मंगलवार, जून 20, 2017

अडियल पड़ोसी के चूहे

छत्रपाल
                                                                                                         
     हमारा पड़ोसी सगे-सहोदरों के समान परपीड़क होकर शाश्वत पड़ोसी धर्म निभा रहा है। अपनी बिल के चूहे हमारे घर में छोड़ जाता है जो घर की अर्थव्यवस्था को कुतर-कुतर कर इसमें बड़े-बडे छेद बना रहे हैं। चूहों का अस्तित्व तो आजकल सर्वत्र है किन्तु पड़ोसी प्रेम से प्रेरित होकर हमारा पड़ोसी कुछ अतिरिक्त प्रेम प्रदर्शन कर रहा है। चूहों की घुसपैठ करवाने से पहले वह चूहों के दांत तेज करता है, उनमें जहर का पुट लगाता है फिर उन्हें नशे में डुबो कर मरने मारने के लिए तैयार करता है। पैतृत संपत्ति के लिए लडऩे वाले सहोदरों की भांति हमारा हमसाया इन चूहों के कई हरावल दस्ते    भेजकर घर की दीवारों को खोखला करने की फिराक में रहता है। उससे हमारे घर की संपन्नता देखी नहीं जाती। उसके पेट में निरंतर मरोड़ पड़ते रहते हैं। आंखों में धूलकण किरकिराते हैं। हमारे घर की चिमनी से उठते धुएं को देखकर उसे अपने घर का ठंडा चूल्हा और टूटा तंदूर काटने को दौड़ता है। हमारे घर के सदस्यों के सुर्ख चेहरे देखकर वह गाल पीट-पीट कर अपना चेहरा लाल करता रहता है। सुंदर वस्त्रों में सज्जित हमारे परिवाजनों को देखकर वह अपने लिबास की उधडऩ और चिंदियों को छिपाने की नाकाम कोशिश करता रहता है। पड़ोसी गृहस्वामी अपने अतृप्त और अभावग्रस्त सदस्यों के असंतोष से बचने के लिए उन्हें हर रोज अफीम की गोलियां खिलाकर उनके दिमाग को सुन्न कर देता है। उनकी विचार शक्ति को जुनूनी बनाने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ता। हमसाये के उस कुख्यात प्रेम का एकमात्र कारण है हमारा सुंदर उपवन जिसकी क्यारियों को नेस्तानबूद करने के लिए वह जहरीले कीड़ों की फौज हमारे आंगन में उतारता है तो कभी सुरंग बनाकर उपवन के वृक्षों की जड़ों को खोदने लगता है। उपवन के वृक्षों में बैठे कुछ परिंदों को भी पड़ोसी ने अफीम की गोलियां खिलाई हुई हैं जिसके नशे के वशीभूत यह  पड़ोसी बोली बोलते रहते हैं। यह कृत्घन पक्षी फल और चुग्गा तो इस उपवन का खाते हैं और टकटकी बांधे पड़ोस के घर से उठती खुशबु सूंघते रहते हैं। चूहे पकडऩे वाली अंतरराष्ट्रीय एजेंसी के समक्ष जब-जब उसकी पेशी होती है तो वह फाख्ता की तरह मायूस और जी हुजूरिया बन कर चूहों के विनाश में सहयोग देने का संकल्प दोहराता है। किंतु दूसरों का ध्यान हटते ही उसकी गतिविधियां पुन: प्रारंभ हो जाती हैं। पारंपरिक पड़ोसियों की भांति हमारा पड़ोसी भी महाजिद्दी है। अडिय़लपन में उसका कोई सानी नहीं। उसे उसके चूहों की करतूत पर जब तमाम पड़ोसियों और दूसरे मुहल्लेवालों ने लताड़ा तो वह फिर फरिश्ता-सूरत बनने का ढोंग करके अपने चूहों को पहचानने से मुकर गया। सभी प्रमाण प्रस्तुत करने पर भी वह ढीठ बना रहा। वह इतना शातिर है कि आईना दिखाने पर अपना चेहरा पहचानने से भी इनकार कर देता है। सुबह यदि कुछ कहता है तो शाम को उसे भुला देता है। उसकी कथनी करनी के विपरीत है। चूहों द्वारा फैलाए प्लेग पर नियंत्रण के नाम पर वह लम्बड़दार से करोड़ों-अरबों डकार चुका है। जो पैसा लम्बड़दार ने चूहों को पकडऩे के लिए दिया था उसे चूहों को तगड़ा करने और उन्हें प्लेग फैलाने के तमाम गुर सिखाने में इस्तेमाल किया। उसने ऐसी अनेक भूमिगत सुरंगे बना रखी हैं जहां इन चूहों को उसके चौकीदार प्रशिक्षण देते हैं। अब तो पड़ोसी का घर प्लेग-सदन के नाम से मुहल्ले की तमाम बिरादरी में मशहूर हो चुका है। जब से हमसाये ने पड़ोस में घर बसाया है, तभी से सच्चे पड़ोसियों की भांति न स्वयं चैन से कोई दिन काटा है, न हमें शांति से रहने दिया है। उसके परिवारजन रोटियां मांगते हैं तो वह उन्हें चक्कू-छुरियां देता है, कोई बच्चा या युवा टाफी या मीठी गोली मांगता है तो वह उन्हें हथगोले थमा देता है। उसने अपने बच्चों को खिलौने भी दिए तो तोपों-बंदूकों वाले ताकि वह अपने पड़ोसियों को अपनी नई नस्ल की ताकत का प्रमाण दे सके।
पड़ोसी की दृष्टि इस हद तक धुंधली हो चुकी है कि उसे अपने घर की गिरती दीवारों, जर्जर छतों और खिसकती जमीन नजर नहीं आती। उसकी नजदीक की नजर कमजोर है लेकिन हमारे घर की भव्यता और वैभव उसे दूर से ही दिख जाता है। जब भी उसके घर का कोई सदस्य हमारे यहां आता है तो यहां की संपन्नता और मुक्त वातावरण देखकर दंग रह जाता है। उसे यहां उस नक्शे से सब कुछ भिन्न नजर आता है जो उनके गृह स्वामियों ने सप्रयास उनके दिमाग में बिठाया होता है। चार दिन हमारे घर की सैर करके और सद्भावना की पोटलियां साथ लेकर ठंडी आहें भरते हुए मेहमान चले जाते हैं। हमारे परिवाजन उन्हें प्रेमपूर्वक विदा करते हैं। कहीं कोई कटुता नहीं रहती। एक ही जड़ों से जुड़े होने का एहसास बंधुत्व की भावना को बल देता है। उसे अपने परिवारजनों  से अधिक अपने चूहों का ध्यान है जो स्वयं उसके अपने पांव कुतर रहे हैं। किंतु पड़ोसी महाशय हमारा घर जलाने के लिए स्वयं अपने घर में आग लगाने से भी नहीं कतराता।

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