जब भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने राष्ट्रपति उम्मीदवार की घोषणा कर दी
सोमवार 19 जून को रहस्य की तमाम गांठें खुल गईं, जब भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने सत्तारूढ़ एनडीए की ओर से राष्ट्रपति उम्मीदवार की घोषणा कर दी। बेशक यह चौंकाने वाला नाम था, जो नाम लिए जा रहे थे, उन सभी पर फिर मोदी ने लकीर फेर दी और ऐसा नाम पार्टी के संसदीय बोर्ड से तय कराया, जो हर लिहाज से गुमनाम रहा है। इस संदर्भ में दिवंगत श्रीमती इंदिरा गांधी का एक पुराना संदर्भ याद आता है। वह हैदराबाद गई थीं और अड्डे पर अगवानी के लिए नेताओं की एक भरपूर कतार में खड़ी थी। इंदिरा गांधी ने सभी से हाथ मिलाए, लेकिन कतार के आखिरी सिरे पर खड़े नेता का नाम पूछा। घबराते हुए और संकोच के साथ उसने जवाब दिया- 'टी. अंजैया इंदिरा गांधी ने तुरंत अपना फैसला सुनाया- 'आज से आप आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री होंगे। अंजैया मुख्यमंत्री बन गए। फिर मोदी की शैली भी वैसी ही कराती है। दिल्ली में कुछ दीवारों पर लालकृष्ण आडवाणी के नाम के पोस्टर भी चिपकाने शुरू हो गए थे, लेकिन जब राष्ट्रपति पद के लिए नाम की घोषणा की गई, तो भाजपा और संघ के भीतर कई नेता स्तब्ध हुए होंगे। बेशक रामनाथ कोविंद राज्यसभा के दो बार सांसद रहे। 2015 से बिहार के राज्यपाल हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश में कानपुर के जिस इलाके के कोविंद निवासी रहे हैं, उनमें भी वह ज्यादा लोकप्रिय नहीं रहे। बेशक वह दलितों के कोमी समाज में आते हैं, लेकिन वह बड़े राष्ट्रीय दलित नेता भी नहीं रहे, लेकिन अब उनका राष्ट्रपति बनना पूरी तरह तय है। फिर मोदी ने यह पैंतरा खेलते हुए उम्मीद जताई है कि राष्ट्रपति बनने के बाद रामनाथ कोविंद गरीबों, शोषितों और वंचितों की आवाज बनेंगे। ऐसा होगा या नहीं, कि मोदी ने भाजपा के लिए एक बड़ा सियासी कार्ड खोला है। दलितों की देश में आबादी 21 करोड़ से ज्यादा है। उत्तर प्रदेश में करीब 20 फीसदी आबादी दलितों की है। फिर मोदी का भविष्य के लिए फोकस भी दलितों, पिछड़ों और गरीबों पर है। लिहाजा उन्होंने राष्ट्रपति पद के लिए कोविंद का चयन करके 2019 की राजनीति को पुख्ता आधार देने की कोशिश की है। हालांकि यह नाम तय करने से पहले पीएम मोदी की टीम ने विपक्ष से साझा नहीं किया था। नाम घोषित होने के बाद उन्होंने पूर्व पीएम डा. मनमोहन सिंह, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और कुछ वरिष्ठ नेताओं को फोन पर सूचना दी, लेकिन यह एकतरफा फैसला है और सहमति की कोई भी मंशा दिखाई नहीं दी, लेकिन कोविंद के नाम ने विपक्ष खेमे के बिखरने के आसार बना दिए हैं। बिहार के मुख्यमंत्री एवं जनता दल यू के अध्यक्ष नीतीश कुमार ने कोविंद को समर्थन देने का ऐलान किया है। आंध्र और तेलंगाना में वाईएस कांग्रेस और तेलंगाना राष्ट्र समिति सरीखे गैर भाजपा दलों ने कोविंद को समर्थन देना घोषित किया है। तमिलनाडु से सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक के दोनों धड़ों ने 59,000 से अधिक वोटों का आश्वासन दिया है। बेशक अभी घोषणा शेष है। ओडिशा के बीजद ने भी एनडीए को समर्थन का ऐलान किया है। इस तरह एनडीए उम्मीदवार के पक्ष में 6.30 लाख वोट आने की पुख्ता संभावनाएं हैं, जबकि विपक्ष यूपीए के जरिए पूरी लामबंदी करता है, तो उसे 3.91 लाख से कुछ ज्यादा ही वोट नसीब होंगे। फासला बेहद चौड़ा है। निर्वाचक मंडल के कुल वोट 10,98,882 हैं। लिहाजा पहली बार देश में संघ भाजपा का राष्ट्रपति बनना तय है। रायसीना रोड पर स्थित राष्ट्रपति भवन में केआर नारायणन के बाद कोविंद दूसरे दलित राष्ट्रपति होंगे, लेकिन उत्तर प्रदेश से ऐसा चेहरा पहली बार है। यही पीएम मोदी की राजनीति और रणनीति है।
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