बुधवार, अप्रैल 05, 2017

'नहीं देगा भारत अब पाकिस्तान को पहले हमला करने का मौका'

नई दिल्ली।
 दुश्मनों के खिलाफ परमाणु हथियारों के इस्तेमाल को लेकर भारत के अपनी 'नो फस्र्ट यूज' पॉलिसी से हटने के संकेतों के बीच पाकिस्तान टेंशन में है। उसकी यह टेंशन और ज्यादा इसलिए भी बढ़ी हुई है क्योंकि भारत में बीजेपी की अगुआई में 'कट्टर हिंदुत्ववादी अजेंडे' वाली सरकार का शासन है। बता दें कि न्यूक्लियर एक्सपर्ट्स ने यह माना है कि भारत की दशकों पुरानी न्यूक्लियर डॉक्टरिन (परमाणु हथियार इस्तेमाल करने की नीति) में बदलाव के संकेत मिले हैं। यानी किसी हमले की आशंका में भारत पहले ही अपने दुश्मन के खिलाफ बड़ा और व्यापक स्तर का न्यूक्लियर हमला कर सकता है।
पाकिस्तान के इस टेंशन की एक झलक देश के जॉइंट चीफ ऑफ स्टाफ कमिटी के पूर्व चेयरमैन एहसान उल हक के बयान से मिलती है। हक परमाणु हथियारों को लेकर पाकिस्तान की सोच के नजदीक माने जाते हैं। पाकिस्तान के एक अखबार में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, हक ने कहा कि एक्सपर्ट्स के खुलासे से भारत के नो फर्स्ट यूज पॉलिसी के दावे की कलई खुल गई है। 'लर्निंग टु लिव विद द बॉम्ब, पाकिस्तान 1998-2016' नाम की किताब के विमोचन के मौके पर हक ने कहा, 'यह चिंताजनक है कि ऐसा भारतीय जनता पार्टी की कट्टर हिंदुत्व एजेंडे वाली सरकार की पृष्ठभूमि में हो रहा है।' बता दें कि इस किताब को पाकिस्तान के स्ट्रैटिजिक प्लानिंग डिविजन के डॉ नईम सालिक ने लिखा है।
दरअसल, पाकिस्तान की यह टेंशन विश्व प्रसिद्ध मेसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी के विद्वान विपिन नारंग ने वॉशिंगटन में आयोजित इंटरनैशनल न्यूक्लियर पॉलिसी कॉन्फ्रेंस में दिए गए व्याख्यान और पूर्व भारतीय रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर के बयान से बढ़ी है। नारंग ने कहा था, भारत का शुरुआती प्रहार पारंपरिक हमलों की तरह नहीं होगा। भारत अपने दुश्मन के छोटी रेंज के नस्र न्यूक्लियर मिसाइल सिस्टम को तबाह करने तक ही खुद को सीमित नहीं रखेगा। वह एक बड़ा और व्यापक हमला करेगा, जिसका मकसद पाकिस्तान के न्यूक्लियर हथियारों के जखीरे को पूरी तरह बर्बाद करना होगा। ऐसा इसलिए ताकि भारत को पाकिस्तान के खिलाफ बार-बार जवाबी हमले न करने पड़े और न ही उसके शहरों पर परमाणु हमलों का खतरा मंडराए। इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि भारत अब पाकिस्तान को पहले हमला करने का मौका नहीं देगा।
वहीं, पूर्व रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने पिछले साल नवंबर में सवाल उठाया कि आखिर क्यों भारत को परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की पहल करने से खुद को रोकना चाहिए। हालांकि, बाद में उन्होंने इसे अपना निजी नजरिया करार दिया था। पर्रिकर के बाद पूर्व विदेश सचिव शिवशंकर मेनन ने भी माना कि किसी परमाणु ताकत संपन्न देश के खिलाफ भारत न्यूक्लियर हथियार कब इस्तेमाल करेगा, इससे जुड़ी स्थितियां साफ नहीं हैं। इन विचारों के बाद न्यूक्लियर एक्सपर्ट यह सोचने के लिए मजबूर हो गए कि क्या भारत परमाणु हथियारों के इस्तेमाल के सिद्धांतों को नई दिशा दे रहा है?
जनरल हक ने कहा कि भारत की अपनी नीति से हटने का इशारा हाल फिलहाल में उसकी ओर से उठाए गए कई भड़काऊ कदमों से भी मिलता है। हक के मुताबिक, भारत के बार-बार बलूचिस्तान और गिलगिट-बाल्टिस्तान के मुद्दे उठाने, सार्क समिट में बाधा पहुंचाने, लाइन ऑफ कंट्रोल पर तनाव बढ़ाने, सर्जिकल स्ट्राइक का दावा करने, पाकिस्तान को अलग-थलग करने की कोशिशों और देश में युद्धोन्माद के माहौल से दोनों देशों के बीच तनाव काफी बढ़ गया।
वहीं, डॉ सालिक ने कहा कि हालिया घटनाक्रम जिसमें भारत के कथित तौर पर अपने न्यूक्लियर हथियारों के इस्तेमाल की नीति से विस्थापन भी शामिल है, ने पाकिस्तान के रणनीतिकारों की चिंता बढ़ा दी है। उन्होंने कहा, हमें न केवल अपनी तरफ के खेल को समझना होगा, बल्कि यह भी देखना होगा कि दूसरी तरफ क्या चल रहा है ताकि हम उनसे (भारत) भी सीख सकें और अपने तौर तरीकों में बदलाव कर सकें।
बता दें कि भारत का पड़ोसी पाकिस्तान अपनी न्यूक्लियर ताकत की आड़ में उसके खिलाफ आतंकवाद को एक हथियार के तौर पर लगातार इस्तेमाल कर रहा है। जानकार मानते हैं कि अगर आगे भी ऐसे ही हालात रहे तो भारत का सब्र का बांध टूट सकता है। वह परमाणु हथियारों को पहले इस्तेमाल न करने की अपनी नीति की दोबारा से समीक्षा कर सकता है ताकि पड़ोसी की किसी अगली हरकत से पहले ही जवाब दिया जा सके।

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