भगवान शिव ने अति प्राचीन काल से इस देश के लोगों पर अपना प्रभाव डाला है। भगवान शिव के अस्तित्व का पता मोहनजो-दड़ो में मिली मूर्तियों से पता चलता है। इस प्रकार शिव को हमारे सबसे प्राचीन देवताओं में से एक में माना जता है।
जम्मू संभाग में भगवान शिव के काफी पुराने मंदिर तथा गुफाएं हैं तथा ऐसी ही एक प्राकृतिक गुफा कठुआ जिले के जखोले पंचायत में सुखद वातावरण में स्थित है। यहां तक पहुँचने के लिए हमें राष्ट्रीय राजमार्ग (जम्मू-पठानकोट) पर राजबाग(उज्ज) से संपर्क मार्ग लेना पड़ता है। बारह किमी का सफर के दौरान जसरोटा, धानी, और बाखता गांव को पीछे छोडऩे के उपरांत गांव जखोले पहुंचते है और वहंा से पांच किलोमीटर का पैदल सफर करने पर १५० साल पुरानी प्रसिद्ध प्राकृतिक शिव गुफा पहुँच सकते हैं।
एक अन्य मार्ग से, लखनपुर से लगभग पैंतीस मिनट तथा गांव जखोले राजबाग से पचास मिनट का सफर है।
शिव सत्य, अच्छाई और सौंदर्य के साथ जुड़ा हुआ है तथा महानाल की गुफा में उनका रहस्यमय निवास है। इस निवास के बारे में सबसे विशिष्ट विशेषता यह है कि यहां पर मानव निर्मित चित्र या मूर्ति नहीं है बल्कि, इस गुफा में आपशंभू शिवलिंग है जिसके चलते इस प्राकृतिक गुफा के प्रति श्रद्धालुओं का लगाव है इस पवित्र स्थान को संतों द्वारा छोटा अमरनाथ भी कहा जाता है।
महानाल की शिवजी की प्राकृतिक गुफा के विशय में एक पौराणिक कथा अनुसार १५० साल पहले ग्रामीणों द्वारा प्राकृतिक शिवलिंग पर गुफा की छत से दूध रिसता देखा गया था। उन्होंने तब से इस जगह पूजा शुरू कर दी। लेकिन एक दिन खानाबदोश समुदाय की एक महिला ने इस पवित्र स्थान से दूध एकत्र करने का प्रयास किया तो गुफा की छत से दूध टपकना बंद हो गया।
एक अन्य कथा के अनुसार, इस जगह पर स्थानीय लोगों का जाना निषिद्ध था। एक ऋषि ने कई वर्षों तक वहाँ ध्यान साधना की। वह एक सुनसान जगह पर भगवान शिव की महिमा में ध्यान करते थे। तथापि, कई वर्षों के बाद,एक जिज्ञासु महिला वहां गई तो उसने देखा कि एक मानव कंकाल ध्यान मुद्रा में जोर जोर से ओम नम: शिवाय का जप कर रहा है। म्हिला एक कंकाल को साधना में देख डर से वहीं पर बेहोश हो गई ।
कुछ देर बाद, उसे जब होश आया तो देखा कि कंकाल इंसान में परिवर्तित होकर ओम नम: शिवाय का जप कर रहा है और कुछ समय बाद वह भी गायब हो गया तथा गुफा के अंदर एक प्राकृतिक शिवलिंग में बदल गया।
महानाल एक बड़ी गुफा है और गुफा के अंदर प्राकृतिक शिवलिंग मौजूद है। गुफा का प्रवेश मुख संकीर्ण है तथा भगवान शिव के दर्शन के लिए एक समय में केवल एक ही व्यक्ति गर्भगृह तक पहुंचने के लिए गुफा में प्रवेश कर सकता है।
महानाल गुफा के प्रवेश द्वार पर गणेश, नंदीगण और काल-भैरव की मूर्तियां क्षेत्र के सौंदर्य को चार चांद लगाती हंै। मुख्य गुफा के समीप ही श्रद्धालुओं ने नौ देवियों को समर्पित छोटे मंदिर का निर्माण किया है।
एक मौसमी झरना पूजा अर्चना से पहले स्नान के लिए निहित है। हालांकि गर्मी के दिनों में, झरना सूख जाता है तथा भक्तों को बाबली के पानी का उपयोग करना पड़ता है।
१९८० में, एक तपस्वी बाबा हरि गिरि जी ने इस जगह को अपने निवास बनाया और यहाँ ध्यान शुरू कर दिया तथा स्थानीय लोग बड़ी संख्या में यहां आने लगे। बाबा १०साल के लिए वहाँ रुके थे और १९९१ में उन्होंने समाधी ग्रहण कर ली। देश के अन्य राज्यों से भी भक्तों की भीड़ साल भर इस जगह रहती है। इसके अलावा़ वर्ष के पहले दिन, सभी सोमवार, महाशिवरात्रि पर और श्रावण के पवित्र महीने में भी रश रहता है।
जम्मू संभाग में भगवान शिव के काफी पुराने मंदिर तथा गुफाएं हैं तथा ऐसी ही एक प्राकृतिक गुफा कठुआ जिले के जखोले पंचायत में सुखद वातावरण में स्थित है। यहां तक पहुँचने के लिए हमें राष्ट्रीय राजमार्ग (जम्मू-पठानकोट) पर राजबाग(उज्ज) से संपर्क मार्ग लेना पड़ता है। बारह किमी का सफर के दौरान जसरोटा, धानी, और बाखता गांव को पीछे छोडऩे के उपरांत गांव जखोले पहुंचते है और वहंा से पांच किलोमीटर का पैदल सफर करने पर १५० साल पुरानी प्रसिद्ध प्राकृतिक शिव गुफा पहुँच सकते हैं।
एक अन्य मार्ग से, लखनपुर से लगभग पैंतीस मिनट तथा गांव जखोले राजबाग से पचास मिनट का सफर है।
शिव सत्य, अच्छाई और सौंदर्य के साथ जुड़ा हुआ है तथा महानाल की गुफा में उनका रहस्यमय निवास है। इस निवास के बारे में सबसे विशिष्ट विशेषता यह है कि यहां पर मानव निर्मित चित्र या मूर्ति नहीं है बल्कि, इस गुफा में आपशंभू शिवलिंग है जिसके चलते इस प्राकृतिक गुफा के प्रति श्रद्धालुओं का लगाव है इस पवित्र स्थान को संतों द्वारा छोटा अमरनाथ भी कहा जाता है।
महानाल की शिवजी की प्राकृतिक गुफा के विशय में एक पौराणिक कथा अनुसार १५० साल पहले ग्रामीणों द्वारा प्राकृतिक शिवलिंग पर गुफा की छत से दूध रिसता देखा गया था। उन्होंने तब से इस जगह पूजा शुरू कर दी। लेकिन एक दिन खानाबदोश समुदाय की एक महिला ने इस पवित्र स्थान से दूध एकत्र करने का प्रयास किया तो गुफा की छत से दूध टपकना बंद हो गया।
एक अन्य कथा के अनुसार, इस जगह पर स्थानीय लोगों का जाना निषिद्ध था। एक ऋषि ने कई वर्षों तक वहाँ ध्यान साधना की। वह एक सुनसान जगह पर भगवान शिव की महिमा में ध्यान करते थे। तथापि, कई वर्षों के बाद,एक जिज्ञासु महिला वहां गई तो उसने देखा कि एक मानव कंकाल ध्यान मुद्रा में जोर जोर से ओम नम: शिवाय का जप कर रहा है। म्हिला एक कंकाल को साधना में देख डर से वहीं पर बेहोश हो गई ।
कुछ देर बाद, उसे जब होश आया तो देखा कि कंकाल इंसान में परिवर्तित होकर ओम नम: शिवाय का जप कर रहा है और कुछ समय बाद वह भी गायब हो गया तथा गुफा के अंदर एक प्राकृतिक शिवलिंग में बदल गया।
महानाल एक बड़ी गुफा है और गुफा के अंदर प्राकृतिक शिवलिंग मौजूद है। गुफा का प्रवेश मुख संकीर्ण है तथा भगवान शिव के दर्शन के लिए एक समय में केवल एक ही व्यक्ति गर्भगृह तक पहुंचने के लिए गुफा में प्रवेश कर सकता है।
महानाल गुफा के प्रवेश द्वार पर गणेश, नंदीगण और काल-भैरव की मूर्तियां क्षेत्र के सौंदर्य को चार चांद लगाती हंै। मुख्य गुफा के समीप ही श्रद्धालुओं ने नौ देवियों को समर्पित छोटे मंदिर का निर्माण किया है।
एक मौसमी झरना पूजा अर्चना से पहले स्नान के लिए निहित है। हालांकि गर्मी के दिनों में, झरना सूख जाता है तथा भक्तों को बाबली के पानी का उपयोग करना पड़ता है।
१९८० में, एक तपस्वी बाबा हरि गिरि जी ने इस जगह को अपने निवास बनाया और यहाँ ध्यान शुरू कर दिया तथा स्थानीय लोग बड़ी संख्या में यहां आने लगे। बाबा १०साल के लिए वहाँ रुके थे और १९९१ में उन्होंने समाधी ग्रहण कर ली। देश के अन्य राज्यों से भी भक्तों की भीड़ साल भर इस जगह रहती है। इसके अलावा़ वर्ष के पहले दिन, सभी सोमवार, महाशिवरात्रि पर और श्रावण के पवित्र महीने में भी रश रहता है।
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