छत्रपाल
आजकल बेचारी स्थिति बड़ी उहापोह में है। उसे समझ नहीं आ रहा कि किस करवट बैठे। अगर बेकाबू होती है तो सरकार की भृकुटी तन जाती है और यदि काबू में रहे तो कुछ बेकाबू लोग हंगामा खडा कर देते हैं। स्थिति ना हुई गरीब की जोरू हो गई, दुखीराम की भैंस हो गई! देश को बंधक बना लिया जाता है, शहर की सड़कें पत्थरों से पट जाती है, व्यवस्था की गाड़ी ठप्प हो जाती है। किंतु सरकार की तरफ से भरोसा दिलाया जाता है, भाई लोगो, घबराएं नहीं स्थिति अभी तक काबू में है, जब नियंत्रण से बाहर होगी तब आपको सुनामी की पूर्वसूचना की भांति सूचित कर देंगे। हमारे रेडिया व टीवी किसलिए हैं। स्थिति सत्ता की कुर्सी की टांग से बंधी ऊंघती रहती है। आसपास की परिस्थितियाँ जानलेवा हो जाती हैं, जनता त्रस्त होकर दुहाई देने लगती है, चैनल हाय.तौबा मचाने लगते हैं, स्थिति प्रश्नसूचक दृष्टि से प्रशासन की ओर देखती है, प्रशासन डपट कर आदेश देता है .. चुपचाप पड़ी रहो। स्थिति वफादार कुत्ते की भांति टांगों में मुंह छुपाए पुन: ऊंघने लगती है। जनता के गले में झूठ के मनकों की माला डाल कर उसकी आंखों देखी को झुठलानेे का प्रयत्न किया जाता है। दूसरे क्षेत्रों में भी स्थिति नियंत्रण में है। सामान्य जनता और सरकार की ऐनकों के शीशे अलग-अलग हैं। जनता के शीशे मोटे हैं उसे ज्यादा दिखाई देता है, पर चमड़ी कोमल है। उसे कील चुभे तो दर्द से चिल्ला उठती है। वहीं सरकार की चमड़ी सख्त और नजर कमजोर है। राजेनता, नौकरशाह और उच्चाधिकारी को कई चीजें नहीं सताती हैं। महंगाई कमर तोड़ रही है। उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतें नियंत्रण से बाहर है। खाद्य तेलों की बढ़ती कीमतें गरीब को तल रही है। दालें दमन कर रही हैं। चावल के भाव आंतें चबा रहे हैं। दवाईयों के दाम दर्द बढ़ा रहे हैं। जमीन के रेट आसमान छू रहे हैं। महंगाई के घराट में जनता गेहंू और बाजरे की तरह पिस रही है। बढ़ती कीमतों का कोड़ा तड़ातड़ बरस रहा है किंतु तमाम अर्थशास्त्री आश्वासन दे रहे हैं कि यह विश्वव्यापी प्रक्रिया नियंत्रण में है। अपहरण की घटनाओं से समाचार पत्रों के पन्ने अटे पड़े हैं। अब अपहरणकत्र्ता लाखों में नहीं अपितु करोड़ों में फिरोती मांगने लगे हैं। इसे एक धंधे के रूप में फैलाया जा रहा है। निजी चैनलों वाले अब अपहरण के समाचारों को लीड न्यूज बनाकर प्रस्तुत करते हैं। अपहरण के नए-नए तरीके सिखाए जा रहे हैं। किन्तु आकुल होने की आवश्यकता नहीं। स्थिति अभी इतनी नहीं बिगड़ी कि हर घर से रोजाना किसी व्यक्ति का अपहरण हो। अभी तो बमुश्किल रोजाना दस-बीस अपहरण और सौ पचास बलात्कार हो रहे हैं। देश का अधिकांश नारी वर्ग सुरक्षित है। चंद शहर बलात्कार के लिए बदनाम अवश्य हुए हैं किन्तु शेष नब्बे प्रतिशत नगरों में आज भी महिलाएं शाम तक घूम सकती है। देश में अब सर्वशक्तिमान नारी को सरकार देवताओं की भांति पूज रही है। संसद और विधानसभाओं में तो मात्र तीस-पैंतीस प्रतिशत सदस्य अपराधों में संलिप्त बाहुबली हैं। हमारी संसद हमारे देश की भांति विश्व में सबसे बड़ी और महान तो है ही। इसलिए यह शोक का नहीं बल्कि हर्ष का विषय है। विपक्षी नेताओं की बातों पर विश्वास करें तो देश रसातल तक पहुंच चुका है। आतंकवाद और सामाजिक असुरक्षा की बात क्यों करते हैं। हमारा हाल अफगानिस्तान अथवा इराक जैसा नहीं है। हमारे यहां तीस-पैंतीस प्रतिशत राज्यों में ही आतंकवाद व नक्सलवाद का प्रकाप है। पूर्वोत्तर जलता है तो दक्षिण-पश्चिम शांत है। यदि कश्मीर आतंक का पर्याय बना हुआ है तो लद्दाख एकदम शांत है। माना कि घाटी में अनेक नेताओं का आतंकवादी गुटों के साथ उठना बैठना है, लेकिन पचास प्रतिशत से अधिक लोग लोभवश ही सही स्वयं को मुख्यधारा से जुड़ा हुआ मानते हैं। स्थिति इस हद तक नहीं बिगड़ी कि कश्मीर हाथ से निकल जाए। सब कुछ नियंत्रण में है। हां, भ्रष्टाचार की बात पर हमें अंतरराष्ट्रीय मंचों पर शर्मिंदगी उठानी पड़ती है। किंतु इतना तो है कि सरकारी डॉक्टर घूस लेकर ही सही, आप्रेशन तो कर देता है। पटवारी जमीन के रेट के हिसाब से प्रति मरला पांच-छह हजार रुपए वसूल कर फर्द तो बना देता है। शिक्षा बोर्ड का दयालु कर्मचारी पांच हजार लेकर पेपर तो लीक कर देता है, जिससे कई मजबूर उम्मीदवारों का बेड़ा पार तो हो जाता है। यह क्या कम है कि दस-बीस हजार रुपए देकर नकली स्टेट सब्जेक्ट प्रमाणपत्र प्राप्त किया जा सकता है। स्थिति जब तक काबू में है सब कुछ नियंत्रित है।
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