शनिवार, जुलाई 15, 2017

संकट न बन जाए जीएसटी


मोदी सरकार ने गुड्स एंड सर्विस टैक्स लागू करके महान उपलब्धि हासिल की है। जीएसटी के अंतर्गत व्यापार कई तरह से सुलभ हो जाएगा। अब तक उद्योगों को एक्साइज ड्यूटी तथा बिक्री कर अलग-अलग अदा करना होता था तथा इनके रिटर्न अलग-अलग दाखिल करने होते थे। इन दोनों करों का विलय जीएसटी में हो गया है। उद्यमी को अब एक ही कर अदा करना होगा एवं एक ही कर अधिकारी से संपर्क करना होगा। अंतरराज्यीय व्यापार आसान हो जाएगा। अब तक एक राज्य से दूसरे राज्य को माल भेजने के लिए सीमा पर बिक्री कर फार्म जमा करना होता था। एक राज्य में अदा किए गए वैट का क्रेडिट दूसरे राज्य में नहीं मिलता था। अब राज्यों के बीच बेरोकटोक माल का आवागमन होगा। एक राज्य में अदा किए गए जीएसटी का क्रेडिट दूसरे राज्य में लिया जा सकेगा। तीसरा अंतर है कि अब तक सेवा कर-जैसे रेल यात्रा, टेलीफोन अथवा बिजली-पर अदा किए गए सेवा कर का क्रेडिट नहीं मिलता था। अब इनका क्रेडिट लिया जा सकेगा। छोटे व्यापारियों को छूट दी गई है। 20 लाख तक का कारोबार करने वाले व्यापारियों को जीएसटी के अंतर्गत पंजीकरण से मुक्त कर दिया गया है। इन क्रांतिकारी सुधारों का अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। हम आशा कर सकते हैं कि आने वाले समय में अर्थव्यवस्था तेजी से दौड़ेगी जैसे गाड़ी में अच्छा मोबिल ऑयल डालने से उसकी रफ्तार सहज ही बढ़ जाती है।
दूसरी तरफ जीएसटी में कागजों का टंटा है।  जीएसटी के नियमों का अनुपालन कठिन है। जैसे व्यापारी को माल एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजने के पहले बिल काट कर जीएसटी पोर्टल पर अपलोड करना होगा। इस बिल में माल की गुणवत्ता, मात्रा, क्रेता की डिटेल तथा उस वाहन की डिटेल डालनी होगी, जिससे माल भेजा जा रहा है। इसके बाद व्यापारी को ई-वे बिल बनाना होगा जैसे वर्तमान में डिलीवरी चालान होता है। वाहन को अपने साथ इसे ई-वे बिल को रखना होगा। यदि माल को एक गाड़ी से दूसरी में पलटी किया जाता है, तो ट्रक ड्राइवर को नए ट्रक की डिटेल जीएसटी पोर्टल पर अपलोड करनी होगी ओर पोर्टल से नया ई-वे बिल निकालना होगा। उद्योगों के लिए कागजी कार्य बहुत बढ़ जाएगा। वर्तमान में इन्हें केवल एक कागजी बिल काटना होता था, जो कि पर्याप्त होता था। अब इसमें माल का पूरा विवरण तथा वाहन का डिटेल भी डालना होगा। इन प्रावधानों का उद्देश्य नंबर दो के धंधे पर नियंत्रण पाना है। मेरा आकलन है कि यह व्यवस्था नंबर दो को बंद करने में नाकाम होगी। एक कारण है कि एक्साइज ड्यूटी तथा बिक्री कर का विलय दोतरफा तलवार है। एक तरफ इससे टैक्स व्यवस्था का सरलीकरण होता है, तो दूसरी तरफ इससे नंबर दो का धंधा भी आसान हो जाता है। एक उद्यमी ने बताया कि वर्तमान में उन्हे नंबर दो में माल उठाने के लिए एक्साइज और बिक्री कर के अधिकारियों का अलग-अलग हिस्सा बांधना होता है। उनके अनुसार अब यह कार्य आसान हो जाएगा, चूंकि अब केवल एक जीएसटी अधिकारी का हिस्सा बांधना होगा।
नंबर दो को रोकने के लिए ई-वे बिल की व्यवस्था की गई है। वर्तमान में व्यापारी एक ही बिल पर कई बार गोदाम से माल निकाल लेते हैं। ट्रक के साथ बिल गंतव्य स्थान को जाता है। माल पहुंच जाने के बाद वह बिल वापस लाकर उसी बिल पर दोबारा माल भेजा जाता है। यह व्यवस्था पूर्ववत जारी रहेगी। अंतर मात्र यह पड़ेगा कि निर्धारित अवधि में उसी वाहन से दोबारा माल को भेजना होगा। जैसे 120 किलोमीटर दूर क्रेता को माल भेजने का ई-वे बिल तीन दिन के लिए वैध होता है। सोनीपत से दिल्ली की 120 किलोमीटर की दूरी उसी वाहन द्वारा तीन दिन में छह बारी पूरी की जा सकती है। नंबर दो के जारी रहने का तीसरा कारण टैक्स कर्मियों का मूल चरित्र है। हम देख चुके हैं कि नोटबंदी को किस प्रकार बैंक कर्मियों ने फेल किया है। छोटे लोग 4,000 रुपए बदलने के लिए घंटो लाइन में लग रहे थे, जबकि बड़ी मछलियां तीन दिन बाद ही नए नोटों में लाख-लाख रुपए का नकद में धंधा पूर्ववत कर रही थीं। इस किस्म के कई मामले प्रकाश में आए भी, जहां लाखों-करोड़ों की रकम जब्त की गई। यह बात भी एकदम स्पष्ट है कि देश के टैक्स कर्मी यदि ईमानदार होते तो नंबर दो का धंधा होता ही नहीं। जैसा ऊपर बताया गया है कि नंबर दो के माल में टैक्स कर्मियों का हिस्सा बंधा होता है। जीएसटी के अंतर्गत नंबर दो की समानांतर व्यवस्था चलते रहने का मेरा अनुमान है। इन कारणों से जीएसटी व्यवस्था से नंबर दो को बंद करने में मदद कम ही मिलेगी। कच्चे माल की खरीद पर अदा किए गए एक्साइज ड्यूटी तथा वैट का क्रेडिट पहले भी उपलब्ध था, लेकिन नंबर दो का धंधा चलता रहा। तब जीएसटी में इस क्रेडिट के कारण नंबर दो का धंधा बंद क्यों होगा? यूं समझिए कि अच्छी कंपनी का ठप्पा लगे डुप्लीकेट मोबिल ऑयल को डालने से गाड़ी नहीं दौड़ती है। इसी प्रकार जीएसटी की दिखावटी कागजी कार्रवाई बढ़ाने से चोरी कम नहीं होगी।
सरकार को समझना चाहिए कि ताले शरीफों के लिए लगाए जाते हैं। चोर के लिए ताले को खोलना आसान काम होता है। टैक्स की चोरी बंद करने का मूल मंत्र नैतिक दबाव होता है। जनता को महसूस होना चाहिए कि टैक्स देना उसकी जिम्मेदारी है। उसे लगना चाहिए कि टैक्स अदा न करना पाप होगा। यह नैतिक दबाव तब बनेगा, जब सरकार पारदर्शी तरीके से जनता को दिखा सकेगी कि वसूले गए राजस्व का जनहित में सदुपयोग हो रहा है। मोदी सरकार ने सरकारी धन के उपयोग में निश्चित रूप से सुधार लाया है, परंतु राजस्व का बड़ा हिस्सा भ्रष्ट सरकारी कर्मियों को उत्तरोत्तर अधिक सुविधाएं मुहैया कराने में किया जा रहा है। मोदी के वैभव से भी जनता में सौहार्द उत्पन्न नहीं होता है। जैसे सोने के तार से 'मोदी
लिखे कपड़े की महंगी सूट पहन कर प्रधानमंत्री चाय वाले से जीएसटी अदा करने को कहें, तो नैतिक दबाव नहीं बनता है। नैतिक दबाव के अभाव में कागजी प्रपंच बढ़ाने का परिणाम होगा कि टैक्स कर्मियों का हिस्सा बढ़ेगा, व्यापार की गति धीमी होगी और नंबर दो के धंधे में मामूली अंतर पड़ेगा-इसमें वृद्धि भी हो सकती है। जीएसटी के साथ-साथ केंद्र की मोदी सरकार की कर्मठता के अर्थव्यवस्था पर दो परस्पर विरोधी प्रभाव होंगे। जीएसटी लागू होने से अंतरराज्यीय व्यापार सरल हो जाएगा। सर्विस टैक्स का क्रेडिट लिया जा सकेगा। इससे अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी। लेकिन कागजी कार्यों की वृद्धि के कारण यह सकारात्मक प्रभाव कुछ मंद पड़ जाएगा। कितना मंद पड़ेगा, यह तो समय ही बताएगा। हो सकता है कि सरलीकरण का सकारात्मक प्रभाव कम और कागजी कार्य का नकारात्मकप्रभाव ज्यादा हो। दूसरी तरफ सरकार के वैभव तथा भ्रष्ट सरकारी कर्मियों के उत्तरोत्तर बढ़ते वेतन से टैक्स की चोरी करने का नैतिक आधार पूर्ववत बना रहेगा। इस प्रकार संभावना है कि जीएसटी का अंतिम परिणाम नोटबंदी की तरह घातक सिद्ध हो सकता है।

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