शनिवार, अगस्त 12, 2017

डोकलाम विवाद सुलझाने के लिए दो विकल्पों पर काम कर रहा है भारत

भारत और चीन के बीच डोकलाम को लेकर तनातनी बरकरार है।
 
नई दिल्ली। 
भारत और चीन के बीच डोकलाम को लेकर तनातनी बरकरार है। फिलहाल दोनों ही देश इस मामले में अपने कदम पीछे खींचने को राजी नहीं हैं। पिछले दिनों इसी मुद्दे पर भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने चीन के राष्ट्रपति और वहां के एनएसए से भी बैठक की थी। इसके बाद भी फिलहाल इसका कोई हल नहीं निकला है। दोनों ही तरफ से सीमा पर सेना का जमावड़ा जारी है। इस बीच चीन के राष्ट्रपति की तरफ से बार-बार यह बयान दिया गया है कि उनकी सेना हर तरह से तैयार है। दो माह से जारी इस तनातनी के बीच भारत भी अपने रुख पर कायम है। लेकिन इसके साथ-साथ भारत इस मामले को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाने का भी प्रयास लगातार कर रहा है। यही वजह है कि ब्रिक्स देशों के एनएसए की मीटिंग के लिए चीन गए अजीत डोभाल ने वहां राष्ट्रपति शी चिनफिंग से भी मुलाकात की थी। गौरतलब है कि चीन ने एक दिन पहले ही इस बात को माना है कि डोकलाम एक विवादत क्षेत्र है। इससे पहले वह हर बार यही कहता रहा है कि यह चीन का इलाका है और यहां पर कभी उसके चरवाहे अपनी भेड़ें चराते थे।
भारत इस मुद्दे को सुलझाने के लिए दो विकल्पों पर काम कर रहा है। इन विकल्पों में पहला विकल्प यह है कि डोकलाम और भूटान की चीन से लगती सीमा से भारतीय फौज को हटाकर वहां पर भूटान की आर्मी को तैनात किया जाए। लेकिन इससे पहले चीन को भी वहां से अपनी सेनाएं हटानी होंगी। दूसरे विकल्प के तौर पर इस मामले को नंवबर तक खींचा जाए और इस बीच बातचीत कर मामले का शांतिपूर्ण हल तलाशने की कोशिश की जाए। इन दो विकल्पों में यदि विचार किया जाए तो पहला विकल्प शायद चीन को रास न आए। इसकी वजह यह भी है कि चीन इस जगह से अपनी सेना को पीछे हटाने के लिए राजी नहीं है। हालांकि चीन बार-बार भूटाने के इलाके में भारतीय सेना की मौजूदगी को लेकर शिकायत करता रहा है।
इस विकल्प के बीच जहां चीन को मामला सुलझाने और अपनी सेना को बिना किसी शर्मिंदगी से पीछे हटाने का मौका मिल जाएगा, वहीं आपसी बातचीत के जरिए इस मामले को सुलझाने में भी मदद मिलेगी। वहीं भारत मामले को सुलझाने की कवायद कर रहा है, लेकिन उसने साफ कर दिया है कि इस विवादित जगह पर वह चीन को सड़क बनाने की इजाजत भी नहीं देगा। गौरतलब है कि यह विवाद डोकलाम इलाके में चीन द्वारा जंफेरी तक सड़क बनाने से ही शुरू हुआ था। इस दौरान भारतीय सेना ने आपत्ति जताई थी, जिसके बाद विवाद बढ़ गया था और यह अब तक जारी है।
लेकिन इस विकल्प में आपसी तालमेल की भी दिक्कत सामने आ सकती है। इसके अलावा इसमें चीन की भी रजामंदी जरूरी होगी, जो फिलहाल काफी मुश्किल दिखाई देता है। इस विकल्प में एक दूसरी समस्या यह भी है कि यदि इस पर आगे बढ़ा जाए तो मुमकिन है कि भूटान इस पर राजी हो जाए, लेकिन इसके दूरगामी नतीजे शायद भारत के लिए सुखद न हों। इसकी वजह यह है कि यदि भारत इस मसले से हट जाता है तो चीन और भूटान के बीच सीधे तौर पर बातचीत शुरू होगी। ऐसे में दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संबंध भी हो सकते हैं। यह भारत के लिए शायद सही नहीं होगा। यहां पर यह बता देना भी जरूरी होगा कि मौजूदा समय में भूटान के यूएन सिक्योरिटी काउंसिल के पांच देशों से कोई कूटनीतिक रिश्ते नहीं हैं।
इसके अलावा यहां पर यह बात भी खास है कि वर्ष 2013 में भूटान ने अपनी नई विदेश नीति को लागू करने की कोशिश की थी। इस नीति के तहत भूटान ने चीन के साथ कूटनीतिक रिश्ते बनाने की तरफ कदम बढ़ाया था, लेकिन उस वक्त भारतीय एनएसए शिवशंकर मेनन और विदेश सचित सुजाता सिंह ने भूटान को इस तरह का कदम आगे न बढ़ाने की सलाह दी थी। यह इसलिए भी खास है क्योंकि भारत के लिए भूटान सामरिक दृष्टि से बेहद खास है। लिहाजा उसकी चीन से करीबी भारत के लिए खतरा बन सकती है। ऐसे में दूसरा विकल्प ज्यादा बेहतर दिखाई देता है।
दूसरे विकल्प में मामले को नंवबर तक टालने की बात है। ऐसा इसलिए है क्योंंकि इस दौरान होने वाली बर्फबारी में न तो इस इलाके में सड़क बनाना आसान होगा और न ही चीन की तरफ से अपनी सेनाओं को आगे लाना संभव होगा। यह समय मौजूदा राष्ट्रपति के लिए भी बेहद खास होगा। इसकी वजह है कि चीन में राष्ट्रपति चुनाव का समय निकट है। ऐसे में राष्ट्रपति किसी तरह के विवाद में नहीं फंसना चाहेंगे। इसके अलावा उनके ऊपर मामले को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाने का भी दबाव होगा, जिसके लिए उन्हें आपसी बातचीत के लिए सामने आना होगा। ऐसे समय में चीन, भारत के साथ किसी भी तरह के युद्ध में खुद को नहीं झोंकना चाहेगा।
इस दूसरे विकल्प का जिक्र रक्षा जानकार और पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल राज कादयान ने भी किया था। उनका कहना था कि यह मामला अक्टूबर या नवंबर तक यूं ही बना रहेगा। इसके बाद यह पूरा इलाका बर्फ से ढक जाएगा और चीन के लिए आगे बढऩा मुश्किल हो जाएगा। ऐसे में वह न तो वहां पर सड़क निर्माण ही कर पाएगा और न ही सेना को तैनात कर सकेगा। वहीं दूसरी ओर भारतीय फौज इस इलाके में पूरे साल तैनात रहती है। इस बातचीत के दौरान जनरल कादयान ने यह भी कहा कि चीन में राष्ट्रपति चुनाव नजदीक हैं, ऐसे में वहां के मौजूदा राष्ट्रपति सत्ता में वापसी के लिए किसी विवाद में फंसना नहीं चाहेंगे।
िलहाजा इस मुद्दे को सुलझाने के लिए उसको बातचीत की टेबल पर आना होगा। उनका यह भी कहना है कि भारतीय सेना जिस पोजीशन पर मौजूद है वह काफी अहम है और चीन के लिए नुकसानदायक भी है। वहीं ऐसे समय में जब चीन में राष्ट्रपति चुनाव होने हैं तो चीन अपने को किसी तरह के युद्ध में नहीं झोंकना चाहेगा।

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