जम्मू।
किशोरों की सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों से अभिभावकों को सतर्क होना चाहिए, खासकर उनके लिए जो बड़ी ही आसानी से अपने बच्चों को गाड़ी दे देते हैं। ये बच्चे सड़क पर जिस लापरवाही से गाड़ी चलाते हैं, उससे उनके साथ-साथ आसपास वालों की जान भी खतरे में पड़ जाती है। इसके बावजूद आभिभावकों को ज्यादा फर्क पड़ता नजर नहीं आ रहा है।
इस मुद्दे पर जब कुछ अभिभावकों से बात की तो इसपर उनके अपने-अपने स्पष्टीकरण थे। अभिभावकों को लगता है कि गाड़ी दे देने से बच्चे ज्यादा सुरक्षित हो जाते हैं और उन्हें सुविधा होती है।
हैरानी की बात यह है कि ट्रैफिक पुलिस भी इस मसले को हल्के में ले रही है इसलिए, नाबालिगों की ड्राइविंग के कुछ ही मामले दर्ज हो पाते हैं क्योंकि यातायात कर्मी उन्हें बच्चा समझते हुए डांटकर छोड़ देते हैं, जो बच्चों के लिए हौसला आफजाई का ही काम करता है और बच्चे बेखौफ स्कूटी और बाइक सड़कों पर दौड़ाते रहते हैं, वह भी नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए यानी बिना हेलमेट और एक-एक वाहन पर तीन-तीन सवार होकर। यह नजारा अक्सर स्कूलों की छुट्टी होते समय आम होता है। विद्यार्थी एक दूसरे से रेस लगाते हुए वाहन दौड़ाते हैं और कई बार चोटग्रस्त भी हो जाते हैं।
बड़ी संख्या में अपने वाहन से स्कूल जाते बच्चे इन आंकड़ों का मखौल उड़ाते नजर आते हैं। अपने वाहन से स्कूल जाते बच्चों के बीच जब एक सर्वे किया तो पाया कि उनमें से ज्यादातर बच्चों के पास ड्राइविंग लाइसेंस नहीं थे। हद तो यह है कि कई को तो हेल्मेट पहनने की भी परवाह नहीं है। नाम न बताने की शर्त पर एक ट्रैफिक पुलिस ने बताया कि जब भी किसी कोई केस दर्ज होता है तो चालान काटकर ड्राइवर को छोड़ दिया जाता है। हालांकि पुलिस के पास अभिभावक के खिलाफ मामला दर्ज करने का अधिकार भी है। लेकिन यातायात कर्मी इतनी तह में जाना मुनासिब नहीं समझते और चालान काटकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेते हैं। इस मामले में कुछ स्कूलों का कहना है कि उन्होंने नाबालिगों की ड्राइविंग पर लगाम लगाने के लिए नियम बनाए हैं। स्कूल की पार्किंग में बिना लाइसेंस वाले बच्चों को अपने वाहन खड़ा करना मना है। ऐसे में ये लोग, मेन रोड पर वाहन खड़ा कर स्कूल आ जाते हैं। एक स्कूल के प्रिंसिपल ने बताया कि कभी-कभी बिना लाइसेंस वाले बच्चों को ट्रैफिक पुलिस के पास ले जाया जाता है ताकि उन्हें भय रहे कि यदि बिना लाइसेंस और बिना हेलमेट के वाहन चलाएंगे तो पुलिस पकड़ लेगी। लेकिन इसका कोई असर होता नहीं दिख रहा।
कहा जाता है कि देश का भविष्य इन्हीं युवाओं के कंधों पर टिका हुआ है और ये भविष्य की आशाएं हैं, लेकिन जिस तरह से अभिभावक इन बच्चों को 'नाजायज
छूट दे रहे हैं, वह न सिर्फ अपने परिवार के साथ बल्कि पूरे देश के साथ क्रूर मजाक कर रहे हैं। अब समय आ गया है कि अभिभावक स्वयं पहल करते हुए बच्चों को तभी स्कूटी-बाइक घर से बाहर ले जाने दें जब तसल्ली कर लें कि बच्चा लाइसेंस और हेलमेट पहनकर जा रहा हो। ऐसा न होने की स्थिति में वे उनके हाथों में गाड़ी की चाबी न दें।
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