नाले की सफाई के लिए सैंकड़ों बार गुजारिश करने के बावजूद स्थिति में सुधार नहीं किया जा रहा है। अधिकारियों को इस संबंध में जल्द कार्रवाई करनी चाहिए।
एसोसिएशन के कोषाध्यक्ष पवन गुप्ता का कहना है कि संबंधित अधिकारियों की लापरवाही के चलते भोड़ी-सी बरसात होते ही पूरे एक्जीबिशन ग्राउंड में पानी भर जाता है। जिसके कारण काफी असुविधा का सामना करना पड़ता है।

सरकारी विभागों में तालमेल के अभाव से जनता बेहाल

दीपाक्षर टाइम्स संवाददाता
जम्मू। राज्य सरकार के विभिन्न विभागों के बीच सहयोग और समन्वय का अभाव आम जनता को भुगतना पड़ रहा है और इससे इन विभागों पर राज्य में मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था के नियंत्रण की कमी का पता चलता है।
विभिन्न सरकारी एजेंसियों में सहयोग और समन्वय की कमी के कारण राज्य में सबसे खराब स्थिति उत्पन्न हो रही है, जिसके परिणामस्वरूप कुछ निहित स्वार्थी तत्व इसका अनुचित लाभ ले रहे हैं।
सरकारी एजेंसियों के निराशाजनक प्रदर्शन से संबंधित तथ्य यह है कि 21 जून को मानसून की पहली बरसात से पूरा एमएएम स्टेडियम, निकट स्थित नाले के गंदे पानी से भर गया और दो पहिया वाहन और चार पहिया वाहन बारिश के पानी में तैर रहे थे।
वैसे तो बरसात के मौसम में यह स्थिति पिछले कई वर्षों से सामने आती है, लेकिन इस बार सबका ध्यान इसलिए इस पर गया क्योंकि एमएएम स्टेडियम में उस दिन प्रधानमंत्री कार्यालय के राज्य मंत्री भी हिस्सा लेने आए थे। अगर वह नहीं आते तो प्रशासन के लिए शायद यह कोई मुद्दा ही नहीं बनता।
जम्मू नगर निगम (जेएमसी) जो उल्लेखनीय काम करने के दावे कर रही थी, वह नालों को साफ करने के लिए आवश्यक कार्रवाई करने में नाकाम रही। जिसके कारण अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस समारोह में हिस्सा लेने शहर के विभिन्न भागों से आए स्कूली बच्चों समेत 2000 से अधिक लोग स्टेडियम में फंस गए थे।
शहरी विकास मंत्रालय निराशाजनक प्रदर्शन के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने में नाकाम रहा है। शहर के लोगों में इसलिए गंभीर रोष व्याप्त है। नागरिकों ने सरकार विशेषरूप से शहरी विकास मंत्रालय के निराशाजनक प्रदर्शन की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि अगर आधे घ्ंाटे की बरसात से ऐसी विकट स्थिति सामने आई है, तो अगर भविष्य में घंटों तक बरसात जारी रही तो शहर का क्या हाल होगा?
विभागों के बीच समन्वय की कमी ने लोगों की मुश्किलों को इस हद तक बढ़ा दिया है कि उनके पास न्याय की तलाश में सड़कों पर उतरने के सिवा कोई विकल्प नहीं रहता है।
गंग्याल के हनीष शर्मा ने कहा कि निजी दूरसंचार कंपनियों द्वारा एक माह पूर्व रात के समय विभिन्न मुहल्लों और कॉलोनियों में खुदाई कर दी गई थी और अपना काम करके मलबा सड़कों के किनारे नालियों में छोड़ दिया गया था। जिसके परिणामस्वरूप नालियां जाम हो गई और बरसात होते ही सारी गंदगी इन कॉलोनियों में लोगों के घरों तक जा पहुंची।
एक अन्य नागरिक ने कहा कि कांगड फोर्ट के पास बरनाई क्षेत्र में एक निजी दूरसंचार कंपनी द्वारा रात के समय तीन किलोमीटर लंबी पूरी संपर्क सड़क को खोद दिया गया था और बाद में किसी सरकारी एजेंसी ने मलबा हटाने, नालियों की सफाई और सड़कों की मरम्मत की जिम्मेदारी नहीं ली है। मु_ी, पटोली, राजिंदर नगर, बनतालाब और बरनाई में सड़कों को खोदा गया है और जब लोगों ने सार्वजनिक निर्माण विभाग (आर एंड बी)के  अधिकारियों से संपर्क किया तो उन्होंने कहा कि किसी को भी सड़कों की खुदाई की अनुमति नहीं दी गई है। जब ठेकेदारों से संपर्क किया गया तो जवाब मिला कि उसने 4-जी केबल बिछाने के लिए सड़क खुदाई की अनुमति ली है। ठेकेदार से पहले आर एंड बी के अधिकारियों का कहना है कि उसे अनुमति जेएमसी द्वारा दी गई थी, लेकिन वह आदेश प्रस्तुत करने में विफल रहा है। विभागों के बीच समन्वय की कमी के कारण सड़कों की बुरी हालत हैं और लोगों का परेशानियां भुगतना जारी है। लोगों ने कहा कि सरकार में कोई नहीं सुन रहा है और आर एंड बी के अधिकारियों ने सड़कों और गलियों की मरम्मत करने से इंकार कर दिया है। अधिकारियों का कहना है कि सड़क खोदने से पहले उनसे अनुमति नहीं ली गई थी। उन्होंने कहा कि वर्तमान व्यवस्था में जनता की मुसीबतों को सुनने के लिए कोई तैयार नहीं है। आम आदमी को अपनी समस्याओं के समाधान के लिए इधर से उधर भटकने को मजबूर किया जा रहा है।

बुधवार, जून 15, 2016

डिप्रेशन संबंधी जागरूकता अभियान में जुटी साना

दीपाक्षर टाइम्स संवाददाता
जम्मू। वर्ष 2014 में कश्मीर में आई विनाशकारी बाढ़ में बहुत-से लोगों की प्राण रक्षा करने वाली 28 वर्षीया साना इकबाल अवसाद और आत्महत्या की प्रवृत्तियों के बारे में देश के लोगों को शिक्षित करने के एक साहसी अभियान में जुटी है।
अपने लक्ष्य के प्रति दृढ़ निश्चय के साथ यह महिला बाइकर बरेली में हुई एक सड़क दुर्घटना में गंभीर चोटें लगने के बावजूद अवसाद और आत्महत्या की प्रवृत्तियों के बारे में जन-जागरूकता की अलख जगाती हुई 8 जून को जम्मू पहुंची।
नानक नगर स्थित फ्यूचर्ज स्टेडी सेन्टर में विद्याोर्थियों को अवसाद और आत्महत्या के संबंध में जागरूक करने के उपरांत साना ने बताया कि वर्ष 2014 में कश्मीर में आई बाढ़ की खबर मिलने के बाद वह घाटी के लिए रवाना हो गई और 40 दिनों तक एक राहत कार्यकर्ता के रूप में रहकर काम किया और कई लोगों की जान बचाई। वह अपने साथ बाढ़ प्रभावितों के लिए दवाईयां भी लाई थी। उन्होंने कहा कि वह कई बार शवों को बरामद करने के लिए गहरे पानी में भी उतर गई थी। मुझे याद नहीं है कि बाढ़ के दौरान मैंने कितने शव निकाले।
देश के आतंकवाद प्रभावित राज्यों में कार्य करने की इच्छा जताते हुए साना ने कहा कि वैश्विक आतंकवाद ने सामाजिक जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है, जिससे अवसाद में वृद्धि हुई हैं और लोग आत्महत्या जैसा कदम उठा रहे हैं।
साना ने देश के सभी राज्यों में युवाओं को अवसाद के प्रति शिक्षित करने का बीड़ा उठाया है। पेशे से कॉर्पोरेट ट्रेनर और मनोविज्ञान में  एमएससी साना इकबाल अपने गृह राज्य तेलंगाना से 23 नवम्बर 2015 को सफेद रॉयल एनफील्ड  से भारत यात्रा पर निकली थी। भारत के 28 राज्यों की यात्रा करने के उपरांत वह जम्मू पहुंची।
अपने व्याख्यान में वह अपनी व्यक्तिगत भावनाओं और अनुभवों के साथ युवाओं को अवसाद और आत्महत्या के कारणों के बारे में जागरूक करती है। उन्होंने कहा कि युवाओं का मन अपरिपक्व होने के कारण वे बड़े लोगों की तुलना में अच्छी तरह से आत्मसात कर सकते हैं और समाज में परिवर्तन ला सकते हैं।
इस अभियान में सरकारी सहायता के संबंध में प्रश्न किए जाने पर साना ने कहा किउनके सभी प्रयास स्वयं के धन से होते हैं। मैं किसी पुरस्कार की इच्छा के बिना अच्छा काम करने का प्रयास कर रही हूं। अगर सरकार इस कार्य में मेरा समर्थन करती है, तो मैं मदद लेने के खिलाफ भी नहीं हूँ।
अपने पुत्र के पहले जन्मदिन पर वह 12 जून को अपने घर हैदराबाद वापस पहुंच रही हैं।

इंडोर स्टेडियम की मंजूरी में भी भेदभाव

दीपाक्षर टाइम्स संवाददाता
जम्मू। कठुआ में बहुप्रचारित इंडोर स्टेडियम की मंजूरी देने में देरी से खिन्न भाजपा विधायक ने इस संबंध में जारी प्रक्रिया में देरी का आरोप लगाते हुए गठबंधन सरकार के लिए एक नया विवाद खड़ा कर दिया है।
भाजपा विधायक ने इस मुद्दे को राज्य विधानसभा में उठाया। उन्होंने अपने वादे को पूरा करने में सरकार की विफलता और पिछले सत्र के दौरान विधानसभा अध्यक्ष द्वारा दिए गए निर्देशों की अनदेखी किए जाने को लेकर अपने साथी विधायकों के साथ सदन से वाकआऊट किया।
भाजपा विधायक ने कहा कि गत वर्ष जिला विकास बोर्ड की बैठक में पूर्व मुख्यमंत्री मुफ्ती मुहम्मद सईद द्वारा आश्वासन दिया गया था कि कठुआ में स्टेडियम का निर्माण किया जाएगा लेकिन बाद में एक और समीक्षा बैठक में एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने कहा कि स्टेडियम का निर्माण  बिलावर में किया जाएगा।
इंडोर स्टेडियम के बिलावर स्थानांतरण पर सवाल उठाते हुए विधायक ने कहा कि कठुआ की आबादी बिलावर से ज्यादा है और स्टेडियम बिलावर स्थानांतरित किए जाने का कोई औचित्य नहीं है। अन्य भाजपा विधायकों ने भी यह कहकर भेदभाव का आरोप लगाया कि कुल आवंटित 12 इंडोर स्टेडियमों में से जम्मू को सिर्फ तीन, कश्मीर के लिए सात और लद्दाख के लिए दो की मंजूरी दी गई है। सूत्रों के अनुसार कठुआ के लिए मंजूर किया गया इंडोर स्टेडियम बिलावर स्थानांतरित किए जाने से कठुआ विधानसभा क्षेत्र के लोगों में गहरा रोष है। स्थानीय विधायक द्वारा पिछले दो वर्षों के दौरान जिला विकास बौर्ड की बैठक समेत सभी प्रशासनिक बैठकों और पार्टी के सभी मंचों पर कड़ा विरोध किया गया है।
भाजपा विधायक ने कठुआ में इंडोर स्टेडियम के निर्माण की अपनी मांग को न्यायोचित ठहराते हुए कहा कि केन्द्र में स्थित एक जगह और जिला मुख्यालय पर इंडोर स्टेडियम का निर्माण करने के बजाए इसका निर्माण ग्रामीण क्षेत्र या एक तहसील मुख्यालय में सिर्फ इसलिए नहीं किया जा सकता कि वह उप मुख्यमंत्री के निर्वाचन क्षेत्र में पड़ता है।
अपने निर्वाचन क्षेत्र में इंडोर स्टेडियम की स्थापना के लिए संघर्ष कर रहे भाजपा विधायक ने अपनी मांग को न्यायोचित ठहराते हुए यह स्पष्ट किया कि किसी भी वरिष्ठ मंत्री को ज़ुल्म करने की अनुमति नहीं दी जाएगी और वह इस लड़ाई को सार्वजनिक रूप से लड़ेंगे।
भाजपा विधायक ने कहा कि वह पार्टी या सरकार में बैठे किसी भी प्रभावशाली को अपने निर्वाचन क्षेत्र के लोगों के अधिकारों को हड़पने नहीं देंगे और इसके लिए हरसंभव लड़ाई लडेंगे।

पर्यावरण संरक्षण को समर्पित निलांबर डोगरा

-प्रशांत भारद्वाज
पर्यावरण संरक्षण के नाम पर जहां एक ओर सरकारी अधिकारी वातानुकुलित कमरों में बैठकों के आयोजन पर प्रतिवर्ष करोड़ों रूपए खर्च कर देते हैं, लेकिन उनका परिणाम शून्य ही रहता है। वहीं दूसरी ओर कुछ ऐसे स्वयंसेवी भी है जो पर्यावरण संरक्षण के कार्य में नि:स्वार्थ भाव से तन-मन-धन से इस आस से जुटे है कि आने वाली संतानों को शुद्ध पर्यावरण मिले। ऐसे ही एक नि:स्वार्थी पर्यावरण कार्यकत्र्ता हैं केहली मंडी सांबा के निवासी निलांबर डोगरा।    
निलांबर डोगरा ने बताया कि वर्ष 1989 में कॉलेज जीवन के दौरान एनएसएस शिविर में काम करने के बाद पर्यावरण संरक्षण की ऐसी लगन लगी कि इसे अपनी दिनचर्या का अंग ही बना लिया। छात्र जीवन में झीड़ी, काना चक्क आदि स्थानों पर वृक्षारोपण का कार्य किया। गत 25 वर्षों के दौरान हर वर्ष हजारों वृक्ष लगाए और जहां तक संभव हो सका उनका पालन-पोषण भी किया। इस समयकाल में सांबा, कठुआ और जम्मू जिले के विभिन्न स्कूलों में जाकर बच्चों को पर्यारण संरक्षण के प्रति प्रेरित करने के प्रयास किए। इसके साथ ही इन स्थानों के शिक्षा संस्थानों और पंचायत घरों में वृक्षारोपण किया। उन्होंने कहा कि अब मेरा प्रयास है कि उन सभी स्कूलों तक एक बार फिर से पहुंचु जहां कई वर्ष पूर्व वृक्षारोपण किया था, ताकि उन वृक्षों को देख सकूं। आने वाली  पीढ़ी के लिए स्वच्छ पर्यावरण विकसित करने की कोशिश के तहत बरसात के मौसम में करीब 10000 पौधों का रोपण और वितरण करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। पहले स्वयं के धन से पौधे खरीदते थे अब सोशल फारेस्ट्री से पौधें लेकर उनका वितरण करते हैं। डोगरा ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण के उद्देश्य से एक नया अभियान 'पेड़ लगाओ, बेटी बचाओ-अपनों का भविष्य उज्जवल बनाओ' प्रारम्भ किया है। इस अभियान के अंतर्गत जिन घरों में एक बेटी होती है, उस बेटी के द्वारा गांव में वृक्षारोपण की शुरूआत करवाते हैं। डोगरा का कहना है कि हर स्थान पर विकास ने वृक्षों की बलि ली है। इसलिए हम सभी की नैतिक जिम्मेदारी है कि हम हर वर्ष कम से कम एक वृक्ष तो अवश्य लगाए।
अपने पर्यावरण संरक्षण अभियान के तहत उन्होंने अब ऊर्जा संरक्षण की ओर भी कदम बढ़ाए हैं। उन्होंने सांबा जिले के पिछड़े गांव रेओर को गोद लिया है। इस अभियान के अंतर्गत गांव के 70 घरों में ऊर्जा संरक्षण के लिए एलइडी लाइटें लगवाई हैं। अब गांव के हर घर में वृक्षारोपण किया जा रहा है। इसके साथ ही विभिन्न संस्थाओं के सहयोग से इस गांव के विकास की योजना तैयार की गई है। डोगरा ने कहा कि पहले सांबा जिले में फिर पूरे राज्य में ऊर्जा संरक्षण कार्यक्रम को पहुंचाने का लक्ष्य निर्धारित किया है।  
पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ निलांबर डोगरा ने एक और महत्वपूर्ण कार्य किया हैं, जिसे अनोखे अभियान का नाम दिया जा सकता है। उन्होंने देश की आजादी के लिए अपना सर्वस्व निछावर करने वाले स्वतंत्रता सेनानियों की खोज में 7-8 वर्ष तक देश के विभिन्न राज्यों की यात्रा की। इस कठीन कार्य के लिए वह घर में अपने वृद्ध माता-पिता को छोड़कर निकल पड़े थे। इस दौरान उन्होंने गुमनामी का जीवन व्यतीत कर रहे १५ स्वतंत्रता सेेनानियों को खोज निकाला। नेताजी सुभाष चंद्र बोस विचार मंच का गठन कर पहला कार्यक्रम कैहली मंडी, सांबा में आयोजित कर इन स्वतंत्रता सेेनानियों को सम्मानित किया।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस विचार मंच के बैनर तले पहले हर वर्ष नेताजी के जन्मदिवस पर स्कूलों में वृक्षारोपण किया जाता था। अब शहीद भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद आदि देशभक्तों के जन्मदिवस के अवसर पर सांबा जिले की सभी तहसीलों के स्कूलों में वृक्षारोपण अभियान आयोजित किए जाते हैं।  निलांबर डोगरा ने दो बार सांबा से शुरू कर पंजाब और हिमाचल प्रदेश तक सदभावना यात्रा का आयोजन किया है। इस यात्रा के दौरान पर्यावरण जागरूकता संबंधी साहित्य का वितरण कर जनता को जागरूक करने का प्रयास किया गया।
डोगरा एक मान्यता प्राप्त रक्तदाता भी है। 1989 में पहली बार रक्तदान करने के बाद से वह 32 बार रक्तदान कर चुके हैं। एक बार तो वह रक्तदान करने के लिए दिल्ली तक जा पहुंचे थे।
एक प्रश्न के उत्तर में डोगरा ने कहा कि एक जुनून में यह कार्य शुरू किया था। जो व्यक्ति अपनों का समय एवं धन लेकर समाज सुधार का कार्य करता है, वहीं सही अर्थों में समाज सेवक होता है। उन्होंने कहा कि मेरा लक्ष्य जन-जन तक पर्यावरण संरक्षण का संदेश पहुंचाना है। उन्होंने राज्य विशेषरूप से जम्मू संभाग में तालाबों के विनाश पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए जनता से शेष बचे तालाबों का संरक्षण करने का आग्रह किया। डोगरा ने युवाओं से पर्यावरण संरक्षण के लिए आगे आने की अपील की, ताकि आने वाली पीढ़ीयां प्रदूषण मुक्त वातावरण में श्वांस ले सकें।

पार्किंग स्थलों के अभाव से गंभीर हो रही ट्रैफिक समस्या

दीपाक्षर टाइम्स संवादाता
जम्मू। सड़कों पर दिन-प्रतिदिन बढ़ती वाहनों की संख्या और पार्किंग स्थलों की कमी के कारण शहर में ट्रैफिक समस्या धीरे-धीरे गंभीर रूप लेती जा रही है।
सड़कों के किनारे पर की गई अवैध पार्किंग के कारण न केवल समस्याएं उत्पन्न हो रही है, बल्कि ट्रैफिक जाम होने का भी यह प्रमुख कारण है। रजिडेंसी रोड़, जैन बाजार, पंजतिर्थी, गुम्मट चौक, परेड, शालामार, पुरानी मंडी, कनक मंडी, रघुनाथ बाजार, बीसी रोड़, हाईकोर्ट रोड़, गांधी नगर और कनाल रोड़ आदि क्षेत्रों में खुलेआम की जा रही अवैध पार्किंग के चलते ही ट्रैफिक जाम की समस्या बनी रहती है। यहां तक कि फायर ब्रिगेड एवं एम्बुलेंस जैसे वाहनों को निकलने में काफी परेशानी होती है। उचित प्रबंधन एवं कर्मचारियों की कमी के कारण ट्रैफिक पुलिस विभाग शहर की ट्रैफिक समस्या से निपटने में विफल साबित हो रहा है।
पूर्ववती राज्य सरकारों के उदासीन रवैये और नौकरशाही की लापरवाही के कारण शहर के लिए प्रस्तावित सभी बहुमंजिला पर्किंग स्थल अभी कागजों में ही सिमटे हैं। इसलिए नये वाहनों की तादाद में तेजी से हो रही बढ़ोतरी के चलते लोग अपने वाहन पहले से ही सिकुड़ रही सड़कों के किनारे लगाकर ट्रैफिक समस्या को और बढ़ा रहे हैं। पुराने शहर में पार्किंग समस्या के कारण सड़कों के किनारे खड़े वाहनों से ट्रैफिक संचालन में काफी कठिनाईयां आ रही है।
परिवहन विभाग के अधिकारी स्वीकार करते हैं कि जम्मू-कश्मीर में ऐसा कोई कानून नहीं है, जिसकी मदद से किसी व्यक्ति को यह प्रमाण देने को कहा जाए कि वाहन खरीदने से पूर्व उसके पास वाहन पार्क करने का स्थान है या नहीं। उनका कहना है कि जम्मू की सड़कों पर हर माह करीब 4000 नये वाहन जुड़ते हैं। सिर्फ वर्ष 2014 में ही करीब 40,000 वाहन जम्मू में पंजिकृत किए गए। परिवहन विभाग जम्मू में प्रतिदिन करीब 140 नये वाहनों का पंजिकरण किया जाता है। केवल जम्मू संभाग में ही लगभग 7 लाख पंजिकृत वाहन है, जिनमें से करीब 6 लाख तो सिर्फ जम्मू जिले में ही है। विभाग के अधिकारियों का कहना है कि हमने राज्य सरकार से आग्रह किया है कि वर्तमान कानून में यह संशोधन किया जाए कि वाहन खरीदने के इच्छुक व्यक्ति से मजिस्ट्रेट द्वारा सत्यापित यह प्रमाण प्रस्तुत करना अनिवार्य किया जाए कि उसके पास वाहन पार्क करने के लिए स्थान है या नहीं। शहर में नये पार्किंग स्थल बनाए जाने की चर्चा तो गत काफी वर्षों से चल रही है, लेकिन ये परियोजनाएं कागजों से निकलकर कब अस्तित्व में आएंगी अभी यह कहना बहुत ही मुश्किल है। संबंधित अधिकारियों के रूची ना दिखाने के कारण अभी जम्मूवासी ट्रैफिक समस्या से परेशान होने को विवश हो रहे हैं। इन परियोजनाओं में सबसे महत्वाकांक्षी वर्तमान बस स्टैंड में बनने वाली बहुमंजिला पार्किंग परियोजना है। यह परियोजना 200 करोड़ रूपए की लागत से पूर्ण की जानी है। इस मल्टी फलोर पार्किंग में 1300 कारों, 80 बसों को पार्क करने की सुविधा के साथ एक टैक्सी स्टैंड भी होगा।
इसके अतिरिक्त एयर-कंडीशनड टिकट बुकिंग ऑफिस,  वेटिंग हाल के साथ कामर्शियल काम्पलेक्स,रेस्टोरेंट, जन-सुविधाओं का निर्माण भी किया जाएगा। जम्मू विकास प्राधिकरण (जेडीए) द्वारा तैयार की गई परियोजना के अनुसार मल्टी फलोर पार्किंग के साथ शापिंग प्लॉजा का भी निर्माण किया जाएगा। इसी प्रकार के बहुमंजिला पार्किंग स्थलों का निर्माण सुपर बाजार, परेड, पंजतिर्थी और शालामार में भी किया जाना है। इसके साथ ही महाराजा हरि सिंह पार्क के सामने वन भवन के निकट 233 कारों के लिए पार्किंग स्थल विकसित किया जाना है।
गौरतलब है कि शहरी ढांचागत सुविधाएं उपलब्ध करवाने के उददेश्य से 40 वर्ष पूर्व जम्मू विकास प्राधिकरण (जेडीए) का गठन किया गया था। जेडीए अभी तक सिर्फ 1700 वाहनों की पार्किंग के लिए ही शहर में स्थान उपलब्ध करवा पाया है। जेडीए परियोजनाओं के लिए भूमि चिंहित करने में विफल साबित हो रहा है। बस स्टैंड और पंजतिर्थी में बनने वाली बहुमंजिला पार्किंग परियोजनाएं भी निर्धारित समय से काफी पीछे सिर्फ कागजों में ही चल रही है। लंबी अवधि की योजनाओं के अभाव में जेडीए और जम्मू नगर निगम अतिरिक्त स्थान तैयार करने में विफल हो रहे हैं, तो कुछ परियोजनाएं धन की कमी के कारण साकार नहीं हो पा रही है।

मंदी से प्रभावित व्यापारी भविष्य को लेकर चिंतित

दीपाक्षर टाइम्स संवाददाता
जम्मू। वैश्विक मंदी और विकास योजनाओं की कमी के कारण जम्मू शहर की अर्थव्यवस्था को गंभीर नुकसान हो रहा है। शहर में विभिन्न स्थानों पर बहुमंजिला व्यावसायिक प्रतिष्ठान मंदी के कारण छोटी दुकानों में सिकुड़ गए हैं और कुछ तो बंद भी हो गए हैं।
जम्मू शहर की अर्थव्यवस्था को,जो ज्यादातर माता वैष्णो देवी तीर्थयात्रा और वेयर हाऊस एवं कनक मंडी से राज्य के अन्य हिस्सों के लिए आवश्यक उत्पादों की थोक आपूर्ति पर निर्भर करती है,इन दिनों गंभीर मंदी का सामना करना पड़ रहा है।
व्यापारिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने 'दीपाक्षर टाइम्स ' से कहा कि कश्मीर के व्यापारी अब देश के अन्य हिस्सों से सीधे माल मंगवाने लगे हैं। दालों की बढ़ती कीमतों के कारण गत दो वर्ष से वेयर हाऊस के व्यापार में  20 प्रतिशत की कमी आई हैं।  उन्होंने कहा कि सरकार जम्मू की अर्थव्यवस्था के प्रति गंभीर दिखाई नहीं देती है। शहर के अधिकांश व्यापारिक केन्द्रों में विभिन्न समस्याओं के कारण व्यापारी परेशान हो रहे हैं। यहां तक कि व्यापारिक गतिविधियों के प्रमुख केन्द्र वेयर हाऊस जैसे बाजार में कई वर्षों से सड़कों की मरम्मत तक नहीं करवाई गई हैं। नरवाल मंडी में सफाई व्यवस्था का बुरा हाल है।  
मंदी और सरकार के उदासीन रवैये के कारण शहर के अधिकांश बाजार  सुनसान नजऱ आते हैं। मंदी के चलते कई बड़े व्यापारिक घरानों और व्यापारियों ने प्रमुख स्थानों और शहर के शॉपिंग मॉल में अपनी किराए की दुकानों को खाली कर दिया है।
शहर में रेडीमेड कपड़ों के बड़े व्यापारियों में से एक युगल संस ने जम्मू शहर के पहले मॉल सिटी स्क्वायर में स्थित अपने शोरूम को बंद कर दिया है। मॉल की दो मंजिलों को लोगों की सुस्त प्रतिक्रिया के कारण व्यापारियों द्वारा खाली कर दिया गया है।
विशेषज्ञ मंदी के लिए कई कारणों को जिम्मेदार बताते है। उनका कहना है कि मुख्य कारण वैश्विक मंदी है, इसके अतिरिक्त ऑनलाइन शॉपिंग पोर्टल, भीषण गर्मी और सरकारी विकास कार्यों की कमी भी इसका कारण है।
अधिकांश व्यापारियों ने कहा कि वैश्विक मंदी भी एक कारण हो सकती है। लेकिन मुख्य कारण जम्मू के लिए विकास परियोजनाओं की कमी है। स्वीकृत परियोजनाओं में से अधिकांश को अभी तक पूरा नहीं किया गया है। यहाँ व्यापारिक समुदाय को बचाने के लिए सरकार के पास कोई योजना नहीं है और आने वाले दिनों में व्यापारियों के लिए स्थिति काफी मुश्किल हो जाएगी। उन्होंने कहा कि सरकार को जम्मू के व्यापार जगत को सुरक्षित करने के लिए कोई योजना तैयार करनी चाहिए, ताकि यहां की अथव्यवस्था भी सुरक्षित रहें।
उन्होंने कहा कि जम्मू शहर में व्यापारिक गतिविधियां धीरे-धीरे थमती जा रही हैं। जम्मू के अधिकांश बाजारों में अब वो पहले वाली चमक नजर नहीं आती हैं, जो कुछ वर्ष पहले होती थी। इसका प्रमुख कारण है माता वैष्णो देवी यात्रा के आधार शिविर कटड़ा कस्बे को रेल संपर्क से जोड़ा जाना। इसके साथ ही जम्मू के निकटवर्ती धार्मिक एवं पर्यटन स्थलों पर बुनियादी सुविधाओं का अभाव।
व्यापारियों ने कहा कि पूर्ववर्ती सरकारों के उदासीन रवैये के कारण आज जम्मू और इसके आसपास के इलाकों में कुछ भी ऐसा नहीँ है जो यात्रियों/पर्यटकों को आकर्षित कर सके। आज राज्य में आने वाले श्रद्धालु/पर्यटक सीधे माता वैष्णो देवी जाते हैं या फिर कश्मीर का रुख कर लेते हैं। वे जम्मू में नहीं रुकते, क्योंकि जम्मू मेँ पर्यटकों के आकर्षण का एकमात्र केन्द्र ऐतिहासिक रघुनाथ मंदिर ही एक ऐसा स्थान था जहां पर श्रद्धालु और सैलानी आकर रुकते और दर्शन करते हैं। शहर के निकटवर्ती पर्यटन स्थलों तक पहुंचने की भी कोई उचित व्यवस्था नहीं है। शहर में पार्किंग स्थलों जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव भी एक प्रमुख कारण है, जिसके कारण पर्यटक अब शहर में ना आकर ट्रेन से या अन्य वाहनों से सीधे माता वैष्णो देवी या शहर के बाहर से ही श्रीनगर चले जाते हैं। इसी प्रकार कश्मीर में आने वाले पर्यटक भी जम्मू में दाखिल  हुए बिना बाहर से ही अपने गंतव्य की ओर चले जाते हैं। इस कारण गत दो-तीन वर्षोँ से जम्मू आने वाले पर्यटकों की संख्या में कमी आई हैं। जिसके परिणामस्वरूप पर्यटकों/श्रद्धालुओं पर आश्रित शहर के व्यापारी व होटल मालिक आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं। जिसका प्रभाव शहर के प्रत्येक नागरिक पर पड़ रहा है। अगर पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए कुछ प्रभावी उपाय शीघ्र नहीं किए गए तो स्थिति और भी गंभीर हो सकती है।
उन्होंने कहा कि  राज्य सरकार को जम्मू की ओर पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए विशेष प्रयास करने की आवश्यकता है। जम्मू के लिए प्रस्तावित विकास योजनाएं वर्षों से लंबित पड़ी हुई हैं। अगर इन परियोजनाओं को शीघ्र प्रारम्भ करवाकर युद्धस्तर पर निर्धारित समय में पूर्ण करवाया जाए, तब ही पर्यटकों को आकर्षित करने के सफल प्रयास किए जा सकते हैं। दुर्भाग्यपूर्ण है कि राज्य सरकार को कुल राजस्व का 70 प्रतिशत से अधिक हिस्सा जम्मू संभाग विशेषरूप से जम्मू द्वारा दिए जाने के बावजूद पूर्ववर्ती सरकारों ने विकास के क्षेत्र में जम्मू की पूर्णतया अनदेखी की।
हैरानी की बात यह है कि पर्यटकों

को जम्मू की ओर आकर्षित करने के जिन विकास परियोजना की ओर व्यापारिक समुदाय की उम्मीदें टिकी थी, उनके लिए हाल ही में सरकार ने स्वीकार किया है कि इन परियोजनाओं के आगामी २ वर्षों तक पूर्ण होने की संभावना नहीं हैं।

पहलवान दी हट्टी - कामयाबी का मूलमंत्र : सफाई, सच्चाई एवं इमानदारी


दीपाक्षर टाइम्स संवाददाता
जम्मू। वर्ष 1934 में अनंत राम जी अबरोल ने पीर मि_ा,जम्मू में जिस दुकान 'पहलवान दी हट्टी' की शुरूआत की थी वह आज ना सिर्फ उत्तर भारत बल्कि  विदेशों में भी एक विश्वसनीय ब्रांडनेम के रूप में लोकप्रिय हो चुकी है।
अनंत राम जी अबरोल ने इस कार्य में सिद्धहस्त होने से पूर्व वर्ष 1920 से 1934 तक लाहौर में उस्ताद मनीराम जी पहलवान से हलवाई के कार्य का पूरा प्रशिक्षण प्राप्त किया। 14 वर्ष तक बिना वेतन काम करने के उपरांत वह मात्र 14 रूपए लेकर जम्मू आए और यहां अपनी दुकान अपने उस्ताद के नाम पर 'पहलवान दी हट्टी' प्रारम्भ की। उस समय 8-10 फुट चौड़े ढक्की शिराजा बाजार में अधिकांश दुकानों पर सर्राफ चांदी का काम करते थे।
उन्होंने सफाई, सच्चाई एवं इमानदारी के मूलमंत्र के साथ धीरे-धीरे अपना काम बढ़ाना शुरू किया। पहले वह दूध, दही, पकौड़े की बिक्री करते थे, फिर उन्होंने रबड़ी, बर्फी बनानी शुरू की। उनके उत्पादों का स्वाद जम्मूवासियों को अपना मुरीद बनाने लगा था। हमेशा सफेद कपड़े धारण करने वाले अनंत राम जी इतने सफाई पसंद थे कि कोयले की भट्टी पर काम करने के बावजूद अपने कपड़ों पर दाग तक नहीं लगने देते थे। उनकी सच्चाई और इमानदारी के प्रशंसकों में जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री डॉ.मोदी भी शामिल थे। अनंत राम जी दूध की जांच करने में भी इतने माहिर थे कि उनकी एक आवाज पर संबंधित विभाग शहर में आने वाला मिलावटी दूध सड़कों पर बहा देता था। वर्ष 1952 में सदर-ए-रियासत डॉ.कर्ण सिंह एवं राज्य के तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख मोहम्मद अब्दुल्ला ने  'पहलवान दी हट्टी' को सफाई के लिए प्रथम पुरस्कार से सम्मानित किया था।
धीरे-धीरेे 'पहलवान दी हट्टी' पर बुग्गा, कलाकंद, पनीर की जलेबी आदि की बिक्री होने लगी। इसके बाद विभिन्न प्रकार की मिठाइयां तैयार की जाने लगी।
अनंत राम जी के भाई लाला बैसाखी राम जी के 5 पुत्र हैे, जिनमें से 4 पुत्र 1974 से कारोबार में हाथ बंटाने लगे। वर्ष 1975 में लाला बैसाखी राम जी का निधन हो गया। 1985 में अनंत राम जी का निधन होने के उपरांत उनके भाई के पुत्रों ने काम संभाल लिया, लेकिन उन्होंने सफाई, सच्चाई एवं इमानदारी के मूलमंत्र की परंपरा को आज तक बरकरार रखा है। वर्तमान में 1945 में जन्म लेने वाले यशपाल अबरोल जी सारा काम देख रहे हैं। इस कार्य में उनके परिवार के अन्य सदस्य हाथ बंटा रहे हैं। वर्तमान में 'पहलवान दी हट्टी' की मुख्य ब्रांच के अतिरिक्त शहर के मुख्य स्थानों पर में भी ब्रांचें चल रही है।
'पहलवान दी हट्टी' के उत्पाद देश-विदेश में काफी लोकप्रिय है। इनकी स्वादिष्ट सूंड ने तो लोकप्रियता की सारी सीमाएं लांघ दी है। दिल्ली जैसे स्थानों पर लोग जम्मू से आने वाले अपने मित्रों से सूंड जरूर लाने की फरमाइश करते हैं।
यशपाल अबरोल ने बताया कि आज भी हमने स्व.अनंत राम जी द्वारा स्थापित परंपराओं और मूल मंत्र को बरकरार रखा है। ह
मारा प्रयास होता है कि हमारे यहां आने वाला प्रत्येक ग्राहक हमारी सेवाओं और उत्पादों की गुणवत्ता से पूरी तरह से संतुष्ट होकर जाएं।

कृत्रिम झील, जम्मू रोपवे अभी दूर का सपना

दीपाक्षर टाइम्स संवाददाता
जम्मू। जम्मू की दो प्रतिष्ठित परियोजनाओं को शीघ्र पूर्ण करने के संबंध में अनेक बयान देने के बाद पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार ने आखिरकार स्वीकार किया कि कृत्रिम झील और जम्मू रोपवे कम से कम और दो वर्ष तक पूर्ण नहीं हो पाएंगे। इससे  स्वतंत्र पर्यटन स्थल के रूप में शीतकालीन राजधानी को बढ़ावा देने के लिए इन परियोजनाओं के उपयोग की योजना को जोर का झटका लगा है।
इस बात की जानकारी जम्मू के लिए बेहद महत्वपूर्ण इन दोनों परियोजनाओं के निष्पादन में अपनाए जा रहे रवैये से चिंतित जम्मू पश्चिम से भाजपा विधायक सतपाल शर्मा के प्रश्न के उत्तर में विधानसभा में पर्यटन मंत्री ने दी।
'डिजाइन एंड कंस्ट्रक्शन ऑफ आटो मैक्निकल आपरेटेड गैटेड बैराज' नामक परियोजना के अंतर्गत कई वर्ष पूर्व 70 करोड़ रूपए की लागत से 'कृत्रिम झील' के निर्माण को मंजूरी दी गई थी। हालांकि इस परियोजना पर 31 मार्च 2016 तक 57.35 करोड़ रुपए की राशि खर्च की जा चुकी है।
पर्यटन मंत्री ने कहा कि 13वें वित्त आयोग के अंतर्गत केन्द्रीय अनुदान की अनुपलब्धता और वर्ष 2013 एवं 2014 में आई बाढ़ के कारण परियोजना में देरी हुई है। उन्होंने कहा कि केन्द्रीय जल संसाधन मंत्रालय ने इस परियोजना के लिए तीसरी किश्त के रूप में 6.25 करोड़ रूपए जारी करने हेतु सिफारिश की थी कि यह मामला वित्त मंत्रालय के व्यय विभाग को भेजा जाए। हालांकि मंत्रालय द्वारा कोई पैसा जारी नहीं किया गया।
शुरूआत में इस परियोजना के पूर्ण होने का समय दो वर्ष था लेकिन अब परियोजना के पूर्ण होने की संशोधित या प्रस्तावित तिथि 31 मार्च 2017 है। आधिकारिक सूत्रों का कहना है कि यह गंभीर चिंता का विषय है कि केन्द्रीय वित्त मंत्रालय की ओर से तीसरी किश्त समय पर जारी न होने का तथ्य जानने के बावजूद राज्य सरकार ने अपने संसाधनों से धन का प्रबंध करने के कोई प्रयास नहीं किए, ताकि कृत्रिम झील परियोजना के लंबित कार्य में गति सुनिश्चित की जा सकें।  
हालांकि, उपरोक्त उत्तर में उन 13 प्रमुख नालों के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई, जिनका गंदा पानी अभी भी तवी नदी में डाला जा रहा हैं। ये नाले  प्रदूषण का स्रोत होने के अलावा असलियत में जम्मू में कृत्रिम झील बनाने की राह में प्रमुख रूकावट बन रहे हैं। हालांकि अगर धन जारी हो तो सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण विभाग तवी नदी पर यंत्रवत् संचालित गेटेड बांध बनाने का लक्ष्य पूरा कर सकता हैं। लेकिन इस परियोजना के अंतर्गत 'कृत्रिम झील का निर्माण' पर कोई ध्यान नहीं दिया गया है। यहां तक कि नालों का रूख मोडऩे के लिए आवश्यक विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) भी आज तक तैयार नहीं की गई है। जम्मू रोपवे परियोजना के संबंध में कहा गया कि इस परियोजना के क्रियान्वयन में लोअर टर्मिनल प्वाइंट और अपर टर्मिनल प्वाइंट पर भूमि के अधिग्रहण में तथा वन्यजीव बोर्ड  के अलावा वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से मंजूरी में ज्यादा समय लगने के चलते देरी हुई है। अब यह दावा किया गया है कि इस परियोजना पर काम चल रहा है और अगले दो साल के भीतर पूर्ण कर लिया जाएगा। परियोजना पर टालमटोल वाला रवैया अपनाए जाने के कारण मैसर्स राईटस (आरआईटीइएस)द्वारा अनुमानित 43.83 करोड़ रूपए की लागत अब बढ़ कर  62.02 करोड़ रुपये हो गई है। सबसे बड़ा प्रश्न अब यह है कि क्या परियोजना की लागत अब और नहीं बढ़ेगी? इस प्रकार से दोनों परियोजनाओं के कम से कम दो साल तक पूर्ण होने की संभावना नहीं हैं। यहां तक कि रघुनाथ बाजार जम्मू के नवीकरण/ आधुनिकीकरण का कार्य पूरा होने के लिए पर्यटन विभाग द्वारा कोई समय-सीमा निर्धारित नहीं की गई है। पर्यटन मंत्री का कहना है कि काम अंतिम चरण में है और शीघ्र ही पूर्ण किया जा रहा है। जहां तक अखनूर में सुम्हा क्षेत्र के विकास का संबंध है, मंत्री ने कहा यह परियोजना इस माह के अंत तक पूर्ण हो जाएगी। लेकिन इसे इस समय सीमा में कैसे पूरा किया जाएगा जबकि जल स्त्रोत, इस्पात पुल और पार्क पर काम अभी पूरा किया जाना है। यहाँ तक कि पर्यटन विभाग ने खुद स्वीकार किया है कि 4.71 करोड़ रुपये की लागत वाली इस परियोजना पर आज तक केवल 2.80 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं।

कल्याण फिर प्रधान निर्वाचित

दीपाक्षर टाइम्स संवाददाता
जम्मू। शेख मोहम्मद कल्याण एक बार पुन:युवा हिन्दी लेखक संघ के प्रधान पद पर निर्वाचित हुए हैं।
युवा हिन्दी लेखक संघ के वार्षिक चुनाव की संयोजक डॉ.परविंदर कौर की अध्यक्षता में सम्पन्न हुए। इस अवसर पर डॉ.वंदना शर्मा के अनुमोदन पर शेख मोहम्मद कल्याण को एक बार पुन: प्रधान पद के लिए चुन लिया गया। रवीन्द्र के अनुमोदन पर उप प्रधान का कार्यभार सुश्री मुकेश कुमारी को सौंपा गया। इसके अतिरिक्त मंत्री पद के लिए डॉ.वंदना शर्मा, सहमन्त्री के लिए रवि कुमार और उपमंत्री के लिए वंदना शर्मा तथा कोषाध्यक्ष के लिए सर्वसम्मति से अरविंद शर्मा को चुन लिया गया। प्रधान शेख मोहम्मद कल्याण ने कार्यकारिणी के सदस्यों के रूप में जिनमें वंदना ठाकुर, भगवती देवी, रजनी कुमारी, ज्योति शर्मा, किशोर कुमार तथा रविंदर कुमार के नाम घाषित किए। उन्होंने कहा कि आने वाले दिनों में पूरे वर्ष के कार्यक्रमों के लिए जल्द ही एक सूची बनाइ जाएगी।
संयोजक डॉ.परविंदर कौर ने चुनाव में भाग लेने के लिए सभी का धन्यवाद करते हुए उम्मीद जताई कि अब शहर में आने वाले दिनों में युहिले की ओर से स्तरीय कार्यक्रम आयोजित होंगे।

ट्रैफिक पुलिस वाहनों के सुचारू संचालन को नजरअंदाज कर चालानों का टारगेट पूरा करने में व्यस्त

दीपाक्षर टाइम्स संवाददाता
जम्मू। मंदिरों की नगरी में अनियंत्रित वाहनों के कारण ट्रैफिक समस्या दिन-दिनों गंभीर होती जा रही है। लेकिन इसके बावजूद ट्रैफिक पुलिस शहर की सड़कों पर यातायात का सुचारू संचालन करनेे के स्थान पर यातायात नियमों का उल्लंघन करने वाले वाहनों के चालान काटने पर ही ज्यादा ध्यान दे रही लगती है।
जम्मू शहर में लगभग हर चौक, जहां ट्रैफिक लाइट है या नहीं, अक्सर वाहनों का जाम लगा होता है। यहां तक कि व्यस्त बिक्रम चौक पर भी, जहां यातायात के बिना रूकावट के संचालन के लिए ट्रैफिक लाइट स्थापित की गई है, अभी भी सबसे खराब ट्रैफिक अराजकता का सामना करना पड़ रहा है । प्राइवेट मेटाडोरों द्वारा बीच सड़क पर वाहन रोक कर यात्रियों को बैठाने से अन्य वाहनों को काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
लोगों का कहना है कि ट्रैफिक के सुचारू संचालन के लिए यहां कई ट्रैफिक पुलिस कर्मी तैनात किए जाने के बाद भी अक्सर जाम लगते हैं। ट्रैफिक कर्मी चालान काटने में व्यस्त रहते हैं और वहां जारी फ्लाईओवर परियोजना के कारण निकलने की पर्याप्त जगह ना होने से वाहनों की लंबी कतार लग जाती हैं।
जम्मू शहर के व्यस्त मार्गों में से एक ज्वैल-तालाब तिल्लो सड़क पर भी ऐसे ही हालात का सामना करना पड़ रहा है। ट्रैफिक कर्मियों के होने के बावजूद  यहां नियमित रूप से जाम लगना अब रोज की बात हो गई है। ट्रैफिक पुलिस कर्मी सड़क किनारे खड़े होकर चालान काटते हैं, जिसके परिणामस्वरूप घंटों तक लंबे जाम लगे रहते हैं। ट्रैफिक पुलिस इस सड़क पर मिनी बसों की आवाजाही को कोई उचित व्यवस्था करने में पूरी तरह से विफल साबित हो रही है। हालांकि कई स्थानों पर ट्रैफिक लाईटें लगा दी गई है, लेकिन अधिकांश समय वे बंद ही रहती हैं। सतवारी चौक में भी ट्रैफिक का यही हाल है। जबकि वहां ट्रैफिक लाइट भी लगी हैं और पुलिसकर्मी भी तैनात किए गए हैं। यहां  यातायात पुलिसकर्मियों की उपस्थिति में कार्य दिवसों के दौरान मिनी बसों, निजी वाहनों या दो-पहिया वाहनों की लंबी कतार देखी जा सकती है।
इसी तरह की स्थिति लास्ट मोड़ , गांधी नगर, इंदिरा चौक, बस स्टैंड जैसे शहर के अन्य इलाकों में हैं। शहर की विभिन्न सड़कों पर यह रोजमर्रा का दृश्य होता है कि चार से पांच ट्रैफिक पुलिसकर्मी  किसी दुपहिया वाहन चालक को घेर कर अपने वरिष्ठ अधिकारी के पास ले जाते हैं। वह अधिकारी ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन के लिए चालान जारी करता है। लेकिन जब अधिकांश बार मिनी बसों द्वारा यातायात नियमों का उल्लंंघन किया जाता है तो ये ही ट्रैफिक  पुलिसकर्मी  मूकदर्शकों की भांति व्यवहार करते हैं। ट्रैफिक  पुलिस अधिकारियों का कहना है कि ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन करने वालों पर नियंत्रण रखने के लिए चालान जारी करना महत्वपूर्ण हैं। उनका कहना है कि ट्रैफिक  पुलिसकर्मी इस भीषण गर्मी में भी ट्रैफिक को सुचारू बनाने के लिए पूरी कोशिश कर रहे हैं, जोकि सड़कों पर हर दिन बढ़ रही वाहनों की संख्या को देखते हुए कोई आसान काम नहीं है।

व्यापार के लिए पर्यटकों को सुविधाएं मुहैया करवाना जरूरी

दीपाक्षर टाइम्स संवाददाता
जम्मू (राजेन्द्र)। व्यापार की दृष्टि से पिछड़ते जा रहे जम्मू शहर की दास्तान सुनने वाला कोई नहीं हैं।  पिछले कुछ वर्षों से शहर की अर्थव्यवस्था कमजोर हुई है। शहर के अधिकांश पुराने बाजार आज सूने नजर आते हैं।  होटल मालिक, व्यापारी, सब मंदी के दौर से गुजर रहे हैं।
इस मंदी से निजात दिलाने का फार्मूला ना तो सरकार के पास है और ना ही किसी व्यापारीक संगठन के बस की बात है।  शायद इसका कारण यह है कि सरकार ने इस समस्या की ओर कभी ध्यान ही नहीं दिया।  कुछ वर्ष पहले जम्मू के यह बाजार हमेशा सैलानियों से भरे रहते थे परंतु आज इन बाजारो  में सैलानियों का जैसे अकाल पड़ चुका है। जम्मू के व्यापार जगत की यह हालत सरकार के गलत रवैए के कारण हुई है। कुछ पर्यटकों और यात्रियों से जब इन वाजारो तक ना पहुंचने का कारण पूछा गया तो हैरान करने वाली समस्याएं सामने आई, कुछ यात्रियों ने बताया कि जम्मू शहर में प्रवेश करना ऐसा हो गया है जैसे हम किसी दूसरे देश में जा रहे हैं।  उन्होंने बताया कि हमारी गाडिय़ों को लखनपुर से दाखिल होते ही जगह-जगह रोका जाता है।  पूछताछ के नाम पर हमसे ट्रैफिक कर्मचारी पैसे माँगते हैं और यह सिलसिला खत्म होने का नाम ही नहीं लेता। इसके बावजूद हमें शहर में घुसने नहीं दिया जाता हर जगह पर पर्ची पकड़े लोग हम से पैसे मांगते हैं। शहर में कोई पार्किंग नजर नहीं आती पूरा दिन पार्किंग की व्यवस्था करते ही निकल जाता है। शहर में आराम करने के लिए कोई स्थान नहीं मिलता इसलिए हम जम्मू शहर में प्रवेश किए बगैर ही कश्मीर या अन्य स्थानों की ओर निकल जाना चाहते हैंं। कहने को तो यह सैलानियों की बातें आम सी लगने वाली थी परंतु शहर की मंदी से देखा जाए तो यह अत्यंत महत्वपूर्ण जानकारियां थी क्योंकि अगर बाजारों मे पर्यटको और यात्रियों का प्रवेश ही नहीं होगा तो फिर बाजारों का महत्व क्या रहेगा।
प्रशासन को भी इस ओर ध्यान देना होगा कि सैलानियों से शहर में बार-बार पूछताछ ना हो। अगर सैलानी राज्य में प्रवेश करते हैं तो उसके लिए लखनपुर में ही सारी पूछताछ कर ली जाए तथा उन्हें ऐसा टोकनपास  दिया जाए जो यह साबित करता हो कि इस यात्री की गाड़ी तथा उसका सामान जांचा जा चुका है। सैलानियों की सुविधा के लिए जम्मू शहर में अलग से पार्किंग व्यवस्था की जाए ताकि सैलानी आसानी से अपने वाहनों को पार्किंग कर के बाजारों में घूम सके। सैलानियों को आकर्षित करने के लिए प्रशासन को अपने उस वादे को भी पूर्ण करना होगा जिसमें जम्मू के कुछ बाजारों को हेरिटेज का दर्जा देने की बात की गई थी। अक्सर देखा गया है कि इन बाजारों में वाहनों के बड़े-बड़े जाम लगे रहते हैं जो राहगीरों के साथ-साथ सैलानियों के लिए भी परेशानी का कारण बनते हैं। इन बाजारों में जानेसे चारपहिया वाहनों को प्रतिबंधित किया जाए ताकि इन सिकुड़ते हुए बाजारों में सैलानी आसानी से खरीद-फरोख्त कर सकें।

सौतेले व्यवहार से हताश हैं हरि मार्केट के व्यापारी

दीपाक्षर टाइम्स संवाददाता
जम्मू। हरि मार्केट के व्यापारी राज्य सरकार द्वारा किए जा रहे सौतेले व्यवहार और प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा उनकी जायज समस्याओं की अनदेखी  किए जाने से हताश हैं। हरि मार्केट को ऐतिहासिक रघुनाथ मंदिर का प्रवेश द्वार कहा जा सकता है। इस बाजार में करीब 45 दुकानें हैं।
हरि मार्केट ट्रैडर्स एसोसिएशन के प्रधान राजेश रैणा का कहना है कि हरि मार्केट के साथ राज्य सरकार एवं नागरिक प्रशासन द्वारा सौतेला व्यवहार किया जा रहा है। सरकार द्वारा बाजार में ना पार्किंग की व्यवस्था की गई है और ना ही स्ट्रीट लाइटों की। बाजार में जैसे ही यात्रियों या पर्यटकों का कोई वाहन आता है तो पुलिस कर्मी तुरंत वाहन हटवा देते हैं। वैसे ही मंदी का दौर है। कोई यात्री अपने वाहन में आता है तो उसे यहां आने से रोका जाता है। यात्रियों और पर्यटकों के वाहनों को बाजार में आने से रोका जाता है। यहां तक कि इंदिरा चौक से ही वाहन टर्न करवा दिया जाता है। रघुनाथ बाजार के सौंदर्यकरण पर सरकार करोड़ों रूपए खर्च कर रही है, लेकिन हमारे बाजार के विकास के लिए कोई योजना तक तैयार नहीं की गई है। यह बाजार भी वर्षों पुराना है फिर क्यों इसका विकास करवाने से परहेज किया जा रहा है। उन्होंने मांग की कि हरि मार्केट को भी हैरिटेज बाजार का दर्जा देकर यहां विकास कार्य करवाएं जाएं।  
एसोसिएशन के महासचिव सुमीत जैन का कहना है कि कटरा से आने वाले यात्री वाहन श्रद्धालुओं को आयुर्वेदिक अस्पताल के पास ही उतार देते हैं। हरि मार्केट तक आने के लिए आटो वाले यात्रियों से 150 रूपए तक की मांग करते हैं। जिसके परिणामस्वरूप यात्री बाजार में आने से परहेज करते हैं। माननीय सांसद ने चुनाव में विजय प्राप्त करने के बाद एक बार भी बाजार का रूख नहीं किया है। इसी प्रकार से अधिकारी भी बाजार की ज्वलंत समस्याओं के प्रति उदासीन रवैेया अपना रहे हैं। उन्होंने कहा कि ट्रेन कटरा जाने से ना सिर्फ हरि मार्केट बल्कि आसपास के सभी बाजारों के कामकाज पर असर पड़ा हँै। सरकार को गंभीरता से यह प्रयास करना चाहिए कि पर्यटक कम से कम एक-दो दिन जम्मू में रूके। उन्होंने मांग की कि बाजार की सभी लंबित समस्याओं को शीघ्र दूर किया जाए। स्थानीय विधायक ने पूरे क्षेत्र को हैरिटेज क्षेत्र बनाने का जो आश्वासन दिया था उसे शीघ्र पूरा किया जाना चाहिए।्र
एसोसिएशन के सचिव संकुल गुप्ता ने कहा कि श्री माता वैष्णो देवी के दर्शनों के लिए प्रतिदिन करीब 50000 श्रद्धालु जाते हैं, हम प्रशासन से यह ही अपील करते हैंं कि इनमें से सिर्फ 5000 श्रद्धालुओं को आसानी से बाजार क्षेत्र में आने दिया जाए, ताकि इस क्षेत्र के सहारे अपनी रोजी-रोटी चला रहे हजारों लोगों की आजीविका चलती रहे। उन्होंने कहा कि हरि मार्केट स्थित श्री रघुनाथ मंदिर का गेट मनमर्जी से खोला जाता है,अगर इस गेट को समयबद्ध तरीके से खोला जाए तो ना सिर्फ मंदिर प्रबंधन को आसानी होगी, बल्कि बाजार के व्यापारियों को भी लाभ होगा। गुप्ता ने कहा कि सरकार और प्रशासन सिर्फ रघुनाथ बाजार की ओर ही ध्यान देते हैं, जबकि आसपास के अन्य बाजारों के साथ सौतेला व्यवहार किया जा रहा है। हमारी समस्याएं दूर करने की किसी को चिंता नहीं है। अगर सरकार सहयोग करें तो हालात सुधर सकते हैं और जारी मंदी का असर भी कम हो सकता है। उन्होंने मांग की कि अनियमित बिजली कटौती पर तत्काल रोक लगाई जाए, ताकि होटलों में ठहरे यात्रियों को असुविधा ना हो। यात्रियों और पर्यटकों को कटरा से जम्मू तक लाने के लिए गंभीर प्रयास किए जाने की जरूररत है। बाजार के सौंदर्यकरण के प्रयास किए जाने चाहिए, ताकि पर्यटकों को आसानी से इस क्षेत्र की ओर आकर्षित किया जा सकें।

यात्रा के समय ही क्यों होता है माहौल खराब?

कौन हैं षडय़ंत्र का सूत्रधार? कौन बनाता है तील का ताड़?

दीपाक्षर टाइम्स संवाददाता

जम्मू। गत कुछ वर्षों की भांति इस वर्ष भी जैसे-जैसे वार्षिक अमरनाथ यात्रा शुरू होने का समय नजदीक आ रहा है कश्मीर वादी की फिजाओं में जहर घुलने लगा है। वादी में जहां एक तरफ देश विरोधी प्रदर्शनों का दौर शुरू हो गया है वहीं आतंकवादी हमलों में भी तेजी आई है। हर वर्ष गर्मियों को और गर्म करने की साजिशें रची जाती है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह उभरता है कि हर बार यही मौसम और समय क्यों?  
कश्मीर वादी से उठती चिंता की लपटों ने बड़ी उम्मीदों से वार्षिक अमरनाथ यात्रा का इंतजार करते जम्मू संभाग के व्यापार जगत को एक बार फिर आशंकीत कर दिया है।
जम्मू के व्यापारियों का कहना है कि एक तो पहले से ही मंदी का दौर है और अगर कश्मीर में वर्तमान स्थिति जारी रही तो अमरनाथ यात्रा भी प्रभावित होगी। जिससे हमारी स्थिति और खराब होने की आशंका है। उन्होंने कहा कि अभी यह हालत है कि कई बाजारों में तो व्यापारी सुबह से देर शाम तक एक पैसा तक नहीं कमा पा रहे हैं। जिसके कारण बैंकों की किश्तें चुकाना तो बहुत दूर की बात है,रोज का खर्च निकालना भी काफी मुश्किल हो रहा है।  
उन्होंने कहा कि यह सिलसिला वर्ष 2008 से शुरू हुआ और अभी तक जारी है। वर्ष 2010 में घाटी में इसी मौसम के दौरान 100 से अधिक लोगों की मौत हुई। इस बार अलगाववादियों ने कशमीरी पंडितों क ो घाटी में बसाने का मुद्दा अपना हथियार बनाया है। ये लोग हर बार किसी ना किसी बात का बतंगड बना कर पूरा माहौल तो खराब करते ही है, व्यापार भी चौपट कर देते हैं।
कश्मीर में गत कुछ दिनों के दौरान सुरक्षा बलों और पुलिसकर्मियों पर हो रहे तोबड़तोड़ आतंकवादी हमलों पर पर्यटन क्षेत्र से जुड़े लोगों का कहना है कि अगर हमले न रूके तो राज्य में पर्यटन पर आतंकवाद की काली परछाई एक बार फिर छा जाएगी।
इन हमलों ने पर्यटकों के लिए खतरा पैदा कर दिया है इससे भी कोई इंकार नहीं करता है। पर्यटन क्षेत्र से जुड़े लोग मानते हैं कि हमलों की खबर मिलने के बाद राज्य में आने की योजना बनाए बैठे पर्यटकों और श्रद्धालुओं में अफरातफरी और दहशत का माहौल है। ऐसे में टूरिज्म से जुड़े लोगों को चिंता इस बात की है कि कहीं हमलों में तेजी न आए और अगर ऐसा हुआ तो इस बार के टूरिस्ट सीजन का बंटाधार तय है। जो पहले ही विभिन्न विवादों के कारण हिचकोले खा रहा है। व्यापारियों का कहना है कि केन्द्र एवं राज्य सरकार को स्थिति में सुधार के लिए तत्काल प्रभावी कदम उठाने चाहिए।

गुरुवार, मई 26, 2016

पानी की किल्लत

संपादक महोदय,
जब तापमान करीब 43 डिग्री के आस-पास होने के कारण गर्मी अपने पूरे उफान पर है जम्मू संभाग विशेषरूप से जम्मू शहर में लोग अनियमित आपूर्ति के चलते परेशान हो रहे हैं। पानी की किल्लत को लेकर जहां लोगों की बैचेनी दिन ब दिन बढ़ती ही जा रही है। वहीं दूसरी ओर जल प्रबंधन का शोर है और शहर में आवश्यकता के अनुसार पेयजल आपूर्ति के बारे में सिर्फ बनावटी बातें ही की जा रही है। जब ऊंचे दावों की पोल खुल रही है तो संबंधित अधिकारियों के पास आम लोगों की दुर्दशा के बारे में कोई शब्द नहीं है। पीएचई विभाग द्वारा की जा रही पेयजल आपूर्ति की पूरी व्यवस्था अस्थायी कर्मचारियों और दैनिक वेतनभोगियों द्वारा चलाई जा रही है। उनमें से कुछ एक दशक से अधिक समय से विभाग में कार्यरत होने के बावजूद अभी तक अस्थायी कर्मचारी ही हैं। ये कर्मचारी गत 70 दिनों से उन्हें नियमित किए जाने की मांग को लेकर हड़ताल पर हैं, लेकिन सरकार इस मांग को मानने को तैयार नहीं है। यह एक बहुत ही अतार्किक और अनुचित स्थिति है। अगर एक दशक से भी अधिक समय से सेवारत रहने के बाद भी पीएचई उन्हें नियमित करने की स्थिति में नहीं है और अगर वे अपनी मांगों को लेकर सरकार पर दबाव डाल रहे हैंं, तो सरकार क्यों नहीं उनके स्थान पर और अस्थायी कर्मचारी तैनात करके शहर और पेयजल किल्लत से काफी परेशान कंडी क्षेत्रों में पेयजल आपूर्ति उपलब्ध करवाती। अगर सरकार सोचती है कि इन अस्थायी कर्मचारियों की बर्खास्तगी इनके साथ अन्याय होगा तो सरकार इन्हें नियमित करने के बारे क्यों नहीं विचार करती है। यह जनता की सरकार है, इसे जनहित में काम करना है। लेकिन वह असलियत में पानी की कमी से लाखों लोगों को परेशान कर लोगों के हितों के खिलाफ काम कर रही है। मंत्रियों, विधायकों और शीर्ष नौकरशाहों को नियमित रूप से पानी की आपूर्ति मिल रही है और वे हड़ताल से प्रभावित नहीं हैं। इसलिए वे लाखों आम लोगों को पेश आ रही समस्याओं को नहीं समझ सकते हैं। करीब दो वर्ष पूर्व आगामी 30 वर्षों के लिए ग्रेटर जम्मू की पेयजल जरूरत पूरी करने के लिए 1008 करोड़ रूपए की चिनाब जल परियोजना तैयार की गई थी, लेकिन इसे एशियन डव्ल्पमेंट बैंक ने कुछ तकनीकी कारणों से नामंजूर कर दिया था। पीएचई विभाग का कहना है कि अब एक जापानी कंपनी द्वारा परियोजना शुरू किए जाने की संभावना है। क्या विभाग के पास इसका जवाब है कि जब एडीबी ने इस परियोजना से हाथ खिंचा तो उसके बाद 2 वर्ष तक विभाग ने क्या किया? क्या अन्य विकल्प तलाशना उसकी जिम्मेदारी नहीं थी? अब 19 टयूब वैल खोदने के आदेश दिए गए हैं, जो दिसंबर 2016 तक पूर्ण होंगे। इसका मतलब है कि दिसंबर तक या सात माह तक जम्मू शहर के लिए 20 लाख गैलन पानी की कमी जारी रहेगी। प्रस्तावित 19 नलकूप भले ही दिसंबर तक पूर्ण होने हो लेकिन उनसे भी कई कारणों से समस्या का समाधान होता नजर नहीं आता है। यह निश्चित रूप से कोई नहीं बता सकता कि इनमें से कितने टयूबवैल में पर्याप्त पानी होगा। दूसरे बिजली आपूर्ति की निराशाजनक हालत को देखते हुए यह नहीं लगता कि इन नलकूपों के लिए नियमित रूप से बिजली की आपूर्ति सुनिश्चित हो पाएगी। भले ही बिजली की आपूर्ति नियमित रूप से हो और नलकूपों के लिए पर्याप्त पानी हो , क्या महिनों तक हड़ताल पर रहने वाले अस्थायी श्रमिकों / मजदूरों के साथ क्या ये सब संभव हो पाएगा।  इसलिए ट्यूबवेल समस्या के लिए कोई वास्तविक समाधान नहीं है। सरकार को तत्काल सही जल संसाधन प्रबंधन नीति तैयार करनी चाहिए। शहर में पानी की कमी एक बहुत ही गंभीर मुद्दा बनता जा रहा है।-सुशांत  

क्यों नहीं डूबे रामसेतु के लिए इस्तेमाल हुए पत्थर?

कभी आपके साथ ऐसा हुआ है कि आपने कोई पत्थर पानी में फेंका और वह डूबा नहीं, बल्कि पानी की सतह पर तैरता चला गया हो? शायद नहीं, क्योंकि पत्थर का एक पर्याप्त वजन पानी को चीरते हुए खुद को उसमें डुबो ही लेता है। फिर आश्चर्य की बात है कि सदियों पहले श्रीराम की वानर सेना द्वारा बनाए गए रामसेतु पुल के पत्थर पानी में डालते ही डूबे क्यों नहीं?
एडेम्स ब्रिज :- जी हां, वही रामसेतु जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 'एडेम्स ब्रिज' के नाम से जाना जाता है। हिन्दू धार्मिक ग्रंथ रामायण के अनुसार यह एक ऐसा पुल है, जिसे भगवान विष्णु के सातवें एवं हिन्दू धर्म में विष्णु के सबसे ज्यादा प्रसिद्ध रहे अवतार श्रीराम की वानर सेना द्वारा भारत के दक्षिणी भाग रामेश्वरम पर बनाया गया था, जिसका दूसरा किनारा वास्तव में श्रीलंका के मन्नार तक जाकर जुड़ता है।
ऐसी मान्यता है कि इस पुल को बनाने के लिए जिन पत्थरों का इस्तेमाल किया गया था वह पत्थर पानी में फेंकने के बाद समुद्र में नहीं डूबे। बल्कि पानी की सतह पर ही तैरते रहे। ऐसा क्या कारण था कि यह पत्थर पानी में नहीं डूबे? कुछ लोग इसे धार्मिक महत्व देते हुए ईश्वर का चमत्कार मानते हैं लेकिन साइंस इसके पीछे क्या तर्क देता है यह बिल्कुल विपरीत है।
लेकिन इससे ऊपर एक बड़ा सवाल यह है कि 'क्या सच में रामसेतु नामक कोई पुल था'। क्या सच में इसे हिन्दू धर्म के भगवान श्रीराम ने बनवाया था? और यदि बनवाया था तो अचानक यह पुल कहां गया।
धार्मिक मान्यता अनुसार जब असुर सम्राट रावण माता सीता का हरण कर उन्हें अपने साथ लंका ले गया था, तब श्रीराम ने वानरों की सहायता से समुद्र के बीचो-बीच एक पुल का निर्माण किया था। यही आगे चलकर रामसेतु कहलाया था। कहते हैं कि यह विशाल पुल वानर सेना द्वारा केवल 5 दिनों में ही तैयार कर लिया गया था। कहते हैं कि निर्माण पूर्ण होने के बाद इस पुल की लम्बाई 30 किलोमीटर और चौड़ाई 3 किलोमीटर थी।
आश्चर्य की बात है कि मीलों का फासला रखने वाले दो देशों के बीचो-बीच मौज़ूद इस समुद्र को लांघने के लिए महज पांच दिनों में कैसे वानर सेना ने एक पुल बना डाला। इसे विस्तार से समझने के लिए महर्षि वाल्मीकि द्वारा रची गई 'रामायण' में रामसेतु के निर्माण का वर्णन किया गया है।
रामायण ग्रंथ के अनुसार जब लंकापति राजा रावण, श्रीराम की पत्नी सीता का हरण कर उन्हें लंका ले गया था, तब भगवान श्रीराम ने अपनी पत्नी की खोज आरंभ की। जटायू से उन्हें यह पता लगा कि उनकी पत्नी को एक ऐसा राक्षस राजा ले गया है, जो मीलों दूर एक बड़े समुद्र को पारकर दूसरे छोर पर लंका में रहता है।
अब चिंतित श्रीराम यह सोचने लगे कि आखिरकार वे किस प्रकार से अपनी पत्नी को लंका में खोजेंगे। तब पवनपुत्र हनुमानजी ने अपनी दैविक शक्तियों का प्रयोग किया और उड़ान भरकर लंका की ओर निकल गए माता सीता को खोजने के लिए।
लंका पहुंचकर रावण की कैद में हनुमानजी ने सीताजी को खोज तो निकाला, लेकिन वे उन्हें वापस ना लेकर आए। क्योंकि उन्होंने देखा कि केवल माता सीता ही नहीं, बल्कि उनके साथ एक बड़ी संख्या में बेकसूर लोगों को रावण ने अपना बंदी बनाया हुआ है।
तब श्रीराम ने फैसला किया कि वे स्वयं अपनी सेना के साथ लंका जाकर ही सबको रावण की कैद से छुड़ाएंगे। लेकिन यह सब कैसे होगा, यह एक बड़ा सवाल था। क्योंकि निश्चय तो था लेकिन रास्ते में था एक विशाल समुद्र जिसे पार करने का कोई जरिया हासिल नहीं हो रहा था।
एक पौराणिक कथा के अनुसार ऐसा माना जाता है कि अपनी मुश्किल का हल निकालने के लिए श्रीराम द्वारा समुद्र देवता की पूजा आरंभ की गई। लेकिन जब कई दिनों के बाद भी समुद्र देवता प्रकट नहीं हुए तब क्रोध में आकर श्रीराम ने समुद्र को सुखा देने के उद्देश्य से अपना धनुष-बाण उठा लिया।
उनके इस कदम से समुद्र के प्राण सूखने लगे। तभी भयभीत होकर समुद्र देवता प्रकट हुए और बोले, 'श्रीराम! आप अपनी वानर सेना की मदद से मेरे ऊपर पत्थरों का एक पुल बनाएं। मैं इन सभी पत्थरों का वजन सम्भाल लूंगा। आपकी सेना में नल एवं नील नामक दो वानर हैं, जो सर्वश्रेष्ठ हैं।'
'नल, जो कि भगवान विश्वकर्मा के पुत्र हैं उन्हें अपने पिता द्वारा वरदान हासिल है। उनकी सहायता से आप एक कठोर पुल का निर्माण कराएं। यह पुल आपकी सारी सेना का भार संभाल लेगा और आपको लंका ले जाने में सफल होगा', ऐसा कहते हुए समुद्र देव ने श्रीराम से पुल बनाने का विनम्र अनुरोध किया।
अगले ही पल नल तथा नील की मदद से पूरी वानर सेना तमाम प्रकार की योजनाएं बनाने में सफल हुई। अंत में योजनाओं का चुनाव करते हुए पुल बनाने का सामान एकत्रित किया गया। पूरी वानर सेना आसपास से पत्थर, पेड़ के तने, मोटी शाखाएं एवं बड़े पत्ते तथा झाड़ लाने में सफल हुई।
अंत में नल तथा नील की देखरेख तथा पूर्ण वैज्ञानिक योजनाओं के आधार पर एक विशाल पुल तैयार किया गया। वैज्ञानिकों का मानना है कि नल तथा नील शायद जानते थे कि कौन सा पत्थर किस प्रकार से रखने से पानी में डूबेगा नहीं तथा दूसरे पत्थरों का सहारा भी बनेगा।
वानरों द्वारा बनाए गए इस पुल का एक हिस्सा भारत के रामेश्वरम से शुरू होकर लंका के मन्नार द्वीप से जुड़ता था। इस पुल द्वारा अपनी सेना के साथ श्रीराम लंका पहुंचे और वहां असुर सम्राट रावण के साथ भीषण युद्ध किया। अंत में रावण को हराकर वे अपनी पत्नी सीता और उन तमाम कैदियों को छुड़ाने में सफल हुए जो वर्षों से रावण की कैद में बंधे हुए थे।
श्रीराम तथा रावण के बीच हुआ यह युद्ध हिन्दू धर्म के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण युद्ध रहा, क्योंकि इस युद्ध ने लोगों को समझाया कि अधर्म पर हमेशा धर्म की ही जीत होती है। लेकिन आज का आधुनिक युग विभिन्न मान्यताओं नहीं बल्कि तथ्यों को अपना आधार मानता है।
क्या है वैज्ञानिक कारण?
इसलिए इतने सालों के शोध के बाद वैज्ञानिकों ने रामसेतु पुल में इस्तेमाल हुए पत्थरों का वजूद खोज निकाला है। विज्ञान का मानना है कि रामसेतु पुल को बनाने के लिए जिन पत्थरों का इस्तेमाल हुआ था वे कुछ खास प्रकार के पत्थर हैं, जिन्हें 'प्यूमाइस स्टोन' कहा जाता है।
दरअसल यह पत्थर ज्वालामुखी के लावा से उत्पन्न होते हैं। जब लावा की गर्मी वातावरण की कम गर्म हवा या फिर पानी से मिलती है तो वे खुद को कुछ कणों में बदल देती है। कई बार यह कण एक बड़े पत्थर को निर्मित करते हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि जब ज्वालामुखी का गर्म लावा वातावरण की ठंडी हवा से मिलता है तो हवा का संतुलन बिगड़ जाता है।
ऐसे डूब गया रामसेतु पुल :- लेकिन कुछ समय के बाद जब धीरे-धीरे इन छिद्रों में हवा के स्थान पर पानी भर जाता है तो इनका वजन बढ़ जाता है और यह पानी में डूबने लगते हैं। यही कारण है कि रामसेतु पुल के पत्थर कुछ समय बाद समुद्र में डूब गए और उसके भूभाग पर पहुंच गए। नैशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस, नासा जो कि विश्व की सबसे विख्यात वैज्ञानिक संस्था में से एक है उसके द्वारा सैटलाइट की मदद से रामसेतु पुल को खोज निकाला गया।
इन तस्वीरों के मुताबिक वास्तव में एक ऐसा पुल जरूर दिखाया गया है जो कि भारत के रामेश्वरम से शुरू होकर श्रीलंका के मन्नार द्वीप तक पहुंचता है। परन्तु किन्हीं कारणों से अपने आरंभ होने से कुछ ही दूरी पर यह समुद्र में समा गया है।
रामेश्वरम में कुछ समय पहले लोगों को समुद्र तट पर कुछ वैसे ही पत्थर मिले जिन्हें प्यूमाइस स्टोन कहा जाता है। लोगों का मानना है कि यह पत्थर समुद्र की लहरों के साथ बहकर किनारे पर आए हैं। बाद में लोगों के बीच यह मान्यता फैल गई कि हो ना हो यह वही पत्थर हैं, जिन्हें श्रीराम की वानर सेना द्वारा रामसेतु पुल बनाने के लिए इस्तेमाल किया गया होगा।
लेकिन वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक और शोध ने प्यूमाइस स्टोन के सिद्धांत को भी गलत साबित किया है। कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि यह सच है कि प्यूमाइस स्टोन पानी में नहीं डूबते और ऊपर तैरते हैं और यह ज्वालामुखी के लावा से बनते हैं। लेकिन उनका यह भी मानना है कि रामेश्वरम में दूर-दूर तक सदियों से कोई भी ज्वालामुखी नहीं देखा गया है
इसके साथ ही जिस प्रकार के पत्थर रामेश्वरम के तट से प्राप्त हुए हैं, उनमें और प्यूमाइस स्टोन में काफी अंतर पाया गया है। क्योंकि उनका वजन अमूमन पाए जाने वाले प्यूमाइस स्टोन से काफी अधिक है। इसके साथ ही पाए गए पत्थरों का रंग भी आमतौर पर देखे गए प्यूमाइस स्टोन से भिन्न है। लेकिन अब यह लोगों की श्रद्धा कहें या भावना, उनके द्वारा इन पत्थरों की खासतौर से पूजा की जाती है।

भौंकने वाली गिलहरी

हां-हां! गिलहरी.. और वह भी भौंकने वाली। शीर्षक में कोई भूल नहीं। उत्तरी अमेरिका के प्रेयरी मैदानों में ऐसी गिलहरियां बहुतायत में पाई जाती हैं, जो किसी संकट या आपातकाल की आहट होने पर तुरंत भौंकने लगती हैं। स्क्यूरस ग्रीसियस वैज्ञानिक नाम वाली इन गिलहरियों को प्रेयरी गिलहरी या जंगली गिलहरी भी कहते हैं। ये गिलहरियां आमतौर पर सामान्य आवाज में ही परस्पर संवाद करती हैं, लेकिन खतरा सामने दिखते ही इनकी आवाज में बदलाव आ जाता है और अपने साथियों को ये भौंक-भौंक कर अलर्ट करने लगती हैं। खतरा बिल्कुल नजदीक हो तो भौंकने का वॉल्यूम बेहद कम होता है। खतरा टलने के बाद ये अलग तरह से आवाज निकालकर राहत का संकेत देती हैं। मोटे तौर पर ये आम गिलहरियों जैसे ही आकार प्रकार की होती हैं लेकिन इनकी पूंछ की लंबाई जरा कम और झबरीली होती है। पूंछ का अंतिम सिरा काला होता है। कई लोग इन्हें काली पूंछ वाली गिलहरी भी कहते हैं। प्रेयरी गिलहरियों कॉलोनी बना कर रहती हैं। इनका आकार डेढ़ फुट से दो फुट तक होता है और वजन लगभग 400 ग्राम से 1 किलो तक हो सकता है। इनके घर को कोटरी कहा जाता है। यहीं से अपना घोंसला बनाती हैं। इन्हें घास और जंगली वनस्पति खाना अच्छा लगता है। कठोर बीजों को भी ये आसानी से तोड़ लेती हैं। अनजाने में ही ये गिलहरियां इधर-उधर बीज बिखेर देती हैं जिनसे पेड़ पौधे उग जाते हैं। ये पेड़ों या जमीन पर, दोनों जगह आराम से रह लेती हैं। जंगली गिलहरी का प्रजनन काल मार्च से मई माह में होता है। यह साल में एक बार ही प्रजनन करती है। इसके बच्चे गर्भ में 43 दिन रहते हैं। एक बार में इनके तीन से पांच बच्चे हो सकते हैं। 10 हफ्ते बाद बच्चे बड़े हो जाते हैं और भोजन की व्यवस्था के लिए अपनी मां के साथ जाने लगते हैं। आजकल इस प्रजाति की गिलहरियां कम होती जा रही हैं। इसके दो कारण हैं, एक तो ये खेतों को काफी नुकसान पहुंचाती हैं और दूसरा इनका मांस बहुत स्वादिष्ट होता है। इसलिए मनुष्य इनका शिकार बहुत करते हैं। जल्द ही इनके संरक्षण के लिए कुछ न दिया गया तो यह प्रजाति विलुप्त भी हो सकती है।

अनियमित ट्रैफिक, अवैध पार्किंग का शिकार राजतिलक रोड़ बाजार

दीपाक्षर टाइम्स संवाददाता
जम्मू। शहर के व्यस्त इलाके में स्थित शहर के सबसे पुराने बाजारों में से एक राजतिलक रोड़ बाजार के व्यापारियों को अनियमित ट्रैफिक और वाहनों की अवैध पार्किंग के कारण विभिन्न प्रकार की समस्याओं से जूझना पड़ रहा है।
राजतिलक रोड ट्रेडर्स एसोसिएशन के प्रधान रोमेश गुप्ता ने कहा कि बाजार के आस-पास में प्रशासन द्वारा पार्किंग की कोई व्यवस्था ना किए जाने के कारण व्यापारियों और ग्राहकों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। उन्होंने कहा कि अनियमित ट्रैफिक बाजार की सबसे बड़ी समस्या है। उन्होंने कहा कि अगर बाजार में परेड की ओर से कोई चार पहिया वाहन अंदर ना आए तो सिटी चौक तक जाम मुक्त क्षेत्र बन जाएगा। एसोसिएशन के प्रयासों से 12 वर्ष पूर्व एक ट्रैफिक कर्मी तैनात किया गया था। उन्होंने कहा कि यहां 2-3 माह से अधिक कोई ट्रैफिक कर्मी रहने ही नहीं दीया जाता है। यहां तैनात किए गए ट्रैफिक कर्मी का 2 माह के बाद ही तबादला कर दिया जाता है। ट्रैफिक कर्मी और पुलिस कर्मी ना होने के कारण बाजार में अवैध पार्किंग किए जाने और वाहनों के बेरोक-टोक आने के कारण बाजार में अक्सर जाम लग जाता है। गुप्ता ने कहा कि अधिकारियों के नकारात्मक रूख के चलते बाजार में सुचारू ट्रैफिक की हर योजना नाकाम रही है। हर अधिकारी जमीनी स्तर पर ध्यान दिए बिना बस अपनी ही थ्योरी लागू करना चाहता है। उन्होंने कहा कि बाजार के व्यापारियों को जाम के कारण काफी असुविधा का सामना करना पड़ता है। गुप्ता ने मांग की कि पेरड में स्थित जम्मू नगर निगम की 6.5 कनाल भूमि पर मल्टी स्टोरी पार्किंग स्थल का निर्माण किया जाना चाहिए। इससे ओल्ड सिटी की ट्रैफिक समस्या का समाधान हो जाएगा। एसेसिएशन के वरिष्ठ उप-प्रधान अशोक कुमार  का कहना है कि बाजार के आस-पास पार्किंग की कोई व्यवस्था ना होने के कारण बाजार में अवैध पार्किंग की जाती है। उन्होंने कहा कि बाजार में आने वाले ग्राहकों द्वारा परेड चौक के निकट वाहन लगाने पर ट्रैफिक पुलिस द्वारा वाहन क्रेन से उठा लिया जाता है। जिसके परिणामस्वरूप वह ग्राहक दोबारा बाजार में आता ही नहीं है। एसोसिएशन के उप-प्रधान अजय कुमार ने कहा कि बाजार में बिजली और टेलीफोन की नीचे तक लटकी हुई तारें भी परेशानी का कारण बनी हुई हैं। संबंधित अधिकारियों से बार-बार अनुरोध किए जाने के बावजूद तारों को ठीक नहीं किया जा रहा है। उन्होंने मांग की कि बाजार में बाजार में अंडरग्राउंड वायरिंग करवाकर बाजार में असुविधा का कारण बन रहे तारों के जाल को हटाया जाए।

बुधवार, मई 25, 2016

बेरोजगार युवाओं के लिए एक आर्दश : तारा चंद शर्मा

दीपाक्षर टाइम्स संवाददाता
जम्मू। प्रतिस्पद्र्धा के दौर में जब हर क्षेत्र में गलाकाट स्पद्र्धा है,युवाओं में सरकारी नौकरियों में आई कमी से तेजी से बढ़ती हुई बेरोजगारी के कारण युवाओं में हताशा फैली है, तभी अचानक एक ऐसा चेहरा नजर आता है, जिसने अपनी मंजिल तक पहुंचने के लिए राह का निर्माण भी खुद ही किया है। यह हैं तारा चंद शर्मा जिन्होंने बेरोजगार युवाओं के लिए एक आर्दश स्थापित किया है।
1989 में अखनूर तहसील के चौकी चौरा क्षेत्र के बुध चारियां गांव के निवासी तारा चंद शर्मा ने बेरोजगारी से निजात पाने के लिए जम्मू का रूख किया। उन्होंने शहर के अति-व्यस्त शालामार रोड़ पर सड़क किनारे एक पीपल के वृक्ष के नीचे अपनी छोटी-सी दुकान सजा दी। आज करीब 27 वर्ष बाद उनकी यह दुकान इस क्षेत्र की एक प्रमुख पहचान बन गई है। लोग दूर-दूर से उनके कुलचे खाने आते हैं। वर्ष 2000 में उन्होंने न्यूट्री कुलचा तैयार करना शुरू किया तो उसने उनकी लोकप्रियता को और बढ़ा दिया। प्रतिदिन सुबह 10.30 बजे वह अपनी दुकान सजा लेते हैं और करीब तीन बजे तक उनके यहां कुलचे समाप्त हो जाते हैं। उनके कुलचों के हजारोंं मुरीद है। उनके द्वारा पारंपरिक मसालों से तैयार किए गए कुलचे जहां मैकडोनाल्ड जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनी के मंहगे बर्गर से टक्कर ले रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ ये स्वादिष्ट कुलचे बेरोजगार युवाओं को भी यही संदेश दे रहे हैं कि सरकारी नौकरी का इंतजार करने से बेहतर कोई छोटा-सा ऐसा रोजगार शुरू किया जाए, जिससे उनका और उनके परिजनों का पालन-पोषण हो सके।
तारा चंद शर्मा प्रतीक है डुग्गरवासियों की जीवटता एवं धैर्य का। अनेक शुरूआती समस्याओं का मुकाबला करते हुए उन्होंने अपनी इस छोटी-सी दुकान को शहर के प्रतिष्ठित रेस्टोरेंटों के मुकाबले पर ला खड़ा किया है।
जिंदादिल व्यक्तित्व के धनी तारा चंद अपनी सफलता का श्रेय अपने परिवार को देते हैं। उनकी पत्नी पुष्पा सुबह जल्दी ही जरूरी सामग्री तैयार करने में उनकी मदद करती है। 10वीं तक शिक्षा प्राप्त तारा चंद अपने दोनों बच्चों विवेक एवं नीतिका को उच्च शिक्षा दिलवाने के इच्छुक है।
राज्य के बेरोजगार युवाओं की उम्मीद के प्रतीक तारा चंद कहते है कि युवाओं को सरकारी नौकरी का इंतजार करने के बजाय आत्मनिर्भर बनने के लिए स्वयं का रोजगार छोटे स्तर पर शुरू कर बेरोजगारी से निजात पाने की कोशिश करनी चाहिए। उनका कहना है कि अगर कुछ करने की इच्छा हो तो सफलता जरूर मिलती है।

अन्न-जल की बर्बादी पर लगाम लगाना जरूरी

मिथिलेश कुमार सिंह
एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में जितना भोजन बनता है, उसका एक तिहाई, यानि 1 अरब 30 करोड़ टन भोजन बर्बाद चला जाता है। ऐसी ही एक अन्य रिपोर्ट में यह बात सामने आयी है कि 'बढ़ती सम्पन्नता के साथ खाने के प्रति लोग और भी असंवेदनशील होते जा रहे हैं'। जाहिर है, पानी और भोजन मनुष्य की दो मूलभूत जरूरतों में शामिल है और अगर इसके प्रति कोई व्यक्ति संवेदनशील नहीं है तो फिर विवश होकर उसकी लापरवाही पर ध्यान जाता ही है। विश्व खाद्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में प्रतिदिन 20 हजार बच्चे भूखे रहने को विवश हैं, जबकि हकीकत में यह संख्या कहीं ज्यादा है। अगर यही आंकड़ा भारत के सन्दर्भ में देखें तो विश्व भूख सूचकांक में हमारा स्थान 67वां है और यह बेहद शर्मनाक बात है कि भारत में हर चौथा व्यक्ति भूख से सोने को मजबूर है। जाहिर है, आंकड़ों को देखने पर कई बार रोंगटे खड़े हो जाते हैं, किन्तु हम हैं कि अपनी लापरवाही छोडऩे को तैयार नहीं होते। इसी क्रम में, जब कभी हम अपने दोस्तों को खाने पर बुलाते हैं या घर में कोई पार्टी रखते हैं तो, मेहमानों के लिए ढेर सारे व्यंजन बनाते हैं। लेकिन कई बार हमें इस बात का अंदाजा नहीं होता है कि कितने लोग आएंगे और कितने लोगों के लिए कितना खाना बनना है और इसकी वजह से बहुत सारा खाना बच जाता है जिसे स्टोर करना संभव नहीं होता है और अंतत: सारा खाना कूड़े में जाता है। क्या वाकई थोड़ी सावधानी और प्लॉनिंग के साथ चलकर हम इन नुकसानों से बच नहीं सकते हैं?
इन्डियन इंस्टीट्यूट ऑफ  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर साल 23 करोड़ दाल, 12 करोड़ टन फल और 21 करोड़ टन सब्जियां वितरण प्रणाली में खामियों के चलते खराब हो जाती हैं। जाहिर है ऐसे आंकड़े कई बार हमें क्रोध से भर देते हैं, किन्तु सबसे बड़ा सवाल यही है कि व्यक्तिगत स्तर पर हम 'अन्न की बर्बादी' को किस प्रकार न्यूनतम कर सकते हैं? हमारे देश में अन्न को देवता माना जाता है और उसकी पूजा होती है, इसलिए खाने को बर्बाद करना एक तरह से पाप माना गया है। ये कोई एक दिन या एक घर की ही बात नहीं है, बल्कि धीरे-धीरे ये बुरी आदत लोगों के जीवन का हिस्सा-सी बन गयी है। संपन्न वर्ग तो खाने को बर्बाद करना अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझता है, जबकि देश में एक ओर जनता भूख से बेहाल भी है। चूंकि भारत एक ऐसा देश है जहाँ उत्सव, त्यौहार, शादी-ब्याह लगातार चलते ही रहते हैं और इन अवसरों पर भारी भीड़ भी इक_ा होती है, तो जाहिर सी बात है इन भीड़ के द्वारा खाना भी उतना ही बर्बाद किया जाता है। एक सर्वे के अनुसार अकेले बेंगलुरु में एक साल में होने वाली शादियों में 943 टन पका हुआ खाना बर्बाद कर दिया जाता है। बताते चलें कि इस खाने से लगभग 2.6 करोड़ लोगों को एक समय का सामान्य भारतीय खाना खिलाया जा सकता है। यह केवल एक शहर का आंकड़ा है, जबकि हमारे देश में 29 राज्य हैं। जाहिर है शादियां और फंक्शन्स तो हर राज्य के हर शहर में होती हैं और अब आप खुद ही अंदाजा लगा सकते हैं कि हर साल होने वाले अन्न की बर्बादी की असल मात्रा क्या होती होगी। ये तो हो गया भीड़ भरे माहौल का हिसाब, जबकि रोजमर्रा की बर्बादी भी कुछ कम नहीं है। जैसे ऑफिस के कैंटीन, स्कूल के लंचबॉक्स, हर घर के किचन में बचने वाला खाना, इसका तो कोई हिसाब ही नहीं है।
 भारत जैसे देश में जहां लाखों लोग भूखे पेट सोने को मजबूर हैं ऐसे देश में हम अगर इस तरह बेतहाशा खाने को बर्बाद कर रहे हैं तो फिर हमें सभ्य नागरिक कहलाने का क्या हक है? क्या हमें एक बार इस बात का विचार नहीं करना चाहिए कि लाखों भूखे लोगों को बमुश्किल एक वक्त की रोटी नसीब होती है या नहीं? खाने को लेकर चाहत बढ़ती जाना और उस चाहत का बेलगाम हो जाना एक तरह की बीमारी है, लेकिन वक्त रहते इसे नियंत्रित करना एक चुनौती है।
 कई लोगों का मन खाने के विभिन्न व्यंजनों की ओर भागता है, जबकि उनके पेट की अपनी एक सीमा है। जब कभी हम भाई अधिक खाने की जिद्द से अपनी थाली भरते थे तो मुझे याद है कि पिताजी टोकते हुए कहते थे कि 'शरीर अपनी आवश्यकतानुसार ही खुराक लेगा, जबकि ज्यादा मात्रा में खाना ठूंसने पर वह बाहर निकाल देगा। जाहिर है, यह भी एक तरह से खाने के साथ-साथ स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचाना भी है। अपने खाने-पीने की आदतों को कंट्रोल न करना 'ईटिंग डिसऑर्डर' की श्रेणी में आता है। हमें इसे जल्द से जल्द रोकना चाहिए। यही उचित है अपने स्वास्थ्य के लिए भी और राष्ट्रहित में भी, क्योंकि विशेषज्ञों के अनुसार साल 2028 तक भारत की अनुमानित आबादी 1.45 अरब हो जाएगी। ऐसे में अगर अभी से समस्या की रोकथाम पर हमारा ध्यान नहीं गया तो बहुत मुमकिन है कि भविष्य में खाने का संकट और बढ़ जाए। एक दिलचस्प आंकड़े की ओर अगर हम गौर करें तो जो भोजन हमारे देश में बर्बाद होता है, उसे उत्पन्न करने में 230 क्यूसेक पानी बर्बाद हो जाता है और इस पानी से दस करोड़ लोगों की प्यास बुझाई जा सकती है तो भोजन के अपव्यय से बर्बाद होने वाली राशि को बचाकर 5 करोड़ बच्चों की जिंदगियाँ संवारी जा सकती हैं।
 थोड़ा गौर से विचार करें तो, इस समस्या से निबटने के लिए हमें ज्यादा कुछ नहीं करना है, बल्कि अपनी रोजमर्रा की आदतों में थोड़ा सुधार करना है। जैसे, जब हम किसी पार्टी या समारोह में जाते हैं तो सिर्फ उतना ही खाना अपनी प्लेट में डालें जितना आप खा सकें। इसी तरह, पार्टी के आयोजक को भी चाहिए की अपनी पार्टी में एक बोर्ड लगा के विनम्रता से निवेदन करें कि खाने को बर्बाद न किया जाये। इसी क्रम में ऑफिस के कैंटीन या रेस्टोरेंट में उतना ही खाना आर्डर करें जितना आप खा सकें, कई बार दिखावे के चक्कर में हम ज्यादा खाना मंगाते हैं और बाद में छोड़ देते हैं, जो कूड़े में जाता है। घरेलू आदतों की बात करें तो, बच्चों के लंचबॉक्स में भी उतना ही खाना दें जितना बच्चा खा सकें और एक जिम्मेदार माता-पिता की तरह अपने बच्चों को खाने की बर्बादी के बारे में जागरूक करें। इसी तरह अपने किचन में भी उतना ही खाना पकाएं जितनी जरूरत हो और अगर खाना बच जाता है तो उसे फेंकने की बजाय अच्छे से फ्रिज में स्टोर करके अगले दिन इस्तेमाल कर लें। हालाँकि, बेहतर प्रबंधन तो यह होना चाहिए कि खाना बने ही उतना, जितनी आवश्यकता हो।
 इसी सन्दर्भ में, राजस्थान के एक गैर सरकारी संगठन (NGO) ने बहुत अच्छी पहल शुरू की है। यह है आयोजनों में बचे हुए खाने को प्रिजर्व करना और उस खाने को जरूरतमंदों को खिलाने का। ऐसे ही मुंबई में डिब्बेवालों ने रोटी बैंक की शुरुआत की है, जिसमें बचे हुए खाने को गरीब भूखे लोगों तक पहुँचाया जाता है। अब वक्त आ गया है कि मुंबई और राजस्थान की तर्ज पर हर शहर और कस्बे में 'रोटी बैंक' हो जिससे बचे खाने का उपयोग हो सके। इसी कड़ी में एक नायाब उदाहरण तब देखने को मिला, जब खाने की होने वाली बर्बादी को रोकने के लिए हाल ही में टाटा कन्सल्टेन्सी सर्विसेज (TCS
) ने एक अनोखा कदम उठाया और अपने ऑफिस स्टॉफ को एक बोर्ड पर लिख के रोज खाने की होने वाली बर्बादी के बारे में चेताया। मतलब, टीसीएस के कैंटीन में कितने किलो खाना रोज बर्बाद होता है और उससे कितने भूखे लोगों का पेट भरा जा सकता है, इस बारे में 'नोटिस बोर्ड' पर बताया जाने लगा।
जाहिर है, अगर ऐसे अभियानों को दूसरी जगहों, होटलों, कंपनियों में शुरू किया जाता है तो बड़े पैमाने पर जागरूकता नजर आ सकती है। कहना उचित रहेगा कि वक्त रहते अगर हम भी नहीं चेते तो आज जैसे पानी के लिए हाहाकार मचा है वैसे ही खाने को लेकर समस्या विकराल हो सकती है। ऐसे में बेहतर यही रहेगा कि 'भोजन और पानी' की बर्बादी हम कतई न करें, क्योंकि यहाँ सवाल सिर्फ हमारा ही नहीं, बल्कि हमारी अगली पीढिय़ों का भी है! भारत सरकार बेशक शादियों में व्यंजनों को सीमित करने पर 2011 की तरह चिंतित हो अथवा नहीं, किन्तु कम से कम हम तो भविष्य में अपने बच्चों और उनके बच्चों के लिए तो सजग हो जाएँ और इस बात पर दृढ़ प्रतिज्ञ हो जाएँ कि हमें किसी भी हाल में 'अन्न-जल' की बर्बादी नहीं करना है और न ही होने देना है।

पत्रकारों से खबर तो चाहिए पर उनकी कोई खबर नहीं लेता

डॉ.संजीव राय
दुनिया भर में जो पत्रकार, लोगों की खबर लेते और देते रहते हैं वो कब खुद खबर बन जाते हैं इसका पता नहीं चलता है। पत्रकारिता के परम्परगत रेडियो, प्रिंट और टीवी मीडिया से बाहर, ख़बरों के नए आयाम और माध्यम बने हैं। जैसे जैसे ख़बरों के माध्यम का विकास हो रहा है, ख़बरों का स्वरूप और पत्रकारिता के आयाम भी बदल रहे हैं। फटाफट खबरों और 24 घंटे के चैनल्स में कुछ एक्सक्लूसिव दे देने की होड़, इतनी बढ़ी हैं कि ख़बरों और विडियो फुटेज के संपादन से ही खबर का अर्थ और असर दोनों बदल जा रहा है।
पत्रकारों और पत्रकारिता में रूचि रखने वालों के लिए ब्लॉग, वेबसाइट, वेब पोर्टल, कम्युनिटी रेडियो, मोबाइल न्यूज़, एफएम, अख़बार, सामयिक और अनियतकालीन पत्रिका समूह के साथ-साथ आज विषय विशेष के भी चैनल्स और प्रकाशन उपलब्ध हैं।
कोई ज्योतिष की पत्रिका निकाल रहा है तो कोई एस्ट्रो फिजिक्स की, कोई यात्रा का चैनल चला रहा है तो कोई फैशन का। फिल्म, संगीत, फिटनेस, कृषि, खान-पान, स्वास्थ्य, अपराध, निवेश और रियलिटी शो के चैनल्स अलग-अलग भाषा में आ चुके हैं। धर्म आधारित चैनल्स के दर्शकों की संख्या बहुतायत में होने का परिणाम ये हुआ कि पिछले 10-15 वर्षों में, दुनिया के लगभग सभी धर्मों के अपने-अपने चैनल्स की बाढ़ आ गई। जैसे-जैसे दर्शक अपने पसंद के चैनल्स की ओर गए, जीवन में इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं के विज्ञापन भी उसी तजऱ् पर अलग-अलग चैनल्स और भाषा बदल कर उन तक पहुँच गए।
संचार क्रांति के आने और मोबाइल के प्रचार-प्रसार से ख़बरों का प्रकाश में आना आसान हो गया है। सोशल मीडिया के आने से एक अच्छी शुरुआत ये हुयी है कि ख़बरों को प्रसारित करने के अख़बार समूहों और चैनल्स के सीमित स्पेस के बीच आम लोगों को असीमित जगह मिली है। ख़बरें अब देश की सीमाओं की मोहताज नहीं रही हैं। ख़बरों की भरमार है। मोबाइल ने 'सिटीजन जर्नलिज्म' को बढ़ावा दिया है और आज मोबाइल रिकॉर्डिंग और घटना स्थल का फोटो, ख़बरों की दुनिया में महत्वपूर्ण दस्तावेज़ की तरह उपयोग में आ रहा है। लेकिन मीडिया की इस विकास यात्रा में, पत्रकारों के  जीवन में क्या बदलाव आया है?
दुनिया के स्तर पर सबके अधिकारों की बात करने वाले,पत्रकारों पर हमले की घटनाएं बढ़ी हैं। जर्नलिस्ट्स विदाउट बॉर्डर की रिपोर्ट के मुताबिक 2014 में 66 पत्रकार मारे गए थे और इस तरह पिछले एक दशक में मारे जाने वाले पत्रकारों की संख्या 700 से ऊपर बताई जाती है। 66 मारे गए पत्रकारों में, बड़ी संख्या सीरिया, उक्रेन, इराक़, लीबिया जैसे देशों में मारे गए नागरिक पत्रकार और मीडिया कर्मियों की थी। ब्लॉग ख़बरों और विचार अभिव्यक्ति के एक नए मॉडल के रूप में उभर रहा है। 2015-2016 में बांग्लादेश से कई ब्लॉगर्स की हत्या की खबरें आई हैं जो चिंताजनक हैं।
कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स के अनुसार, 70 प्रतिशत रिपोर्टर/कैमरा मैन, युद्ध और हिंसा की खबर कवर करने के दौरान मारे जाते हैं। साहसिक कार्य के दौरान हुयी हिंसा के शिकार ज्य़ादातर पत्रकार किसी एक अख़बार या चैनल्स के नहीं होते हैं। कभी 'स्ट्रिंगर' तो कभी छोटे समूह के लिए काम करने वाले पत्रकारों की मौत के बाद उनके परिवार की सामाजिक सुरक्षा एक बड़ी चुनौती बन जाती है। अपने देश में भी समय-समय पर पत्रकारों के उत्पीडऩ की ख़बरें आती रहती हैं, कई बार घटना की सत्यता आरोप-प्रत्यारोप में दब जाती है।
पत्रकार की नौकरी जहाँ असुरक्षा की भावना से घिरी रहती है वहीँ पूरी दुनिया के स्तर पर राजनीतिक और संवेदनशील मुद्दों की रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों की सुरक्षा एक बड़ा मुद्दा है। रिपोर्टिंग के दौरान मारे जाने के साथ साथ, सोशल मीडिया पर उनको गाली और धमकी आम होती जा रही है। महिला पत्रकारों का काम और कठिन हो रहा है। उनके साथ सोशल मीडिया पर गाली और चरित्र हनन की घटनाएं बढ़ रही हैं। पत्रकारिता के प्रमुख सिद्धांतों का पालन, जिसमें निष्पक्षता और सत्य उजागर करना प्रमुख सिद्धांत में से है, चुनौती बनता जा रहा है। ईमानदार पत्रकारिता, इस बदले समय में काफी चुनौतीपूर्ण लग रही है। ये भी सच है कि पत्रकारों में भी एक वर्ग, अपने राजनीतिक और आर्थिक हितों के लिए ख़बरों और अपने रसूख का इस्तेमाल करता है और जनता को गुमराह करता है।
क्या पत्रकारों की सुरक्षा और उनके अपने अधिकार की आवाज सुनी जाएगी? क्या महिला पत्रकारों को निर्भीक होकर अपना काम करने दिया जायेगा? अपहरण, हत्या, हिंसा का जोखिम लेकर दुनिया भर के पत्रकार तो ख़बरें हमारे बीच लाते हैं लेकिन उनकी खबर कौन लेगा?

कश्मीर में आत्महत्याओं के बढ़ते मामले चिंताजनक

सुरेश एस डुग्गर
धरती का स्वर्ग अर्थात कश्मीर अब आत्महत्याओं का स्वर्ग भी बन गया है। आतंकवाद से जूझ रहे सैनिकों द्वारा की जाने वाली आत्महत्याओं के आंकड़े ही अभी तक लोगों को चौंका रहे थे लेकिन नागरिकों द्वारा की जाने वाली आत्महत्याओं की संख्या अब ज्यादा बढ़ रही है। कश्मीरियों द्वारा की जाने वाली आत्महत्याओं के पीछे बेरोजगारी से लेकर घरेलू समस्याएं तक के कारण गिनाए जा सकते हैं।
अगर सरकारी आंकड़ों पर जाएं तो कश्मीर में आतंकवादी हिंसा का ग्राफ नीचे लुढ़कता जा रहा है। यह खुशी की बात कही जा सकती है। लेकिन चिंता का विषय कश्मीर में आत्महत्या के बढ़ते आंकड़े हैं। यह आत्महत्याएं अगर कश्मीर में तैनात सैनिकों की हैं तो कश्मीरी युवकों व युवतियों की भी हैं जो कई कारणों से आत्महत्या कर रहे हैं।
केंद्र सरकार की चिंता का विषय कश्मीरी नागरिकों द्वारा आत्महत्या करना है। उसकी चिंता का विषय सैनिकों द्वारा की जाने वाली आत्महत्याएं भी हैं जिनमें से 90 प्रतिशत आतंकवादग्रस्त कश्मीर में हुई हैं और इनमें लगातार हो रही बढ़ोत्तरी को रोकने के सभी प्रयास नाकाम ही साबित हो रहे हैं। कश्मीर विश्वविद्यालय के रिसर्च स्कॉलर शमशुन निसा की स्टडी कहती है कि 9 सालों में 1678 कश्मीरियों ने आत्महत्या का रास्ता चुना है। तो तीन सालों के दौरान 768 सैनिकों ने आत्महत्या कर ली। इनमें वे आंकड़े शामिल नहीं हैं जिन जवानों या अधिकारियों की मौतें अपने साथियों द्वारा की गई गोलीबारी से हुई हों।
स्टडी कहती है कि पिछले साल कश्मीर में नागरिकों के साथ-साथ सैनिकों की आत्महत्या का आंकड़ा चिंताजनक था। पिछले साल 300 कश्मीरियों ने आत्महत्या कर ली। इस साल अभी तक 37 सैनिकों ने भी आत्महत्या की है। जबकि आत्महत्या के प्रयासों का आंकड़ा आतंकवादी मौतों से कई गुणा अधिक है। कश्मीर के अस्पतालों के लिए भी अब स्थिति बड़ी गंभीर हो गई है। अभी तक आतंकवादी हमलों के मरीजों की देखभाल में व्यस्त रहने वाले अस्पताल आत्महत्या की कोशिश करने वालों की संख्या से जूझने को मजबूर हैं। श्री महाराजा हरी सिंह अस्पताल को ही लें, हर साल वह एक हजार से अधिक उन मरीजों का इलाज कर रहा है जो आत्महत्या की कोशिश में कुछ खा लेते हैं या फिर अपने आपको जख्मी कर लेते हैं।
 सरकारी मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर अरशद अहमद इनसे चिंतित हैं। उन्होंने एक स्टडी भी की है इन मामलों पर और यह स्टडी कहती है कि उनके अस्पताल के कैजुलीटी वार्ड में प्रतिदिन चार केसों को देखा जा रहा है और अन्य अस्पतालों में जाने वालों का आंकड़ा ही उपलब्ध नहीं है। उनके मुताबिक पिछले 3 सालों में ही आत्महत्याओं की संख्या में उछाल आया है। यह उछाल कितना है, डॉ.अहमद ऐसे 18830 मामलों के बारे में स्टडी कर चुके हैं इन तीन सालों में जिनमें अगर महिलाएं सबसे अधिक थीं तो 25 से 34 साल के आयु वर्ग के लोग अधिक थे। रिकार्ड के मुताबिक महिलाओं ने सबसे अधिक आत्महत्याएं की हैं और कोशिशें भी। इस साल जनवरी से लेकर अभी तक के पुलिस रिकार्ड के मुताबिक सिर्फ एक अस्पताल में ही 280 महिलाओं ने आत्महत्याओं की कोशिश की जिनमें से 67 की मौत हो गई। स्टडी और रिकार्ड कहता है कि सबसे अधिक जिन महिलाओं ने आत्महत्या की या कोशिश की उनकी आयु 17 से 25 वर्ष के बीच थी और उनका अनुपात पुरूषों के साथ 1 पुरूष और 7 महिलाओं का था।
 आत्महत्याओं की संख्या में उछाल आखिर क्यों आया। निचोड़ यही निकलता है कि 1989 से जारी आतंकवाद ने कश्मीर के हर घर को झकझोर कर रख दिया है। नतीजतन घरेलू मोर्चे पर नाकाम होने वालों के लिए जिन्दगी से छुटकारा पाने का इससे अधिक आसान रास्ता नहीं है। कश्मीर विश्वविद्यालय में सोशियोलोजी पढ़ाने वाले बशीर अहमद डाबला के मुताबिक, आतंकवादी हिंसा ने आग में घी का काम किया है क्योंकि उसने आम नागरिकों को तनाव के सिवाय कुछ नहीं दिया है। यही कारण है कि जिन्दगी से मुक्ति पाने वाले कुछ निगल कर इह लीला समाप्त कर रहे हैं और फांसी लगा लेना तथा अपने आपको जला लेने की भी हिम्मत भी कई दिखा रहे हैं।
 हालांकि सिर्फ आतंकवाद को ही दोषी नहीं ठहराया जा सकता है क्योंकि आठवीं कक्षा के छात्र रियाज की आत्महत्या के मामले ने कइयों की आंखें खोली हैं। मात्र मोबाइल पाने की इच्छा पूरी न होने पर फंदे पर झूल जाने वाले रियाज की मौत ने यह भी स्पष्ट किया है कि रहन-सहन के बदलते तौर तरीके भी कुंठाओं को जन्म दे रहे हैं।
रिसर्च स्कॉलर की स्टडी कहती है कि सैनिकों और कश्मीरी नागरिकों की आत्महत्याओं के पीछे का तात्कालिक कारण घरेलू ही है। हालांकि कश्मीरी नागरिक आतंकवादी माहौल से ऊब कर भी मौत को गले लगा रहे हैं। जबकि आंकड़ों के मुताबिक, अन्य मुस्लिम देशों की बनिस्बत कश्मीर जैसे मुस्लिम बहुल क्षेत्र में आत्महत्याएं नया रिकार्ड बना रही हैं।
 आंकड़ों के मुताबिक, मुस्लिम देशों में प्रतिवर्ष एक लाख के पीछे आत्महत्या की दर 0.1 से 0.2 है पर कश्मीर में यह दर 15.2 है जो सभी के लिए चिंता का विषय बन गई है। इसमें चिंता का एक अन्य पहलू यह है कि कश्मीरी नागरिक ही नहीं बल्कि कश्मीर में तैनात सैनिक भी आत्महत्या के मामलों में नया रिकार्ड बना कर सबको चिंता में डाले हुए हैं। मनोचिकित्सक डॉ.हमीदुल्ला शाह कहते हैं कि कश्मीरी कई मामलों के कारण ऐसा कदम उठा रहे हैं और आतंकवाद ने इसमें सिर्फ बढ़ोत्तरी की है। वह कहते हैं कि असल में मानवाधिकार हनन के मामलों ने भी कश्मीरियों की सहनशक्ति के स्तर को कम कर दिया है जो आत्महत्या के रूप में सामने आ रहा है। उनके मुताबिक आतंकवादी हिंसा के माहौल में मनोवैज्ञानिक और शारीरिक विकास रूक जाने के कारण आदमी डिप्रेशन में चला जाता है। हालांकि वे कहते थे कि आतंकवादी हिंसा सीधे तौर पर कश्मीर में बढ़ती आत्महत्या की प्रवृत्ति के लिए जिम्मेदार नहीं बल्कि उसके द्वारा पैदा होने वाले हालात ही इसके लिए जिम्मेदार ठहराए जा सकते हैं।
 और यह हालात क्या हैं, स्टडी स्पष्ट करती है जिसमें प्यार में नाकामी, वैवाहिक जीवन में तनाव और छात्रों द्वारा अपने अभिभावकों की आकांक्षाओं पर खरा नहीं उतरना भी है। ऐसे कारणों से ही रशीद बट अपने दो बच्चों को गंवा चुका है। उसकी 18 वर्षीय बेटी को आतंकवाद नहीं बल्कि सुसाइड का दानव लील गया। अपनी मां से किसी मुद्दे पर हुए झगड़े का परिणाम था कि उसने जेहलम में कूद कर जान दे दी और तीन दिनों के बाद जब उसका शव मिला तो उसका 22 वर्षीय भाई नूर बट इस सदमे को सहन नहीं कर पाया जिसने जहर निगल कर जान दे दी।
डॉक्टरों की स्टडी कहती है कि सोशियो-इकोनोमी कारण भी आत्महत्याओं के लिए जिम्मेदार है। इस कारण मनोचिकित्सकों से इलाज करवाने वालों की संख्या में जबरदस्त बाढ़ आ गई है। वर्ष 1989 में आतंकवाद की शुरूआत से पहले मनोचिकित्सकों को दिखाने वालों की संख्या प्रतिवर्ष 1700-1800 के बीच थी जिसमें अब 35 गुणा का इजाफा हुआ है। वैसे यह एक सच्चाई है कि कश्मीर में आत्महत्या की दर सारे देश में सबसे कम उस समय थी जब आतंकवाद नहीं था।
कश्मीरी डॉक्टर आत्महत्याओं के मामलों को तीन हिस्सों में बांटते हैं। सुसाइड, पैरा सुसाइड और अपने आपको क्षति पहुंचाना। मतलब आत्महत्या कर लेने वाले, कोशिश करने वाले और इस कोशिश में अपने आपको क्षति पहुंचाने वाले। लेकिन इतना जरूर है कि आत्महत्याओं पर होने वाले सभी सर्वेक्षण यह रहस्योदघाटन जरूर करते हैं कि आत्महत्या करने या कोशिश करने वालों में से ५० प्रतिशत कभी भी तनाव से मुक्ति पाने की खातिर मनोचिकित्सक से नहीं मिले। मनोचिकित्सक ही नहीं बल्कि समस्या के हल की खातिर वे कभी किसी डॉक्टर से भी नहीं मिले और उन्होंने परिवार वालों के साथ इसके प्रति संदेह भी नहीं होने दिया कि वे इतना बड़ा कदम उठाने जा रहे हैं।
 जम्मू शहर में अब दरिया तवी और कश्मीर में दरिया जेहलम आत्महत्या के प्वाइंट जरूर बन गए हैं। कई लोगों को आत्महत्या करने की कोशिश करने के प्रयास में इन दरियाओं में कूदते हुए बचाया भी गया है। श्रीनगर के एसएसपी अहफद-उल-मुजतबा का कहना था कि बढ़ती आत्महत्याओं के लिए सामाजिक और तनाव पैदा करने वाली परिस्थितियां ही जिम्मेदार ठहराई जा सकती हैं। हालांकि जिन परिवारों के सदस्यों ने आत्महत्या का रास्ता अपनाया है वे अब किसी से बात करने को भी तैयार नहीं हैं। ऐसा भी नहीं है कि वे किसी से खौफजदा हों बल्कि इस्लाम में आत्महत्या करना गैर-इस्लामिक है और इसी कारण से प्रभावित परिवारों के लिए यह स्थिति पैदा हुई है।
 कश्मीर में बढ़ती आत्तहत्याओं से निजात पाने की खातिर अब मौलवियों और मुल्लाओं का भी सहारा लिया जा रहा है। मस्जिदों से इसके प्रति ऐलान किए जा रहे हैं लेकिन कामयाबी मिलती नजर नहीं आ रही। मौलवी शौकत अहमद शाह भी मानते हैं कि धार्मिक संगठनों की भी यह जिम्मेदारी बनती है कि वे लोगों को इस कुरीति के प्रति आगाह करें और ऐसा भयानक कदम उठाने से रोकें क्योंकि इस्लाम में इसकी इजाजत नहीं है।

श्री बलदेव जी मंदिर

जम्मू में धौंथली डक्की, स्थित ऐतिहासिक 'श्री बलदेव जी मंदिर' का निर्माण करीब 300 वर्ष पूर्व हुआ था। उल्लेखनीय है कि पूरे विश्व में श्री कृष्ण के बड़े भ्राता बलदेव
जी(बलराम जी) के कुछ मंदिरों में से एक यह है।

बड़ी चूक, जेडीए ने दी गलत जानकारी

दीपाक्षर टाइम्स संवाददाता
जम्मू। आम लोगों को आवास मुहैया कराने वाले जेडीए यानी जम्मू विकास प्राधिकरण को अभी तक यह मालूम नहीं है कि पाकिस्तान के कब्जे वाला जम्मू-कश्मीर, गिलगिट व बालटिस्तान पर भारतीय संसद का क्या फैसला है।
दरअसल जेडीए ने वर्ष 2032 के लिए ड्रॉफ्ट किए गए मास्टर प्लॉन में पाक के कब्जे वाले उक्त इलाकों पर उसका शासन लिखा है, न कि उसका उन इलाकों पर गैरकानूनी कब्जा, जो भारतीय संसद ने सर्वसम्मति से 22 फरवरी 1994 को पारित किया था। इस फैसले में साफतौर पर कहा गया कि पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर के अलावा गिलगिट व बालटिस्तान, जो अभिवाजित जम्मू-कश्मीर का हिस्सा है, लेकिन पाकिस्तान ने गैरकानूनी कब्जा कर रखा है। लेकिन, हैरत की बात है कि जेडीए के रिवाइजड मास्टर प्लॉन जम्मू-2032 के ड्रॉफ्ट की प्रस्तावना के प्रथम पृष्ठ की तीसरी पंक्ति में लिखा है कि जम्मू-कश्मीर भारत संघ का उत्तर का अहम राज्य है, जो हिमालय की पहाडिय़ों से सटा है। दरअसल पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर व गिलगिट तथा बालटिस्तान पर पाकिस्तान का शासन दिखाने का मामला तब खुला जब हाल ही में जम्मू के 2032 के मास्टर प्लॉन को लेकर यहां एक उच्चस्तरीय बैठक हुई। इसमें जेडीए के वायस चेयरमैन मुबारक सिंह के अलावा जम्मू के गांधीनगर क्षेत्र से विधायक एवं विधानसभा अध्यक्ष कविंद्र गुप्ता, विजयपुर से विधायक एवं उद्योग मंत्री चंद्र प्रकाश गंगा के अलावा भाजपा के एमएलसी रमेश अरोड़ा, जम्मू के मंडलायुक्त डॉ.पवन कोतवाल तथा जम्मू के उपायुक्त सिमरनदीप सिंह आदि उपस्थित थे। जम्मू मेट्रोपालिटन रीजन (जेएमआर) यानी ग्रेटर जम्मू को लेकर तैयार किए गए 2032 के इस मास्टर प्लॉन में हालांकि कई कमियां हैं, लेकिन पीओके तथा गिलगिट बालटिस्तान पर पाकिस्तान का शासन लिखे जाने वाले घोर आपत्तिजनक वाक्य पर भाजपा एमएलसी रमेश अरोड़ा की नजर गई। उन्होंने इसको लेकर इस अहम बैठक में सवाल खड़े किए। 'दीपाक्षर टाइम्स' से बात करते हुए एमएलसी रमेश अरोड़ा ने कहा कि उन्होंने जेडीए वाइस चेयरमैन को इस संबंध में एक पत्र लिखकर कड़ा विरोध किया है। इस पत्र की प्रतिलिपि उन्होंने उपमुख्यमंत्री डॉ.निर्मल कुमार को भी भेजी है।

सिर्फ कागजों पर मौजूद हैं आयुर्वेदिक, यूनानी कॉलेज

दीपाक्षर टाइम्स संवाददाता
जम्मू। तत्कालीन यूपीए-2 सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर  के लिए की गई आयुर्वेदिक और यूनानी कॉलेजों की घोषणा सिर्फ कागजों में ही मौजूद हैं, क्योंकि सात वर्ष गुजरने के बावजूद इस घोषणा को अमलीजामा पहनाने के लिए सेन्ट्रल कौंसिल ऑफ इंडियन मेडिसिन (सीसीआईएम) से मंजूरी का इंतजार है।
विभागीय सूत्रों के अनुसार तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री गुलाम नबी आजाद ने जम्मू-कश्मीर के लिए दो डिग्री कॉलेजों की घोषणा की थी। लगभग 58 करोड़ रुपये की लागत से जम्मू क्षेत्र के अखनूर में आयुर्वेदिक कॉलेज और कश्मीर के गांदरबल में यूनानी मेडिकल कॉलेज शुरू करने की घोषणा की गई थी। घोषणा के दो वर्ष बीत जाने के बाद राज्य सरकार ने दोनों कॉलेजों के भवनों का निर्माण कार्य शुरू करवाया और घोषणा की कि दोनों कॉलेज भवन का निर्माण कार्य वर्ष 2013-14 तक पूर्ण कर लिया जाएगा, लेकिन दिलचस्पी की बात है कि समय सीमा समाप्त हो जाने के दो वर्ष बाद भी निर्माण कार्य चल रहा है।
उसके बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने दावा किया कि दोनों व्यावसायिक कॉलेजों में बीएएमएस और बीयूएमएस डिग्री पाठ्यक्रम के पहले बैच 2014-15 के शैक्षणिक सत्र से शुरू कर दिए जाएंगे, लेकिन राज्य सरकार इनके पंजीकरण का मुद्दा केंद्र सरकार के समक्ष उठाने में नाकाम रही। उनका प्रशासन,भारत सरकार की सीसीआईएम के पास औपचारिकताएं,जो प्रत्येक वर्ष 1 अप्रैल से 30 अप्रैल तक के बीच कम समय अवधि में प्रस्तुत की जाती है, प्रस्तुत नहीं कर पाया।
अब 2016 में विभाग ने पंजीकरण के लिए सीसीआईएम को औपचारिकताएं प्रस्तुत की है, लेकिन केंद्र सरकार द्वारा अभी तक अनुमति नहीं दी गई हैं। सूत्रों ने बताया कि हालांकि दोनों कॉलेजों के बुनियादी ढांचे को लगभग पूरा कर लिया गया है, लेकिन डिग्री कोर्स के शुरू करने की कुछ औपचारिकताओं और आवश्यकताओं को अभी भी विभाग द्वारा पूरा किया जा रहा है।
कॉलेजों को कई और औपचारिकताओं को, जिनमें विश्वविद्यालय से संबद्धता का अनुदान शामिल हैं, पूरा करना है, अधिकारियों ने गत वर्र्ष राज्य के दोनों राजकीय विश्वविद्यालयों के समक्ष मामला उठाया था और उम्मीद है कि इस वर्ष इसे स्वीकृति मिल जाएगी। कॉलेजों में पाठ्यक्रम शुरू करने के लिए, प्रोफेसरों, रिडरों, पैरा मेडिकल स्टॉफ आदि सहित लगभग 500 लोगों की जरूरत है, लेकिन राज्य सरकार ने अभी तक कर्मचारियों की संख्या को मंजूर नहीं किया है, इससे स्पष्ट है कि अगर केंद्र सरकार द्वारा अनुमति दी जाती है तो राज्य के दोनों कॉलेजों में  चालू शैक्षणिक सत्र से पाठ्यक्रम शुरू करना संभव नहीं होगा।

बुलंद हौसले से तय किया कामयाबी का सफर : गिरधारी चाट हाऊस

दीपाक्षर टाइम्स संवाददाता
जम्मू। 63 वर्ष पूर्व स्व.गिरधारी लाल ने बुलंद हौंसलों के साथ शहर के कच्ची छावनी इलाके में छाबा लगाकर कचालू चाट का छोटा-सा काम शुरू किया था। धीरे-धीरे उनकी जायकेदार चटपटी चाट की शोहरत पूरे शहर और आस-पास के इलाकों तक फैलने लगी। उनका मानना था कि कोई काम छोटा नहीं होता है, उसे बड़ा बनाने के लिए बस कड़ी मेहनत, ईमानदारी और हौंसले की जरूरत होती है। लगभग 20 वर्ष के बाद उन्होंने रेहड़ी पर स्वादिष्ट कचालू चाट की बिक्री शुरू की। इस दौरान उनकी चाट के प्रशंसकों की तादाद में भी बढ़ोतरी होती गई। वर्ष 1997 में उन्होंने कच्ची छावनी क्षेत्र में ही दीवाना मंदिर के पास अपनी दुकान 'गिरधारी चाट हाऊस' के नाम से शुरू की। उनके निधन के बाद उनके पुत्र राम प्रकाश ने काम संभाल लिया है। अब तो उनकी तीसरी पीढ़ी के रूप में उनका पौत्र रोहित भी काम में हाथ बटाता है। राम प्रकाश ने बताया कि पिताजी द्वारा बताए गए मसालों के मिश्रण का इस्तेमाल कर हम आज भी कचालू चाट का स्वाद बरकरार रखे हुए हैं। जिस प्रकार से वह ईमानदारी से शुद्ध मसालों का इस्तेमाल करते थे, वह भी उसी तरह से अपने ग्राहकों की कसौटी पर खरे उतरने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि उनकी दुकान पर मिर्च वाली कचालू चाट, बगैर मिर्च वाली कचालू चाट, केले की चाट, कुलचा और आइसक्रीम की बिक्री की जाती है। राज्य के विभिन्न हिस्सों में होने वाले विवाह समारोहों आदि में भी उनकी सुप्रसिद्ध कचालू चाट के स्टॉल लगाने की फरमाइश भी पूरी करने की कोशिश की जाती है। राम प्रकाश ने कहा कि पिताजी कहते थे कि अपने काम से प्रेम करो और ग्राहकों से नम्रता से बात करों, तो कामयाबी जरूर मिलेगी। यही वजह है कि दूर-दूर से आने वाले ग्राहक स्वादिष्ट कचालू चाट का स्वाद लेने के लिए उनकी दुकान पर  दस्तक देते हैं। उनकी दुकान पर जो एक बार आता है वह उनके नियमित ग्राहकों में शामिल हो जाता है।