सोमवार, जून 26, 2017

सियासत की सूई में जनता का धागा

छत्रपाल

राजनीति कृमियों की भांति राष्ट्रीय एवं सामाजिक जीवन की आंतों में रक्त और पोषक तत्व चूस-चूस कर मुटा रही है। राजनीतिक आढ़ती जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में परिव्याप्त है तथा राष्ट्र, राष्ट्रीयता एवं राष्ट्रवासियों को चूना लगा रहे हैं। राजनीति कल्पवृक्ष की भांति सर्वफलदायिनी, बहुबलधारिणी, रिपुदलवारिणी तथा नमामीतारणी है। यह वह चरागाह है जो सदैव शस्य-श्यामला, द्रुम्दलशोभित तथा कुसुमित रहती है। कोटि-कोटि कंठ इसका यशोगान करते हैं। यह जिस पर फलित होती है उसकी सात पीढियों तार देती है। लक्ष्मी इसकी दासी है तथा सरस्वती इसके आगे पानी भरती है। राजनीतिज्ञ जो करे कम है। जल, थल, नभ, अग्नि, वायु, अन्न, ऊर्जा-प्रत्येक तत्व पर राजनीतिज्ञों का एक छत्र राज है। वहीं विश्व की महान शक्तियों में निहित असली नियामक शक्ति है। वह स्वयं खेल का मैदान है, खिलाड़ी है, खेल है। खेल भावना है तथा रैफरी है। वह किचन में तिलचट्टों की तरह, चिकन में बर्ड फ्लू की भांति, मच्छर में डेंगू और चिकनगुनिया सदृश्य तथा मक्षिका में हैजे की तरह छिपा है। वह इतना सूक्ष्म है कि जनता के दिल और दिमाग में कीड़े की तरह घुस कर उसे अपना मुरीद बना लेता है। उसके लिए कोई भी क्षेत्र प्रवेश हेतु वर्जित नहीं है। राजनीतिज्ञ की बुद्धि में हर प्रकार की बुद्धि समाविष्ट होती है। वह जीवाणु से लेकर परमाणु तक, किसी भी विषय पर धारा प्रवाह बोल सकता है। वह किसी महापुरुष की जयंती पर भी उन्हीं शब्दों का मंत्र फूंकता है जो उसने दो रोज पहले किसी अन्य महापुरुष की पुण्यतिथि पर उच्चारित किए होते हैं। उसका अनुभव उसे कहीं भी गिरने नहीं देता। लाट की तरह सदैव खड़ा रहता है। गले में दर्द और आंखों में अथाह वेदन पैदा करके वह महापुरुष को उसकी जयंती अथवा पुण्यतिथि पर अपनी आजमाई हुई शैली में श्रद्धांजलि अर्पित करता है जो कभी निष्फल नहीं जाती। वह कहता है-महापुरुष इतिहास के ऐसे दौर में अवतरित हुए जब समाज में चहुं और अंधकार का साम्राज्य था। इंसान ही इंसान को मार रहा था। ऐसे विकट समय में जन्म लेकर महापुरुष ने समाज को राह दिखाई तथा प्रेम, सौहार्द, भातृभव एवं शांति तथा अहिंसा का पाठ पढ़ाया। चाहे राजनीतिज्ञ को महापुरुष के नाम के अतिरिक्त उनके विषय में किंचित जानकारी न हो, तो भी उसके अमूल्य वचनामृत का रसपान करके दर्शकगण तालियां पीट-पीट कर राजनीति करते दिखाई देते हैं। कौन किस को मूर्ख बना रहा है, पता ही नहीं चलता। राजनीतिज्ञ का जादू और भी कई बातों में सिर चढ़ कर बोलता है। जनता जनार्दन जिसे सबसे अधिक निकृष्ट और घृणित समझती है, अपने काम निकलवाने के लिए उसी के दरबार में कोर्निस बजाती है। जनता दुम की तरह राजनीतिक जीव के पीछे घिसटती रहती है। नेता जनता को सुई में पिरोए हुए धागे की मांनिद समझता है। सुई अपना रास्ता बनाती आगे बढ़ती जाती है और टांके लगाते-लगाते धागे  को कब खर्च कर देती है, डोरे को पता ही नहीं लगता। सुई का काम होता है जोडऩा, अत: सुई रूपी राजनीतिज्ञ सत्ता, संपन्नता, स्वार्थ, सुथरा, सुअवसर और सुविधाओं से अपना रिश्ता जोड़ता चलता है। हमारे गुरुदेव कहते हैं बलिहारी इस राजनीतिज्ञ के जो हजार मृग-मारीचकाओं से भी अधिक छलिया है, पांच वर्षों से जनता के दिलों में एकत्रित हुए विष को आश्वासन मात्र से अमृत में बदल देता  है और जनता से निचोड़े गए अमृत का पान करके स्वयं अमृत्व प्राप्त कर लेता है।

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