सांसदों विधायकों को बाध्य नहीं कर सकते राजनीतिक दल
नई दिल्ली।
राष्ट्रपति चुनाव में राजनीतिक दलों द्वारा अपने सांसदों और विधायकों को किसी उम्मीदवार को वोट करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है। विधायक और सांसद अपनी पार्टी के विरुद्ध जाकर अपनी पसंद के उम्मीदवार को वोट कर सकते हैं। संविधान विशेषज्ञों का कहना है कि किसी प्रत्याशी विशेष के पक्ष में वोट करने संबंधी निर्देश कानून की दृष्टि से बाध्य नहीं होते हैं।भारतीय निर्वाचन आयोग ने भी हाल में एक वक्तव्य जारी किया था, बहरहाल, राजनीतिक दल अपने सदस्यों को किसी विशेष तरीके से वोट करने या नहीं करने का कोई निर्देश या व्हिप जारी कर उनके विकल्प समाप्त नहीं कर सकता है क्योंकि यह भारतीय दंड संहिता की धारा 171सी के मायनों के तहत अनावश्यक रूप से प्रभावित करने के समान होगा।
इस बारे में पूछे जाने पर राज्यसभा के पूर्व महासचिव विनोद कुमार अग्निहोत्री ने बताया, संविधान के अनुसार राष्ट्रपति चुनाव में गुप्त मतदान होता है और मतदाता अपनी पसंद के अनुसार वोट डालता है। पर व्यावहारिक तौर पर देखने को मिलता है कि राजनीतिक दलों के मुख्य सचेतक या अन्य नेता अपने दल के सदस्यों को राष्ट्रपति चुनाव में किसी विशेष उम्मीदवार के पक्ष में वोट डालने के लिए मौखिक तौर पर निर्देश देते हैं। पूर्व में व्हिप जारी करने के कुछ मामले भी हुए हैं।" उन्होंने कहा, "किन्तु यदि कोई सदस्य पार्टी के निर्देश के खिलाफ वोट करता है तो उस पर संविधान के अनुच्छेद 10 के अनुरूप कोई कार्रवाई नहीं हो सकती।
वर्तमान राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के निवार्चन के दौरान निर्वाचन अधिकारी रहे अग्निहोत्री ने कहा, "कुछ लोगों का यह भी मानना है कि जब यह चुनाव पार्टी आधार पर नहीं हो रहा है तो वह अपने सदस्यों को यह कैसे निर्देश दे सकती है कि आप इसे वोट करिए या नहीं करिए।" अग्निहोत्री ने कहा कि राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति चुनाव कोई पार्टी आधार पर नहीं लड़ा जाता। इसके मतपत्र में बस उम्मीदवार का नाम लिखा होता है। मतदाता को उसके समक्ष अपनी प्राथमिकता लिखनी होती है। प्रथम प्राथमिकता वाले वोट का उम्मीदवार के लिए सबसे अधिक महत्व होता है। चुनाव से पहले पार्टियां अपने सदस्यों को अनौपचारिक रूप से यह अवगत करा देती हैं कि उम्मीदवार विशेष को अपनी पहली प्राथमिकता वाला वोट देना।
संविधान मामलों के जानकार एवं उच्चतम न्यायालय के वकील देवेन्द्र शर्मा का कहना है कि चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों को व्हिप या निर्देश नहीं जारी करने के बारे में जो कहा है, उसके पीछे सामान्य समझ यही कहती है कि यह चुनाव सरकार के बहुमत को साबित करने के लिए नहीं है। यह चुनाव संविधान के शीर्ष संरक्षक के पद के लिए है और संविधान में स्पष्ट कहा गया है कि यह चुनाव दलगत आधार पर नहीं हो सकता।
इस बारे में पूछे जाने पर राज्यसभा के पूर्व महासचिव विनोद कुमार अग्निहोत्री ने बताया, संविधान के अनुसार राष्ट्रपति चुनाव में गुप्त मतदान होता है और मतदाता अपनी पसंद के अनुसार वोट डालता है। पर व्यावहारिक तौर पर देखने को मिलता है कि राजनीतिक दलों के मुख्य सचेतक या अन्य नेता अपने दल के सदस्यों को राष्ट्रपति चुनाव में किसी विशेष उम्मीदवार के पक्ष में वोट डालने के लिए मौखिक तौर पर निर्देश देते हैं। पूर्व में व्हिप जारी करने के कुछ मामले भी हुए हैं।" उन्होंने कहा, "किन्तु यदि कोई सदस्य पार्टी के निर्देश के खिलाफ वोट करता है तो उस पर संविधान के अनुच्छेद 10 के अनुरूप कोई कार्रवाई नहीं हो सकती।
वर्तमान राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के निवार्चन के दौरान निर्वाचन अधिकारी रहे अग्निहोत्री ने कहा, "कुछ लोगों का यह भी मानना है कि जब यह चुनाव पार्टी आधार पर नहीं हो रहा है तो वह अपने सदस्यों को यह कैसे निर्देश दे सकती है कि आप इसे वोट करिए या नहीं करिए।" अग्निहोत्री ने कहा कि राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति चुनाव कोई पार्टी आधार पर नहीं लड़ा जाता। इसके मतपत्र में बस उम्मीदवार का नाम लिखा होता है। मतदाता को उसके समक्ष अपनी प्राथमिकता लिखनी होती है। प्रथम प्राथमिकता वाले वोट का उम्मीदवार के लिए सबसे अधिक महत्व होता है। चुनाव से पहले पार्टियां अपने सदस्यों को अनौपचारिक रूप से यह अवगत करा देती हैं कि उम्मीदवार विशेष को अपनी पहली प्राथमिकता वाला वोट देना।
संविधान मामलों के जानकार एवं उच्चतम न्यायालय के वकील देवेन्द्र शर्मा का कहना है कि चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों को व्हिप या निर्देश नहीं जारी करने के बारे में जो कहा है, उसके पीछे सामान्य समझ यही कहती है कि यह चुनाव सरकार के बहुमत को साबित करने के लिए नहीं है। यह चुनाव संविधान के शीर्ष संरक्षक के पद के लिए है और संविधान में स्पष्ट कहा गया है कि यह चुनाव दलगत आधार पर नहीं हो सकता।
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