शनिवार, अगस्त 19, 2017

भारत-चीन तनाव के पीछे की कहानी

नई दिल्ली। 
डोकलाम या डोका ला में असल में हुआ क्या था? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और डोनल्ड ट्रंप के शिखर सम्मेलन से पहले इस गतिरोध का होना एक संयोग मात्र है या फिर यह चीन द्वारा आयोजित ओबीओआर कॉन्फ्रेंस में भारत के हिस्सा न लेने का दुष्परिणाम है?
कई अनुमान लगाए जा रहे हैं मगर दोनों सरकारों के अलावा बहुत कम लोगों को मालूम है कि मौजूदा गतिरोध के पीछे की हक़ीक़त क्या है।
भारत की जनता को लगता है कि चीन तनाव को बढ़ा रहा है। चीन के लोगों को लगता है कि यह काम भारत कर रहा है। तेज रफ्तार वाले संचार साधनों के इस दौर में जो समझा जाता है, वही सच मान लिया जाता है। मगर दोनों सेनाओं के बंद दरवाज़ों के नीचे से कुछ रोशनी आ रही है।
सिक्किम और भूटान के बीच चुंबी घाटी की सबसे दूर की चोटी पर चीन एक सड़क बना रहा है जो डोकलाम के मैदान के नाम से पहचाने जाने वाले इलाके तक जाएगी।
इस इलाके पर चीन और भूटान दोनों का दावा है। तिब्बत और भूटान के याक और चरवाहे इस मैदान को इस्तेमाल करते हैं।
भारतीय सेना को लगता है कि यहां सड़क बनने पर चीन डोकलाम में तोपें तैनात कर सकता है। इससे भारत को उस इलाके में बड़ा ख़तरा हो जाएगा जो उसके के लिए रणनीतिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण है और संवेदनशील है। उत्तर पूर्व भारत के लिए रास्ता यहीं से है।
यह पतला और लंबा-सा दिखने वाला इलाका भारत में  चिकेन्स नेक  या  मुर्गे की गर्दन  के नाम से पहचाना जाता है। नक्शे पर चुंबी घाटी ऐसे खंजर-सी नजऱ आती है जो न सिफऱ् सिक्किम और भूटान को अलग करती है बल्कि असम और बाकी पूर्वोत्तर को भी भारत से अलग करती है।
ठीक-ठीक कहें तो यह माना जा सकता है कि ताज़ा विवाद चीन और भूटान के बीच है। भूटान 1910 में ब्रिटिश इंडिया का संरक्षित देश बन गया था। एक संधि पर हस्ताक्षर करने के बाद इसके विदेश और रक्षा मामलों का संचालन ब्रिटिश इंडिया हुकूमत के पास आ गया था।
भूटान उन शुरुआती देशों में से एक है जिन्होंने 1947 में आज़ादी मिलने पर भारत को राष्ट्र के तौर पर मान्यता दी थी। तभी से दोनों देशों के रिश्ते काफ़ी कऱीबी रहे हैं। जब 1950 में चीन ने तिब्बत को अपने में मिलाया, भारत और भूटान के रिश्ते और गहरे हो गए।
चीन का भारत और भूटान से सीमा को लेकर विवाद चला आ रहा है। अगस्त 1949 में भारत और भूटान के बीच  ट्रीटी ऑफ फ्रेंडशिप  या  मित्रता संधि  हुई थी जिसमें भूटान ने अपनी विदेश नीति में भारत से  मार्गदर्शन  लेने की सहमति दी थी।
 यह भी तय हुआ था कि रक्षा और विदेश मामलों में दोनों देश एक-दूसरे से विमर्श करेंगे।
इस संधि को लेकर 2007 में दोनों देशों में फिर चर्चा हुई और नई मित्रता संधि पर हस्ताक्षर हुए। इस संधि में भूटान द्वारा विदेश नीति पर भारत से मार्गदर्शन लेने के प्रावधान को व्यापक प्रभुसत्ता से बदल दिया गया। असल में भूटान बेहद संदेवनशील भौगोलिक स्थान पर है।
ऐसे में अगर भूटान पर ऐसा कोई दबाव पड़ता है जिससे इसकी सीमाओं में बदलाव हो सकता है, भारत को सैन्य दृष्टिकोण अपनाना ही पड़ेगा।
बीजिंग की तरफ़ से की गई कई टिप्पणियों में कहा गया कि भारत बिना भूटान से बातचीत के लिए कदम उठा रहा है जिसका मतलब हुआ कि वह उसकी इजाज़त के बिना यह सब कर रहा है। मगर 30 जून को भारत के विदेश मंत्रालय ने बयान जारी किया जिसने इस मामले में भारत और भूटान दोनों की स्थिति स्पष्ट की।
भारतीय विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि 16 जून को  पीएलए की निर्माण टीम डोकलाम में आई और सड़क बनाने की कोशिश की।
इसके बाद रॉयल भूटान आर्मी ने चीनी सेना को इस एकपक्षीय गतिविधि को रोकने को कहा।
फिर डोका ला इलाके में मौजूद भारतीय सैनिकों ने भूटान सरकार के साथ तालमेल बिठाते हुए चीनी सैनिकों से कहा कि वे यथास्थिति को न बदलें।
20 जून को भूटान के राजदूत ने भी नई दिल्ली में चीन के दूतावास के ज़रिए चीनी सरकार के सामने आपत्ति दर्ज करवाई। भूटान अपने रुख़ में शुरू से स्पष्ट रहा है।
विदेश मंत्रालय ने यह भी कहा कि इसके बाद भारत और चीन के विदेश मंत्रालयों के बीच इस मामले पर चर्चा हो रही है।
इस बयान में कहा गया था कि चीन द्वारा हाल में उठाए गए कदमों को लेकर भारत चिंतित है।
चीनी सरकार को अवगत करवा दिया गया है कि इस तरह के निर्माण से यथा स्थिति बदलेगी और भारत के लिए सुरक्षा को लेकर मुश्किल पैदा होगी।
2012 के समझौते में तय हुआ था कि भारत, चीन और अन्य देशों के बीच मिलने वाली सीमा को संबंधित देशों के बीच विमर्श के बाद तय किया जाएगा।
भारत का कहना है कि जिस जगह पर तीन देशों की सीमाएं मिलती हैं, वहां पर एकतरफ़ा गतिविधि इस समझौते का उल्लंघन है।
अन्य गलतफ़हमियों ने दोनों देशों के बीच एक-दूसरे को लेकर धारणाओं को ग़लत साबित किया है।
भारत और चीन के बीच प्रभाव बढ़ाने की होड़ और आपसी बैर को लेकर चीनी विशेषज्ञों का कहना था कि ताज़ा गतिरोध दिखाता है कि भारत 1962 में सीमा को लेकर हुए युद्ध की शर्मनाक हार से उबर नहीं पाया है।
भारत के विदेश मंत्री ने यह दर्शाते हुए कि भारत इस मामले से सैन्य शक्ति से निपट सकता है, कहा कि यह 2017 है, 1962 नहीं। ऐसा बयान देने की जरूरत नहीं थी।
बिजिंग का एक नज़रिया यह भी है कि चीन को काउंटर करने के लिए भारत उस चीन विरोधी गुट में सक्रिय भूमिका निभा रहा है जिसमें अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और वियतनाम शामिल हैं।
चीन और पाकिस्तान की कऱीबी को भारत भी चिंता की नजर से देखता है। दोनों देशों में न्यूक्लियर और मिसाइल तकनीक ट्रांसफऱ किए जाने को भी वह ग़लत बताता है।
भारत को यह भी लगता है कि चीन जानबूझकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा समिति और न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप जैसे ग्लोबल जैसे मंचों पर भारत के प्रवेश का विरोध करता है।
पिछले महीने बीजिंग में हुए बिल्ट ऐंड रोड समिट से भारत की ग़ैरमौजूदगी को चीनी मीडिया ने भारत और चीन के तनावपूर्ण रिश्तों का सबूत करार दिया था।
भले ही दोनों देशों के आर्थिक और व्यापारिक रिश्ते बढ़ रहे हैं, मगर दोनों ही एक-दूसरे को लेकर संशय रखते हैं।

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