सुरेश और भोलू पक्के दोस्त थे। पढ़ाई-लिखाई हो या अन्य कोई काम-काज वे दोनों ही काफी होशियार थे। सुरेश और भोलू में यूं तो हर तरह से समानता थी यदि कोई असमानता थी तो बस यह कि सुरेश अपने सभी काम-काज समय पर निपटा लेता था जबकि भोलू समय का पाबंद नहीं था। काम समय पर न करने के कारण स्कूल हो या घर हर जगह भोलू को डांट खानी पड़ती थी। भोलू का समय का पाबंद न होना उसके दोस्त सुरेश को भी कतई पसंद नहीं था। वह भोलू से अक्सर इस बात को लेकर नाराज रहता था किन्तु भोलू सुरेश को किसी न किसी तरीके से मना लेता था।
एक दिन स्कूल में सुरेश और भोलू के गीतों का प्रोग्राम था। सुरेश और भोलू मिलकर जिस तरह से किसी गीत को गाते थे उनके गीतों का हर कोई दीवाना होता था। संगीत का प्रोग्राम रात आठ बजे शुरू होना था। सुरेश तो समय पर पहुंच चुका था किन्तु भोलू की लेट-लतीफी थी कि वह नौ बजे तक भी प्रोग्राम में नहीं पहुंचा था। सुरेश को भोलू पर गुस्सा तो बहुत आया किन्तु प्रोग्राम न बिगड़े इस डर से उसने अकेले ही माइक को संभाले रखा। जब तक भोलू प्रोग्राम में पहुंचा आधे श्रोता वापस जा चुके थे। प्रोग्राम खत्म होने पर भोलू को स्कूल प्रशासन से तो डांट पड़ी ही, सुरेश भी काफी नाराज हुआ।
एक दिन तो हद ही हो गई जब वार्षिक परीक्षा में भी भोलू समय पर स्कूल नहीं पहुंचा। इसी वजह से इस बार रिजल्ट में उसके नंबर कम आए। अपनी लेट-लतीफी से वैसे तो भोलू स्वयं भी परेशान था किन्तु लेट-लतीफी करना उसकी आदत बन चुकी थी जिसे छोड़ पाना उसके लिए काफी मुश्किल हो चुका था. भोलू किसी भी काम को कल पर टाल देता था और जो काम उसे आज ही करना होता था उसको अंतिम समय पर ही निपटाने के लिए बैठता था। काम को समय पर न करने की भोलू की आदत के कारण उसके सभी काम या तो आधे-अधूरे रह जाते थे या फिर बिगड़ जाते थे।
सुरेश भोलू की आदत से वाकिफ था, वह जानता था कि भोलू ऐसा जानबूझकर नहीं करता, वह बुद्धिमान तो बहुत है पर अपनी लेट-लतीफी की आदत के कारण वह किसी भी काम में पूरी तरह सफल नहीं हो पाता. किन्तु, भोलू की इस आदत को कैसे बदला जाए यह सोचते-सोचते अचानक सुरेश के मन में एक आइडिया आया।
एक दिन जब भोलू सुरेश से मिलने आया तो सुरेश ने भोलू से कहा-यार भोलू! मेरे माता-पिता आगे पढ़ाई के लिए मुझे विदेश भेजना चाहते हैं। दो दिन बाद का मेरा एयर टिकिट अमेरिका का हो गया है। चूंकि मै काफी समय के लिए विदेश जा रहा हूं मेरी इच्छा है कि तुम मुझे एयरपोर्ट पर विदा करने जरूर आओ। सुरेश के विदेश पढऩे जाने की बात से जहां भोलू खुश था वहीं इतने समय साथ रहे अपने दोस्त से बिछुडऩे का दु:ख भी उसे बहुत था। दु:खी मन से भोलू ने कहा- हां! हां! दोस्त भला क्यों नहीं। मैं तुम्हें एयरपोर्ट पर छोडऩे जरूर आऊंगा।
अपने प्लॉन के मुताबिक भोलू को बताए हुए समय पर सुरेश एयरपोर्ट पहुंच गया था किन्तु भोलू उसे कहीं नजर नहीं आया। भोलू को एयरपोर्ट पर न देखकर सुरेश चुपचाप एयरपोर्ट के बाहर ही मैदान में लगे एक पेड़ के पीछे छुप गया। प्लेन छूटने ही वाला था कि भोलू हांफता-हांफता एयरपोर्ट की ओर आता दिखाई दिया। प्लेन के टेकऑफ होने का ऐलान हो चुका था और देखते ही देखते काफी दूरी पर से प्लेन रनवे पर दौड़ता नजर आया। भोलू की आंखों में आंसू थे आज उसका दोस्त कई सालों के लिए उससे विदा हो रहा था और वह उसे मिलने भी समय पर नहीं आ पाया था।
सुरेश की याद में भोलू फूट-फूट कर रोने लगा उसने मन ही मन सोचा कि सुरेश हमेशा उसे समय का पाबंद होने की बात कहता था किन्तु आज तक वह उसे मज़ाक में लेता रहा। विदेश जाते समय सुरेश से न मिल पाने का पश्चाताप भोलू की आंखों में साफ नजर आ रहा था, वह खुद से ही बातें कर रहा था। भोलू दूर जाते हुए प्लेन की तरफ देखते हुए बोला-सुरेश, हम दोनों कितने ही वर्षों तक एक साथ रहे हैं, आज हम काफी दिनों के लिए बिछुड़ जरूर गए हैं किन्तु आज तुमसे न मिल पाने का प्रायश्चित मैं जरूर करूंगा। तुम हमेशा से कहते थे न कि मैं समय पर अपने काम पूरे करूं, तो आज के बाद तुम्हें इस बात के लिए मेरी ओर से कोई शिकायत नहीं होगी।
भोलू के पीछे खड़ा सुरेश उसकी बात सुन रहा था। जैसे ही भोलू ने बात खत्म की पीछे से उसके कंधे पर किसी ने हाथ रखा। भोलू ने पीछे मुड़कर देखा तो सुरेश को वहां पाकर उसकी बांछे खिल गईं। वह रो रहा था किन्तु आंसू खुशी के थे। भोलू ने तेजी से सुरेश को गले लगा लिया और उससे माफी मांगी।
सुरेश ने भोलू से कहा- मैंने तुम्हारी प्रतिज्ञा सुन ली है दोस्त, और यह विदेश जाने का प्लॉन मैंने तुम्हारी समय पर काम न करने की आदत को बदलने के लिए बनाया था। चलो दोस्त! अब घर चलते हैं। भोलू बोला- हां! दोस्त आज मुझे समझ आ गया है कि काम समय पर न करने के कितने पछतावे और दु:ख प्राप्त होते हैं। मैं वादा करता हूं कि अब कभी भी किसी भी काम में लेट-लतीफी नहीं करूंगा। सुरेश का प्लॉन कामयाब हो गया था, मन ही मन वह बहुत खुश हुआ।
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