बालीवुड के सुपर स्टार सलमान खान ने इस बार अपनी मर्यादा और औकात लांघी हैं। सलमान उस स्तर के पढ़े-लिखे शख्स नहीं हैं कि भारत-पाक पर कोई बयान दे सकें। वह ऐसे बयानों के लिए अधिकृत पात्र भी नहीं हैं। सलमान कूटनीति, विदेश नीति, सैन्य रणनीति और पाकपरस्त आतंकवाद के बारे में कुछ भी नहीं जानते, तो फिर वह भारत-पाक के आपसी संवाद और जंग को खत्म करने का बयान कैसे दे सकते हैं? ये कोई मिर्च-मसाले वाले मुद्दे नहीं हैं कि कोई भी बयान दे दे। सलमान हिंदी फिल्मों के सुपर स्टार हैं, बेशक एक सेलिब्रिटी भी हैं, तो वह फिल्मों पर ही अपना ज्ञान बघारें। सेना,आतंकवाद और जंग सरीखे नाजुक मुद्दों पर बोलने का मतलब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं है। सेलिब्रिटी अपनी जुबान की बवासीर को सार्वजनिक तौर पर उगल नहीं सकता। शायद सलमान को इतनी जानकारी तो होगी कि किसी भी लोकतांत्रिक देश में निर्वाचित राजनीतिक नेतृत्व ही तमाम राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय फैसले लेता है। सेना भी उसी नेतृत्व के मातहत काम करती है, लिहाजा सरहदी मोर्चे पर सैनिक लड़ते हैं, न कि राजनीतिक नेतृत्वज्! यह दुनिया की सबसे बड़ी ताकतों-अमरीका और चीन-पर भी लागू होता है। सलमान का यह बयान अतिक्रमणवादी है कि जंग का ऐलान करने वालों को बंदूक थमाकर मोर्चे पर भेज दिया जाए, वे ही जंग लड़कर देखें, तो उनके हाथ-पैर कांपने लगेंगे। सवाल यह है कि जब सलमान को किसी माफिया या अंडरवर्ल्ड की धमकी मिलती है, तो वह सुरक्षा के घेरे में ही चलते हैं। सलमान फिल्मी परदे पर लड़ाई, मारपीट, स्टंट आदि का अभिनय ही कर सकते हैं। वह कभी सरहद पर जाकर गोलों, ग्रेनेड,रॉकेट और विस्फोटकों की आवाजें सुन लें, तो निश्चित तौर पर उनकी पैंट गीली हो जाएगी, कांपने की तो बात ही छोडि़ए। सवाल ज्यादा टेढ़ा भी नहीं है कि आखिर सलमान को पाकिस्तान इतना पसंद क्यों है? दरअसल पाकिस्तान हिंदी फिल्मों और खासकर सलमान की फिल्मों का एक बड़ा बाजार है। सलमान की फिल्में पाकिस्तान से ही करोड़ों रुपए कमाती रही हैं। चूंकि उनकी नई फिल्म 'ट्यूबलाइट 1962 के भारत-चीन युद्ध की पृष्ठभूमि पर बनाई गई है और इसी माह रिलीज होने वाली है। लिहाजा उसे पाकिस्तान के बाजार में भी प्रोमोट करने के लिए उन्होंने ऐसा बयान दिया हो! लेकिन इतने से ही मुद्दा छोड़ा नहीं जा सकता और न ही सलमान की बयानबाजी को नजरअंदाज किया जा सकता है, क्योंकि संदर्भ राष्ट्रीय सुरक्षा का है। दरअसल पाकिस्तान और उसके द्वारा समर्थित आतंकवाद ने हमारे देश में 1965,1971 वाले हालात पैदा कर दिए हैं। 1965 में तत्कालीन पाक राष्ट्रपति अयूब खां ने भी इतने ही व्यापक स्तर पर घुसपैठ कराई थी। बदले में भारतीय सेना ने पाक फौज को ऐसा ठोंका था कि करीब 3500 वर्ग किलोमीटर की जमीन पर भारत ने कब्जा कर लिया था। अंतत: गिड़गिड़ाते पाकिस्तान ने ताशकंद में समझौता किया और भारत ने दरियादिली दिखाते हुए कब्जाई ज़मीन वापस कर दी थी। क्या पाकिस्तान एक और 1965 के लिए तैयार है? बीती 13 जून को मात्र चार घंटे में ही आतंकियों ने सेना, सुरक्षा बल के शिविरों और पुलिस थानों पर लगातार 7 हमले किए। बेशक हमारे जवान घायल हुए हैं, लेकिन हमारे जवानों ने आतंकियों को मुंहतोड़ जवाब दिया है। इसके अलावा, दक्षिण कश्मीर में 16 हथियारबंद आतंकियों का वीडियो सामने आया है। उसमें हिजबुल के अलावा जैश, लश्कर-ए-तोएबा और अल उमर आदि आतंकी गुटों के सदस्य बताए गए हैं। उनके ही साथी आतंकियों ने हमले किए थे। यह पाकिस्तान की ही करतूतें हैं। वह लगातार युद्ध-विराम उल्लंघन कर रहा है। गोले दाग रहा है, ग्रेनेड और मोर्टार फेंक रहा है, कश्मीरी युवाओं को बरगला कर पत्थरबाजी करवा रहा है और कश्मीर घाटी में घुसपैठ करा रहा है। पाकिस्तान वार करता रहे और हम बातचीत की गुहार लगाते रहें, यह कैसे संभव है? ऐसी हकीकतें सलमान जैसों को नहीं पता होतीं। हालांकि पाकपरस्त आतंकवाद को लेकर चारों ओर से पाकिस्तान को तमाचे लगाए जा रहे हैं। हर अंतरराष्ट्रीय मंच पर उसकी फजीहत होती है, लेकिन पाकिस्तान है कि बाज ही नहीं आता। करीब तीन दशकों से पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ 'अघोषित जंग छेड़ी हुई है,जिसमें करीब 80,000 मासूम मारे जा चुके हैं। यदि पाकिस्तान से बातचीत करनी है, तो किसके साथ करें-हुकूमत या फौज..! इन पेचीदगियों को सलमान खान क्या जानें ? इस बार जंग हो या छाया-युद्ध हो, दो महीनों में ही कश्मीर को आतंकियों से 'आजाद करा लिया जाएगा। यह लक्ष्य प्रधानमंत्री मोदी ने सेना को दिया है और हमारे जांबाज जवान उसे हासिल करने में जुटे हैं। आतंकियों को घेरकर, मुठभेड़ों के जरिए ढेर किया जा रहा है। ऐसे माहौल में सलमान अपनी फिल्मों में ही मस्त रहें, तो राष्ट्रहित का काम होगा।
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