शनिवार, मार्च 04, 2017

बुजुर्गों के स्वास्थ्य के लिए डिस्पेंसरी स्थापित की जा रही है



जम्मू। हाल ही में आई एक रिपोर्ट बताती है कि देश के दो-तिहाई बुजुर्ग तिरस्कृत जीवन जीने को विवश हैं। एक सामाजिक-स्वैच्छिक संगठन द्वारा किए गए सर्वेक्षण के दौरान करीब पांच हजार बुजुर्गों से बातचीत की गई, जिसमें यह निष्कर्ष निकलकर सामने आया कि करीब 65 फीसदी बुजुर्ग परिवार के तिरस्कार के शिकार हैं। 54.1 फीसदी बुजुर्गों को अपने घर में अभद्रता का सामना करना पड़ रहा है। तकरीबन 25.3 फीसदी बुजुर्ग अपने परिवारजनों के हाथों विभिन्न तरीकों से शोषित हैं। कुल 89.7 फीसदी बुजुर्गों का मानना था कि परिवार के दुव्र्यवहार के पीछे आर्थिक कारण ज्यादा होते हैं। हालत यहां तक पहुंच चुकी है परिवार के युवा सदस्य वृद्धों को बोझ समझते हैं। सामाजिक संस्था 'पहल' की पहल से अब बुजुर्गों को इन समस्याओं का सामना करने को विवश नहीं होना पड़ेगा। 'पहल' सामाजिक संस्था के चेयरमैन दीपक अग्रवाल ने बताया कि पिछले दिनों जारी संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में प्रत्येक पांच में से एक बुजुर्ग अकेले या अपनी पत्नी के साथ जीवन व्यतीत कर रहा है, यानी वह परिवार नामक संस्था से अलग रहने को विवश है। अधिकतर बुजुर्ग डिप्रेशन, आर्थराइटिस, डायबिटीज एवं आंख संबंधी बीमारियों से ग्रस्त हैं और महीने में औसतन 11 दिन बीमार रहते हैं। सबसे ज्यादा परेशानी उन बुजुर्गों को होती है, जिनके पास आय का कोई स्रोत नहीं है।

हमारे बुजुर्ग सिर्फ अकेलेपन के शिकार नहीं हैं, बल्कि उन्हें भुखमरी से भी लडऩा पड़ रहा है। देश के लगभग 10 करोड़ बुजुर्गों में से पांच करोड़ से भी ज्यादा बुजुर्ग आए दिन भूखे पेट सोते हैं। देश की कुल आबादी का आठ फीसदी हिस्सा अपने जीवन की अंतिम वेला में सिर्फ भूख नहीं, बल्कि कई तरह की समस्याओं का शिकार है।
बुजुर्गों की इन समस्याओं से आहत दीपक अग्रवाल ने 'पहल' सामाजिक संस्था के माध्यम से विजयपुर के सलमेरी गांव में 'बजुर्गों दा बेहड़ा' नाम से उनके लिए बसेरा का बीड़ा उठाया है और यहां बुजुर्गों को मनोरंजन के अलावा उनकी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं की देखभाल भी की जाएगी।
श्री दीपक अग्रवाल ने बताया कि बुजुर्गों के स्वास्थ्य के लिए यहां एक डिस्पेंसरी भी स्थापित की जा रही है जहां बुजुर्गों का निशुल्क इलाज किया जाएगा और समय-समय पर उनके स्वास्थ्य की जांच के लिए निशुल्क शिविरों का भी आयोजन किया जाएगा।
श्री दीपक अग्रवाल ने बताया कि अपवादों को छोड़ दें, तो देश के अधिकांश बुजुर्ग जीवनभर दोनों हाथों से कमाने के बावजूद सफर के अंतिम चरण में कौड़ी-कौड़ी को मोहताज हैं। जिस संतान को माता-पिता खिला- पिलाकर पालते-पोसते हैं, वही जीवन की अंतिम अवस्था में उन्हें दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर कर देती है। बुजुर्गों की इस हालत को देखते हुए  ही उन्होंने उनकी सेवा का संकल्प लिया। उन्होंने हताशा जताते हुए कहा कि माता-पिता के प्रति उपेक्षा, बेकद्री का यह भाव शिक्षित एवं उच्च शिक्षित वर्ग में ज्यादा देखा जा रहा है। डॉक्टर, इंजीनियर, अफसर बनने के बाद वे यह भूल जाते हैं कि जो कामयाबी उन्होंने हासिल की है, उसके पीछे उनके माता-पिता और परिवार का कितना त्याग छिपा हुआ है। श्री दीपक अग्रवाल के नेतृत्व में 'पहलÓ द्वारा छेड़े गए इस आंदोलन से निश्चित रूप से अब बुजुर्ग तिरस्कृत जीवन जीवन व्यतीत करने को विवश नहीं रहेंगे और 'पहल' संस्था 'बजुर्गों दा बेह्ड़ा' में उनकी सभी सुख सुविधाओं का ख्याल रखेगी।

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