साहित्य की बात की जाए और मौलाना हसरत मोहानी का नाम न आए तो बात पूरी नहीं होती। ये वही हसरत मोहानी हैं, जो आजादी की लड़ाई में शामिल रहने के लिए कई साल जेल में रहे। इनका कृष्ण प्रेम मथुरा की गलियों में आज भी एक मिसाल है। ये भगवान कृष्ण के ऐसे भक्त थे, जो जन्माष्टमी के समय कभी मथुरा आना नहीं भूलते थे।
मौलाना हसरत मोहानी का जन्म 1 जनवरी 1875 को उन्नाव जिले के मोहन गांव में हुआ था। उस समय देश में अंग्रेजों का शासन था। बेहद कम उम्र में ही उनका अंग्रेजों से विवाद हुआ और उन्हें जेल जाना पड़ा। उन्होंने शेरो-शायरी के माध्यम से देशवासियों को आजादी के लिए जागरुक करने की कोशिश की।
मौलाना हसरत मोहानी के बारे में मथुरा के ही रहने वाले वरिष्ठ प्रवक्ता और साहित्यकार डॉ. जहीर हसन ने बताया कि उनके जैसे लोग अगर देश में और होते तो शायद कभी धार्मिक भावनाएं आहत न होतीं।
उन्होंने बताया- मौलाना मोहानी का जीवन देशभक्ति के साथ कृष्ण प्रेम से सराबोर था। वो अक्सर मथुरा आते थे। यहां के प्राचीन और ऐतिहासिक मंदिरों में बैठकर कृष्ण लीला के प्रवचन सुनते थे।
उन्होंने कृष्ण पर कई रचनाएं भी की हैं। उनकी कृष्ण भक्ति की झलकियां कविताओं-गजलों में मिलती हैं। वो भगवान कृष्ण को 'हजरत कृष्ण अलैहिररहमा कहकर पुकारा करते थे। वे कृष्ण को रसूल या पैगंबर भी मानते थे। उनके शब्दों में कृष्ण प्रेम और सौंदर्य का मानव रूप साफ झलकता था। यही चीज उन्हें कृष्ण भक्ति के रंग में रंगती थी।
उन्होंने देश की आजादी में काफी योगदान किया था। क्रांतिकारियों में देश भक्ति के जज्बे को बढ़ाने वाला नारा इंकलाब जिंदाबाद हसरत मोहानी ने ही दिया था।
केवल 20 साल की उम्र में उन्होंने अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों के विरोध में अपनी पत्रिका "उर्दू-ए-मोअल्ला" में एक अनाम लेख प्रकाशित किया। सरकार ने जब लेखक का नाम जानने के लिए दबाव बनाया, तो उसकी जिम्मेदारी अपने सिर लेते हुए उन्होंने एक साल की जेल काटी।
फिल्म निकाह में गुलाम अली द्वारा गाई गई गजल 'चुपके-चुपके रात-दिन आंसू बहाना याद है
वो हर जन्माष्टमी को मथुरा आते थे। यहां के तमाम मंदिरों में घूम-घूम कर वो जो भी देखते उसे अपनी रचनाओं में पिरो देते थे। जन्माष्टमी में मथुरा-वृंदावन में होने वाले तमाम कार्यक्रमों में वो भजन भी गाते थे।
मथुरा नगर है आशिकी का, दम भर्ती है आरजू उसी का।
हर जर्रा-ए-सरजमीने गोकुल दारा है, जमाल ए दिलबरी का..।। जैसी तमाम रचनाएं उनके कृष्ण प्रेम का उदाहरण हैं।
हसरत के कविता संग्रह कुल्लीयात-ए-हसरत में ये सभी कविताएं और गजलें दर्ज हैं।
इस कृष्ण भक्त की मृत्यु 13 मई 1951 को हो गई थी। इसके बारे में भी यहां के लोगों का कहना है कि मरने से पहले वो मथुरा आए थे और भगवान कृष्ण के मंदिर में जाकर बोले थे कि ये मेरा अंतिम दर्शन है।
बहुत मशहूर हुई। ये गजल किसने लिखी थी इस बात की जानकारी बहुत कम लोगों को ही है।
मौलाना हसरत मोहानी का जन्म 1 जनवरी 1875 को उन्नाव जिले के मोहन गांव में हुआ था। उस समय देश में अंग्रेजों का शासन था। बेहद कम उम्र में ही उनका अंग्रेजों से विवाद हुआ और उन्हें जेल जाना पड़ा। उन्होंने शेरो-शायरी के माध्यम से देशवासियों को आजादी के लिए जागरुक करने की कोशिश की।
मौलाना हसरत मोहानी के बारे में मथुरा के ही रहने वाले वरिष्ठ प्रवक्ता और साहित्यकार डॉ. जहीर हसन ने बताया कि उनके जैसे लोग अगर देश में और होते तो शायद कभी धार्मिक भावनाएं आहत न होतीं।
उन्होंने बताया- मौलाना मोहानी का जीवन देशभक्ति के साथ कृष्ण प्रेम से सराबोर था। वो अक्सर मथुरा आते थे। यहां के प्राचीन और ऐतिहासिक मंदिरों में बैठकर कृष्ण लीला के प्रवचन सुनते थे।
उन्होंने कृष्ण पर कई रचनाएं भी की हैं। उनकी कृष्ण भक्ति की झलकियां कविताओं-गजलों में मिलती हैं। वो भगवान कृष्ण को 'हजरत कृष्ण अलैहिररहमा कहकर पुकारा करते थे। वे कृष्ण को रसूल या पैगंबर भी मानते थे। उनके शब्दों में कृष्ण प्रेम और सौंदर्य का मानव रूप साफ झलकता था। यही चीज उन्हें कृष्ण भक्ति के रंग में रंगती थी।
उन्होंने देश की आजादी में काफी योगदान किया था। क्रांतिकारियों में देश भक्ति के जज्बे को बढ़ाने वाला नारा इंकलाब जिंदाबाद हसरत मोहानी ने ही दिया था।
केवल 20 साल की उम्र में उन्होंने अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों के विरोध में अपनी पत्रिका "उर्दू-ए-मोअल्ला" में एक अनाम लेख प्रकाशित किया। सरकार ने जब लेखक का नाम जानने के लिए दबाव बनाया, तो उसकी जिम्मेदारी अपने सिर लेते हुए उन्होंने एक साल की जेल काटी।
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वो हर जन्माष्टमी को मथुरा आते थे। यहां के तमाम मंदिरों में घूम-घूम कर वो जो भी देखते उसे अपनी रचनाओं में पिरो देते थे। जन्माष्टमी में मथुरा-वृंदावन में होने वाले तमाम कार्यक्रमों में वो भजन भी गाते थे।
मथुरा नगर है आशिकी का, दम भर्ती है आरजू उसी का।
हर जर्रा-ए-सरजमीने गोकुल दारा है, जमाल ए दिलबरी का..।। जैसी तमाम रचनाएं उनके कृष्ण प्रेम का उदाहरण हैं।
हसरत के कविता संग्रह कुल्लीयात-ए-हसरत में ये सभी कविताएं और गजलें दर्ज हैं।
इस कृष्ण भक्त की मृत्यु 13 मई 1951 को हो गई थी। इसके बारे में भी यहां के लोगों का कहना है कि मरने से पहले वो मथुरा आए थे और भगवान कृष्ण के मंदिर में जाकर बोले थे कि ये मेरा अंतिम दर्शन है।
बहुत मशहूर हुई। ये गजल किसने लिखी थी इस बात की जानकारी बहुत कम लोगों को ही है।
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