बुधवार, जून 28, 2017

मैं बापू की बकरी हूँ

छत्रपाल

जी हां, मैं ही हूँ बापू की बदनसीब बकरी। मेरा शरीर सूखकर पिंजर बन चुका है। अधिकांश बाल झड़ चुके हैं और चिरे हुए होठों पर छाले हैं। मेरी यह हालत कांगे्रस-घास के कारण हुई है। नेहरू के बाद पूरे देश में जिस प्रकार कांग्रेस घास फैली हैं, उसके कारण मुझे खाने के लिए स्वच्छ घास नहीं मिल रही। मैं वर्षांे से भूखी हूं। इसे विडंबना ही कहो कि मैंने बापू से उपवास का जो प्रशिक्षण लिया था, उसी ने मुझे भूखा मरने से बचाए रखा। पूरा देश मेरा और मेरे मालिक का अपराधी है। सभी मांसाहारी हो चुके हैं। अहिंसा के देवता के देश में लोग इतने नृशंस हो चुके हैं कि उसी की बकरी को खाने के लिए तत्पर हैं। मैं सभी देशवासियों से छिपकर मृत्यु की प्रतीक्षा कर रही हूं। यदि  लोगों को पता चल जाता कि मैं बापू की बकरी हूं तो वे बापू के सिद्धांतों की भांति मुझे भी नोचकर लहुलुहान कर देते। मैं भूख से तड़प रही हूँ। क्या किसी के पास मेरे लिए थोड़ी सी अहिंसक घास है? जिस खेत का किसान शोषण का शिकार नहीं होता, मुझे उस खेत के घास के दो तिनके ला दो। जिस गांव, कस्बे या नगर में कांग्रेस घास का प्रकोप नहीं फैला है, मेरे लिए वहां से दो मु_ी अनाज ला दो। मुझे ठेठ देसी बीज से उगी फसल की चार बालियां ला दो जिस पर रासायनिक उर्वरक और कीटनाशकों का प्रयोग न हुआ हो। यदि कुछ नहीं कर सकते तो मेरे लिए ऐसी दो बीघा जमीन ढंूढ दो जो कांग्रेस घास से मुक्त हो। यह घास भ्रष्टाचार से भी तेज गति से फैलती है और जहां एक बार अपनी जड़ें जमा लेती है, वहां से इसे हटाना असंभव है। निरकुंश शासकों और पीढ़ी दर पीढ़ी सत्ता पर काबिज रहने वाले वंशों की भांति इसे भी समूल नष्ट करना दुष्कर कार्य है। कहीं ढंूढ सकते हो मेरे लिए ऐसी जमीन जहां कांग्रेस घास के विषैले पौधे न हों और खेत प्रदूषण मुक्त हो। दूर से लहलहाती हरियाली देख कर मैं प्रसन्नता से झूम उठती हूँ कि मेरे मालिक का लगाया उपवन कितना हरा भरा है। मैं उतावली होकर अपना पेट भरने के लिए पास आती हूँ तो मेरा भ्रम टूट जाता है, अरे यह तो घातक कांग्रेस ग्रास है जो वर्षों  गुजरने के साथ-साथ लाखों हैक्टेयर जमीन पर अपना कब्जा जमाकर बैठ गई। यह घास इस कदर विषैली हो चुकी है कि इसे अब समझदार लोग हाथ लगाने से भी डरते हैं। इसे एक बार जो छू लेता है, उसे त्वचा संक्रमण हो जाता है। फिर यह संक्रमण भीतर ही भीतर कहीं गहरे जा पहुंचता है और पूरी जमीन पर रक्तबीज की तरह फैल जाता है। भ्रष्टाचार की भांति ही इस कांग्रेस-घास ने पूरे देश को ग्रसित कर लिया है और मुझे दो ग्रास तक नहीं मिल रहे। भूख से अधिक मैं इस बात से व्यथित हूँ कि मेरे फकीर मालिक  के कत्ल के बाद उसके वारिसों ने उसके सिद्धांतों के उपवन को उजाड़ दिया। अच्छा होता यदि मुझे भी मेरे मालिक की भांति कोई गोली मार देता।

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