माता वैष्णो देवी धाममाना जाता है कि त्रेता युग में भगवान विष्णु ने राम का अवतार लिया था। रावण ने जब सीता का अपहरण कर लिया, तो राम उनकी खोज में वन-वन भटकने लगे। भगवान राम जब दक्षिण दिशा की ओर जा रहे थे, तो रास्ते में उन्हें वैष्णवी नाम की एक दिव्य कन्या मिली। राम और लक्ष्मण को वन में भटकते देख वैष्णवी ने उन्हें तनिक देर विश्राम करने की सलाह दी और स्वयं उनके लिए फलाहार ले आई। कुछ देर विश्राम के बाद जब श्रीराम वहां से जाने लगे, तो वैष्णवी ने उनसे विवाह की इच्छा जताई। उनके इस अनुरोध पर श्रीराम ने कहा कि वे विवाहित हैं और इस समय अपनी पत्नी सीता की खोज में यहां-वहां भटक रहे हैं। इसलिए उनका पहला धर्म पत्नी की खोज करना है। वापसी में जब वे लौटेंगे, तब यदि वैष्णवी ने उन्हें पहचान लिया, तो वह उससे विवाह अवश्य करेंगे। अपना वनवास समाप्त कर राम जब सीता के साथ लौट रहे थे, तो वैष्णवी उन्हें पहचान नहीं पाई। उन्होंने राम की सच्चे मन से सेवा की थी इसलिए राम ने उन्हें आशीर्वाद दिया और कहा कि वह त्रिकुटा पर्वत पर अपना दरबार लगाए और कलियुग में सभी का कल्याण करे। उसी समय उन्होंने त्रिकुटा पर्वत की राह पकड़ ली।
कौल कंडोली- जब वह पर्वत की ओर जा रही थी, तो उनका पहला पड़ाव हुआ जम्मू के नगरोटा स्थित कौल कंडोली मंदिर में। इस मंदिर में कटोरे जैसा एक कुआं है। कुएं के पास ही विशाल वट वृक्ष है, जिस पर झूले डले हुए हैं। मान्यता है कि वैष्णवी यहां अपनी सहेलियों के साथ झूला झूलती थी।
देवा माई मंदिर- कुछ समय कौल कंडोली में रहने के बाद वैष्णवी देवा माई मंदिर चली गईं। यह मंदिर कटरा में स्थित है।
श्रीधर का भंडारा- माता वैष्णवी के एक भक्त थे श्रीधर। उनकी भक्ति से खुश होकर माता ने उन्हें अपने घर में भंडारा करने को कहा। श्रीधर के मन में यह विचार आ रहा था कि वह इसे कैसे करेंगे? घर पहुंचते ही उन्होंने देखा कि उनका घर भोजन और मिठाइयों से भरा हुआ है। श्रीधर के भंडारे में एक साधक भैरो आए। उन्होंने उनसे मांस और मदिरा की मांग की। इस बात पर वैष्णवी और भैरो में भयंकर वाक युद्ध चला और भैरो उनके पीछे दौड़ा। वैष्णवी अभी कन्या थी इसलिए उससे बचने के लिए त्रिकुटा पर्वत की ओर भागने लगी।
भैरो घाटी- माना जाता है देवी रक्षा के लिए स्वयं हनुमान आ गए थे। इसलिए नवरात्र के अवसर पर यहां कन्या पूजन के समय एक छोटे बालक को लंगूर वीर का रूप दिया जाता है और उसकी पूजा की जाती है। जहां माता ने अपने बाल धोए और हनुमान उनकी रक्षा के लिए खड़े हुए, वह स्थान बाण गंगा कहलाता है। जिस स्थान पर ठहर कर माता ने भैरो की ओर देखा, वहां आज भी माता के चरणों के चिन्ह देखे जा सकते हैं, इसे चरण पादुका कहा जाता है। भैरो वैष्णवी से अधिक बलशाली था। शक्ति अर्जित करने के लिए उन्हें अभी और तपस्या करनी थी। इसलिए वह एक गुफा में चली गईं। इस गुफा में नौ मास तक छुपकर उन्होंने सभी शक्तियां और सिद्धियां अर्जित कर लीं। यह स्थान गर्भ जून कहलाता है। मान्यता है कि सभी शक्तियों से संपूर्ण अष्ट भुजा धारी मां वैष्णो बनकर बाहर निकलीं और भैरो का संहार किया। माता के त्रिशूल के प्रहार से भैरो का सिर दूर पहाड़ी पर जा गिरा और धड़ वहीं गिरकर तड़पने लगा। उसने जब मां से क्षमा याचना की, तो मां ने आशीर्वाद दिया कि इस स्थान पर मेरी पूजा-अर्चना के बाद यदि श्रद्धालु भैरो के दर्शन करते हैं, तभी उनकी यात्रा पूरी होगी। इसलिए यहां आने वाले श्रद्धालु भैरो घाटी जरूर जाते हैं।
पूरी होती है मन्नत- यहां माता तीन पिंडियों के रूप में स्थापित है, जो महासरस्वती, महाकाली और महालक्ष्मी का रूप मानी जाती हैं। महासरस्वती सत गुण, महालक्ष्मी रज गुण और महाकाली तम गुण की स्वामिनी है। जब इन तीनों गुणों की एक साथ आराधना की जाए, तो इनके आशीर्वाद से सिद्धिदायक योग बनता है।
कौल कंडोली- जब वह पर्वत की ओर जा रही थी, तो उनका पहला पड़ाव हुआ जम्मू के नगरोटा स्थित कौल कंडोली मंदिर में। इस मंदिर में कटोरे जैसा एक कुआं है। कुएं के पास ही विशाल वट वृक्ष है, जिस पर झूले डले हुए हैं। मान्यता है कि वैष्णवी यहां अपनी सहेलियों के साथ झूला झूलती थी।
देवा माई मंदिर- कुछ समय कौल कंडोली में रहने के बाद वैष्णवी देवा माई मंदिर चली गईं। यह मंदिर कटरा में स्थित है।
श्रीधर का भंडारा- माता वैष्णवी के एक भक्त थे श्रीधर। उनकी भक्ति से खुश होकर माता ने उन्हें अपने घर में भंडारा करने को कहा। श्रीधर के मन में यह विचार आ रहा था कि वह इसे कैसे करेंगे? घर पहुंचते ही उन्होंने देखा कि उनका घर भोजन और मिठाइयों से भरा हुआ है। श्रीधर के भंडारे में एक साधक भैरो आए। उन्होंने उनसे मांस और मदिरा की मांग की। इस बात पर वैष्णवी और भैरो में भयंकर वाक युद्ध चला और भैरो उनके पीछे दौड़ा। वैष्णवी अभी कन्या थी इसलिए उससे बचने के लिए त्रिकुटा पर्वत की ओर भागने लगी।
भैरो घाटी- माना जाता है देवी रक्षा के लिए स्वयं हनुमान आ गए थे। इसलिए नवरात्र के अवसर पर यहां कन्या पूजन के समय एक छोटे बालक को लंगूर वीर का रूप दिया जाता है और उसकी पूजा की जाती है। जहां माता ने अपने बाल धोए और हनुमान उनकी रक्षा के लिए खड़े हुए, वह स्थान बाण गंगा कहलाता है। जिस स्थान पर ठहर कर माता ने भैरो की ओर देखा, वहां आज भी माता के चरणों के चिन्ह देखे जा सकते हैं, इसे चरण पादुका कहा जाता है। भैरो वैष्णवी से अधिक बलशाली था। शक्ति अर्जित करने के लिए उन्हें अभी और तपस्या करनी थी। इसलिए वह एक गुफा में चली गईं। इस गुफा में नौ मास तक छुपकर उन्होंने सभी शक्तियां और सिद्धियां अर्जित कर लीं। यह स्थान गर्भ जून कहलाता है। मान्यता है कि सभी शक्तियों से संपूर्ण अष्ट भुजा धारी मां वैष्णो बनकर बाहर निकलीं और भैरो का संहार किया। माता के त्रिशूल के प्रहार से भैरो का सिर दूर पहाड़ी पर जा गिरा और धड़ वहीं गिरकर तड़पने लगा। उसने जब मां से क्षमा याचना की, तो मां ने आशीर्वाद दिया कि इस स्थान पर मेरी पूजा-अर्चना के बाद यदि श्रद्धालु भैरो के दर्शन करते हैं, तभी उनकी यात्रा पूरी होगी। इसलिए यहां आने वाले श्रद्धालु भैरो घाटी जरूर जाते हैं।
पूरी होती है मन्नत- यहां माता तीन पिंडियों के रूप में स्थापित है, जो महासरस्वती, महाकाली और महालक्ष्मी का रूप मानी जाती हैं। महासरस्वती सत गुण, महालक्ष्मी रज गुण और महाकाली तम गुण की स्वामिनी है। जब इन तीनों गुणों की एक साथ आराधना की जाए, तो इनके आशीर्वाद से सिद्धिदायक योग बनता है।
0 टिप्पणियाँ :
एक टिप्पणी भेजें