बुधवार, अप्रैल 05, 2017

अंधी दौड़ से उपजता तनाव

हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट में हम खुश रहने के मामले में बहुत ही पिछड़े हुए निकले। क्यों खुश नहीं हैं हम? क्यों तनाव दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है? क्यों बढ़ी हुई सैलरी भी हमें खुशी नहीं दे रही? हमारे काम का बोझ कम करने वाले उपकरण हमारे पास हैं, फिर भी क्यों काम खत्म होने का नाम नहीं ले रहे? क्यों हमारे बच्चे अपना बचपन भूलते जा रहे हैं? क्यों सब आगे बढऩे की होड़ में लगे हैं? ऐसे सैकड़ों सवाल हैं जिनका जवाब हम नहीं जानते और हम जवाब ढूंढने की फिराक में दुखी हैं। आज हम खुश दिखते हैं, तो सेल्फी में और सोशल मीडिया पर फोटो अपलोड करते समय। हमारे पास तो अब इतना समय भी नहीं है कि हम उन कारणों पर भी गौर कर लें कि हम दुखी क्यों हैं। तनाव से ग्रस्त लोगों की संख्या दिन दूनी और रात चौगुनी की गति से बढ़ रही है। वजह है कि आज हम अपने दु:ख-दर्द बांटना भूल गए हैं। अपनी समस्याओं का समाधान हम नहीं करते, बल्कि गूगल से पूछते हैं। दोस्तों के कंधों पर रो कर नहीं, बल्कि फेसबुक पर दु:ख भरी पोस्ट शेयर करके करते हैं। उस पर भी यह टेंशन कि लाइक्स और कमेंट्स कितने मिले हैं। रिश्तों में मोलभाव करने लगे हैं और हम सोच रहे हैं हम दुखी क्यों है?  समय है थोड़ा थमने का, एक चैन की सांस लेने का, अपने आप को आराम देने का। थोड़ा समय अपने लिए निकालकर वह करें जिससे मन को सुकून मिले, थोड़ा समय अपनों के लिए निकालिए, फिर बदलाव को महसूस करिए।

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