शनिवार, मार्च 04, 2017

बुजुर्गों के साथ ही पर्यावरण और पक्षियों का भी ख्याल

राष्ट्रपति सम्मान प्राप्त, आजाद हिंद फौज के नायक श्री सुनीत सिंह ने दिया श्री दीपक अग्रवाल को आशीर्वाद

जम्मू। सांबा जिले की विजयपुर तहसील के सलमेरी गांव में 'पहल' संस्था द्वारा निर्मित बजुर्गों दा बेह्ड़ा को देखने तथा इस स्थान के निर्माण के पीछे जो मकसद है, उसे जानने की इच्छा को लेकर बुजुर्गों, महिलाओं, युवाओं तथा बच्चों के आने का क्रम लगातार बढ़ता जा रहा है और प्रतिदिन सैकड़ों की तादाद में लोग यहां आ रहे हैं। उल्लेखनीय है कि यह स्थान खास तौर पर बुजुर्गों के पुनर्वास केंद्र के रूप में मशहूर हो रहा है। इस बेह्ड़े के निर्माण के पीछे 'पहल' संस्था के चेयरमैन श्री दीपक अग्रवाल का जो लक्ष्य है कि समाज में अनदेखी के शिकार हो रहे बुजुर्गों की देखभाल पूरी जिम्मेदारी के साथ की जाए। श्री दीपक अग्रवाल जी के इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए 'पहल' संस्था जी-जान से जुटी हुई है। संस्था इस बेहड़े में पहुंच रहे बुजुर्गों की देखभाल, जरूरी चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने के साथ-साथ उनके जीवन के अनुभवों से भी रूबरू होती है ताकि आज की युवा पीढ़ी उनके अनुभवों का लाभ उठा पाए और उनसे जीवन में कुछ कर-गुजरने की प्रेरणा प्राप्त कर सके।
 इस सप्ताह यहां पहुंचे बुजुर्गों में प्रमुख हैं राया वगला गांव के 99 वर्षीय स्वतंत्रता सेनानी श्री सुनीत सिंह उर्फ नानक सिंह जी। राष्ट्रपति सम्मान से सम्मानित श्री सुनीत सिंह  उर्फ नानक सिंह जब बजुर्गों दे बेह्ड़े में पहुंचे तो यहां के शांतिमय माहौल को देखकर वे अतिप्रसन्न हुए तथा कहने लगे कि बुजुर्गों के लिए यह स्थान अति उत्तम है। उन्होंने कहा कि शहर के शोर-शराबे से दूर यह स्थान बुजुर्गों के लिए तपोस्थली बन जाएगा।
जब उनसे पूछा गया कि उनके अपने जीवन का क्या लक्ष्य रहा, तो उनका कहना था कि अपने देश के लिए जीना तथा अपने राष्ट्र के प्रति समर्पण का भाव रखना ही मेरे जीवन का लक्ष्य रहा है।
अपने जीवन का शतक पूरा करने की ओर अग्रसर राष्ट्रपति सम्मान से सम्मानित तथा नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा स्थापित आजाद हिन्द फौज के इस नायक ने अपने बारे में जानकारी देते हुए बताया कि 'मेरा जन्म 29 मार्च 1918 में राया वगला गांव में हुआ। पिता जमींदारी करते थे। उस समय अंग्रेज भारत पर काबिज थे और जम्मू-कश्मीर में राजा प्रताप सिंह का राज था। जब किशोरावस्था में पहुंचा तब तक भारत में स्वतंत्रता संग्राम का बिगुल बज चुका था तथा प्रताप सिंह के स्थान पर राजा हरी सिंह जम्मू-कश्मीर की बागडोर संभाल चुके थे। सुनीत सिंह राजपूती सेना में भर्ती होने का जुनून हावी था, उनका सपना था कि वे भी सेना में भर्ती होकर देशसेवा करें।10 जनवरी 1941 को 22 वर्ष की आयु में 5 पंजाब रेजीमेंट में भर्ती होकर उन्होंने अपने देश सेवा के सपने को साकार किया। यह समय द्वितीय विश्व युद्ध का था और पूरा विश्व अराजकता के दौर से गुजर रहा था। भारतीय सेना ब्रिटिश सरकार के अधीनस्थ इस विश्वयुद्ध की तैयारी में जुटी हुई थी तभी एक दिन हुकुम मिला कि हम 17000 भारतीय सेना के जवान समुद्री रास्ते के जरिये बर्मा, मलाया, सिंगापुर से होते हुए हांगकांग पहुंचें, जहां हमें अंग्रेजों की कमान में जापान के विरुद्ध लडऩा था। डोगरों में अपने देश के प्रति मर-मिटने का जनून उस समय चरम पर था और आज भी है।
 उन्होंने कहा कि देश प्रेम तथा देश की रक्षा करना हमें संस्कारों में मिला है।उन दिनों की याद करते हुए श्री सुनीत सिंह बताते हैं कि उस समय अंगे्रजी सरकार भारत में हिन्दुओं पर बड़े अत्याचार कर रही थी जिस कारण भारतीय सेना का अंग्रेजों के प्रति मोह भंग हो रहा था। ऐसे समय में एक ऐसे सेनानायक का पदार्पण हुआ जिसने स्वतंत्रता संग्राम का रुख ही पलट दिया और वह सेनानायक थे नेताजी सुभाष चंद्र बोस। सैकड़ों डोगरे सैनिक उस सेनानायक के साक्षी बने, उनमें से एक मैं भी था। नेताजी के एक ही ओजस्वी भाषण ने पूरी भारतीय सेना को आजाद हिंद फौज में परिवर्तित कर दिया। 'तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा' इस एक नारे के साथ ही सैनिकों ने अपने खून से हस्ताक्षर कर इन्कलाब जिन्दाबाद की वह इबारत लिख डाली जिसके आधार पर भारत ने स्वतंत्रता प्राप्त की।
जब सुनीत सिंह से पूछा गया कि उन्हें पहला वेतन कितना मिला था तो वह बोले मात्र पंद्रह रुपये, वह भी चांदी के सिक्के, जिन पर मलिका विक्टोरिया का चित्र अंकित था। उसके उपरांत वे कलकत्ता के रास्ते मुलतान पहुंचे। उस समय उनकी जेब में केवल रेलगाड़ी का टिकट और दो रुपये थे। लाहौर से होते हुए रेलगाड़ी जम्मू के विक्रम चौक पहुंची और पांच साल पांच महीने के उपरांत मैं वापिस अपने घर पहुंचा।
1972 में सरकार ने हमारी सुध ली और 200 रुपया पेंशन लगी जो अब बढ़कर 26000 रुपये हो गई है।
बुजुर्गों के बेड़े में पहुंचकर कैसा लग रहा था तो उनका कहना था कि बेबस, लाचार, बेसहारा बुजुर्गों के लिए यह घर जैसा होगा, ऐसा मेरा विश्वास है। मैं भी बार-बार यहा आउंगा और मेरी ओर से जो भी मदद होगी, मैं करूंगा।

श्री दीपक अग्रवाल
युवाओं के लिए संदेश देते हुए उन्होंने कहा कि युवा 'पहल' संस्था के चेयरमैन श्री दीपक अग्रवाल की तरह नेक काम करें तथा मेहनत करें, बेसहारा लोगों की सहायता करें और आने वाली नस्लों के लिए मिसाल बनें। 'पहल' संस्था के संस्थापक का बुजुर्गों की सेवा को समर्पित यह कदम बहुत ही सराहनीय है क्योंकि आज के घोर कलियुग में लोग रिश्ते नाते भूलकर केवल पैसे को महत्व दे रहे हैं, ऐसे समय में श्री दीपक अग्रवाल जी का बुजुर्गों की सेवार्थ निस्वार्थ भाव से किया जाने वाला यह काम निसंदेह लाजवाब है। उन्होंने कहा कि मेरी दुआएं तथा आशीर्वाद श्री दीपक अग्रवाल के साथ है कि वे इसी तरह समाजसेवा के नेक कार्य को अंजाम देते रहें।
बजुर्गों दे बेह्ड़े में ऐसी डिस्पेंसरी स्थापित करने की बात सुनकर वे गदगद हो गए जिसमें बुजुर्गों का मुफ्त चिकित्सा परीक्षण किया जाएगा तथा उन्हें दवाइयां उपलब्ध कराई जाएंगी। बेहड़े में लगाए गए नई-नई प्रजातियों के पौधों को देखकर उन्होंने कहा कि यह पर्यावरण के हिसाब से अति सराहनीय काम है क्योंकि आजकल लोग पेड़ों को काटकर उनके स्थान पर बिल्डिंग आदि बना रहे हैं तथा गांव व वन लगभग समाप्त होते जा रहे हैं, ऐसे में पर्यावरण को संरक्षण देने की 'पहल' की पहल से न सिर्फ पर्यावरण सुधारने में मदद मिलेगी बल्कि यह पक्षियों के लिए भी वरदान साबित होगा।
उल्लेखनीय है कि इस बेहड़े में तमाम तरह के पक्षियों को भी इक_ा किया गया है ताकि बुजुर्ग उन्हें देखकर अपना मन बहला सकें। साथ ही खुले आसमान में उडऩे वाले परिंदों के लिए भी दाना-पानी की व्यवस्था 'पहल' संस्था कर रही है। इस बारे में संस्था के चेयरमैन श्री दीपक अग्रवाल ने बताया कि खुले आसमान के नीचे इधर उधर भटकने वाले पक्षियों के लिए वे मेडीकेटेड पानी की व्यवस्था करने जा रहे हैं जिससे उन पक्षियों का भी स्वास्थ्य बरकरार रह सके, जिनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं है।




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