शुक्रवार, जून 23, 2017

अभी खरीदें या जीएसटी लागू होने का इंतजार करें...

जीएसटी का स्वागत करने को तैयार ग्राहक
जीएसटी का स्वागत करने को तैयार खड़े बाजारों में कुछ खास खरीदने की सोच रहा ग्राहक अब एक ही उलझन में है कि शॉपिंग अभी की जाए या जीएसटी लागू होने के बाद। सभी वस्तुओं और सेवाओं पर जीएसटी रेट तय होने के साथ ही उनकी कीमत बढऩे या घटने की अटकलें शुरू हो गई थीं, लेकिन अब जीएसटी कानून के दूसरे प्रावधानों के चलते एक साल पुराना स्टॉक बेच डालने की होड़ भी मची है। ऐसे में कई कंपनियां और रिटेलर ग्राहकों को भारी डिस्काउंट दे रहे हैं।
रेड-इंडस्ट्री के जानकारों और टैक्स एक्सपर्ट्स का कहना है कि जिन चीजों के दाम बढऩे वाले हैं, उन्हें तो खरीदना ही चाहिए, लेकिन जिनके दाम थोड़े घट सकते हैं या स्थिर रहेंगे, वहां अभी मिल रहे डिस्काउंट को चूकना नहीं चाहिए। इस डिस्काउंट का रेट से कोई संबंध नहीं है। एक साल पुराने माल को जीएसटी रिजीम में बेचने पर उनका इनपुट टैक्स क्रेडिट नहीं मिलेगा, जिससे काफी नुकसान होगा।
कुछ जानकारों का यह भी कहना है कि एक साल के भीतर खरीदे माल पर भी आगे डिस्काउंट का मौका मिल सकता है। क्लोजिंग स्टॉक पर इनपुट क्रेडिट तभी मिलेगा, जब वह छह महीने के भीतर बेच डाला जाए। अगर यह स्टॉक बचा तो आने वाले त्योहारों के मौके पर दोहरा डिस्काउंट देखने को मिल सकता है।
गोल्ड-जूलरी
फिलहाल सोने पर 1 पर्सेंट एक्साइज और 1 पर्सेंट वैट के साथ कुल 2 पर्सेंट टैक्स लगता है। जीएसटी में टैक्स रेट 3 पर्सेंट हो जाएगा, लेकिन गहने के मेकिंग चार्ज पर फिलहाल कोई टैक्स नहीं है और जीएसटी में 18 पर्सेंट लगेगा। एक्सपर्ट्स का कहना है कि जीएसटी में गहने महंगे होने तय हैं। सरकार भी फिजिकल गोल्ड का चलन कम करना चाहती है ऐसे में पॉलिसी प्रेशर से भी दाम बढ़ेंगे।
जरूरत का सोना या जूलरी अभी खरीद लेना बेहतर है। अगर अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने के दाम स्थिर मानें तो आगे गहने की कीमत घटने वाली नहीं है।
मोबाइल फोन
दक्षिणी राज्यों में वैट दरें 5 पर्सेंट हैं, जबकि ज्यादातर राज्यों में 12 पर्सेंट। जीएसटी के तहत अब देश भर में एक रेट होगा। इंपोर्टेड फोन के मुकाबले देसी फोन ज्यादा महंगे होंगे। ऑनलाइन रिटेलर्स इन्हें इन राज्यों से आउटसोर्स कर भारी डिस्काउंट दे रहे हैं। हालांकि, इनमें स्टॉक क्लियरेंस भी एक मसला है। एक साल से पुराने माल पर डीलर्स को इनपुट टैक्स क्रेडिट नहीं मिलेगा, इसलिए भी वे माल निकाल रहे हैं। मोबाइल फोन के दाम 5 पर्सेंट तक बढ़ सकते हैं।
इम्पोर्टेड फोन पर रेट घटने और देसी फोन पर सरकारी मदद के बावजूद या तो मोबाइल के दाम स्थिर रहेंगे या फिर मामूली इजाफा होगा। ऐसे में अगर कहीं 10 पर्सेंट से ज्यादा की छूट मिल रही है तो चूकना नहीं चाहिए।
गारमेंट
टेक्सटाइल्स पर पहली बार 5 पर्सेंट टैक्स के बावजूद आम आदमी की पोशाक महंगी नहीं होगी। 1000 रुपये से कम के कपड़ों पर जीएसटी की दर 5 पर्सेंट होगी, जबकि इससे ज्यादा पर 12 पर्सेंट। यानी बजट रेंज में गारमेंट के दाम थोड़े बहुत कम हो सकते हैं। क्लॉथ मैन्युफैक्चरर्स असोसिएशन ऑफ इंडिया के मुताबिक अगर कॉटन के दाम स्थिर मानकर चलें तो सिर्फ जीएसटी के आधार पर गारमेंट के दामों में बहुत ज्यादा उतार-चढ़ाव नहीं होगा।
जीएसटी ऐसे समय लागू होगा, जब देश में कॉटन की फसल तैयार है। अगले छह महीनों तक कच्चे माल के स्तर पर कोई महंगाई नहीं दिख रही। हड़बड़ी में खरीदने की जरूत नहीं, लेकिन कहीं भारी छूट मिल रही हो तो चूके नहीं।
कार-बाइक
अभी तक आम पैसेंजर कारों और दोपहिया वाहनों पर औसतन टैक्स 30 पर्सेंट से ज्यादा था, जो अब 28 पर्सेंट होगा। हालांकि, अलग-अलग सेगमेंट में दरों में अंतर के चलते ज्यादातर गाडिय़ां न्यूनतम स्लैब में आती थीं, जिन पर टैक्स का बोझ अब ज्यादा होगा। इससे कीमतों में 8-10 पर्सेंट बढ़ोतरी की उम्मीद की जा रही है। वहीं दूसरी ओर, लग्जरी और इम्पोर्टेड गाडिय़ों पर टैक्स का बोझ काफी कम हो जाएगा, जिससे इनकी कीमतों में ज्यादा कमी आएगी।
बहरहाल कई कार और बाइक कंपनियों ने जीएसटी से संभावित लाभों को अभी से अपने ग्राहकों तक पासऑन करना शुरू कर दिया है। अगर बड़ी छूट दिखे तो खरीद सकते हैं।
लैपटॉप
मौजूदा टैक्स रिजीम के मुकाबले ब्रांडेड लैपटॉप, डेस्कटॉप महंगे हो सकते हैं। असेंबल्ड कंप्यूटर पर और चपत लगेगी, लेकिन जीएसटी के आने से एक अच्छी बात यह होने वाली है कि ऑनलाइन और ऑफलाइन रिटेलरों के बीच कीमतों का भारी अंतर खत्म हो जाएगा। एक अनुमान के मुताबिक, लागत मूल्यों को स्थिर मानते हुए टैक्स रेट के आधार पर लैपटॉप-डेस्क टॉप के दाम 5 पर्सेंट तक बढ़ सकते हैं।
अगर खरीदने की प्लानिंग कर रहे हैं तो 1 जुलाई से पहले कर लें। मौजूदा डिस्काउंट में अच्छी डील मिले तो सोने पे सुहागा। यहां भी एक साल से पुरानी इनवेंटरी काफी हो सकती है।
टीवी, फ्रिज
फिलहाल टीवी, फ्रीज पर अलग-अलग राज्यों में कुल टैक्स 23 से 28 पर्सेंट लगता है, ऐसे में जीएसटी में इनके दाम थोड़े बहुत ऊपर ही जाएंगे। लेकिन दिल्ली जैसे राज्य में जहा एंट्री टैक्स या ऑक्ट्रॉय नहीं है और लोअर रेट लग रहा था, अब 28 पर्सेंट रेट महंगाई का ग्राफ थोड़ा और ऊपर ले जाएगा। हालांकि, कहीं भी जीएसटी के चलते कीमतें ज्यादा से ज्यादा 2-3 पर्सेंट ही बढऩी चाहिए।
एक्सपर्ट्स का कहना है कि अगर एक साल पुराने माल की क्लियरेंस सेल में बड़ी छूट नहीं मिल रही तो फेस्टिव सेल का इंतजार करना चाहिए, क्योंकि 1 जुलाई के बाद डीलर्स पर बाकी स्टॉक 6 महीने में निकालने का दवाब होगा।
फुटवेयर
500 रुपये से कम मूल्य के फुटवियर पर टैक्स का बोझ घटेगा, जबकि इससे ज्यादा मूल्य के चप्पल-जूतों पर जीएसटी की दर लगभग उतनी ही रहेगी, जितना वैट और एक्साइज मिलाकर लगता है। ऐसे में जहां सस्ते फुटवियर के दाम घटने चाहिए, वहीं अपर रेंज में सिर्फ टैक्स रेट के चलते कोई खास बदलाव नहीं होगा। रबर, प्लास्टिक और चमड़े की सप्लाई और दूसरे लागत मूल्यों को स्थिर मानकर चलें तो फुटवियर आने वाले दिनों में महंगे नहीं होने जा रहे।
सस्ते चप्पलों के दाम और घटेंगे, जूतों के लिए नई टैक्स रिजीम के दूसरे प्रभावों का इंतजार कर सकते हैं। स्टॉक क्लीयरेंस डिस्काउंट किफायती लगे तो खरीद लें।
फर्नीचर
लकड़ी से बने फर्नीचर पर जीएसटी का कोई खास असर नहीं होने जा रहा था, लेकिन प्लाईवुड के 28 पर्सेंट स्लैब में जाने से वो फर्नीचर जिसमें प्लाईवुड का इस्तेमाल होगा, अब पहले ज्यादा महंगा होगा। आयरन-स्टील और प्लास्टिक इनपुट वाले फर्नीचर पर दाम लकड़ी के मुकाबले कहीं ज्यादा होंगे। फर्नीचर में बहुत सा काम जॉब वर्क पर होता है। 10 से 20 लाख टर्नओवर वाले जॉब वर्कर अब सर्विस टैक्स से मुक्त होंगे, इससे मैन्युफैक्चरर्स को थोड़ी राहत मिलेगी।
लकड़ी, मेटल, प्लास्टिक पर जीएसटी स्लैब अलग होने के बाजवूद इनपुट क्रेडिट आसान होगा। इससे मैन्युफैक्चरर्स और डीलर्स पर टैक्स का बोझ उतना ज्यादा नहीं पड़ेगा। वे रेट कंपटिटिव रखने की कोशिश करेंगे।किचन अप्लायंस
स्टील यूटेंसिल्स और कटलरी से लेकर तमाम किचन अप्लायंसेज पर एक्साइज और वैट मिलाकर औसतन 18 पर्सेंट रेट था, जो नई टैक्स रिजीम में भी लगभग उतना ही रहेगा। लेकिन प्लास्टिक उत्पादों के 28 पर्सेंट स्लैब में जाने और कुछ मेटल इनपुट पर अब ज्यादा टैक्स के चलते किचनवेयर और अप्लायंसेज के दाम ऊपर जाने के ही आसार हैं। जानकारों का कहना है कि यह बढ़ोतरी टैक्स बोझ के चलते 3-4 पर्सेंट से ज्यादा नहीं होनी चाहिए।
पेरिशेबल आइटम नहीं होने के कारण कंपनियों और डीलर्स के पास बहुत सा माल एक साल से पुराना है, जिसे वे 1 जुलाई से पहले बेच देना चाहती हैं। डिस्काउंट पर शॉपिंग की जा सकती है।


0 टिप्पणियाँ :

एक टिप्पणी भेजें