हिमाचल की पीर पंजाल की पहाडिय़ों के पूर्वी हिस्से में तहसील भरमौर में स्थित है प्रसिद्ध मणिमहेश तीर्थ। यहां स्थित झील समुद्र तल से 15000 फुट की ऊंचाई व कैलाश पर्वत शिखर 19000 फुट की ऊंचाई पर है। मणिमहेश पर्वत के शिखर पर भोर में एक प्रकाश उभरता है, जो तेजी से पर्वत की गोद में बनी झील में प्रवेश कर जाता है। यह इस बात का प्रतीक माना जाता है कि भगवान शंकर कैलाश पर्वत पर बने आसन पर विराजमान होने आ गए हैं तथा यह अलौकिक प्रकाश उनके गले में पहने शेषनाग की मणि का है। मणिमहेश की यात्रा प्रत्येक वर्ष की श्रीकृष्ण जन्माष्टमी से राधा अष्टमी तक चलती है। आसमान छूते हिम शिखरों, फैले हुए ग्लेशियर व अल्हड़ नदी-नालों के बीच से होते हुए श्रद्धालु मणिमहेश पहुंचते हैं, जोकि एक रमणीय घाटी में स्थित है। मणिमहेश पर्वत की गोद में पर्वत शिखर पर प्राकृतिक रूप से 1 किलोमीटर की परिधि में बनी इस झील को देखकर हर कोई विस्मित रह जाता है। झील के किनारे और पर्वत शिखर के नीचे एक मंदिर है, जहां यात्री शीश नवाते हैं। यह मंदिर बिना छत का है। कहते हैं शिव भक्तों ने दो बार मंदिर पर छत का निर्माण करवाया, पर बर्फीले तूफानों में छत उड़ गई। यात्रा शुरू होने पर हड़सर गांव के कुछ पुजारी यहां मूर्तियां लाते हैं और समाप्ति पर वापस ले जाते हैं। हजारों की संख्या में श्रद्धालु मणिमहेश झील में स्नान कर पूजा करते हैं और अपनी इच्छा पूरी होने पर लोहे का त्रिशूल, कड़ी व झंडा इत्यादि चढ़ाते हैं। राधा अष्टमी वाले दिन जब सूरज की किरणें कैलाश शिखर पर पड़ती हैं, तो उस समय स्नान करने से मनुष्यों को अनेक प्रकार के रोगों से मुक्ति मिलती है। मणिमहेश यात्रा चंबा से शुरू होकर राख, खड़ा मुख इत्यादि स्थानों से होती हुई भरमौर पहुंचती है। यात्रा की खोज का श्रेय सिद्ध योगी चरपटनाथ जी को जाता है। यात्रा शुरू करने से पहले भरमौर से 6 किलोमीटर पहाड़ी के शिखर पर ब्रह्मा जी की पुत्री भ्रमाणी देवी का मंदिर स्थित है। मणिमहेश की यात्रा से पूर्व यहां पर आने से ही यात्रा पूर्ण मानी जाती है। आदिकाल से ही संत महात्मा योगी और भक्तजन मणिमहेश यात्रा की शुरुआत चंबा से ही करते रहे हैं क्योंकि चंबा का ऐतिहासिक प्राचीन लक्ष्मीनारायण मंदिर यात्रा का आधार एवं प्रारंभिक शिविर हुआ करता था। आजकल चंबा से 65 किलोमीटर दूर भरमौर चौरासी में रुक कर यात्री आगे बढ़ते हैं। चौरासी एक धार्मिक स्थल है जो चौरासी सिद्धों की तपोस्थली है, जहां विश्व का एकमात्र धर्मराज मंदिर स्थित है। चंबा से भरमौर 70 किलोमीटर व भरमौर से हड़सर 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है इसके आगे हड़सर से मणिमहेश खड़ी चढ़ाई, संकरे व पथरीले रास्तों वाली 14 मील की पैदल यात्रा है, तंग पहाड़ी में बसा हड़सर इस क्षेत्र का अंतिम गांव है। हड़सर से पैदल चढ़ाई करते हुए पहला पड़ाव आता है धनछो। यह रास्ता बहुत कठिन व मुश्किल है। धनछो से आगे और मणिमहेश झील से लगभग डेढ़-दो किलोमीटर पहले गौरीकुंड आता है। मणिमहेश झील आम यात्रियों व श्रद्धालुओं के लिए यही अंतिम स्थान है। मणिमहेश की डल झील शिव भगवान की स्नान स्थली है। सदियों से चल रही इस यात्रा को तभी सफल माना जाता है, जब यहां रात्रि व्यतीत कर भोर होते ही कैलाश पर्वत के दर्शन कर वहां कुदरती तौर पर उत्पन्न होने वाले दिव्य प्रकाश में झील में स्नान किया जाए।
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