सोमवार, जून 26, 2017

देवी सीता ने किया था कुंभकर्ण के पुत्र का वध

रामायण, महाभारत जैसे पौराणिक ग्रंथों में कई ऐसी कहानियां हैं जिनसे आज तक अवगत नहीं हो पाए हैं। ये ग्रंथ इतने व्यापक और विस्तृत हैं कि किसी एक व्यक्ति के लिए इन्हें पूर्ण रूप से जान पाना किसी के लिए भी संभव नहीं है। रामायण की बात करें तो यूं तो ये ग्रंथ श्रीराम के जीवन और रावण के वध पर आधारित है लेकिन इसके अंदर कई ऐसे छोटे-बड़े चरित्रों का समावेश भी हैं जो महत्वपूर्ण तो हैं लेकिन उनसे संबंधित कथा को ज्यादा लोग नहीं जानते।
 आज हम आपको रामायण की एक ऐसी ही कहानी या घटना से अवगत करवाने जा रहे हैं, जिनके विषय में निश्चित ही बहुत कम लोग जानते हैं। यह कहानी तब की है जब रावण का वध और वनवास की अवधि पूरी कर श्रीराम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ वापस अयोध्या लौट आए थे। श्रीराम अपने परिवार के साथ सभा में विराजमान होने की तैयारी कर रहे थे कि अचानक विभीषण अपनी  पत्नी और मंत्रियों के साथ दौड़े-दौड़े श्रीराम के पास पहुंचे और उनसे मदद की गुहार करने लगे। जब भगवान राम ने उनसे इस परेशानी का कारण पूछा तो विभीषण ने बाताया कि कुंभकर्ण का एक पुत्र है मूलकासुर, जिसका जन्म मूल नक्षत्र में हुआ था। इस कारण कुंभकर्ण उसे जंगल में छोड़ आया था, जहां मधुमक्खियों ने उसका पालन-पोषण किया। जब मूलकासुर को यह पता चला कि उसके पिता का वध हो गया है और मैंने (विभीषण) लंका का शासन संभाल लिया है तो उसने प्रण लिया कि वह पहले मेरी हत्या करेगा और बाद में अपने पिता के हत्यारे यानि श्रीराम का वध करेगा। विभीषण ने श्रीराम से कहा कि 'मूलकासुर ने आपका वध करने का इरादा पक्का कर लिया है और अब वह इसके लिए तैयारी कर रहा है। जब श्रीराम को मूलकासुर के इरादों का पता चला तो उन्होंने अपने पुत्रों और भाइयों समेत, वानर सेना को भी युद्ध के लिए तैयार किया और पुष्पक विमान पर बैठकर लंका की ओर चल पड़े। जब मूलकासुर को श्रीराम और उनकी सेना के आने की बात चली तो वो पहले ही युद्ध के इरादे से लंका के बाहर पहुंच गया। दोनों ओर की सेनाओं में करीब ७ दिनों तक भयंकर युद्ध चलता रहा लेकिन कोई परिणाम नहीं आया। फिर ब्रह्मा जी प्रकट हुए और उन्होंने श्रीराम से कहा कि उन्होंने मूलकासुर को एक स्त्री के हाथों मृत्यु प्राप्त करने का वरदान दिया है, इसलिए मूलकासुर की मृत्यु एक स्त्री द्वारा ही संभव है। ब्रह्मा जी ने भगवान राम को बताया कि एक बार ऋषि-मुनियों के बीच बैठे हुए मूलकासुर ने शोक व्यक्त करते हुए कहा था 'चंडी सीता की वजह से मेरे कुल का विनाश हुआ है। इस पर एक ऋषि ने क्रुद्ध होकर कहा 'जिस सीता को तू चंडी कह रहा है, उसी के हाथ से तेरा अंत निश्चित है। मुनी के ये कहने पर मूलकासुर ने उन्हें अपना आहार बन लिया। ब्रह्मा जी ने कहा कि अब मूलकासुर को परास्त करने का एक ही तरीका है और वह है सीता जी द्वारा उसका अंत। यह सुनते ही भगवान राम ने अपने दूत पवनपुत्र हनुमान को विनतानंदन गरुड़ के साथ सीता को सकुशल लाने के लिए भेज दिया। जैसे ही हनुमान जी और गरुड़, माता सीता के पास श्रीराम का संदेश लेकर पहुंचे तब उसी समय देवी सीता उनके साथ चलने के लिए तैयार हो गई। जैसे ही देवी सीता, अपने परमेश्वर भगवान राम से मिली उनकी आंखें भर आईं। वह बहुत लंबे समय से अपने पति के वियोग में समय व्यतीत कर रही थीं। भगवान राम को अपने सामने पाकर वह काई भावुक हो गईं। भगवान राम ने उन्हें मूलकासुर के पराक्रम और उसे मिले वरदान के विषय में बताया। यह सब सुनते ही माता सीता क्रोधित हो गईं और उनकी आवाज भीभयानक हो गई। सीता की देह से चंडी रूपी छाया निकलकर मूलकासुर का वध करने के लिए आगे बढऩे लगीं। छाया को अपने पास आता देखकर मूलकासुर ने उन्हें कहा 'जा, भाग जा यहां से, मैं स्त्रियों पर अपना पराक्रम नहीं दर्शाता। इसपर चंडी छाया ने मूलकासुर से कहा 'मैं तेरी मृत्यु चंडी हूं, तूने ब्राह्मणों का वध किया है, अब मैं तेरा वध करके उनका ऋण चुकाऊंगी। इतना कहकर सीता के रूप में मूलकासुर की मृत्यु चंडी ने उसपर पांच बाण चलाएं। दोनों ओर से बाणों की बौछार की जाने लगी। अंत में छाया ने 'चंडिकास्त्र चलाकर मूलकासुर का सिर उड़ा दिया। वह सीधा लंका के दरवाजे पर जा गिरा। राक्षस भाग खड़े हुए और सीता की छाया पुन: उनकी देह में समा गई। इस तरह सीता माता के हाथों हुआ था कुंभकर्ण के पुत्र मूलकासुर का वध संभव हुआ।

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