छत्रपाल
देश के सम्माननीय अलगाववादी नागरिकों, नेताओं और उनके संगठनों को शिकायत है कि देश में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के कार्यकलाप संतोषप्रद नहीं है। आयोग उनकी इच्छानुसार कार्य नहीं कर रहा है। सरकार ने जब अलगाववादियों को अलगाव का अलाव जलाने, उसमें भोले-भाले लोगों की आहुतियां देने, समस्त सुविधाओं और स्वतंत्रता का जमकर उपयोग करने की छूट दी है तो उनके लिए अलग से दानवाधिकार आयोग भी गठित किया जाना चाहिए ताकि इस राष्ट्र के अभिन्न अंग स्नेहिल अलगाववादियों के विशेषाधिकारों की समुचित रक्षा की व्यवस्था हो सके। अलगाववादियों की सबसे अधिक इस बात पर खेद है कि सरकार, प्रशासन, सचिवालय तथा प्रत्येक विभाग में उनके हजारों मेहरबानों और समर्थकों की गुप्त उपस्थिति के बावजूद कोई प्रगति नहीं हुई है। अलगाववादी गुट के एक वरिष्ठ नेता ने गत दिवस एक संवाददाता सम्मेलन में अपने गुट द्वारा प्रस्तावित दानवाधिकार आयोग की रूपरेखा प्रस्तुत की। उनका कथन था कि जब सरकार उन्हें अलगाववादी के रूप में मान्यता प्रदान कर चुकी है तो उनके द्वारा संचालित गतिविधियों को अमानवीय की संज्ञा देकर उन्हें बदनाम क्यों किया जाता है। इस मानहानि के विरुद्ध कार्रवाई के लिए दानवाधिकार आयोग की स्थापना अवश्यंभावी है। इस आयोग के माननीय सदस्यों को अलगावादी गुटों द्वारा नामित किया जाना चाहिए। इसके सदस्यों की संख्या सरकारी मानवाधिकार आयोग के सदस्यों से दुगुनी-तिगुनी होनी चाहिए ताकि दानवाधिकार के उल्लंघन के प्रकरणों का शीघ्र निपटारा हो सके। दानवाधिकार आयोग के कार्यक्षेत्र का खुलासा करते हुए उन्होंने कहा कि सर्वप्रथम पेलेट गन का मामला दानवाधिकार को सौंपा जाना चाहिएण् इस आयोग को सरकारी मानवाधिकार आयोग द्वार निर्णित मामलों की समीक्षा करने का अधिकार प्राप्त होना चाहिए ताकि अलगाववादियों द्वारा मानवाधिकारों के हनन के कथित मामलों में उन्हें बार-बार दोषी ठहराने की परंपरा को तोड़ा जा सके। अलगाववादियों के मौलिक अधिकारों का चार्टर प्रस्तुत करते हुए एक बुजुर्ग और फरिश्तासीरत अलगाववादी ने कहा कि प्रत्येक अलगाववादी को अधिकार प्राप्त होना चाहिए कि वे जिस राष्ट्र और समाज का अन्न खाएं उसके विरुद्ध विषवमन कर सकए उसकी पीठ में छुरा घोंप सके । समस्त सुविधाओं का लाभ उठाते हुए सरकार को गालियां दे सकें। देश में रहते हुए देशद्रोह को बढ़ावा दे सकें। उन्हें हत्या, आगजनी, अपहरण, बलात्कार तथा संगीन वारदातों का अधिकार दिया जाना चाहिए और इन्हें अपराध न मानकर मात्र गतिविधि की संज्ञा दी जानी चाहिए। अलगाववादी नेताओं का तर्क है कि जिस प्रकार देश में साम्प्रदायिकता, अंधविश्वास, जातीय हिंसा, माफियागीरी और राजनीति के अपराधीकरण पर कोई रोकटोक नहीं है उसी प्रकार अलगाववादी हिंसा, आतंकवाद, देशद्रोह और विद्रोही गतिविधियों के प्रति भी उदारवादी दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए। हवाला द्वारा किए जा रहे करो?ों के वारे-न्यारे को नजर न लगाएं।यदि अलगाव की विशेष ट्रेनिंग लेने हेतु कोई अलगाववादी नेता अपने किसी दोस्त-मुल्क में दो चार हफ्तों के लिए जाना चाहे तो उसे प्राथमिकता के आधार पर वीज़ा प्रदान किया जाए। तथाकथित मानवाधिकार आयोग जानबूझ कर इल्जाम उनके मत्थे मढ़ रहा है। विद्रोहियों की सामान्य गतिविधियों, आक्रमणों और खून-खराबे को आज के जमाने में मानवाधिकारों का हनन मानने की नासमझी कर रहा है। आज के दौर में जब विश्व में चारों और आतंक का साया है। इंसान की जान की कोई कीमत नहीं है। हथियारों की फसलें उगाई जा रही हैं। ताकत का बोलबाला है तब मानवाधिकार आयोग इंसानी हकूक की घिसी-पिटी परिभाषाएं दोहरा रहा है। इस आयोग के गठन पर हम सरकार का एक पैसा तक व्यय नहीं होने देंगे। सदस्यों के भत्तों एवं वेतन का ध्यान रखेंगे। दानवाधिकार आयोग के मुख्यालय की सुरक्षा का दायित्व भी संभालेंगे। आज हमारे यहां अनेकानेक दानवाधिकार कार्यकत्र्ता हैं जो हमारे अधिकारों के हनन पर प्रदर्शन करते हैं और जनमत जुटाते हैं। कई समाचार पत्रों और स्वयंसेवी संस्थाओं में हमारी पैठ है जो दानवाधिकारों में शर्मनाक हनन के मुद्दे उछालते रहते हैं। सुरक्षाबलों, विपक्षी दलों और तथाकथित राष्ट्रवादियों की ज्यादतियों और शोषण से बचाने के लिए लाजिमी है कि हमारे लिए एक अलग दानवाधिकार आयोग हो, जहां हम अपनी शिकायतें दर्ज करवा सकें।
देश के सम्माननीय अलगाववादी नागरिकों, नेताओं और उनके संगठनों को शिकायत है कि देश में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के कार्यकलाप संतोषप्रद नहीं है। आयोग उनकी इच्छानुसार कार्य नहीं कर रहा है। सरकार ने जब अलगाववादियों को अलगाव का अलाव जलाने, उसमें भोले-भाले लोगों की आहुतियां देने, समस्त सुविधाओं और स्वतंत्रता का जमकर उपयोग करने की छूट दी है तो उनके लिए अलग से दानवाधिकार आयोग भी गठित किया जाना चाहिए ताकि इस राष्ट्र के अभिन्न अंग स्नेहिल अलगाववादियों के विशेषाधिकारों की समुचित रक्षा की व्यवस्था हो सके। अलगाववादियों की सबसे अधिक इस बात पर खेद है कि सरकार, प्रशासन, सचिवालय तथा प्रत्येक विभाग में उनके हजारों मेहरबानों और समर्थकों की गुप्त उपस्थिति के बावजूद कोई प्रगति नहीं हुई है। अलगाववादी गुट के एक वरिष्ठ नेता ने गत दिवस एक संवाददाता सम्मेलन में अपने गुट द्वारा प्रस्तावित दानवाधिकार आयोग की रूपरेखा प्रस्तुत की। उनका कथन था कि जब सरकार उन्हें अलगाववादी के रूप में मान्यता प्रदान कर चुकी है तो उनके द्वारा संचालित गतिविधियों को अमानवीय की संज्ञा देकर उन्हें बदनाम क्यों किया जाता है। इस मानहानि के विरुद्ध कार्रवाई के लिए दानवाधिकार आयोग की स्थापना अवश्यंभावी है। इस आयोग के माननीय सदस्यों को अलगावादी गुटों द्वारा नामित किया जाना चाहिए। इसके सदस्यों की संख्या सरकारी मानवाधिकार आयोग के सदस्यों से दुगुनी-तिगुनी होनी चाहिए ताकि दानवाधिकार के उल्लंघन के प्रकरणों का शीघ्र निपटारा हो सके। दानवाधिकार आयोग के कार्यक्षेत्र का खुलासा करते हुए उन्होंने कहा कि सर्वप्रथम पेलेट गन का मामला दानवाधिकार को सौंपा जाना चाहिएण् इस आयोग को सरकारी मानवाधिकार आयोग द्वार निर्णित मामलों की समीक्षा करने का अधिकार प्राप्त होना चाहिए ताकि अलगाववादियों द्वारा मानवाधिकारों के हनन के कथित मामलों में उन्हें बार-बार दोषी ठहराने की परंपरा को तोड़ा जा सके। अलगाववादियों के मौलिक अधिकारों का चार्टर प्रस्तुत करते हुए एक बुजुर्ग और फरिश्तासीरत अलगाववादी ने कहा कि प्रत्येक अलगाववादी को अधिकार प्राप्त होना चाहिए कि वे जिस राष्ट्र और समाज का अन्न खाएं उसके विरुद्ध विषवमन कर सकए उसकी पीठ में छुरा घोंप सके । समस्त सुविधाओं का लाभ उठाते हुए सरकार को गालियां दे सकें। देश में रहते हुए देशद्रोह को बढ़ावा दे सकें। उन्हें हत्या, आगजनी, अपहरण, बलात्कार तथा संगीन वारदातों का अधिकार दिया जाना चाहिए और इन्हें अपराध न मानकर मात्र गतिविधि की संज्ञा दी जानी चाहिए। अलगाववादी नेताओं का तर्क है कि जिस प्रकार देश में साम्प्रदायिकता, अंधविश्वास, जातीय हिंसा, माफियागीरी और राजनीति के अपराधीकरण पर कोई रोकटोक नहीं है उसी प्रकार अलगाववादी हिंसा, आतंकवाद, देशद्रोह और विद्रोही गतिविधियों के प्रति भी उदारवादी दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए। हवाला द्वारा किए जा रहे करो?ों के वारे-न्यारे को नजर न लगाएं।यदि अलगाव की विशेष ट्रेनिंग लेने हेतु कोई अलगाववादी नेता अपने किसी दोस्त-मुल्क में दो चार हफ्तों के लिए जाना चाहे तो उसे प्राथमिकता के आधार पर वीज़ा प्रदान किया जाए। तथाकथित मानवाधिकार आयोग जानबूझ कर इल्जाम उनके मत्थे मढ़ रहा है। विद्रोहियों की सामान्य गतिविधियों, आक्रमणों और खून-खराबे को आज के जमाने में मानवाधिकारों का हनन मानने की नासमझी कर रहा है। आज के दौर में जब विश्व में चारों और आतंक का साया है। इंसान की जान की कोई कीमत नहीं है। हथियारों की फसलें उगाई जा रही हैं। ताकत का बोलबाला है तब मानवाधिकार आयोग इंसानी हकूक की घिसी-पिटी परिभाषाएं दोहरा रहा है। इस आयोग के गठन पर हम सरकार का एक पैसा तक व्यय नहीं होने देंगे। सदस्यों के भत्तों एवं वेतन का ध्यान रखेंगे। दानवाधिकार आयोग के मुख्यालय की सुरक्षा का दायित्व भी संभालेंगे। आज हमारे यहां अनेकानेक दानवाधिकार कार्यकत्र्ता हैं जो हमारे अधिकारों के हनन पर प्रदर्शन करते हैं और जनमत जुटाते हैं। कई समाचार पत्रों और स्वयंसेवी संस्थाओं में हमारी पैठ है जो दानवाधिकारों में शर्मनाक हनन के मुद्दे उछालते रहते हैं। सुरक्षाबलों, विपक्षी दलों और तथाकथित राष्ट्रवादियों की ज्यादतियों और शोषण से बचाने के लिए लाजिमी है कि हमारे लिए एक अलग दानवाधिकार आयोग हो, जहां हम अपनी शिकायतें दर्ज करवा सकें।
0 टिप्पणियाँ :
एक टिप्पणी भेजें