मंगलवार, मई 02, 2017

असाधारण साहस के प्रतीक प्रख्यात पत्रकार ओम प्रकाश सर्राफ

जम्मू-कश्मीर के प्रथम समाचार पत्र 'रणबीर' के पूर्व संपादक एवं प्रख्यात वरिष्ठ पत्रकार माननीय ओम प्रकाश सर्राफ

ओम प्रकाश सर्राफ
असाधारण साहस के प्रतीक, बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी, जम्मू-कश्मीर के प्रथम समाचार पत्र 'रणबीर' के पूर्व संपादक एवं प्रख्यात वरिष्ठ पत्रकार माननीय ओम प्रकाश सर्राफ ने अपने अनुकरणीय और घटनापूर्ण जीवन के 95 वर्ष 3 मई 2017 को पूर्ण किए। उनका संपूर्ण जीवन सादा जीवन-उच्च विचार, निडरता एवं पत्रकारिता के प्रति प्रतिबद्धता को समर्पित रहा है। पत्रकारिता जगत में सर्राफ परिवार के सदस्यों ने पूरे विश्व में राज्य को गौरवांवित किया है।
निडर पत्रकारिता एवं नैतिकता उन्हें अपने पिताश्री जम्मू-कश्मीर में पत्रकारिता के जनक प्रख्यात पत्रकार मुल्कराज सर्राफ से विरासत में मिली। 3 मई 1922 को जन्में ओम सर्राफ का पत्रकारिता जीवन कम आयु में ही प्रारम्भ हो गया था।  16 वर्ष की अल्प आयु में ही वह 1947 से पूर्व उर्दू की सबसे लोकप्रिय बच्चों की पत्रिका 'रतन' के संपादक बने। इसके उपरांत उन्होंने जम्मू एवं कश्मीर के पहले समाचार पत्र 'रणबीर' का संपादन कार्य किया। उल्लेखनीय है कि 'रणबीर' ने राज्य में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को मजबूत करने में एक प्रमुख भूमिका निभाई थी।
उस दौर में पत्रकारिता की चुनौतियों के बारे में उन्होंने कहा कि उस समय राज्य में प्रेस एक्ट 1915 लागू होने के कारण किसी को समाचार पत्र प्रकाशित करने की अनुमति तक नहीं दी जाती थी। 'रणबीर' को इस एक्ट के तहत प्रकाशित होने वाले प्रथम समाचार पत्र का श्रेय प्राप्त है। 24 जून 1924 को 'रणबीर' का प्रथम अंक प्रकाशित हुआ। ओम सर्राफ के लिए यह दिन याद रखने का एक और प्रमुख कारण है कि इसी दिन उनके अनुज प्रख्यात पत्रकार सूरज सर्राफ का जन्म हुआ था।
सर्राफ ने बताया कि उस दौर में एक समाचार पत्र का प्रकाशन करना काफी परेशानियों से भरा था। जम्मू में प्रिटिंग प्रेस प्रारम्भ करने के लिए लाहौर से मशीनमैन लाया गया। फिर उसने यहां दो लोगों को अपने सहायक के रूप में प्रशिक्षित किया। उन्होंने कहा कि आज तो समाचार पत्र प्रकाशन में आधुनिक तकनीकों के कारण क्रांतिकारी बदलाव आया है। जबकि उस दौर में मानव श्रम के सहारे ही पहले अखबारी कागज तैयार किया जाता था और फिर बेहद मेहनत से समाचार पत्र का प्रकाशन संभव होता था। उन्होंने कहा कि उस समय 'रणबीर' का वार्षिक चंदा 4 रूपए, जबकि लोकिप्रिय बाल पत्रिका 'रतन' का वार्षिक चंदा 2 रूपए होता था। 
वर्तमान में अपनी वृद्धावस्था एवं अस्वस्थता  के बावजूद पत्रकारिता और समसामयिक मुद्दों पर वह जिस प्रकार से अपनी गूढ़ प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं वह इस बात का प्रमाण है कि वह अभी भी पत्रकारिता के प्रति प्रतिबद्ध है। राज्य में गांधीवादी विचारधारा के प्रचार-प्रसार करने वाले प्रमुख लोगों में से एक ओम सर्राफ ने अपने जीवन में गांधीवाद को अपनाकर एक आर्दश स्थापित किया है।
बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी ओम सर्राफ की लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता के प्रति प्रतिबद्धता अनुकरणीय है। वह उन जीवित दिग्गजों में से एक है जिन्होंने ना सिर्फ जम्मू-कश्मीर के इतिहास को करीब से देखा है, बल्कि वे स्वंय भी उसका एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहे हैं। उन्होंने सार्वजनिक सेवा के लिए एक माध्यम मानकर राजनीति को भी अपना कर्मक्षेत्र बनाया। वह इसमें इतने सफल रहे कि उनके राजनीतिक विरोधी भी अक्सर उनसे सलाह लेते थे। राज्य की जनता की नि:स्वार्थ सेवा करने के लिए उन्हें ७० के दशक में जम्मू-कश्मीर विधान परिषद के सदस्य के रूप में नामित किया गया था।  पत्रकारिता के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए उन्हें प्राप्त सम्मानों की एक लंबी सूची है। उनके पुत्र प्रख्यात पत्रकार पुष्प सर्राफ भी पत्रकारिता जगत में सर्राफ परिवार के ध्वजवाहक के रूप में कार्य कर रहे हैं।

विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर पहल परिवार के सदस्य प्रख्यात वरिष्ठ पत्रकार माननीय श्री ओम प्रकाश सर्राफ जी के 3 मई 2016 को अपने अनुकरणीय जीवन के 95 वर्ष पूर्ण करने पर सम्मानित करते हुए।

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