शनिवार, अप्रैल 29, 2017

बाराबंकी की सावित्री, पति को मौत के मुंह से निकला

पति को मौत के मुंह से निकाल लाई ये पत्नी, 

वो बोला-जिंदगी भर का कर्जदार हूं

लखनऊ। 
आपने सावित्री की कहानी तो सुनी ही होगी, कि कैसे उसने पति को मौत के मुंह से निकला था। बाराबंकी की सीता यादव की कहानी भी कुछ ऐसी है। यहां सीता के पति की कैंसर के चलते दोनों किडनी खराब हो गई। उसका का कहना है, परिवार वालों ने भी दूरियां बना ली। पति की हालत देख आता था रोना, फिर मैंने खुद किडनी देने का फैसला कर लिया। जो थोड़े बहुत गहने मायके से मिले उसको बेचकर इलाज कराया।
लखनऊ के पीजीआई में 29 साल के शेर बहादुर का कैंसर का इलाज चल रहा है। इसके परिवार में पत्नी सीता यादव (27) और एक बेटा और एक बेटी है। ये बाराबंकी के रहने वाले हैं और इनकी दोनों किडनी खराब हो चुकी है। इसके चलते करीब 4 साल से बेड पर ही हैं।
पत्नी सीता ने बताया, पति ड्राइवर का काम करता थे। 2014 में एक दिन काम के बाद रात में घर आए तो इनके मुंह और नाक से ब्लड आने लगा। तुरंत हमने बाराबंकी के ही सफेदाबाद में चेकअप कराया। वहां के डॉ हरनाम वर्मा ने बताया कि पति की रिपोर्ट में कैंसर निकला है।
सीता का कहना है, घर की आर्थिक हालत भी खराब थी, इतना पैसा ही नहीं था की अच्छे डॉक्टर को दिखा सकें। ये सब सोचकर मुझे रोना आता था। फिर मैंने जो थोड़े बहुत गहने मायके से मिले थे उसे बेचकर कुछ पैसों का इंतजाम किया। 2014 में पति को इलाज के लिए पीजीआई लेकर आए। यहां डॉक्टरों ने इलाज के लिए डेढ़ साल बाद की डेट दे दी थी। उसके बाद डॉ. राम मनोहर लोहिया इंस्टीटयूट गए तो डॉ. अभिलाष चंदा को दिखाया। उन्होंने किडनी ट्रांसप्लांट कराने की एडवाइस दी। कुछ टेस्ट कराए फिर ट्रांसप्लांट के लिए डॉक्टर तैयार हो गए।
युवक की पत्नी ने बताया, किडनी देने के लिए घरवालों में से कोई भी तैयार नहीं हुआ। धीरे-धीरे सबने दूरियां बना ली। कोई अपनी बीमारी तो कोई अपनी अन्य वजह बताने लगा। उस वक्त पति ओटी में थे। डॉक्टर ने कहा, अगर देर हो गई तो बचाना मुश्किल होगा। जब कोई नहीं तैयार नहीं हुआ तो फिर मैंने अपनी किडनी देने का फैसला किया। मेरी बायीं किडनी निकालकर पति को लगाई गई, तब जाकर उनकी जान बच पाई।
वहीं, युवक शेर बहादुर का कहना है, जिस तरीके से पत्नी ने मौत के मुंह से निकाला है। इसके लिए जीवन भर उसका कर्जदार रहूंगा।
सीता ने बताया कि उसकी घर की हालत ठीक नहीं है। पति कैंसर से पीडि़त है। उनका अभी भी लोहिया इंस्टीटयूट में इलाज चल रहा है।  बीपीएल कार्ड से सरकारी मदद भी मिली थी, लेकिन उससे कुछ खास फायदा नहीं हुआ। इसलिए उन्हें सरकार से बड़ी मदद की जरूरत है।

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