शनिवार, अगस्त 19, 2017

आजादी के 70 साल बाद भी जम्मू कश्मीर बेहाल

हमारा देश इस साल 71 वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है।
जम्मू।
आज़ादी के बाद से आज तक हर एक भारतीय कश्मीर समस्या को जस का तस देख रहा है, कभी एक कदम आगे तो कभी दो कदम पीछे की तर्ज पर! पाकिस्तान इसको लेकर अब तक हम से चार लड़ाइयां लड़ चुका है। उसके द्वारा फैलाये आतंकवाद के कारण आज तक शायद ही कोई महीना ऐसा रहा हो जब भारतीय जवान या किसी कश्मीरी की मौत न हुई हो।
देश को आज़ाद हुए 70 साल पूरे हो रहे हैं लेकिन इसके बावजूद हम आज भी कश्मीर की समस्या से जूझ रहे हैं।
क्या आपने कभी सोचा है?
क्यूं आज़ादी के इतने सालों के बावजूद आज भी जम्मू कश्मीर में आये दिन आतंकवादी घटनाएं होती रहती हैं?
कश्मीर की समस्या के बारे में हम सबने सुना है लेकिन क्या आपको मालूम है की कश्मीर की समस्या वास्तव में है क्या?
अगर जम्मू और कश्मीर के राजा ने आजादी के तुरंत बाद भारत में विलय कर लिया था फिर पकिस्तान क्यों इसे लेने के लिए कोशिश करता रहता है?
क्यों भारत और पाकिस्तान दोनों इस पर अपना हक़ समझते है और उसके लिए लड़ते है?
इसे समझने के लिए हमें कश्मीर के इतिहास को खंगालना होगा। आइए इसे समझने की कोशिश करें-
18वीं सदी में जब मुग़ल शासन पूरे भारत में फ़ैल रहा था। कश्मीर की भौगोलिक स्थिति और प्राकृतिक संसाधनों की कमी को देखते हुए इसे गऱीब राज्य समझा जाता था जिस वजह से मुग़लों का ध्यान कश्मीर की तरफ बिल्कुल भी नही गया।
सिक्ख शासकों ने इसी बात का फायदा उठाया और कश्मीर पर अपना शासन जमा लिया। बाद में ब्रिटिश शासनकाल में अंग्रेजो ने जम्मू कश्मीर में जाकर सिक्खों को हराया और पूरे भारत पर अपना वर्चस्व हासिल किया।
कश्मीर की भौगोलिक स्थति को देखते हुए अंग्रेज़ों को समझ नही आ रहा था कि वो इसका इस्तेमाल किस प्रकार से करें। बाद में जब अंग्रेजो को फंड्स की कमी आई तो उन्होंने जल्दबाजी में कश्मीर को किसी भी ग्राहक को 75 लाख रुपये में बेचने का ऑफर दिया।
डोगरा चीफ गुलाब सिंह, जो अंग्रेजो के वफादार भी थे उन्होंने 75 लाख रुपये की रकम अंग्रेजो को देकर कश्मीर पर अपना राज्य कायम किया, और भारत से अलग होकर आजाद कश्मीर बना लिया।
सन 1846 से 1947 तक कश्मीर पर राजा बनकर गुलाब सिंह और उनके वंशजो ने शासन किया।
आज़ादी के बाद, भारत और पाकिस्तान अलग-अलग हो गए।
उस समय के तात्कालिक गृह मंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल ने सभी रजवाड़ों को भारत में जोडऩे का प्रयास प्रारंभ कर दिया और करीब 600 रियासतों को जोडऩे में सफल भी रहे।
सरदार बल्लभ भाई पटेल ने कश्मीर से भी आग्रह किया के वो भारत में विलय कर लें, लेकिन गुलाब सिंह के पोते और उस समय के कश्मीर के राजा, हरि सिंह ने इस बात से सीधे मना कर दिया और स्वतंत्र देश के रूप में कश्मीर को कायम रखने का फैसला किया।
कश्मीर, पाकिस्तान से बहुत पास में था और पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद से इसकी दूरी मात्र 1 घंटे की थी। चूंकि कश्मीर के दो-तिहाई नागरिक मुस्लिम थे तो पाकिस्तानी संस्थापक मोहम्मद अली जिन्नाह ने कश्मीर को पाकिस्तान में विलय करने का प्रस्ताव रखा।
कश्मीर के तात्कालिक राजा हरि सिंह, 15 अगस्त 1947 तक कोई भी निर्णय नहीं ले सके कि वो भारत के साथ जायें या पकिस्तान के। सबको समझ आ रहा था कि वो कश्मीर को आजाद ही रखना चाहते है।
पाकिस्तान ने पहल करते हुए पहले हरि सिंह को मनाने की बात की। लेकिन जब बात नही बनी तब आस-पास के पाकिस्तानी कबीली इलाकों के मुस्लिमो को कश्मीर में अपना वर्चस्व हासिल करने के लिए वहां भेजना शुरू किया।
उस समय के लाहौर ब्रिटिश हाई कमिशनर ष्ट. क्च. रुह्वद्मद्ग ने अपनी किताब में लिखा है, 'पाकिस्तानीयों को कश्मीर में बहते सोने की लालच समझ आ गया था। इसीलिए उन्होंने कबीली मुस्लिमों के माध्यम से कश्मीर में उपद्रव प्रारंभ कर दिया था।'
24 अक्टूबर, 1947 की सुबह हजारों की संख्या में कबीली पठानों ने कश्मीर में घुसना प्रारंभ कर दिया। उनका एक ही मकसद था, जम्मू कश्मीर की राजधानी श्रीनगर पर कब्ज़ा करना, जहां से महाराजा हरि सिंह अपना राज-काज संभाला करते थे।
महाराजा हरि सिंह को जब इस बात का बता चला तो उन्होंने तुरंत भारत से मदद की अपील की और इस मुश्किल वक़्त में सहायता मांगी।
24 अक्टूबर, 1947 को राजा हरि सिंह अपने दरबारियों के साथ जम्मू आ गए और इससे श्रीनगर राजमहल की असुरक्षा और भी बढ़ गयी।
अगले ही दिन 25 अक्टूबर1947 को भारत ने तात्कालिन गृह मंत्री श्री वल्लभ भाई पटेल के करीबी, अधिकारी वी. पी. मेनन को भेजा और जम्मू-कश्मीर को भारत में विलय होने की पेशकश की और इसके बदले पाकिस्तानियों के कबीली पठानों को खदेड़ भगाने का वादा भी किया।
महाराज हरि सिंह के मुख्य मंत्री, एम. सी. महाजन ने तुरंत तत्कालिक प्रधानमंत्री, जवाहर लाल नेहरु से किसी भी शर्त पर मदद मांगी।
उन्होंने नेहरु जी को लिखा-
    'हमें तुरंत जम्मू और कश्मीर में भारत की मदद चाहिए, शर्त चाहे कुछ भी हो। अगर भारत हमें अपनी मिलिट्री सहायता देने को तैयार होता है तो महाराजा हरि सिंह को जम्मू कश्मीर का भारत में विलय से कोई दिक्कत नही है। हमारी बस एक ही शर्त है भारत तुरंत श्रीनगर पहुंचे नही तो हम लाहौर जाकर मुहम्मद अली जिन्नाहह से समझौता करने को मजबूर होंगे।'
महाजन ने अपने बयान में बताया, 'अगली सुबह उठने से पहले हमें श्रीनगर के ऊपर तमाम हवाई जहाजो के उडऩे की आवाज आने लगी और मुझे समझने में देर नही लगी के भारत हमारी उम्मीदों से पहले ही हमारी सुरक्षा के लिए आ खड़ा हुआ है।
जल्दी ही श्रीनगर से कबीली पठानों को मार भगाया गया। लेकिन कश्मीर के अन्य हिस्सों पर पाकिस्तान गुपचुप तरीके से कब्ज़ा करने का कार्यक्रम बनाने लगा।
इसी सन्दर्भ में, मुहम्मद अली जिन्नाह ने ब्रिटिश कमिशनर से निवेदन किया कि वो रावलपिंडी और सियालकोट से सर डगलस ग्रेसी द्वितीय ब्रिगेड आर्मी को जम्मू भेजें और महाराज हरि सिंह को गिरफ्तार करे। ब्रिटिश कमिशनर, सर डगलस ग्रेसी ने जिन्नाह की इस मांग को तुरंत ख़ारिज कर दिया। मुहम्मद अली जिन्नाह को जम्मू और कश्मीर का भारत में विलय पच नही रहा था।
लॉर्ड माउंटबेटन ने अपनी किताब में बताया है कि उनके साथ जिन्नाह ने कई बार कश्मीर को लेकर मीटिंग्स की। उन्होंने कहा, 'जिन्नाह का मानना था कि भारत का कश्मीर पर अधिकार हरि सिंह की स्वेच्छा से नही बल्कि भारत का जोर जबरदस्ती से कराया हुआ षडयंत्र है।
    जिन्नाह ने आगे कहा, मुझे बहुत अच्छे से मालूम है की महाराज हरि सिंह अपने महत्वकांछाओं के चलते कश्मीर को हमेशा एक स्वतंत्र राज्य रखना चाहते है, अब अगर कश्मीर का भारत में विलय हो रहा है तो इसका सीधा सा मतलब है कि हरि सिंह के साथ भारत जोर जबरदस्ती कर रहा है, और ऐसा अनैतिक कृत्य हमें नामंजूर है।
इधर धीर-धीरे पाकिस्तान ने कश्मीर में अपनी फ़ौज को भेजना जारी रखा। इस बात की ना तो हरि सिंह को और ना ही भारत को जरा सी भी भनक लगी।
भारत को जब ये पता चला तो उसने पाकिस्तानी फ़ौज को वहा से भगाना चालू किया। भारत की फ़ौज पाकिस्तानी कबीली पठानों और पाकिस्तानी फ़ौज से लड़ती रही और उन्हें पीछे धकेलती रही।
यह एक युद्ध की तरह करीब 1 साल से ज्यादा चला और भारत ने जल्द ही कश्मीर के दो-तिहाई भाग पर कब्ज़ा कर लिया।
लेकिन भारत सरकार को 1948 के अंत तक युनाइटेड नेशन के दखल से इस युद्ध को रोकना पड़ा। दोनों देशों ने युनाइटेड नेशन की बात को मानते हुए 5 जनवरी 1949 को युद्ध विराम की बात मान ली।
भारत सरकार का कहना है, '26 अक्टूबर 1947 को महाराजा हरि सिंह ने लिखित विलय अर्थात इन्स्ट्रुमेंट ऑफ अक्सेशन पर हस्ताक्षर किए हैं जो भारत व् अंतरराष्ट्रीय नियम कानून के मुताबिक़ एकदम सही है और इससे कश्मीर भारत का अभिन्न अंग हो जाता है।'
यह विलय कश्मीर की सभी पार्टियों द्वारा सहमति से भी बना हुआ है।
वहीं पाकिस्तान सरकार का कहना है, 'कश्मीर को विलय करने का प्रयास सबसे पहले पाकिस्तान ने प्रारंभ किया। 26 अक्टूबर, 1947 को महाराजा हरि सिंह ने जिस लिखित विलय या इन्स्ट्रुमेंट ऑफ अक्सेशन पर हस्ताक्षर किये हैं वो उनसे जोर-जबरदस्ती से करवाया गया है, जो अंतरराष्ट्रीय नियमों के भी खिलाफ है और पकिस्तान इसे कभी नही स्वीकार सकता।'

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