शुक्रवार, अगस्त 18, 2017

मुस्लिम धर्मगुरू का सराहनीय बयान

फैसला मुस्लिमों के हक में हो तो वे जमीन हिंदुओं को दे दें- कल्बे सादिक

नई दिल्ली/मुंबई।
शिया मौलवी कल्बे सादिक ने रविवार को कहा कि अगर बाबरी विवाद पर फैसला मुस्लिमों के हक में हो तो उन्हें जमीन खुशी से हिंदुओं को दे दी चाहिए। उन्होंने ये भी कहा कि अगर फैसला मुस्लिमों के हक में नहीं आया तो उन्हें शांति से उसे मंजूर कर लेना चाहिए। बता दें कि शिया वक्फ बोर्ड ने 8 अगस्त सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि अयोध्या में मस्जिद विवादित जगह से कुछ दूरी पर मुस्लिम बहुल इलाके में बनाई जा सकती है। बोर्ड अयोध्या मामले में रिस्पॉन्डेंट (प्रतिवादी) नंबर 24 है। हालांकि, उसने इलाहाबाद हाईकोर्ट की सुनवाई में हिस्सा नहीं लिया था।
मुंबई में वर्ल्ड पीस एंड हारमनी कॉन्क्लेव में कल्बे सादिक ने बाबरी विवाद मुद्दे पर शांति की वकालत की। उन्होंने कहा- हमें देश की सर्वोच्च अदालत पर पूरा भरोसा है। अगर सुप्रीम कोर्ट का फैसला मुस्लिमों के पक्ष में आता है तो उन्हें विवादित जमीन पर अपना दावा छोड़ देना चाहिए। फैसला जो भी आए, दोनों ही पक्षों को उसका सम्मान करना चाहिए। जो अपनी सबसे प्यारी चीज दूसरों को देता है, बदले में उसे हजारों चीजें मिलती हैं।
कल्बे सादिक के बयान पर केंद्रीय मंत्री डॉ. हर्ष वर्धन ने कहा, 'मौलाना साहब ने हमारा दिल जीत लिया है। भगवान राम न तो हिंदुओं के हैं, न मुस्लिमों के, भगवान राम भारत की आत्मा हैं।
शिया वक्फ बोर्ड ने पहली बार सुप्रीम कोर्ट में ही एफिडेविट दायर करके ये कहा है कि अयोध्या में विवादित जगह उसकी प्रॉपर्टी है और वहां राम मंदिर बनाया जाना चाहिए। बता दें कि 30 सितंबर, 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवादित जमीन को राम जन्मभूमि न्यास, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के बीच 3 हिस्सों में बांटने का आदेश दिया था। इसे दी गई चुनौती पर सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच 11 अगस्त से सुनवाई शुरू कर चुकी है। फाइनल सुनवाई विवादित ढांचा गिराए जाने की 25वीं बरसे से एक दिन पहले 5 दिसंबर को होगी।
11 अगस्त को सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि अभी दस्तावेजों का ट्रांसलेशन नहीं हो पाया है, इसलिए इन्हें पेश नहीं किया जा सकता। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसलेशन के लिए तीन महीने का वक्त दे दिया। इस केस से जुड़े ऐतिहासिक दस्तावेज अरबी, उर्दू, फारसी, पाली और संस्कृत समेत 8 भाषाओं में हैं।
अयोध्या विवाद में 8 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई थी। इस दौरान शिया सेंट्रल बोर्ड ऑफ उत्तर प्रदेश ने अपने एफिडेविट में कहा था- बाबरी मस्जिद का इलाका हमारी प्रॉपर्टी है। इस विवाद के हल के लिए दूसरे पक्षों से बातचीत का अधिकार भी हमारे बोर्ड को ही है।
बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि इस बड़े विवाद के हल के लिए वो एक कमेटी बनाना चाहता है और इसके लिए उसे वक्त दिया जाए।
उत्तरप्रदेश शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी की ओर से यह एफिडेविट वकील एमसी ढींगरा  ने दायर किया। इसके मुताबिक, 'अयोध्या स्थित विवादित ढांचे पर सुन्नी वक्फ बोर्ड का दावा गलत है। यह मस्जिद मीर बकी ने बनवाई थी। वह शिया था। मस्जिद बनने के बाद से जितने भी मुतवल्ली रहे हैं, सब शिया बोर्ड से ही रहे हैं। यह ऐतिहासिक तथ्य है। बाबर तो कभी अयोध्या गया ही नहीं।
'बाबर पर लिखी गई किताब बाबरनामा में भी ऐसा कोई जिक्र नहीं है। ऐसे में इस मस्जिद पर शियाओं का हक है। इससे जुड़े फैसले भी शिया बोर्ड ही लेगा। सुप्रीम कोर्ट में चल रहे केस में उत्तरप्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड को पार्टी बनाना गलत है। अयोध्या विवाद शांतिपूर्ण ढंग से निपटाने के लिए शिया वक्फ बोर्ड तैयार है।
'विवादित जगह पर मंदिर बनवाया जाए। मस्जिद के लिए मुस्लिम बहुल इलाके में कहीं जगह दी जाए। अगर विवादित जमीन पर मंदिर-मस्जिद बनाए गए तो भविष्य में भी विवाद की आशंका रहेगी। विवाद शांति से निपटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में उच्चस्तरीय कमेटी बनाई जाए।बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के जफरयाब जिलानी ने शिया वक्फ बोर्ड को ज्यादा अहमियत देने से इनकार कर दिया है। जिलानी ने कहा था- ये सिर्फ अपील है और इस एफिडेविट का कानून में कोई महत्व नहीं है।
वहीं, बीजेपी सांसद सुब्रमण्यन स्वामी ने कहा कि मेरे हिसाब से शिया वक्फ बोर्ड ने एक अच्छा मैसेज दिया है।
राम मंदिर मुद्दा 1989 के बाद चर्चा में आया था। इस मुद्दे की वजह से तब देश में सांप्रदायिक तनाव फैला था। देश की राजनीति इस मुद्दे से प्रभावित होती रही है। हिंदू संगठनों का दावा है कि अयोध्या में भगवान राम की जन्मस्थली पर विवादित बाबरी ढांचा बना था। राम मंदिर आंदोलन के दौरान 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में विवादित बाबरी ढांचा गिरा दिया गया था। मामला अब सुप्रीम कोर्ट में है।
इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ भी सुनवाई शुरू की जाएगी। 30 सितंबर, 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट की एक बेंच ने अपना फैसला सुनाते हुए अयोध्या की विवादित 2.77 एकड़ जमीन को तीन बराबर हिस्सों में बांटने का आदेश दिया था।
बेंच ने तय किया था कि जिस जगह पर रामलला की मूर्ति है, उसे रामलला विराजमान को दे दिया जाए। राम चबूतरा और सीता रसोई वाली जगह निर्मोही अखाड़े को दे दी जाए। बचा हुआ एक-तिहाई हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया जाए।

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