शनिवार, जुलाई 08, 2017

ये क्लब है जरा हटके: यहां लोग आते हैं रोने के लिए और जाते हैं हंसते हुए

नई दिल्ली। 
कहते हैं जीवन में खुशियों के लिए रोना भी जरूरी है, क्योंकि हंसने के साथ रोना भी भावनाएं व्यक्त करने का तरीका है। जिंदगी की भागदौड़ में इंसानों को कई बार रोने तक की फुर्सत नहीं होती है, जिसके चलते डिप्रेशन के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। लोगों को इस समस्या से बचाने के लिए गुजरात के सूरत में क्राइंग क्लब शुरू किया गया है, जहां इंसान रो कर अपने दिल के बोझ को हल्का कर सकता है। इतना ही नहीं, इस क्लब मेंहर रविवार को क्राइंग थैरेपी की क्लास कराई जाती है। यहां आकर लोग अपने तनाव और अकेलेपन को दूर करते हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक लोगों को रुलाने के लिए उन्हें जिंदगी के बुरे पल और दुखद घटनाएं याद दिलाई जाती हैं। साथ ही उन्हें उस बात को याद करने के लिए भी कहा जाता है, जिसे याद कर वे सबसे ज्यादा भावुक हो जाते हैं। इसे देश का पहला क्राइंग क्लब बताया जा रहा है।
इस क्लब की स्थापना लॉफ्टर थैरेपिस्ट और साइक्लोजिस्ट कमलेश मसालावाला ने की है। पहले दिन 80 लोगों ने क्राइंग थैरेपी ली। कमलेश ने अलग-अलग तरीकों से लोगों को रुलाने की कोशिश की।
साइलेंट क्राइंग का भी एक सत्र रखा गया। इसमें लोगों को आंख बंद करके रोने के लिए कहा गया। इसके अलावा क्राइंग क्लास में हर किसी ने जिंदगी की एक बुरी घटना को आपस में साझा किया। हालांकि इसकी कोई फीस नहीं रखी गई है।
मालूम हो कि क्राइंग थैरेपी एक वेंटिलेटर थैरेपी है, इसमें व्यक्ति को रुलाकर उसके शरीर से हानिकारक टॉक्सिन को बाहर निकाला जाता है। इंसान की आंख में आंसू उस वक्त आते हैं, जब वह किसी बात को लेकर ज्यादा भावुक होता है, जैसे दुख, खुशी या फिर ज्यादा हंसने पर। आंसू से आंख को तकलीफ देने वाला पदार्थ निकल जाता है। डॉक्टरों के मुताबिक रोने से तनाव दूर होता है, ब्लड प्रेशर नॉर्मल और ब्लड सर्कुलेशन सामान्य रहता है। इंसान का भावुक होना जरूरी होता है।
सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि हर परेशानी को डिप्रेशन का नाम देना ठीक नहीं है। हमने खुद को इनता संवेदनशील और अविवेकी बना लिया है कि जीवन में आने वाले उतार-चढा़व को झेल नहीं पाते। जीवन की कश्मकश और चुनौतियों को स्वीकार करने की बजाय हम उनसे भागने लगते हैं। चुनौतियों से भागने से ये और विकराल रूप ले लेती हैं और अंत में जब हम इनसे डील नहीं कर पाते तो जो दबाव हम महसूस करते हैं उसे डिप्रेशन का नाम दे देते हैं। यह सही नहीं है। जीवन में आने वाली चुनौतियों को स्वीकार कर उनसे लड़ें न कि उन्हें डिप्रेशन का नाम दें।
डिप्रेशन में जाने की एक बड़ी वजह है, खुद से बिलिव कम होना। ज्यादातर लोग खुद में कमियां ही तलाशते हैं और यह सबकी आदत सी हो गई है। कोई खुद से खुश नहीं। किसी को अपनी नाक पसंद नहीं, किसी को चेहरे के मुहांसे, किसी को अपना बढ़ा वजन, तो किसी को लगता है कि रिलेशनशिप उसकी वजह से ठीक नहीं चल रहा।।। खुद में बहुत-सी कमियां तलाश कर हम खुद से नफरत करना शुरू कर देते हैं। हम यकीन कर लेते हैं कि 'हम अच्छे नहीं।Ó यही यकीन डिप्रेशन की नींव होता है। इसलिए आज से ही खुद से प्यार करना शुरू करें। यकीन करें कि आप बेहद खुबसूरत हैं, खुद को रोज शीशे में देखें। खुद से नजरें मिला कर कहें कि तुम बहुत अच्छे हो, मैं तुम्हें प्यार करती हूं।।।
आज के समय में युवा जिस चीज का सबसे ज्यादा प्रेशर महसूस करते हैं वह है पियर प्रेशर। जी हां, अक्सर हम अपने साथ पढऩे वाले ग्रुप, कुछ साल से साथ रहे दोस्तों को ही अपना सच्चा हितैषी मान बैठते हैं। खुद को उनकी नजरों में सही रखना, उनकी हर सलाह को मानना और कई ऐसे काम जो हम करना बिलकुल नहीं चाहते, लेकिन उन तथाकथित दोस्तों के दबाव और दोस्ती के नाम पर कर बैठते हैं। ऐसे कामों का अंत होता है डिप्रेशन पर।।। जब आप लगातार वह काम करते हैं, जिन्हें करने के लिए आपका मन नहीं मानता या आप खुश नहीं हैं, तो चाहे आपके पास कितने ही दोस्त क्यों न हों, अंत में आप खुद को अकेला ही पाएंगे डिप्रेशन के साथ। इसलिए यह जरूरी है कि आप इस बात की सही पहचान करें कि कौन असल में आपका दोस्त है और किससे आपकी महज जान पहचान।
डिप्रेशन की एक और बड़ी वजह है अपेक्षाएं।।। जी हां, कुछ अपेक्षाएं लोगों को हमसे होती हैं और उसी मात्रा में या उससे अधिक हमें लोगों से। जब ये अपेक्षाएं पूरी नहीं हो पाती, तो मानसिक अशांति और अंतर्द्वंद जन्म देता है डिप्रेशन को। कई बार परिवार वाले बच्?चों से बेहद अपेक्षा करते हैं और उन पर दबाव बनाते हैं, तो कई बार बच्चे अपने परिजनों से उनकी अपेक्षाएं पूरी करने का दबाव बनाते हैं। तो बेहतर है कि आप न ही दूसरों से अपेक्षा करें और न ही उनकी अपेक्षाओं को खुद पर हावी होने दें।

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