गुरुवार, मार्च 23, 2017

कहां लुप्त हो गई है लोगों की संवेदना : वेद राही

वेद राही

प्रख्यात साहित्यकार, डोगरी लेखक एवं फिल्म-धारावाहिक निर्देशक वेद राही समाज की वर्तमान स्थिति को देख बेहद व्यथित होकर कहते हैं कि आज लोगों की संवेदना कहां लुप्त हो गई है? प्रत्येक गुजरते दिन के साथ लोग संवेदनहीन क्यों होते जा रहे हैं? ऐसा लगता है मानो पूरा समाज ही संवेदनहीन हो गया है।
डुग्गर भूमि के बहूमूल्य रत्नों में से एक वेद राही का जन्म 22 मई 1933 को जम्मू-कश्मीर में पत्रकारिता के जनक श्री मुल्खराज सर्राफ एवं श्रीमति ज्ञान देवी के यहां हुआ। परिवार में साहित्यिक एवं पत्रकारिता का वातावरण होने के कारण अल्प आयु से ही उनका रूझान लेखन की ओर हो गया।
डोगरी, हिन्दी एवं उर्दू के सशक्त हस्ताक्षर राही ने 1955 से 1958 तक ऑल इंडिया रेडियों में कार्य किया। १९५८ से १९६१ तक उन्होंने जम्मू-कश्मीर सरकार के सूचना विभाग द्वारा प्रकाशित पत्रिका योजना के संपादक का कार्यभार संभाला। उन्होंने प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक एवं लेखक रामानंद सागर के सहायक के रूप में भी कई वर्ष तक कार्य किया। वह 2000-02 में फिल्म सेंसर बोर्ड के सदस्य रहे। वर्ष 2006-08 में वह फिल्म राईटर्स एसोसिएशन के मानद महासचिव भी रहे।
वेद राही को अपनी मातृ भाषा डोगरी से अपार स्नेह है। पिछले कुछ वर्षों से तो वह सिर्फ डोगरी में ही लिख रहे हैं। अपनी अनवरत जारी साहित्य साधना में वेद राही ने बहुत-सी कृतियों का सृजन किया हैं। उनके द्वारा रचित एवं प्रकाशित पुस्तकों की एक लंबी श्रृंख्ला है। उन्होंने अपने रचनात्मक लेखन से साहित्य में विशिष्ट योगदान दिया है।
उनके डोगरी में तीन लघु कथा संग्रह-काले हाथ (1958),आले (1982) एवं क्रास फाइरिंग (2002), डोगरी में सात उपन्यास- हद, बेदी ते पटट्न (1960),दर्दद(1972), त्रुटी दी डोर(1978),गर्भजोन(1992), लाल देद(2007), मंसूर ते शकिला दी दास्तां-ए-इश्क(2011) एवं अंनत(2015), दो काव्य संग्रह- चुप्प रहिए प्रार्थना कर(2003) एवं बट्टोतार(2014), नाटय कथा- धरां दे अथरू (1959),  निबंध संग्रह सोच (2012), आत्मकथा- कृष्णा कुमारी (2011), साहित्य अकादमी के लिए- डोगरी दी नमींयां कहानियां (1996), वेद पाल दीप-जीवन, साहित्य में योगदान एवं कार्य (2005) एवं दीनू भाई पंत की कविताएं (2006) प्रकाशित हो चुके हैं।
वर्ष २००८ के अमरनाथ भूमि आंदोलन पर आधारित राही की नयी कृति 'अनंत' उनके पूर्व लेखन से एकदम भिन्न है। इस उपन्यास से पूर्व आज तक किसी लेखक ने जम्मू संभाग से गत ६ दशकों से हो रहे भेदभाव को लेकर इतनी मुखरता एवं निडरता से नहीं लिखा है। लेखक ने अपनी साहित्य साधना में पहली बार किसी राजनैतिक मुद्दे पर अपनी लेखनी चलाई है।
वेद राही ने हिन्दी में तीन लघु कथा संग्रह-सीमा के पत्थर (1962), टुटे वृक्ष, नई पौध (1965) एवं दरार (1971) तथा दो उपन्यास-अंधी सुरंग (1998) एवं लाल देद (2008) का सृजन किया है।
उन्होंने उर्दू भाषा में एक लघु कथा संग्रह कब लौटेंगे लोग (1993), दो उपन्यास- अंधी सुरंग (2005) एवं लाल देद (2010), एक काव्य संग्रह- शरूर -ओ-जुनून (1961), एक आलोचनात्मक संकलन- जगदीयां ज्योतां (1957) एवं एक नाटय पटकथा- रात और तूफान (1957) का सृजन किया।
उन्होंने जब फिल्मी दुनिया की ओर रूख किया तो वहां भी अपना एक अलग मुकाम बनाया। उन्होंने दरार (1972),प्रेम पर्वत (1973), काली घटा (1981), नादानियां (1983) एवं वीर सावरकर (2002) जैसी फिल्मों का लेखन एवं निर्देशन किया। उन्होंने पवित्र पापी, पराया धन, यह रात फिर ना आएगी, पहचान, बेञईमान, सन्यासी, आप आए बहार आई, आप बीती, कहीं दिन कहीं रात, कठपुतली, ऊंचे लोग, चरस, मोम की गुडिय़ा जैसी बहुत-सी फिल्मों का पटकथा लेखन भी किया है। राही ने दर्जनों लघु एवं डाक्यूमेंटरी फिल्मों एवं टीवी सिरियलों का लेखन एवं निर्देशन भी किया है।
एक साक्षात्कार में वरिष्ठ साहित्यकार ने कहा कि लोगों को अपने इतिहास के बारे में मालूम होना चाहिए। अपने नये डोगरी उपन्यास 'अनंत' की चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि यह उपन्यास मैने मुंबई में बैठ कर लिखा है। मुझे इस उपन्यास को लिखने की प्रेरणा श्री अमरनाथ भूमि आंदोलन के दौरान 23 जुलाई 2008 को आत्महत्या करने वाले कुलदीप कुमार वर्मा से मिली। मैंने अनंत में कुलदीप के जज्बे की कहानी लिखी की है।उन्होंने कहा कि डुग्गर भूमि में राणा दलपत, बुआ भागा जैसे अनेक व्यक्तित्व हुए जिन्होंने अपने राज्य और आम जनता के लिए अपने प्राणों का सहर्ष बलिदान कर दिया। जब वे लोग स्वयं का बलिदान कर सकते हैं, तो हम क्यों नहीं कर सकते? हम क्यों नहीं अपनी संतानों के लिए ऐसे उदाहरण प्रस्तुत कर सकते? मैं चाहता हूं कि आज के युवा अपनी विरासत को सहेज कर रखे।
अपनी भविष्य की गतिविधियों की जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि वह अपने बड़े भाई प्रसिद्ध पत्रकार एवं डुग्गर प्रदेश के प्रथम समाचार पत्र रणबीर के संपादक 94 वर्षीय ओम प्रकाश सर्राफ के जीवन एवं कार्यों पर एक डाक्यूमेंटरी का निर्माण कर रहे हैं।
वेद राही ने कहा कि डोगरी का भविष्य काफी उज्जवल दिखाई दे रहा है। कई अच्छे लेखक उभर कर सामने आ रहे हैं। डोगरी काव्य में भी नये रूझान आ रहे हैं। इन लेखकों का कार्य देखकर लगता है कि डोगरी आगे बढ़ रही है। उन्होंने कहा कि रास्ता सही होना चाहिए मंजिल मिल ही जाती है।

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